Quoteहमारी आजादी न केवल हमारे देश के लिए थी बल्कि इससे विश्व के अन्य भागों में भी उपनिवेशवाद का अंत करने की प्रेरणा मिली: पीएम मोदी
Quoteभ्रष्टाचार रुपी दीमक ने हमारे देश की विकास यात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है: प्रधानमंत्री मोदी
Quoteगरीबी, अशिक्षा और कुपोषण आज हमारे देश के सामने बड़ी चुनौतियां, हमें इसमें सकारात्मक बदलाव लाने की आवश्यकता: पीएम मोदी
Quote1942 में गाँधी जी का आह्वान था - ‘करेंगे या मरेंगे’ और आज की जरुरत है - ‘करेंगे और कर के रहेंगे’: प्रधानमंत्री मोदी
Quote2017 से 2022 तक, ये 5 वर्ष ‘संकल्प से सिद्धि’ के वर्ष हैं: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

आदरणीय अध्‍यक्ष महोदया, मैं आपका और सदन के सभी आदरणीय सदस्‍यों का आभार भी व्‍यक्‍त करता हूं और हम सब आज गौरव भी महसूस कर रहे हैं कि अगस्‍त क्रांति का, उन्‍हें स्‍मरण करने का, इस सदन के पवित्र स्‍थान पर हम लोगों को सौभाग्‍य मिला है। हम में से बहुत लोग हैं जिन्‍हें शायद अगस्‍त क्रांति, 9 अगस्‍त, उन घटनाओं का स्‍मरण होगा। लेकिन उसके बाद भी हम लोगों के लिए भी पुन: स्‍मरण प्रेरणा का कारण बनता है और तमाम जीवन में ऐसी महत्‍वपूर्ण घटनाओं का बार-बार स्‍मरण, जीवन की भी अच्‍छी घटनाओं का बार-बार स्‍मरण जीवन को एक नई ताकत देता है; राष्‍ट्र-जीवन को भी नई ताकत देता है। उसी प्रकार से हमारी जो नई पीढ़ी है, उन तक भी ये बात पहुंचाना हम लोगों का कर्तव्‍य रहता है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी इतिहास के एक स्‍वर्णिम पृष्‍ठों को, उस समय के माहौल को, उस समय के हमारे महापुरुषों के बलिदान को, कर्तव्‍य को, सामर्थ्‍य को, आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का भी हर पीढ़ी का दायित्‍व रहता है।

जब अगस्‍त क्रांति के 25 साल हुए, 50 साल हुए, देश के सभी लोगों ने उन घटनाओं का स्‍मरण किया था। आज 75 साल हो रहे हैं, और मैं इसे बड़ा महत्‍वपूर्ण मानता हूं। और इसलिए मैं अध्‍यक्ष महोदया जी का आभारी हूं कि आज हमें ये अवसर मिला है।

देश के स्‍वतंत्रता आंदोलन में 9 अगस्‍त एक ऐसी अवस्‍था में है, इतना व्‍यापक, इतना तीव्र आंदोलन, अंग्रेजों ने भी कल्‍पना नहीं की थी।

महात्‍मा गांधी, वरिष्‍ठ नेता, सब जेल चले गए। और वही पल था कि अनेक नए नेतृत्‍व ने जन्‍म लिया। लाल बहादुर शास्‍त्री, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, कई अनेक youth युवा उस समय उस जो खाली जगह थी उसको भरा और आंदोलन को आगे बढ़ाया। इतिहास की ये घटनाएं हम लोगों के लिए एक नई प्रेरणा, नया सामर्थ्‍य, नया संकल्‍प, नया कृतत्‍व जगाने के लिए किस प्रकार से अवसर बने, ये हम लोगों का निरंतर प्रयास रहना चाहिए।

1947 में देश आजाद हुआ। एक प्रकार से 1857 से ले करके 1947 तक, आजादी के आंदोलन के अलग-अलग पड़ाव आए, अलग-अलग पराक्रम हुए, अलग-अलग बलिदान हुए; उतार-चढ़ाव भी आए। अलग-अलग मोड़ पर से ये आंदोलन गुजरा, लेकिन सैं‍तालिस की आजादी के पहले बयालिस की घटना एक प्रकार से अंतिम व्‍यापक आंदोलन था, अंतिम व्‍यापक जन-संघर्ष था और उस जन-संघर्ष ने आजादी के लिए देशवासियों को सिर्फ समय का ही इंतजार था, वो स्थिति पैदा कर दी थी। और जब हम आजादी के इस आंदोलन की ओर देखते हैं, तो nineteen forty two (1942) एक ऐसी पीठिका तैयार हुई थी, 1857 का स्‍वतंत्रता संग्राम, एक साथ देश के हर कोने में आजादी का बिगुल बजा था। और उसके बाद महात्‍मा गांधी का विदेश से लौटना, लोकमान्‍य तिलक का पूर्ण स्‍वराज्‍य और ‘’स्‍वराज्‍य मेरा जन्‍म सिद्ध अधिकार है’’ उस भाव को प्रकट करना, 1930 में महात्‍मा गांधी की डांडी मार्च, नेताजी सुभाष बोस द्वारा आजाद हिंद फौज की स्‍थापना, अनेक youth वीर भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चंद्रशेखर आजाद, चाफेकर बंधु, अनगिनत अपने-अपने समय पर बलिदान देते रहे। ये सारा ने एक पीठिका तैयार की और उस पीठिका का परिणाम था कि बयालिस में देश को एक उस छोर पर लाकर रख दिया कि अब नहीं तो कभी नहीं। आज नहीं होगा तो फिर कभी नहीं होगा, ये मिजाज देशवासियों का बन गया था। और इसके कारण उस आंदोलन में इस देश का छोटा-मोटा हर व्‍यक्ति जुड़ गया था। कभी लगता था राजाजी का आंदोलन elite class के द्वारा चल रहा है, लेकिन बयालिस की घटना, देश का कोई कोना ऐसा नहीं था, देश का कोई वर्ग ऐसा नहीं था, देश की कोई सामाजिक अवस्‍था ऐसी नहीं थी, कि जिसे इसे अपना न माना हो। और गांधी के शब्‍दों को ले करके वो चल पड़े थे। यही तो आंदोलन था, जब अंतिम स्‍वर में बात आई भारत छोड़ो। और सबसे बड़ी बात है महात्‍मा गांधी के पूरे आंदोलन में जो भाव कभी प्रकट नहीं हो सकता था, पूरे गांधी के चिंतन-मनन और विचार और आचार को देखें, उससे हट करके घटना घटी। इस महापुरुष ने कहा, करेंगे या मरेंगे। गांधी के मुंह से करेंगे या मरेंगे, शब्‍द देश के लिए अजूबा था। और इसलिए गांधी को भी उस समय कहना पड़ा था, और उन्‍होंने शब्‍द कहा था, ‘’आज से आप में हर एक को स्‍वयं को एक स्‍वतंत्र महिला या पुरुष समझना चाहिए और इस प्रकार काम करना चाहिए, मानों आप स्‍वतंत्र हैं। मैं पूर्ण स्‍वतंत्रता से कम किसी भी चीज पर संतुष्‍ट होने वाला नहीं हूं। ‘हम करेंगे या मरेंगे।’ ये बापू के शब्‍द थे और बापू ने स्‍पष्‍ट भी किया था कि मैंने मेरे अहिंसा के मार्ग को छोड़ा नहीं है। लेकिन आज स्थिति ऐसी और वो समय जन- सामान्‍य का दबाव ऐसा था कि बापू के लिए भी उसका नेतृत्‍व संभालते हुए उन जन-भावनाओं के अनुकूल इन शब्‍द प्रयोगों को करना हुआ था।

मैं समझता हूं कि उस समय समाज के जब सभी वर्ग जुड़ गए, गांव हो, किसान हो, मजदूर हो, टीचर हो, स्‍टूडेंट हो हर कोई इस आंदोलन के साथ जुड़ गए और करेंगे या मरेंगे और बापू तो यहां तक कहते थे कि अंग्रेजों की हिंसा के कारण कोई भी शहीद होता है तो उसके शरीर पर एक पट्टी लिखनी चाहिए करेंगे या मरेंगे और वो इस आजादी का आंदोलन का शहीद है। इस प्रकार की ऊंचाई तक इस आंदोलन को बापू ने ले जाने का प्रयास किया था और उसी का परिणाम था कि भारत गुलामी की जंजीरो से मुक्‍त हुआ। देश उस मुक्ति के लिए छटपटा रहा था नेता हो या नागरिक किसी की इस भावना की तीव्रता में कसु भर भी अंतर नहीं था और मैं समझता हूं देश जब उठ खड़ा होता है सामूहिकता की जब शक्ति पैदा होती है, लक्ष्‍य निर्धारित होता है और निर्धारित लक्ष्‍य  पर चलने के लिए लोग कृतसंगत होकर के चल पड़ते हैं तो 42 से 47 पांच साल के भीतर-भीतर बेडि़या चुर-चुर हो जाती हैं और मां भारती आजाद हो जाती है और इसलिए और उस समय रामवृक्ष बेनीपुरी उन्‍होंने एक किताब लिखी है जंजीरें और दीवारें और उस प्रस्‍तुति का वर्णन करते हुए उन्‍होंने लिखा है “एक अद्भुत वातावरण पूरे देश में बन गया। हर व्यक्ति नेता बन गया और देश का प्रत्येक चौराहा करो या मरो आंदोलन का दफ्तर बन गया। देश ने स्वयं को क्रांति के हवन कुंड में झोंक दिया। क्रांति की ज्वाला देश भर में धू-धू कर जल रही थी। बम्बई ने रास्ता दिखा दिया। आवागमन के सारे साधन ठप हो चुके थे। कचहरियां विरान हो चली थीं। भारत के लोगों की वीरता और ब्रिटिश सरकार की नृशंसता की खबरें पहुंच रही थी। जनता ने करो या मरो के गांधीवादी मंत्र को अच्छी तरह से दिल में बैठा लिया था”। 

उस समय का ये वर्णन उस किताब जब ये पढ़ते है तो चलता है कि किस प्रकार का माहौल होगा और एक वो समय था कि ये घटना ने ये बात सही है कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद जो था इसका आरंभ हिन्‍दुस्‍तान में हुआ और इस घटना के बाद उसका अंत भी हिन्‍दुस्‍तान से हुआ था।  भारत आजाद होना सिर्फ भारत की आजादी नहीं थी 1942 के बाद विश्‍व के जिन-जिन भू-भाग में अफ्रीका में एशिया में इस उपनिवेशवाद के खिलाफ एक ज्‍वाला भड़की उसकी प्रेरणा केंद्र भारत बन गया था। और इसलिए भारत सिर्फ भारत की आजादी नहीं एक आजादी की ललक विश्‍व के कई भागों में फैलाने में भारत के जनसामान्‍य का संकल्‍प और कतृत्‍वय कारण बन गया था और कोई भी भारतीय इस बात के लिए गर्व कर सकता है और उसको हमने देखा कि एक बार भारत आजाद हुआ उसके बाद एक के बाद एक उपनिवेशवाद के सारे लोगों के झंडे ढ़हते गए और आजादी सब युग तक पहुंचने लगी। कुछ ही वर्षों में दुनिया के सारे देशों में आजादी प्राप्‍त हो गर्इ और ये काम बताता है कि ये भारत की इच्‍छाशक्ति का प्रबल इच्‍छाशक्ति का एक उत्‍तमोत्‍तम परिणाम था, हमारे लिए सबक यही है कि जब हम एक मन करके संकल्‍प लेकर के पूरे सामर्थ्‍य के साथ निर्धारित लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए जुड़ जाते हैं तो ये देश की ताकत है कि हम देश को संकटों से बाहर निकाल देते हैं, देश को गुलामी की जंजीरों से बाहर निकाल सकते हैं, देश को नए लक्ष्‍य की प्राप्ति के लिए तैयार कर सकते हैं, ये इतिहास ने बताया है और इसलिए उस समय इस पूरे आंदोलन को और पूज्‍य बापू के व्‍यक्तित्‍व को लगते हुए राष्‍ट्र कवि सोहन लाल द्विवेदी की जो कविता है बापू का सामर्थ्‍य क्‍या है उसको प्रकट करती है। कविता में उन्‍होंने कहा था 

चल पड़े जिधर दो डग, मग में

चल पड़े कोटि पग उसी ओर
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर

जिस तरफ गांधी के दो कदम चले थे उस तरफ अपने-आप करोड़ो लोग चल पड़ते थे, जिधर गांधी जी की दृष्टि टिक जाती थी उधर करोड़ो करोड़ आंखें देखने लग जाती थी और इसलिए इस महान व्‍यक्तित्‍व ने लेकिन आज जब हम 2017 में हैं हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि आज हमारे पास गांधी नहीं है आज हमारे पास उस समय जो ऊंचाई वाला नेतृत्‍व था वो आज हमारे पास नहीं है लेकिन सवा सौ करोड़ देशवासियों के विश्‍वास के साथ बैठे हुए हम सब लोग मिलकर के उन सपनों को पूरा करने का प्रयास करें तो मैं मानता हूं कि गांधी के सपनों को उन स्‍वतंत्रता सेनानियों के सपनों को पूरा करना मुश्किल काम नहीं है और आज आज का ये अवसर किसी बात के लिए हमें उस समय भी जो वैश्विक हालात थे 1942 में भारत की आजादी के लिए बहुत अनुकूल माहौल थे जो भी इतिहास से परिचित है उसे मालूम है मैं समझता हूं आज फिर से एक बार 2017 में जबकि Quit India Movement हम 75 साल मना रहे है उस समय विश्‍व में वो अनुकूलता है जो भारत के लिए बहुत सहानुकूल है और अनुकूल व्‍यवस्‍था का फायदा हम जितना जल्‍दी उठा दें जैसे उस समय विश्व के कई देशों के लिए हम प्रेरणा का कारण बने थे अगर आज हम मौका ले लें तो आज फिर से एक बार हम विश्व के कई देशों के लिए उपयोगी हो सकते हैं प्रेरणा का कारण बन सकते हैं, ऐसे मोड़ पर आज हम खड़े हैं 1942 & 2017 इस दोनों में वैश्विक परिवेश में भारत का महात्‍मय, भारत के लिए अवसर समान रूप से खड़ें हैं और उस समय हम इस बात को कैसे लें, हम उसकी जिम्‍मेवारी कैसे लें मैं मानता हूं इतिहास के इन प्रकरणों से सामर्थ्‍य से प्रेरणा लेकर के हमारे लिए दल से बड़ा देश होता है राजनीति से ऊपर राष्‍ट्नीति होती है मेरे अपने ऊपर सवा सौ करोड़ देशवासी होते हैं अगर उस भाव को लेकर के हम उड़ चले हम सब मिलकर के आगे बढ़ें तो हम इन समस्‍याओं के खिलाफ सफलतापूर्वक आगे बढ़ सकते हैं हम इस बात से इंकार कैसे कर सकते हैं कि भ्रष्‍टाचार रूपी दीमक ने देश को कैसे तबाह करके रखा हुआ है। राजनीतिक भ्रष्‍टाचार हो, सामाजिक भ्रष्‍टाचार हो या व्‍यक्तिगत भ्रष्‍टाचार हो कल क्‍या हुआ कब किसने किया उसके लिए विवाद के लिए समय बहुत होते हैं लेकिन आज पवित्र पल हम आगे तो ईमानदारी का उत्‍सव मना सकते हैं ईमानदारी का संकल्‍प लेकर के देश का नेतृत्‍व कर सकते हैं क्‍या देश को ले जा सकते हैं ये समय की मांग है देश के सामान्‍य मानवीकी की मांग है, गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा ये हमारे सामने चुनौतियां हैं इन चुनौतियों को हम सरकार की चुनौतियां न माने वो चुनौतिया देश की है देश की गरीब  के सामने संकट भरे सवाल खड़े हैं और इसलिए देश के लिए जीने मरने वाले देश के लिए संकल्‍प करने वाले हम सब लोगों का दायित्‍व बनता है इसको पूरा करने के लिए हम कुछ मुद्दों पर 1942 में भी अलग-अलग धारा के लोग थे। हिंसा में विश्‍वास करने वाले भी लोग थे नेता जी सुभाष बाबू की सोच अलग थी लेकिन 1942 में सबने एक स्‍वर से कह दिया था आपको गांधी के नेतृत्‍व में Quit India यही हमारा मार्ग है। हमारे भी लालन-पालन विचारधारा अलग-अलग रही होगी। लेकिन ये समय की मांग है कि हम कुछ बिंदुओं से देश को मुक्‍त कराने के लिए संकल्‍प का अवसर लेकर के चले चाहे गरीबी हो, भूखमरी हो, अशिक्षा हो अंत स्‍वत: हो। महात्‍मा गांधी का ग्राम स्‍वराज का सपना कितना पीछे छूट गया क्‍या कारण है कि गांव लोग छोड़ छोड़ कर के शहरो की ओर बस रहे है। गांव की उस चिंता को गांधी के मन में जो गांव था क्‍या हम हमारे भीतर उसको पुर्नजीवित कर सकते हैं क्‍या गांव गरीब किसान दलित पीढ़ी शोषित वंचित उसके जीवन के लिए अगर हम कुछ कर सकते हैं मिलकर के करना हैं ये सवाल मेरा और तेरा नहीं है ये सवाल इस पार और उस पार का नहीं है ये हम सबका है सवा सौ करोड़़ देशवासियों का है। सवा सौ करोड़़ देशवासी के जन‍प्रतिनिधि का है और यही तो समय होता है जब वो प्रेरणा हम लोगों को कुछ कर लेने की शक्ति देती है और उसको लेकर के हम आगे चल सकते हैं हम ये भी जानते हैं देश में जाने अनजाने में अधिकार भाव प्रबल होता चला गया, कर्तव्‍य भाव लुप्‍त होता गया। राष्‍ट्रजीवन के अंदर, समाज जीवन के अंदर अधिकार भाव का महात्‍म्‍य उतना ही रहते हुए भी अगर कर्तव्‍य भाव को थोड़ा सा भी हम कम आंकने लगेगे तो समाज जीवन में कितनी बड़ी मुसीबते होती हैं और दुर्भाग्‍य से हम लोगों का way of life हमारे चरित्र में कुछ चीजें घुस गई हैं जिसमें हमें बुराई नहीं लगता है मैं गलत कर रहा हूं अगर मैं चौराहे पर red light cross करके निकल जाता हूं तो मुझे लगता ही नहीं कि मैं कानून तोड़ रहा हूं मैं कहीं पर थूक देता हूं गंदगी करता हूं हमें लगता ही नहीं कि मैं गलत कर रहा हूं हम अपने कर्तव्‍य भाव से एक प्रकार से हमारे जहन में हमारे way of life में इस प्रकार के नियमों को तोड़ना कानूनों को तोड़ना ये स्‍वभाव बनता चला गया। छोटी-छोटी घटनाएं हिंसा की ओर ले जा रही हैं अस्‍पताल में किसी डाक्‍टर के द्वारा कुछ पेशेन्‍ट का कुछ हुआ डाक्‍टर दोषी है नहीं है, अस्‍पताल दोषी हैं नहीं हैं, रिश्‍तेदार जाते हैं अस्‍पताल को आग लगा देते हैं। डाक्‍टर को मारते हैं पीटते हैं हर छोटी-मोटी घटना अगर एक्‍सीडेन्‍ट हो गया हम कार को जला देते हैं ड्राइवर को मार देते हैं। ये जो चला है ये हम law of abiding citizen  के नाते हमारा कर्तव्‍य होना चाहिए हम मानने लगे हैं कि हमारे से कुछ छूट गया है। हमारी way of life में कुछ ऐसी चीजें घुस गई हैं जैसे हमें लगता ही नहीं है कि हम कानून तोड़ रहे हैं और इसलिए ये leadership की जिम्‍मेवारी होती है कि समाज के अंदर हम सबकी जिम्‍मेवारी होती है कि हम समाज के अंदर इन दोषों से मुक्ति दिलाकर के समाज के अंदर कर्तव्‍य भाव को जगाए!

शौचालय स्‍वच्‍छता ये विषय मजाक के नहीं हैं उन मां बहनों की परेशानी समझो तब पता चलता है कि जब शौचालय नहीं होता तो रात के अंधेरे का इंतजार का समय दिन कैसे बिताना पड़ता है और इसलिए शौचालय बनाना एक काम है लेकिन समाज की मानसिकता बदल कर के शौचालय का उपयोग करना ये जनसामान्‍य की शिक्षा के लिए आवश्‍यक है इस बात को हमें जगाना होगा और ये भाव कानूनों से नहीं होता है, कानून बनाने से नहीं होता है कानून सिर्फ मदद कर सकता है लेकिन कर्तव्‍य भाव जगाने से ज्‍यादा हो सकता है और इसलिए हम लोगों को करना होगा। हमारे देश की माताएं बहनें देश के अंदर कम से कम देश पर जो उनका बोझ है।

देश को कम से कम जिनका बोझ सहना पडता है, वो अगर कोई वर्ग है तो इस देश की माताएं, बहनें हैं, महिलाएं हैं। उनका सामर्थ्‍य हमें कितनी ताकत दे सकता है, उनकी भागीदारी हमारे विकास के अंदर हमें कितना बल दे सकती है। पूरे आजादी के आंदोलन में देखिए महात्‍मा गांधी के साथ आंदोलन ये जहां-जहां हुआ, अनेक ऐसी माताएं-बहनें उस आंदोनल का नेतृत्‍व करती थीं और देश को आजादी दिलाने में भी हमारी माताओं-बहनों का उस युग में भी उतना ही योगदान था। आज भी राष्‍ट्र के जीवन में उनका उतना ही योगदान है। उसको आगे बढ़ाने की दिशा में हम लोगों ने कर्तव्‍य से आगे बढ़ना चाहिए।

ये बात सही है कि 1857 से 1942, हमने देखा कि आजादी का आंदोलन अलग-अलग पड़ाव से गुजरा, उतार-चढ़ाव आए, अलग-अलग मोड़ आए, नेतृत्‍व नए-नए आते गए, कभी क्रांति का पक्ष ऊपर हो गया तो कभी अहिंसा का पक्ष ऊपर हो गया। कभी दोनों धाराओं के बीच टकराव का भी माहौल रहा, कभी दोनों धाराएं एक-दूसरे को पूरक भी हुईं। लेकिन हमने देखा है, लेकिन ये सारा 1857 से 1942 का कालखंड हम देखें, एक प्रकार से incremental था। धीरे-धीरे बढ़ रहा था, धीरे-धीरे फैल रहा था, धीरे-धीरे लोग जुड़ रहे थे। लेकिन Nineteen Forty Two to Nineteen Forty Seven, वो incremental change नहीं था। एक disruption का environment था और उसने सारे समीकरणों को खत्‍म करके आजादी देने के लिए अंग्रेजों को मजबूर कर दिया, जाने के लिए मजबूर कर दिया। 1857 से 1942, धीरे-धीरे कुछ होता रहता था, चलता रहता था, लेकिन Forty Two से Forty Seven, वो स्थिति नहीं थी।

हम भी देखें, समाज जीवन में हम पिछले 100, 200 साल का इतिहास देखें तो विकास की यात्रा एक incremental रही थी। धीरे-धीरे दुनिया आगे बढ़ रही थी, धीरे-धीरे दुनिया अपने-आपको बदल रही थी। लेकिन पिछले 30-40 साल में दुनिया में अचानक बदलाव आया, जीवन में अचानक बदलाव आया और technology ने बहुत बड़ा roll play किया। कोई कल्‍पना नहीं कर सकता जो इस 30-40 साल में दुनिया में जो बदलाव आया है, व्‍यक्ति के जीवन में, मानव-जीवन में, सोच में जो बदलाव आया है; 30-40 साल पहले हमें नजर भी नहीं आता था। एक disruption वाला एक positive change हम अनुभव करते हैं।

जिस प्रकार से Incremental से बाहर निकल करके एकदम से एक high jump की तरफ चले गए, मैं समझता हूं 2017 - 2022, Quit India के 75 साल और आजादी के 75 साल के बीच का पांच साल, Forty Two to Forty Seven का जो मिजाज था, वही मिजाज अगर हम दोबारा देश में पैदा करें Two Thousand Seventeen to Two Thousand Twenty Two, आजादी के 75 साल मनाएंगे तब, तब हम देश के, हमारे आजादी के वीरों की जो कामनाएं थीं, उन सपनों को पूरा करने के लिए हम अपने-आपको खपाएंगे। हम अपने संकल्‍प को ले करके आगे चलेंगे। मुझे विश्‍वास है न सिर्फ हमारे देश का ही भला होगा, लेकिन जैसे Forty two to Forty seven की सफलता के कारण दुनिया के अनेक देशों को लाभ मिला, आजादी की ललक पैदा हुई, ताकत मिली, भारत को आज दुनिया के कई देश, एक भाग ऐसा है जो भारत को उस रूप में देख रहा है। अगर हम भारत को Two thousand Seventeen to Two thousand Twenty Two, जो कि हम लोगों की जिम्‍मेवारी का कालखंड है, अगर हम विश्‍व के सामने भारत को उस ऊंचाई पर लेके जाते हैं तो विश्‍व का एक बहुत बड़ा समुदाय है, जो कि नेतृत्‍व की तलाश में, मदद की तलाश में है, किसी के प्रयोगों से सीखना चाहता है; भारत उस पूर्ति के लिए सामर्थ्‍यवान है; अगर उसको करने के लिए हम कोशिश करें, मैं समझता हूं देश की बहुत बड़ी सेवा होगी। और इसलिए एक सामूहिक इच्‍छा-शक्ति जगाना, देश को संकल्‍पबद्ध करना, देश के लोगों को साथ जोड़ करके चलना और इन पांच वर्ष के महत्‍व को हम अगर आगे बढ़ाएंगे तो मुझे विश्‍वास है कि हम कुछ मुद्दों पर सहमति बना करके बहुत बड़ा काम कर सकते हैं।

हमने अभी-अभी देखा जीएसटी, और ये मैं बार-बार कहता हूं ये मेरा सिर्फ राजनीतिक statement नहीं है, ये मेरा conviction है। जीएसटी की सफलता किसी सरकार की सफलता नहीं है, जीएसटी की सफलता किसी दल की सफलता नहीं है। जीएसटी की सफलता इस सदन में बैठे हुए लोगों की इच्‍छाशक्ति का परिणाम है। चाहे यहां बैठे हों, चाहे वहां बैठे हों, ये सबको जाता है, राज्‍यों को जाता है, देश के सामान्‍य व्‍यापारी को जाता है; और उसी के कारण ये संभव हुआ है। जो देश के राजनीतिक नेतृत्‍व अपनी प्रतिबद्धता के कारण इतना बड़ा काम कर लेती है, दुनिया के लिए अजूबा है। जीएसटी विश्‍व के लिए बहुत बड़ा अजूबा है, उसके Scale को देख करके हुए, अगर ये देश ये कर सकता है, तो और भी सारे निर्णय ये देख मिल-बैठ करके कर सकता है। और सवा सौ करोड़ देशवासियों के प्रतिनिधि के रूप में, सवा सौ करोड़ देशवासियों को साथ ले करके 2022 को संकल्‍प ले करके अगर हम चलेंगे, मुझे विश्‍वास है कि जो परिणाम हमें लाना है, और वो परिणाम हम लाके रहेंगे।

महात्‍मा गांधी ने नारा दिया था करो या मरो, उस समय का सूत्र था, करेंगे या मरेंगे। आज 2017 में 2022 को भारत कैसे हो, ये संकल्‍प ले करके अगर चलना है, तो हम लोगों को भी हम सब मिल करके देश से भ्रष्‍टाचार दूर करेंगे और करके रहेंगे। हम सभी मिलकर गरीबों को उनका अधिकार दिलाएंगे, और दिलाकर रहेंगे। हम सभी मिलकर नौजवानों को स्‍वरोजगार के और अवसर देंगे और देकर रहेंगे। हम सभी मिलकर देश से कुपोषण की समस्‍या को खत्‍म करेंगे और करके रहेंगे। हम सभी मिलकर महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकने वाली बेड़ियों को खत्‍म करेंगे और करके रहेंगे। हम सभी मिलकर देश से अशिक्षा खत्‍म करेंगे और करके रहेंगे। और कोई भी बहुत विषय हो सकते हैं, लेकिन अगर उस समय का मंत्र था करेंगे या मरेंगे, तो आजाद हिन्‍दुस्‍तान में 75 साल बाद आजादी का पर्व मनाने की ओर आगे बढ़ रहे हैं तब करेंगे और करके रहेंगे, इस संकल्‍प को ले करके हम आगे बढ़ेंगे। ये संकल्‍प किसी दल का नहीं, ये संकल्‍प किसी सरकार का नहीं, ये संकल्‍प सवा सौ करोड़ देशवासी, सवा सौ करोड़ देशवासियों के जन-प्रतिनिधि, इन सबका मिल करके जब संकल्‍प बनेगा तो मुझे विश्‍वास है संकल्‍प से सिद्धि के ये पांच साल, 2017 से 2022, आजादी के 75 साल, आजादी के दीवानों को सपना पूरा करने का सामर्थ्‍यवान समय, इसको हम प्रेरणा का कारण बनाएं। आज अगस्‍त क्रांति दिवस पर उन महापुरुषों का स्‍मरण करते हुए, उनके त्‍याग, तपस्‍या, बलिदान का स्‍मरण करते हुए, उस पुण्‍य स्‍मरण से आशीर्वाद मांगते हुए, हम सब मिल करके, कुछ बातों पर सहमति बना करके देश का नेतृत्‍व दें, देश को समस्‍याओं से मुक्‍त करें। सपने, सामर्थ्‍य, शक्ति और लक्ष्‍य की पूर्ति के लिए आगे बढ़ें, इसी एक अपेक्षा के साथ मैं फिर एक बार अध्‍यक्ष महोदया जी, मैं आपका आभार व्‍यक्‍त करता हूं और आजादी के दीवानों को नमन करता हूं।

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भारत, दुनिया के लिए स्पेस की नई संभावनाओं के द्वार खोलने जा रहा है: पीएम मोदी
June 28, 2025
QuoteI extend my heartiest congratulations and best wishes to you for hoisting the flag of India in space: PM
QuoteScience and Spirituality, both are our Nation’s strength: PM
QuoteThe success of Chandrayaan mission and your historic journey renew interest in science among the children and youth of the country: PM
QuoteWe have to take Mission Gaganyaan forward, we have to build our own space station and also land Indian astronauts on the Moon: PM
QuoteYour historic journey is the first chapter of success of India's Gaganyaan mission and will give speed and new vigour to our journey of Viksit Bharat: PM
QuoteIndia is going to open doors of new possibilities of space for the world: PM

प्रधानमंत्रीशुभांशु नमस्कार!

शुभांशु शुक्लानमस्कार!

प्रधानमंत्रीआप आज मातृभूमि से, भारत भूमि से, सबसे दूर हैं, लेकिन भारतवासियों के दिलों के सबसे करीब हैं। आपके नाम में भी शुभ है और आपकी यात्रा नए युग का शुभारंभ भी है। इस समय बात हम दोनों कर रहे हैं, लेकिन मेरे साथ 140 करोड़ भारतवासियों की भावनाएं भी हैं। मेरी आवाज में सभी भारतीयों का उत्साह और उमंग शामिल है। अंतरिक्ष में भारत का परचम लहराने के लिए मैं आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। मैं ज्यादा समय नहीं ले रहा हूं, तो सबसे पहले तो यह बताइए वहां सब कुशल मंगल है? आपकी तबीयत ठीक है?

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शुभांशु शुक्ला: जी प्रधानमंत्री जी! बहुत-बहुत धन्यवाद, आपकी wishes का और 140 करोड़ मेरे देशवासियों के wishes का, मैं यहां बिल्कुल ठीक हूं, सुरक्षित हूं। आप सबके आशीर्वाद और प्यार की वजह से… बहुत अच्छा लग रहा है। बहुत नया एक्सपीरियंस है यह और कहीं ना कहीं बहुत सारी चीजें ऐसी हो रही हैं, जो दर्शाती है कि मैं और मेरे जैसे बहुत सारे लोग हमारे देश में और हमारा भारत किस दिशा में जा रहा है। यह जो मेरी यात्रा है, यह पृथ्वी से ऑर्बिट की 400 किलोमीटर तक की जो छोटे सी यात्रा है, यह सिर्फ मेरी नहीं है। मुझे लगता है कहीं ना कहीं यह हमारे देश के भी यात्रा है because जब मैं छोटा था, मैं कभी सोच नहीं पाया कि मैं एस्ट्रोनॉट बन सकता हूं। लेकिन मुझे लगता है कि आपके नेतृत्व में आज का भारत यह मौका देता है और उन सपनों को साकार करने का भी मौका देता है। तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि है मेरे लिए और मैं बहुत गर्व feel कर रहा हूं कि मैं यहां पर अपने देश का प्रतिनिधित्व कर पा रहा हूं। धन्यवाद प्रधानमंत्री जी!

प्रधानमंत्रीशुभ, आप दूर अंतरिक्ष में हैं, जहां ग्रेविटी ना के बराबर है, पर हर भारतीय देख रहा है कि आप कितने डाउन टू अर्थ हैं। आप जो गाजर का हलवा ले गए हैं, क्या उसे अपने साथियों को खिलाया?

शुभांशु शुक्ला: जी प्रधानमंत्री जी! यह कुछ चीजें मैं अपने देश की खाने की लेकर आया था, जैसे गाजर का हलवा, मूंग दाल का हलवा और आम रस और मैं चाहता था कि यह बाकी भी जो मेरे साथी हैं, बाकी देशों से जो आए हैं, वह भी इसका स्वाद लें और चखें, जो भारत का जो rich culinary हमारा जो हेरिटेज है, उसका एक्सपीरियंस लें, तो हम सभी ने बैठकर इसका स्वाद लिया साथ में और सबको बहुत पसंद आया। कुछ लोग कहे कि कब वह नीचे आएंगे और हमारे देश आएं और इनका स्वाद ले सकें हमारे साथ…

प्रधानमंत्री: शुभ, परिक्रमा करना भारत की सदियों पुरानी परंपरा है। आपको तो पृथ्वी माता की परिक्रमा का सौभाग्य मिला है। अभी आप पृथ्वी के किस भाग के ऊपर से गुजर रहे होंगे?

शुभांशु शुक्ला: जी प्रधानमंत्री जी! इस समय तो मेरे पास यह इनफॉरमेशन उपलब्ध नहीं है, लेकिन थोड़ी देर पहले मैं खिड़की से, विंडो से बाहर देख रहा था, तो हम लोग हवाई के ऊपर से गुजर रहे थे और हम दिन में 16 बार परिक्रमा करते हैं। 16 सूर्य उदय और 16 सनराइज और सनसेट हम देखते हैं ऑर्बिट से और बहुत ही अचंभित कर देने वाला यह पूरा प्रोसेस है। इस परिक्रमा में, इस तेज गति में जिस हम इस समय करीब 28000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहे हैं आपसे बात करते वक्त और यह गति पता नहीं चलती क्योंकि हम तो अंदर हैं, लेकिन कहीं ना कहीं यह गति जरूर दिखाती है कि हमारा देश कितनी गति से आगे बढ़ रहा है।

प्रधानमंत्रीवाह!

शुभांशु शुक्ला: इस समय हम यहां पहुंचे हैं और अब यहां से और आगे जाना है।

प्रधानमंत्री: अच्छा शुभ अंतरिक्ष की विशालता देखकर सबसे पहले विचार क्या आया आपको?

शुभांशु शुक्ला: प्रधानमंत्री जी, सच में बोलूं तो जब पहली बार हम लोग ऑर्बिट में पहुंचे, अंतरिक्ष में पहुंचे, तो पहला जो व्यू था, वह पृथ्वी का था और पृथ्वी को बाहर से देख के जो पहला ख्याल, वो पहला जो thought मन में आया, वह ये था कि पृथ्वी बिल्कुल एक दिखती है, मतलब बाहर से कोई सीमा रेखा नहीं दिखाई देती, कोई बॉर्डर नहीं दिखाई देता। और दूसरी चीज जो बहुत noticeable थी, जब पहली बार भारत को देखा, तो जब हम मैप पर पढ़ते हैं भारत को, हम देखते हैं बाकी देशों का आकार कितना बड़ा है, हमारा आकार कैसा है, वह मैप पर देखते हैं, लेकिन वह सही नहीं होता है क्योंकि वह एक हम 3D ऑब्जेक्ट को 2D यानी पेपर पर हम उतारते हैं। भारत सच में बहुत भव्य दिखता है, बहुत बड़ा दिखता है। जितना हम मैप पर देखते हैं, उससे कहीं ज्यादा बड़ा और जो oneness की फीलिंग है, पृथ्वी की oneness की फीलिंग है, जो हमारा भी मोटो है कि अनेकता में एकता, वह बिल्कुल उसका महत्व ऐसा समझ में आता है बाहर से देखने में कि लगता है कि कोई बॉर्डर एक्जिस्ट ही नहीं करता, कोई राज्य ही नहीं एक्जिस्ट करता, कंट्रीज़ नहीं एक्जिस्ट करती, फाइनली हम सब ह्यूमैनिटी का पार्ट हैं और अर्थ हमारा एक घर है और हम सबके सब उसके सिटीजंस हैं।

प्रधानमंत्रीशुभांशु स्पेस स्टेशन पर जाने वाले आप पहले भारतीय हैं। आपने जबरदस्त मेहनत की है। लंबी ट्रेनिंग करके गए हैं। अब आप रियल सिचुएशन में हैं, सच में अंतरिक्ष में हैं, वहां की परिस्थितियां कितनी अलग हैं? कैसे अडॉप्ट कर रहे हैं?

शुभांशु शुक्ला: यहां पर तो सब कुछ ही अलग है प्रधानमंत्री जी, ट्रेनिंग की हमने पिछले पूरे 1 साल में, सारे systems के बारे में मुझे पता था, सारे प्रोसेस के बारे में मुझे पता था, एक्सपेरिमेंट्स के बारे में मुझे पता था। लेकिन यहां आते ही suddenly सब चेंज हो गया, because हमारे शरीर को ग्रेविटी में रहने की इतनी आदत हो जाती है कि हर एक चीज उससे डिसाइड होती है, पर यहां आने के बाद चूंकि ग्रेविटी माइक्रोग्रेविटी है absent है, तो छोटी-छोटी चीजें भी बहुत मुश्किल हो जाती हैं। अभी आपसे बात करते वक्त मैंने अपने पैरों को बांध रखा है, नहीं तो मैं ऊपर चला जाऊंगा और माइक को भी ऐसे जैसे यह छोटी-छोटी चीजें हैं, यानी ऐसे छोड़ भी दूं, तो भी यह ऐसे float करता रहा है। पानी पीना, पैदल चलना, सोना बहुत बड़ा चैलेंज है, आप छत पर सो सकते हैं, आप दीवारों पर सो सकते हैं, आप जमीन पर सो सकते हैं। तो पता सब कुछ होता है प्रधानमंत्री जी, ट्रेनिंग अच्छी है, लेकिन वातावरण चेंज होता है, तो थोड़ा सा used to होने में एक-दो दिन लगते हैं but फिर ठीक हो जाता है, फिर normal हो जाता है।

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प्रधानमंत्री: शुभ भारत की ताकत साइंस और स्पिरिचुअलिटी दोनों हैं। आप अंतरिक्ष यात्रा पर हैं, लेकिन भारत की यात्रा भी चल रही होगी। भीतर में भारत दौड़ता होगा। क्या उस माहौल में मेडिटेशन और माइंडफूलनेस का लाभ भी मिलता है क्या?

शुभांशु शुक्ला: जी प्रधानमंत्री जी, मैं बिल्कुल सहमत हूं। मैं कहीं ना कहीं यह मानता हूं कि भारत already दौड़ रहा है और यह मिशन तो केवल एक पहली सीढ़ी है उस एक बड़ी दौड़ का और हम जरूर आगे पहुंच रहे हैं और अंतरिक्ष में हमारे खुद के स्टेशन भी होंगे और बहुत सारे लोग पहुंचेंगे और माइंडफूलनेस का भी बहुत फर्क पड़ता है। बहुत सारी सिचुएशंस ऐसी होती हैं नॉर्मल ट्रेनिंग के दौरान भी या फिर लॉन्च के दौरान भी, जो बहुत स्ट्रेसफुल होती हैं और माइंडफूलनेस से आप अपने आप को उन सिचुएशंस में शांत रख पाते हैं और अपने आप को calm रखते हैं, अपने आप को शांत रखते हैं, तो आप अच्छे डिसीजंस ले पाते हैं। कहते हैं कि दौड़ते हो भोजन कोई भी नहीं कर सकता, तो जितना आप शांत रहेंगे उतना ही आप अच्छे से आप डिसीजन ले पाएंगे। तो I think माइंडफूलनेस का बहुत ही इंपॉर्टेंट रोल होता है इन चीजों में, तो दोनों चीजें अगर साथ में एक प्रैक्टिस की जाएं, तो ऐसे एक चैलेंजिंग एनवायरमेंट में या चैलेंजिंग वातावरण में मुझे लगता है यह बहुत ही यूज़फुल होंगी और बहुत जल्दी लोगों को adapt करने में मदद करेंगी।

प्रधानमंत्री: आप अंतरिक्ष में कई एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। क्या कोई ऐसा एक्सपेरिमेंट है, जो आने वाले समय में एग्रीकल्चर या हेल्थ सेक्टर को फायदा पहुंचाएगा?

शुभांशु शुक्ला: जी प्रधानमंत्री जी, मैं बहुत गर्व से कह सकता हूं कि पहली बार भारतीय वैज्ञानिकों ने 7 यूनिक एक्सपेरिमेंट्स डिजाइन किए हैं, जो कि मैं अपने साथ स्टेशन पर लेकर आया हूं और पहला एक्सपेरिमेंट जो मैं करने वाला हूं, जो कि आज ही के दिन में शेड्यूल्ड है, वह है Stem Cells के ऊपर, so अंतरिक्ष में आने से क्या होता है कि ग्रेविटी क्योंकि एब्सेंट होती है, तो लोड खत्म हो जाता है, तो मसल लॉस होता है, तो जो मेरा एक्सपेरिमेंट है, वह यह देख रहा है कि क्या कोई सप्लीमेंट देकर हम इस मसल लॉस को रोक सकते हैं या फिर डिले कर सकते हैं। इसका डायरेक्ट इंप्लीकेशन धरती पर भी है कि जिन लोगों का मसल लॉस होता है, ओल्ड एज की वजह से, उनके ऊपर यह सप्लीमेंट्स यूज़ किए जा सकते हैं। तो मुझे लगता है कि यह डेफिनेटली वहां यूज़ हो सकता है। साथ ही साथ जो दूसरा एक्सपेरिमेंट है, वह Microalgae की ग्रोथ के ऊपर। यह Microalgae बहुत छोटे होते हैं, लेकिन बहुत Nutritious होते हैं, तो अगर हम इनकी ग्रोथ देख सकते हैं यहां पर और ऐसा प्रोसेस ईजाद करें कि यह ज्यादा तादाद में हम इन्हें उगा सके और न्यूट्रिशन हम प्रोवाइड कर सकें, तो कहीं ना कहीं यह फूड सिक्योरिटी के लिए भी बहुत काम आएगा धरती के ऊपर। सबसे बड़ा एडवांटेज जो है स्पेस का, वह यह है कि यह जो प्रोसेस है यहां पर, यह बहुत जल्दी होते हैं। तो हमें महीनों तक या सालों तक वेट करने की जरूरत नहीं होती, तो जो यहां के जो रिजल्‍ट्स होते हैं वो हम और…

प्रधानमंत्री: शुभांशु चंद्रयान की सफलता के बाद देश के बच्चों में, युवाओं में विज्ञान को लेकर एक नई रूचि पैदा हुई, अंतरिक्ष को explore करने का जज्बा बढ़ा। अब आपकी ये ऐतिहासिक यात्रा उस संकल्प को और मजबूती दे रही है। आज बच्चे सिर्फ आसमान नहीं देखते, वो यह सोचते हैं, मैं भी वहां पहुंच सकता हूं। यही सोच, यही भावना हमारे भविष्य के स्पेस मिशंस की असली बुनियाद है। आप भारत की युवा पीढ़ी को क्या मैसेज देंगे?

शुभांशु शुक्ला: प्रधानमंत्री जी, मैं अगर मैं अपनी युवा पीढ़ी को आज कोई मैसेज देना चाहूंगा, तो पहले यह बताऊंगा कि भारत जिस दिशा में जा रहा है, हमने बहुत बोल्ड और बहुत ऊंचे सपने देखे हैं और उन सपनों को पूरा करने के लिए, हमें आप सबकी जरूरत है, तो उस जरूरत को पूरा करने के लिए, मैं ये कहूंगा कि सक्सेस का कोई एक रास्ता नहीं होता कि आप कभी कोई एक रास्ता लेता है, कोई दूसरा रास्ता लेता है, लेकिन एक चीज जो हर रास्ते में कॉमन होती है, वो ये होती है कि आप कभी कोशिश मत छोड़िए, Never Stop Trying. अगर आपने ये मूल मंत्र अपना लिया कि आप किसी भी रास्ते पर हों, कहीं पर भी हों, लेकिन आप कभी गिव अप नहीं करेंगे, तो सक्सेस चाहे आज आए या कल आए, पर आएगी जरूर।

प्रधानमंत्री: मुझे पक्का विश्वास है कि आपकी ये बातें देश के युवाओं को बहुत ही अच्छी लगेंगी और आप तो मुझे भली-भांति जानते हैं, जब भी किसी से बात होती हैं, तो मैं होमवर्क जरूर देता हूं। हमें मिशन गगनयान को आगे बढ़ाना है, हमें अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाना है, और चंद्रमा पर भारतीय एस्ट्रोनॉट की लैंडिंग भी करानी है। इन सारे मिशंस में आपके अनुभव बहुत काम आने वाले हैं। मुझे विश्वास है, आप वहां अपने अनुभवों को जरूर रिकॉर्ड कर रहे होंगे।

शुभांशु शुक्ला: जी प्रधानमंत्री जी, बिल्कुल ये पूरे मिशन की ट्रेनिंग लेने के दौरान और एक्सपीरियंस करने के दौरान, जो मुझे lessons मिले हैं, जो मेरी मुझे सीख मिली है, वो सब एक स्पंज की तरह में absorb कर रहा हूं और मुझे यकीन है कि यह सारी चीजें बहुत वैल्युएबल प्रूव होंगी, बहुत इंपॉर्टेंट होगी हमारे लिए जब मैं वापस आऊंगा और हम इन्हें इफेक्टिवली अपने मिशंस में, इनके lessons अप्लाई कर सकेंगे और जल्दी से जल्दी उन्हें पूरा कर सकेंगे। Because मेरे साथी जो मेरे साथ आए थे, कहीं ना कहीं उन्होंने भी मुझसे पूछा कि हम कब गगनयान पर जा सकते हैं, जो सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा और मैंने बोला कि जल्द ही। तो मुझे लगता है कि यह सपना बहुत जल्दी पूरा होगा और मेरी तो सीख मुझे यहां मिल रही है, वह मैं वापस आकर, उसको अपने मिशन में पूरी तरह से 100 परसेंट अप्लाई करके उनको जल्दी से जल्दी पूरा करने की कोशिश करेंगे।

प्रधानमंत्री: शुभांशु, मुझे पक्का विश्वास है कि आपका ये संदेश एक प्रेरणा देगा और जब हम आपके जाने से पहले मिले थे, आपके परिवारजन के भी दर्शन करने का अवसर मिला था और मैं देख रहा हूं कि आपके परिवारजन भी सभी उतने ही भावुक हैं, उत्साह से भरे हुए हैं। शुभांशु आज मुझे आपसे बात करके बहुत आनंद आया, मैं जानता हूं आपकी जिम्मे बहुत काम है और 28000 किलोमीटर की स्पीड से काम करने हैं आपको, तो मैं ज्यादा समय आपका नहीं लूंगा। आज मैं विश्वास से कह सकता हूं कि ये भारत के गगनयान मिशन की सफलता का पहला अध्याय है। आपकी यह ऐतिहासिक यात्रा सिर्फ अंतरिक्ष तक सीमित नहीं है, ये हमारी विकसित भारत की यात्रा को तेज गति और नई मजबूती देगी। भारत दुनिया के लिए स्पेस की नई संभावनाओं के द्वार खोलने जा रहा है। अब भारत सिर्फ उड़ान नहीं भरेगा, भविष्य में नई उड़ानों के लिए मंच तैयार करेगा। मैं चाहता हूं, कुछ और भी सुनने की इच्छा है, आपके मन में क्योंकि मैं सवाल नहीं पूछना चाहता, आपके मन में जो भाव है, अगर वो आप प्रकट करेंगे, देशवासी सुनेंगे, देश की युवा पीढ़ी सुनेगी, तो मैं भी खुद बहुत आतुर हूं, कुछ और बातें आपसे सुनने के लिए।

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शुभांशु शुक्ला: धन्यवाद प्रधानमंत्री जी! यहां यह पूरी जर्नी जो है, यह अंतरिक्ष तक आने की और यहां ट्रेनिंग की और यहां तक पहुंचने की, इसमें बहुत कुछ सीखा है प्रधानमंत्री जी मैंने लेकिन यहां पहुंचने के बाद मुझे पर्सनल accomplishment तो एक है ही, लेकिन कहीं ना कहीं मुझे ये लगता है कि यह हमारे देश के लिए एक बहुत बड़ा कलेक्टिव अचीवमेंट है। और मैं हर एक बच्चे को जो यह देख रहा है, हर एक युवा को जो यह देख रहा है, एक मैसेज देना चाहता हूं और वो यह है कि अगर आप कोशिश करते हैं और आप अपना भविष्य बनाते हैं अच्छे से, तो आपका भविष्य अच्छा बनेगा और हमारे देश का भविष्य अच्छा बनेगा और केवल एक बात अपने मन में रखिए, that sky has never the limits ना आपके लिए, ना मेरे लिए और ना भारत के लिए और यह बात हमेशा अगर अपने मन में रखी, तो आप आगे बढ़ेंगे, आप अपना भविष्य उजागर करेंगे और आप हमारे देश का भविष्य उजागर करेंगे और बस मेरा यही मैसेज है प्रधानमंत्री जी और मैं बहुत-बहुत ही भावुक और बहुत ही खुश हूं कि मुझे मौका मिला आज आपसे बात करने का और आप के थ्रू 140 करोड़ देशवासियों से बात करने का, जो यह देख पा रहे हैं, यह जो तिरंगा आप मेरे पीछे देख रहे हैं, यह यहां नहीं था, कल के पहले जब मैं यहां पर आया हूं, तब हमने यह यहां पर पहली बार लगाया है। तो यह बहुत भावुक करता है मुझे और बहुत अच्छा लगता है देखकर कि भारत आज इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंच चुका है।

प्रधानमंत्रीशुभांशु, मैं आपको और आपके सभी साथियों को आपके मिशन की सफलता के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। शुभांशु, हम सबको आपकी वापसी का इंतजार है। अपना ध्यान रखिए, मां भारती का सम्मान बढ़ाते रहिए। अनेक-अनेक शुभकामनाएं, 140 करोड़ देशवासियों की शुभकामनाएं और आपको इस कठोर परिश्रम करके, इस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं। भारत माता की जय!

शुभांशु शुक्ला: धन्यवाद प्रधानमंत्री जी, धन्यवाद और सारे 140 करोड़ देशवासियों को धन्यवाद और स्पेस से सबके लिए भारत माता की जय!