कुछ दिन पहले, भारतीय जनता पार्टी परिवार ने अपने सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक, श्री विजय कुमार मल्होत्रा जी को खो दिया। उन्होंने अपने जीवन में बहुत-सी उपलब्धियां हासिल कीं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण ये है कि उन्होंने कठोर परिश्रम, दृढ़ निश्चय और सेवा से भरा जीवन जिया। उनके जीवन को देखकर समझा जा सकता है कि आरएसएस, जनसंघ और भाजपा के मूल संस्कार क्या हैं। विपरीत परिस्थितियों में साहस का प्रदर्शन, स्वयं से ऊपर सेवा भावना, साथ ही राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता, यह उनके व्यक्तित्व की बहुत बड़ी पहचान रही।

वीके मल्होत्रा जी के परिवार ने विभाजन का भयावह दौर झेला। उस आघात और विस्थापन ने उन्हें कड़वा या आत्मकेंद्रित नहीं बनाया। इसके बजाए, उन्होंने स्वयं को दूसरों की सेवा में समर्पित कर दिया। उन्हें आरएसएस और जनसंघ की विचारधारा में राष्ट्रसेवा का रास्ता नजर आया। बंटवारे का वो समय बहुत चुनौतीपूर्ण था। मल्होत्रा जी ने सामाजिक कार्यों को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। उन्होंने उन हजारों विस्थापित परिवारों की मदद की, जिन्होंने सब कुछ खो दिया था। उनका जीवन संवारने और उन्हें फिर से खड़े होने में मदद की। यही जनसंघ की प्रेरणा थी। उन दिनों उनके साथी मदनलाल खुराना जी और केदारनाथ साहनी जी भी बढ़-चढ़कर सेवा कार्यों में शामिल होते थे। उन लोगों की निस्वार्थ सेवा को आज भी दिल्ली के लोग याद करते हैं।

1967 के लोकसभा और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव तब अपराजेय मानी जाने वाली कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले रहे थे। इसकी बहुत चर्चा होती है, लेकिन एक कम चर्चित चुनाव भी हुआ। वो था, दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का पहला चुनाव। राष्ट्रीय राजधानी में जनसंघ ने शानदार जीत दर्ज की। आडवाणी जी काउंसिल के चेयरमैन बने और मल्होत्रा जी को चीफ एग्जीक्यूटिव काउंसलर की जिम्मेदारी दी गई, जो मुख्यमंत्री के लगभग बराबर का पद था। तब उनकी उम्र केवल 36 वर्ष थी। उन्होंने अपने कार्यकाल को दिल्ली की जरूरतों, खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर और लोगों से जुड़े मुद्दों पर फोकस किया।

इस जिम्मेदारी ने मल्होत्रा जी का दिल्ली से जुड़ाव और मजबूत कर दिया। जनहित से जुड़े हर मुद्दे पर मल्होत्रा जी सक्रिय रूप से जनता के साथ खड़े होते और उनकी आवाज बुलंद करते। उन्होंने 1960 के दशक में गौ रक्षा आंदोलन में भी हिस्सा लिया, जहां उनके साथ पुलिस की ज्यादतियां भी खूब हुईं। आपातकाल विरोधी आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। दिल्ली की सड़कों पर जब  सिखों का बेरहमी से कत्लेआम हो रहा था, तब वे शांति और सद्भावना की आवाज बनकर सिख समुदाय के साथ पूरी मजबूती से खड़े रहे। उनका मानना था कि राजनीति, चुनावी सफलता के अलावा सिद्धांतों, मूल्यों और लोगों की रक्षा के लिए भी है, जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

1960 के दशक के उत्तरार्ध में वीके मल्होत्रा जी सार्वजनिक जीवन का एक स्थायी चेहरा बन गए थे। बहुत कम नेता ऐसा दावा कर सकते हैं कि उनके पास लोगों के बीच रहकर काम करने का इतना लंबा और ठोस अनुभव है। वो एक अथक कार्यकर्ता, उत्कृष्ट संगठनकर्ता और एक संस्था निर्माता थे। उनमें चुनावी राजनीति और संगठनात्मक राजनीति, दोनों में समान रूप से सहजता के साथ काम करने की अद्भुत क्षमता थी। उन्होंने जनसंघ और भाजपा की दिल्ली इकाई को स्थिर नेतृत्व दिया।

अपने लंबे सेवाकाल में मल्होत्रा जी ने सिविक एडमिनिस्ट्रेशन संभाला, राज्य विधानसभा में भी पहुंचे और देश की संसद में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। 1999 के लोकसभा चुनाव में डॉ. मनमोहन सिंह के खिलाफ उनकी शानदार जीत समर्थकों और विरोधियों के बीच आज भी याद की जाती है। ये एक बेहद हाई-प्रोफाइल चुनाव था। कांग्रेस की पूरी ताकत उनके दक्षिण दिल्ली क्षेत्र में उतर आई थी। लेकिन मल्होत्रा जी ने कभी बहस का स्तर नीचे नहीं किया। उन्होंने पॉजिटिव कैंपेन चलाया। गालियों और हमलों को नजरअंदाज किया और 50 प्रतिशत से ज्यादा वोटों के साथ जीत हासिल की। ये जीत सिर्फ प्रचार के दम पर नहीं मिली थी। ये जीत मल्होत्रा जी की जमीन पर मजबूत पकड़ की वजह से मिली थी। कार्यकर्ताओं से आत्मीय संबंध बनाकर रखने और मतदाताओं के मन की थाह लेने में वो माहिर थे।

मल्होत्रा जी संसद में सटीक तैयारी के साथ अपनी बात रखते थे। वो पूरी रिसर्च करके आते थे और प्रभावी ढंग से अपनी बात रखते थे। यूपीए-1 के दौरान विपक्ष के उपनेता के रूप में उन्होंने जिस तरीके से काम किया, वो राजनीति में आने वाले युवाओं के लिए एक मूल्यवान सबक की तरह है। उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। उन्होंने भ्रष्टाचार और आतंकवाद को लेकर यूपीए सरकार का प्रभावी ढंग से विरोध किया। उन दिनों मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था और अक्सर मल्होत्रा जी से बातचीत होती। वो हमेशा गुजरात की विकास यात्रा के बारे में जानने को उत्सुक रहते थे।

राजनीति, वीके मल्होत्रा जी के व्यक्तित्व का केवल एक पहलू थी। वो एक उत्कृष्ट शिक्षाविद भी थे। उनके परिवार से मुझे पता चला कि उन्होंने स्कूल में डबल प्रमोशन हासिल किया। उन्होंने मैट्रिक और ग्रेजुएशन निर्धारित समय से पहले पूरी कर ली। उनकी हिंदी पर इतनी अच्छी पकड़ थी कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के भाषणों का हिंदी अनुवाद प्रायः वही करते थे।

उन्हें नई संस्थाएं और नई व्यवस्थाएं बनाने के लिए भी जाना जाता है। वे आरएसएस से जुड़ी कई संस्थाओं के संस्थापक और संरक्षक रहे। उनके प्रयासों से अनेक सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक संस्थाओं का विकास हुआ और मार्गदर्शन मिला। इन संस्थाओं के माध्यम से कई प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर मिला। उनके मार्गदर्शन में बनी संस्थाएं प्रतिभा और सेवा की पाठशालाएं बनीं। उन्होंने एक ऐसे समाज का विजन दिया, जो आत्मनिर्भर हो और मूल्यों पर टिका हो।

मल्होत्रा जी ने राजनीति और अकादमिक जीवन से परे, खेल जगत में भी अमिट छाप छोड़ी। तीरंदाजी उनका गहरा शौक था और वो कई दशकों तक आर्चरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे। उनके नेतृत्व में भारतीय तीरंदाजी को ग्लोबल पहचान मिली। उन्होंने खिलाड़ियों को मंच और अवसर दिलाने के लिए निरंतर अथक प्रयास किए। खेल प्रशासन में भी उन्होंने वही गुण दिखाए जो सार्वजनिक जीवन में थे, यानी समर्पण, संगठन क्षमता और उत्कृष्टता की निरंतर खोज।

वी के मल्होत्रा जी को आज लोग उनके द्वारा संभाले गए पदों के साथ ही उनकी संवेदनशीलता के लिए भी याद कर रहे हैं। उनकी पहचान एक ऐसे व्यक्तित्व की रही, जो हमेशा लोगों की मुश्किलों में उनके साथ खड़े रहे। जहां भी मदद की जरूरत पड़ी, वहां उन्होंने खुद आगे बढ़कर योगदान दिया। विपरीत परिस्थितियों में भी अपने दायित्वों से पीछे नहीं हटे। वे आदर्श पार्टी कार्यकर्ता थे, कभी ऐसा कुछ नहीं बोलते थे जिससे हमारे कार्यकर्ताओं या विचारधारा को ठेस पहुंचे।

कुछ दिन पहले, मैं दिल्ली भाजपा के नए मुख्यालय के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुआ था। वहां मैंने स्नेहपूर्वक श्री वीके मल्होत्रा जी को याद किया था। इस वर्ष तीन दशक बाद जब भाजपा ने दिल्ली में सरकार बनाई, तो वो बहुत उत्साहित थे। उनकी अपेक्षाएं बहुत बड़ी थीं, जिन्हें हम पूरी करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आने वाली पीढ़ियां उनके जीवन और उपलब्धियों से प्रेरणा पाती रहेंगी।

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भारत का समुद्री पुनर्जागरण
October 30, 2025

पीएम मोदी ने भारत के समुद्री क्षेत्र में हुए बदलाव और अपनी गौरवशाली समुद्री विरासत के साथ देश के नए जुड़ाव पर प्रकाश डालते हुए एक ब्लॉग लिखा। उन्होंने बताया कि कैसे आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, ग्रीन इनिशिएटिव और अहम सुधारों ने अभूतपूर्व विकास को गति दी है। पीएम ने दुनियाभर के निवेशकों को भारत की तेजी से बढ़ती "ब्लू इकोनॉमी" का हिस्सा बनने के लिए भी आमंत्रित किया।

कल मैं मुंबई में था, जहाँ मैंने “Maritime Leaders Conclave” में हिस्सा लिया, जो “इंडिया मैरीटाइम वीक 2025” का एक हिस्सा है। मुंबई का भारत के समुद्री क्षेत्र से गहरा नाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज के ऐतिहासिक संबंधों से लेकर आज के आधुनिक बंदरगाह ढांचे तक, यह शहर हमारे देश का एक अहम व्यापारिक केंद्र है। वहाँ मैंने प्रमुख सीईओ और उद्योग जगत के अन्य लोगों से मुलाकात की। इन चर्चाओं में भारत के बंदरगाह आधारित विकास को लेकर जो उत्साह दिखा, वह वास्तव में प्रेरणादायक था।

हम अपनी जड़ों से कट गए थे:

भारत की गौरवशाली समुद्री विरासत सर्वविदित है। हम हमेशा से जहाज बनाने और तटीय व्यापार के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। हम चोल और मराठों की भूमि हैं, जिनकी नौसैनिक शक्ति, व्यापारिक प्रभाव और रणनीतिक प्रतिभा प्रगति और शक्ति के मार्ग बने। उनकी दूरदर्शिता ने हमें दिखाया कि कैसे महासागर अवसरों के सेतु का काम कर सकते हैं।

लेकिन लगभग एक दशक पहले, जब हमने सरकार संभाली, तो भारत का समुद्री क्षेत्र पुराने कानूनों और सीमित क्षमता से जूझ रहा था। यह स्थिति हमें स्वीकार्य नहीं थी। इसलिए हमने इंफ्रास्ट्रक्चर, सुधारों और जनभागीदारी पर ध्यान दिया। पिछले ग्यारह वर्षों में इस क्षेत्र में बड़े बदलाव आए हैं। आज भारत का समुद्री क्षेत्र आधुनिक, वैश्विक भरोसे और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बन चुका है।

समुद्री विकास जिसने पैमाने को पुनर्परिभाषित किया:

इन आँकड़ों से सब कुछ स्पष्ट है —

भारत की बंदरगाह क्षमता 1,400 से बढ़कर 2,762 एमएमटीपीए हो गई है।

कार्गो हैंडलिंग 972 से बढ़कर 1,594 एमएमटी हो गई है, जिसमें से 855 एमएमटी केवल वित्त वर्ष 2024–25 में संभाली गई।

जहाजों के ठहराव का समय 93 घंटे से घटाकर 48 घंटे कर दिया गया है।

नेट सरप्लस 1,026 करोड़ रुपये से नौ गुना बढ़कर 9,352 करोड़ रुपये हो गया।

ऑपरेटिंग अनुपात 73% से घटकर 43% हो गया — यानी दक्षता का नया दौर शुरू हुआ है।

यह सब ऐसे ही नहीं हुआ है। हर जहाज़ और बंदरगाह के पीछे हमारे कुशल समुद्री कर्मचारी हैं। भारत का समुद्री कार्यबल 1.25 लाख से बढ़कर 3 लाख से अधिक हो गया है, जो अब वैश्विक समुद्री कार्यबल का 12% है। भारत आज दुनिया में प्रशिक्षित नाविकों के शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ताओं में से एक है।

शिपिंग और जलमार्ग - विकास के नए इंजन:

भारत की समुद्री शक्ति तटों और नदियों के पार फैल रही है।

भारतीय झंडा लगाए जहाजों की संख्या 1,205 से बढ़कर 1,549 हो गई, और बेड़े का सकल टन भार 10 मिलियन टन से बढ़कर 13.52 मिलियन टन हो गया। तटीय शिपिंग कार्गो लगभग दोगुना होकर 87 मिलियन टन से 165 मिलियन टन हो गया।

अंतर्देशीय जलमार्ग कार्गो में 710% की वृद्धि हुई, जो 2014 में 18 मिलियन टन से बढ़कर 2025 में 146 मिलियन टन हो गया। संचालित जलमार्गों की संख्या 3 से बढ़कर 32 हो गई, जबकि नौका और रो-पैक्स सेवाओं से 2024-25 में 7.5 करोड़ यात्री यात्रा कर चुके हैं।

आधुनिक पोर्ट, हरित भविष्य::

भारत के समुद्री क्षेत्र का दृष्टिकोण स्थायित्व और नवाचार पर आधारित है।

विझिंजम पोर्ट भारत का पहला गहरे पानी वाला ट्रांसशिपमेंट हब बन गया है। कांडला बंदरगाह देश की पहली ग्रीन हाइड्रोजन सुविधा का केंद्र है। जेएनपीटी ने अपनी क्षमता दोगुनी कर ली है और पोर्ट के इतिहास में सबसे बड़ा विदेशी निवेश आकर्षित किया है।

महाराष्ट्र के पालघर में लगभग ₹76,000 करोड़ के निवेश के साथ, वधावन पोर्ट प्रोजेक्ट, 20 मीटर की गहराई वाले डीप-ड्राफ्ट पोर्ट्स में से एक होगा। इसकी रेलवे और हाईवे कनेक्टिविटी, दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे और वेस्टर्न फ्रेट कॉरिडोर के नज़दीक होने से यह क्षेत्र लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग और व्यापार के नए अवसर पैदा करेगा।

रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म:

सुधार ने समुद्री क्षेत्र में भारत की प्रगति को गति दी है।

बिल्स ऑफ लैडिंग बिल से लेकर भारतीय पोर्ट बिल (2025) तक, पाँच ऐतिहासिक बिल ने समुद्री शासन का आधुनिकीकरण किया है, व्यापार को सरल बनाया है, राज्यों को सशक्त बनाया है और भारत को वैश्विक मानकों से जोड़ा है।

इस विकास को तेजी देने के लिए, सरकार ने समुद्री क्षेत्र के लिए ₹70,000 करोड़ का विशेष पैकेज मंजूर किया है।

शिपबिल्डिंग सहायता योजना, समुद्री विकास कोष और शिपबिल्डिंग विकास योजना 4.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आकर्षित करेगी और 2,500 से अधिक जहाजों के निर्माण में मदद करेगी। यह पहल भारत को शिपबिल्डिंग और समुद्री नवाचार में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल करेगी।

आइए, भारत में निवेश करें

मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ की भारत निवेश के लिए सबसे उपयुक्त ठिकाना है।

हमारे पास —

एक लंबा तटीय क्षेत्र है,
रणनीतिक वैश्विक व्यापार मार्ग हैं,
विश्वस्तरीय पोर्ट हैं,
ब्लू इकोनॉमी के लिए एक बड़ा और महत्वाकांक्षी विजन है।

हमारे पास बुनियादी ढांचा, नवाचार और स्पष्ट इरादे — तीनों हैं।
हमारे युवा नवाचार को नई उड़ान दे रहे हैं, और हमारा इकोसिस्टम तैयार है।

आइए, भारत की इस समुद्री यात्रा का हिस्सा बनिए।