प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डायनेमिक लीडरशिप में पिछले छह वर्षों में भारत की विकास यात्रा अद्भुत, अकल्पनीय और प्रशंसनीय रही है। 2014 से पहले के दौर की चिंता, ठहराव और खोखले वादों के विपरीत इस बार जनता ने मजबूत नेतृत्व, लोगों में विश्वास, उनके सहयोग और आत्मविश्वास से समय से पहले लक्ष्य तक पहुंचने की क्षमता देखी है। निस्संदेह मोदी सरकार ने छह साल में छह दशकों के अंतर को मिटा दिया है और आत्मनिर्भर भारत की मजबूत नींव रखी है।

भारत को "फ्रैजाइल फाइव" से दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्था बनाना, भारत को आतंकवाद की छाया से बाहर निकालना और देश को इस खतरे के खिलाफ निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार करना, स्वच्छता को हर भारतीय की आदत और संस्कृति बनाना, गांवों और गरीब किसानों के जीवन को सही मायने में बदलने का संकल्प लेना, भारत ने मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही चुनौतियों को अवसरों में बदलने की अपनी क्षमता को देख लिया है। दूसरे कार्यकाल के पहले साल ने देश की जनता को भरोसा दिलाया है कि उनके सपने साकार होंगे।

भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अपने घोषणापत्र के हर वादे को लागू किया है। इसके संकल्प ने न केवल घोषणापत्र के महत्व को मान्यता दी, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को भी मजबूत किया है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35A को समाप्त करने, श्री राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने, मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के अभिशाप से मुक्त करने और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के माध्यम से समाज के वंचित वर्गों को नागरिकता का अधिकार देने जैसे कई ऐतिहासिक फैसलों से मोदी सरकार ने आजादी के बाद की ऐतिहासिक गलतियों को सुधारा है।

दूसरी ओर, दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना 'आयुष्मान भारत' के जरिए देश के करीब 50 करोड़ गरीब लोगों को इलाज के खर्च के बोझ से मुक्ति, उज्ज्वला योजना के जरिए करोड़ों गरीब महिलाओं का सशक्तिकरण, किसानों को सालाना 6,000 रुपये की आर्थिक सहायता, हर गरीब को आवास और जन-धन खाते के माध्यम से बैंकों तक पहुंच, नए भारत के कुछ व्यापक निर्णय हैं। इस तरह, मोदी सरकार 'क्रिएशन एंड रिफॉर्म' के बीच समन्वय की अभूतपूर्व मिसाल बन गई है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि राज्यसभा में भाजपा के पास बहुमत नहीं होने के बावजूद सभी महत्वपूर्ण विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किए गए।

मोदी सरकार द्वारा आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर निर्णायक हमले ने देश में एक अलग तरह का विश्वास जगाया है। यूएपीए (UAPA) और एनआईए एक्ट के जरिए आतंकवाद को कुंद किया है। भारत की आक्रामक विदेश और रक्षा नीतियों ने देश को सबसे आगे खड़ा कर दिया है और देश के बारे में दुनिया के नजरिए में पूरी तरह से बदलाव आ गया है।

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल में वैश्विक मंदी के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई फैसले लिए गए। इनमें नागरिक उड्डयन में FDI का मार्ग प्रशस्त करना, कॉरपोरेट टैक्स को कम करना, बैंकों का विलय, एनबीएफसी ऋणों पर रोक, कंपनी अधिनियम में सुधार, एमएसएमई क्षेत्र के विकास के लिए आसान ऋण व्यवस्था आदि शामिल हैं। दशकों से लंबित ब्रू-रियांग शरणार्थी और बोडो मुद्दों को भी मोदी 2.0 के पहले वर्ष में हल किया गया था। इसी तरह, दशकों से लंबित चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) का पद सृजित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। RCEP का विरोध करके देश के किसानों और व्यापारियों के हितों की रक्षा की गई, जिसका महत्व कोरोना वायरस की स्थिति में चीन की भूमिका से और भी रेखांकित होता है। डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाकर न केवल विदेशी निवेश आकर्षित किया, बल्कि इससे लाखों करोड़ की विदेशी मुद्रा की भी बचत हुई है।

किसानों, मजदूरों और छोटे उद्यमियों के लिए पेंशन योजना, जल शक्ति के नए मंत्रालय का निर्माण, एक देश-एक राशन कार्ड, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, फसलों की एमएसपी को डेढ़ गुना से अधिक बढ़ाने का निर्णय, आकांक्षी जिलों के लिए विकासत्मक योजना, उज्ज्वला और सौभाग्य योजना के साथ-साथ ओडीएफ के लिए स्वच्छ भारत अभियान से भारत ने स्थापित किया है कि विशेष रूप से जीडीपी के मामले में आर्थिक विकास भी, गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की मदद से प्राप्त किया जा सकता है।

मोदी सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन से प्रभावित लोगों, अर्थव्यवस्था, रोजगार, कृषि और उद्योगों के लिए 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है और इसने आत्मनिर्भर भारत के लिए एक नई सुबह की शुरुआत की है। अब तक विभिन्न योजनाओं के माध्यम से केवल दो महीने में गरीबों, मजदूरों, किसानों, विधवाओं, बुजुर्गों और विकलांग लोगों के खातों में लगभग 60,000 करोड़ रुपये से अधिक राशि हस्तांतरित की जा चुकी है। गरीबों के लिए पांच महीने के लिए मुफ्त राशन और मनरेगा के तहत 40,000 करोड़ रुपये का अलग से प्रावधान किया गया है।

जबकि, हम अप्रैल की शुरुआत में पीपीई किट, वेंटिलेटर और एन-95 मास्क के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर थे, आज हम इनका बड़े पैमाने पर उत्पादन करने में सक्षम हैं। अब देश में हर दिन करीब पांच लाख पीपीई किट और ढाई लाख एन-95 मास्क बन रहे हैं। वेंटिलेटर के स्वदेशी संस्करणों का निर्माण देश में कई संस्थानों द्वारा बाजार मूल्य से काफी कम कीमतों पर किया जा रहा है। एक मिलियन से अधिक कोरोना बेड उपलब्ध कराए गए हैं और हमने प्रतिदिन 1.5 लाख टेस्टिंग करने की क्षमता भी हासिल की है।

भारत ने सही समय पर लॉकडाउन के कारण कोरोना के प्रसार को काफी हद तक रोकने में कामयाबी हासिल की है। मोदी के नेतृत्व में भारत एक ऐसा राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है, जहां शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा सुविधाओं के समान और सही अवसर सभी के लिए उपलब्ध होंगे। पिछले छह वर्षों में भारत छह दशकों के अंतर को पाटकर एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। मोदी इस यात्रा के नायक हैं।

 

लेखक का नाम : अमित शाह

डिस्कलेमर :

यह आर्टिकल पहली बार  Times Of India में पब्लिश हुआ था।

यह उन कहानियों या खबरों को इकट्ठा करने के प्रयास का हिस्सा है जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और लोगों के जीवन पर उनके प्रभाव पर उपाख्यान / राय / विश्लेषण का वर्णन करती हैं।

 

 

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भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार
September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)