मेरे प्यारे देशवासियो, 

नमस्कार, 

मन की बात करने का मन नहीं हो रहा था आज। बोझ अनुभव कर रहा हूँ, कुछ व्यथित सा मन है। पिछले महीने जब बात कर रहा था आपसे, तो ओले गिरने की खबरें, बेमौसमी बरसात, किसानों की तबाही। अभी कुछ दिन पहले बिहार में अचानक तेज हवा चली। काफी लोग मारे गए। काफी कुछ नुकसान हुआ। और शनिवार को भयंकर भूकंप ने पूरे विश्व को हिला दिया है। ऐसा लगता है मानो प्राकृतिक आपदा का सिलसिला चल पड़ा है। नेपाल में भयंकर भूकंप की आपदा। हिंदुस्तान में भी भूकंप ने अलग-अलग राज्यों में कई लोगों की जान ली है। संपत्ति का भी नुकसान किया है। लेकिन नेपाल का नुकसान बहुत भयंकर है। 

मैंने 2001, 26 जनवरी, कच्छ के भूकंप को निकट से देखा है। ये आपदा कितनी भयानक होती है, उसकी मैं कल्पना भली-भांति कर सकता हूँ। नेपाल पर क्या बीतती होगी, उन परिवारों पर क्या बीतती होगी, उसकी मैं कल्पना कर सकता हूँ। 

लेकिन मेरे प्यारे नेपाल के भाइयो-बहनो, हिन्दुस्तान आपके दुःख में आपके साथ है। तत्काल मदद के लिए चाहे हिंदुस्तान के जिस कोने में मुसीबत आयी है वहां भी, और नेपाल में भी सहाय पहुंचाना प्रारंभ कर दिया है। सबसे पहला काम है रेस्क्यू ऑपरेशन, लोगों को बचाना। अभी भी मलबे में दबे हुए कुछ लोग जीवित होंगे, उनको जिन्दा निकालना हैं। एक्सपर्ट लोगों की टीम भेजी है, साथ में, इस काम के लिए जिनको विशेष रूप से ट्रेन किया गया है ऐसे स्निफ़र डॉग्स को भी भेजा गया है। स्निफर डॉग्स ढूंढ पाते हैं कि कहीं मलबे के नीचे कोई इंसान जिन्दा हो। कोशिश हमारी पूरी रहेगी अधिकतम लोगों को जिन्दा बचाएं। रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद रिलीफ का काम भी चलाना है। रिहैबिलिटेशन का काम भी तो बहुत लम्बा चलेगा। 

लेकिन मानवता की अपनी एक ताकत होती है। सवा-सौ करोड़ देश वासियों के लिए नेपाल अपना है। उन लोगों का दुःख भी हमारा दुःख है। भारत पूरी कोशिश करेगा इस आपदा के समय हर नेपाली के आंसू भी पोंछेंगे, उनका हाथ भी पकड़ेंगे, उनको साथ भी देंगे। पिछले दिनों यमन में, हमारे हजारों भारतीय भाई बहन फंसे हुए थे। युद्ध की भयंकर विभीषिका के बीच, बम बन्दूक के तनाव के बीच, गोलाबारी के बीच भारतीयों को निकालना, जीवित निकालना, एक बहुत बड़ा कठिन काम था। लेकिन हम कर पाए। इतना ही नहीं, एक सप्ताह की उम्र की एक बच्ची को जब बचा करके लाये तो ऐसा लग रहा था कि आखिर मानवता की भी कितनी बड़ी ताकत होती है। बम-बन्दूक की वर्षा चलती हो, मौत का साया हो, और एक सप्ताह की बच्ची अपनी जिन्दगी बचा सके तब एक मन को संतोष होता है। 

मैं पिछले दिनों विदेश में जहाँ भी गया, एक बात के लिए बहुत बधाइयाँ मिली, और वो था यमन में हमने दुनिया के करीब 48 देशों के नागरिकों को बचाया था। चाहे अमेरिका हो, यू.के. हो, फ्रांस हो, रशिया हो, जर्मनी हो, जापान हो, हर देश के नागरिक को हमने मदद की थी। और उसके कारण दुनिया में भारत का ये “सेवा परमो धर्मः”, इसकी अनुभूति विश्व ने की है। हमारा विदेश मंत्रालय, हमारी वायु सेना, हमारी नौसेना इतने धैर्य के साथ, इतनी जिम्मेवारी के साथ, इस काम को किया है, दुनिया में इसकी अमिट छाप रहेगी आने वाले दिनों में, ऐसा मैं विश्वास करता हूँ। और मुझे खुशी है कि कोई भी नुकसान के बिना, सब लोग बचकर के बाहर आये। वैसे भी भारत का एक गुण, भारत के संस्कार बहुत पुराने हैं। 

अभी मैं जब फ्रांस गया था तो फ्रांस में, मैं प्रथम विश्व युद्ध के एक स्मारक पर गया था। उसका एक कारण भी था, कि प्रथम विश्व युद्ध की शताब्दी तो है, लेकिन साथ-साथ भारत की पराक्रम का भी वो शताब्दी वर्ष हैI भारत के वीरों की बलिदानी की शताब्दी का वर्ष है और “सेवा परमो-धर्मः” इस आदर्श को कैसे चरितार्थ करता रहा हमारा देश , उसकी भी शताब्दी का यह वर्ष है, मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि 1914 में और 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध चला और बहुत कम लोगों को मालूम होगा करीब-करीब 15 लाख भारतीय सैनिकों ने इस युद्ध में अपनी जान की बाजी लगा दी थी और भारत के जवान अपने लिए नहीं मर रहे थेI हिंदुस्तान को, किसी देश को कब्जा नहीं करना था, न हिन्दुस्तान को किसी की जमीन लेनी थी लेकिन भारतीयों ने एक अदभुत पराक्रम करके दिखाया थाI बहुत कम लोगों को मालूम होगा इस प्रथम विश्व युद्ध में हमारे करीब-करीब 74 हजार जवानों ने शहादत की थी, ये भी गर्व की बात है कि इस पर करीब 9 हजार 2 सौ हमारे सैनिकों को गैलेंट्री अवार्ड से डेकोरेट किया गया थाI इतना ही नहीं, 11 ऐसे पराक्रमी लोग थे जिनको सर्वश्रेष्ठ सम्मान विक्टोरिया क्रॉस मिला थाI खासकर कि फ्रांस में विश्व युद्ध के दरमियान मार्च 1915 में करीब 4 हजार 7 सौ हमारे हिनदुस्तानियों ने बलिदान दिया था। उनके सम्मान में फ्रांस ने वहां एक स्मारक बनाया है। मैं वहाँ नमन करने गया था, हमारे पूर्वजों के पराक्रम के प्रति श्रध्दा व्यक्त करने गया था। 

ये सारी घटनायें हम देखें तो हम दुनिया को कह सकते हैं कि ये देश ऐसा है जो दुनिया की शांति के लिए, दुनिया के सुख के लिए, विश्व के कल्याण के लिए सोचता है। कुछ न कुछ करता है और ज़रूरत पड़े तो जान की बाज़ी भी लगा देता है। यूनाइटेड नेशन्स में भी पीसकीपिंग फ़ोर्स में सर्वाधिक योगदान देने वालों में भारत का भी नाम प्रथम पंक्ति में है। यही तो हम लोगों के लिए गर्व की बात है। 

पिछले दिनों दो महत्वपूर्ण काम करने का मुझे अवसर मिला। हम पूज्य बाबा साहेब अम्बेडकर की 125 वीं जयन्ती का वर्ष मना रहे हैं। कई वर्षों से मुंबई में उनके स्मारक बनाने का जमीन का विवाद चल रहा था। मुझे आज इस बात का संतोष है कि भारत सरकार ने वो जमीन बाबा साहेब अम्बेडकर के स्मारक बनाने के लिए देने का निर्णय कर लिया। उसी प्रकार से दिल्ली में बाबा साहेब अम्बेडकर के नाम से एक इंटरनेशनल सेंटर बने, पूरा विश्व इस मनीषी को जाने, उनके विचारों को जाने, उनके काम को जाने। ये भी वर्षों से लटका पड़ा विषय था, इसको भी पूरा किया, शिलान्यास किया, और 20 साल से जो काम नहीं हुआ था वो 20 महीनों में पूरा करने का संकल्प किया। और साथ-साथ मेरे मन में एक विचार भी आया है और हम लगे हैं, आज भी हमारे देश में कुछ परिवार हैं जिनको सर पे मैला ढ़ोने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 

क्या हमें शोभा देता है कि आज भी हमारे देश में कुछ परिवारों को सर पर मैला ढोना पड़े? मैंने सरकार में बड़े आग्रह से कहा है कि बाबा साहेब अम्बेडकर जी के पुण्य स्मरण करते हुए 125 वीं जयन्ती के वर्ष में, हम इस कलंक से मुक्ति पाएं। अब हमारे देश में किसी गरीब को सर पर मैला ढोना पड़े, ये परिस्थति हम सहन नहीं करेंगे। समाज का भी साथ चाहिये। सरकार ने भी अपना दायित्व निभाना चाहिये। मुझे जनता का भी सहयोग चाहिये, इस काम को हमें करना है। 

बाबा साहेब अम्बेडकर जीवन भर शिक्षित बनो ये कहते रहते थे। आज भी हमारे कई दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित समाज में, ख़ास करके बेटियों में, शिक्षा अभी पहुँची नहीं है। बाबा साहेब अम्बेडकर के 125 वीं जयन्ती के पर्व पर, हम भी संकल्प करें। हमारे गाँव में, नगर में, मोहल्ले में गरीब से गरीब की बेटी या बेटा, अनपढ़ न रहे। सरकार अपना कर्त्तव्य करे, समाज का उसमें साथ मिले तो हम जरुर संतोष की अनुभूति करते हैं। मुझे एक आनंद की बात शेयर करने का मन करता है और एक पीड़ा भी बताने का मन करता है। 

मुझे इस बात का गर्व होता है कि भारत की दो बेटियों ने देश के नाम को रौशन किया। एक बेटी साईना नेहवाल बैडमिंटन में दुनिया में नंबर एक बनी, और दूसरी बेटी सानिया मिर्जा टेनिस डबल्स में दुनिया में नंबर एक बनी। दोनों को बधाई, और देश की सारी बेटियों को भी बधाई। गर्व होता है अपनों के पुरुषार्थ और पराक्रम को लेकर के। लेकिन कभी-कभी हम भी आपा खो बैठते हैं। जब क्रिकेट का वर्ल्ड कप चल रहा था और सेमी-फाइनल में हम ऑस्ट्रेलिया से हार गए, कुछ लोगों ने हमारे खिलाड़ियों के लिए जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया, जो व्यवहार किया, मेरे देशवासियो, ये अच्छा नहीं है। ऐसा कैसा खेल हो जिसमें कभी पराजय ही न हो अरे जय और पराजय तो जिन्दगी के हिस्से होते हैं। अगर हमारे देश के खिलाड़ी कभी हार गए हैं तो संकट की घड़ी में उनका हौसला बुलंद करना चाहिये। उनका नया विश्वास पैदा करने का माहौल बनाना चाहिये। मुझे विश्वास है आगे से हम पराजय से भी सीखेंगे और देश के सम्मान के साथ जो बातें जुड़ी हुई हैं, उसमें पल भर में ही संतुलन खो करके, क्रिया-प्रतिक्रिया में नहीं उलझ जायेंगे। और मुझे कभी-कभी चिंता हो रही है। मैं जब कभी देखता हूँ कि कहीं अकस्मात् हो गया, तो भीड़ इकट्ठी होती है और गाड़ी को जला देती है। और हम टीवी पर इन चीजों को देखते भी हैं। एक्सीडेंट नहीं होना चाहिये। सरकार ने भी हर प्रकार की कोशिश करनी चाहिये। लेकिन मेरे देशवासियो बताइये कि इस प्रकार से गुस्सा प्रकट करके हम ट्रक को जला दें, गाड़ी को जला दें.... मरा हुआ तो वापस आता नहीं है। क्या हम अपने मन के भावों को संतुलित रखके कानून को कानून का काम नहीं करने दे सकते हैं? सोचना चाहिये। 

खैर, आज मेरा मन इन घटनाओं के कारण बड़ा व्यथित है, ख़ास करके प्राकृतिक आपदाओं के कारण, लेकिन इसके बीच भी धैर्य के साथ, आत्मविश्वास के साथ देश को भी आगे ले जायेंगे, इस देश का कोई भी व्यक्ति...दलित हो, पीड़ित हो, शोषित हो, वंचित हो, आदिवासी हो, गाँव का हो, गरीब हो, किसान हो, छोटा व्यापारी हो, कोई भी हो, हर एक के कल्याण के मार्ग पर, हम संकल्प के साथ आगे बढ़ते रहेंगे। 

विद्यार्थियों की परीक्षायें पूर्ण हुई हैं, ख़ास कर के 10 वीं और 12 वीं के विद्यार्थियों ने छुट्टी मनाने के कार्यक्रम बनाए होंगे, मेरी आप सबको शुभकामनाएं हैं। आपका वेकेशन बहुत ही अच्छा रहे, जीवन में कुछ नया सीखने का, नया जानने का अवसर मिले, और साल भर आपने मेहनत की है तो कुछ पल परिवार के साथ उमंग और उत्साह के साथ बीते यही मेरी शुभकामना है। 

आप सबको मेरा नमस्कार। 

धन्यवाद। 

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असम सहित पूरा नॉर्थ ईस्ट आज भारत के विकास का नया प्रवेशद्वार: गुवाहाटी में पीएम मोदी
December 20, 2025
प्रधानमंत्री ने कहा- आधुनिक हवाई अड्डे और आधुनिक संपर्क अवसंरचना किसी भी राज्य के लिए नई संभावनाओं और नए अवसरों के द्वार हैं
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा - आज असम और पूरा पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत के विकास का नया प्रवेश द्वार बन रहा है
प्रधानमंत्री ने कहा-पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत के भविष्य के विकास का नेतृत्व करेगा

नोमोस्कार। लुइटपोरिया राइजोलोई मुर श्रोद्धा अरु मरोम ज़ासिसु!

असम के गर्वनर लक्ष्मण प्रसाद आचार्य जी, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जी, केंद्र में मेरे सहयोगी, हमारे पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल जी, राम मोहन नायडू जी, मुरलीधर मोहोल जी, पबित्रा मार्गेरिटा जी, असम सरकार के मंत्रिगण, अन्य महानुभाव, भाईयों और बहनों।

मैं अपना भाषण शुरू करूं उससे पहले, मैं आप सबसे एक प्रार्थना करता हूं, कि आज विजय का आज का जो दिवस है, एक प्रकार से विकास के उत्सव का दिवस है और ये सिर्फ असम नहीं, पूरे नॉर्थ ईस्ट के विकास का उत्सव है, और इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि अपना मोबाइल फोन निकालिए, उसपर फ्लैश लाईट चालू कीजिए और सब के सब इस विकास उत्सव में भागीदार बनिए। हर एक के मोबाईल फोन का लाईट जलना चाहिए, देखिए तालियों के गूंज से पूरा देश देखेगा, कि असम विकास का उत्सव मना रहा है। जब विकास का प्रकाश पहुंचता है, तो जिंदगी की हर राह नई ऊंचाईयों को छूने लग जाती है। बहुत-बहुत धन्यवाद सबका।

साथियों,

असम की धरती से मेरा लगाव, यहां के लोगों का प्यार और स्नेह, और खासकर असम और पूर्वोत्तर की मेरी माताओं-बहनों का अपनापन, ये मुझे निरंतर प्रेरित करते हैं, पूर्वोत्तर के विकास के हमारे संकल्प को ताकत देते हैं। मैं देख रहा हूं, आज एक बार फिर असम के विकास में नया अध्याय जुड़ रहा है, और ऐसे में भारत रत्न भूपेन दा की पंक्तियां बहुत सटीक हो जाती हैं। लुइदोर पार जिलिकाई टुलिबोलोई, आमी प्रोतिज्ञाबोद्ध! आमी हॉन्कल्पबोद्ध! यानी लुइत नदी का तट उज्जवल होगा, अंधकार की हर दीवार टूटेगी और ये होकर रहेगा, यही हमारा संकल्प है, यही हमारी प्रतिज्ञा है।

साथियों,

भूपेन दा की ये पंक्तियां केवल एक गीत नहीं थी, ये असम को प्यार करने वाली हर महान आत्मा का संकल्प था और आज ये संकल्प हमारे सामने सिद्ध हो रहा है। जैसे असम में विशाल ब्रह्मपुत्र की धाराएं कभी नहीं रूकती, वैसे ही बीजेपी की डबल इंजन सरकार में यहां विकास की धारा भी अनवरत बह रही है। आज लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई एयरपोर्ट के नए टर्मिनल का उद्धघाटन हमारे इस संकल्प का प्रमाण है। मैं सभी असमवासियों को, देश के लोगों को, इस नई टर्मिनल बिल्डिंग के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

बहनों और भाईयों,

अब से कुछ देर पहले मुझे गोपीनाथ बोरदोलोई जी की प्रतिमा का अनावरण करने का सौभाग्य मिला है। बोरदोलोई जी असम के पहले मुख्यमंत्री थे, असम का गौरव थे, असम की पहचान, असम का भविष्य और असम के हित उन्होंने कभी भी इससे समझौता नहीं किया। उनकी ये प्रतिमा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी, उनमें असम को लेकर गौरव की भावना जगाएगी।

साथियों,

आधुनिक एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं कनेक्टिविटी का आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चऱ ये किसी भी राज्य के लिए नई संभावनाओं और नए अवसरों के गेटवे होते हैं। ये राज्य के बढ़ते आत्मविश्वास और लोगों के भरोसे के स्तम्भ होते हैं। आप भी जब देखते हैं कि असम में इतने शानदार हाईवे बन रहे हैं एय़रपोर्ट बन रहे हैं तो आप भी कहते हैं- अब जाकर असम के साथ न्याय होना शुरू हुआ है।

वरना साथियों,

काँग्रेस की सरकारों के लिए असम और पूर्वोत्तर का विकास उनके एजेंडे में ही नहीं था। काँग्रेस की सरकारें, और उनमें बैठे लोग कहते थे, असम और पूर्वोत्तर में जाता ही कौन है? काँग्रेस कहती थी, असम को, पूर्वोत्तर को, आधुनिक एयरपोर्ट की, हाइवेज और बेहतर रेलवेज की जरूरत ही क्या है? इसी सोच की वजह से कांग्रेस ने दशकों तक इस पूरे क्षेत्र की उपेक्षा की।

साथियों,

कांग्रेस 6-7 दशक तक जो गलतियां करती रही, और मोदी एक एक करके उसको सुधार रहा है। मोदी कहता है, काँग्रेस वाले नॉर्थईस्ट जाएँ या न जाएँ, मुझे तो नॉर्थईस्ट और असम आते ही अपने लोगों के बीच होने का एहसास होता है। मोदी के लिए असम का विकास, ये जरूरत भी है, ज़िम्मेदारी भी है, और इसकी जवाबदेही भी है।

और इसीलिए साथियों,

बीते 11 वर्षों में असम और नॉर्थईस्ट के लिए लाखों करोड़ रुपए की विकास परियोजनाएं शुरू हुईं हैं। आज असम आगे भी बढ़ रहा है, और नए कीर्तिमान भी गढ़ रहा है। मुझे ये जानकर अच्छा लगा कि असम भारतीय न्याय संहिता लागू करने में देश में नंबर-1 राज्य बना है। असम ने 50 लाख से ज्यादा स्मार्ट प्री-पेड मीटरलगाकर भी एक नया रिकॉर्ड बनाया है। कांग्रेस के समय में असम में बिना पर्ची, बिना खर्ची के सरकारी नौकरी मिलना असंभव था। लेकिन आज यहां हजारों युवाओं को बिना पर्ची-बिना खर्ची नौकरी मिल रही है। भाजपा की सरकार में असम की संस्कृति को हर मंच पर बढ़ावा दिया जा रहा है। मैं भूल नहीं सकता, जब पिछले साल 13 अप्रैल को गुवाहाटी स्टेडियम में 11 हजार से ज्यादा कलाकारों ने एक साथ बिहू नृत्य किया था। इस घटना को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। ऐसे ही नए रिकॉर्ड बनाते हुए असम तेजी से आगे बढ़ रहा है।

साथियों,

अब इस नई टर्मिनल बिल्डिंग से गुवाहाटी और असम की क्षमता और ज्यादा बढ़ जाएगी। इस टर्मिनल पर हर साल करीब सवा करोड़ से ज्यादा यात्री सफर कर सकेंगे! यानी, बड़ी संख्या में पर्यटक भी असम आ सकेंगे। श्रद्धालुओं के लिए माँ कामाख्या के दर्शन की सुविधा भी आसान हो जाएगी। इस नए एयरपोर्ट टर्मिनल में कदम रखते ही ये साफ दिखता है विकास भी औऱ विरासत भी, ये मंत्र के मायने क्या हैं? इस एयरपोर्ट को असम की प्रकृति और संस्कृति को ध्यान में रखकर गढ़ा गया है। टर्मिनल के अंदर हरियाली है। Indoor forest जैसी व्यवस्था है। चारों तरफ प्रकृति से जुड़ा डिजाइन है, यहां आने वाला हर यात्री सुकून महसूस करे। इसकी बनावट में बांस का खास इस्तेमाल किया गया है। बांस असम के जीवन का अभिन्न हिस्सा है, वो यहां मजबूती भी दिखाता है और खूबसूरती भी। और दिल्ली में बैठे हुए भूतकाल की सरकारों को ये बंबू क्या है, इसकी पहचान भी नहीं थी। आप हैरान होंगे, 2014 में आपने मुझे काम दिया उसके पहले हमारे देश में एक कानून था, ये कानून ऐसा था कि आप बंबू को काट नहीं सकते, अब कोई मुझे समझाए भई क्यों? क्योंकि उन्होंने कह दिया बंबू एक ट्री है, वृक्ष है, और जब एक बार वृक्ष कह दिया, तो फिर सारे दरवाजे बंद हो गए। जबकि बंबू दुनिया मानती है, कि ये एक पौधा है और हमने कानून हटाया और ग्रास की कैटेगरी में, जो सचमुच में बंबू की पहचान है उसमें लाया और तब जाकर के आज ये बंबू से इतनी बड़ी भव्य इमारत निर्माण हुई है और आज अगर आप सोशल मीडिया देखोगे, तो दुनिया भर में भारत के एयरपोर्ट की रचनाओं की चर्चा हो रही है।

साथियों,

इनफ्रास्ट्रक्चर के इस विकास का बहुत बड़ा संदेश, भारत की विकास यात्रा की पहचान बन रहा है। इससे उद्योगों को बढ़ावा मिलता है। निवेशकों को कनेक्टिविटी का भरोसा मिलता है। लोकल प्रोडक्ट्स को दुनिया भर में पहुंचाने का रास्ता खुलता है। और, सबसे बड़ा भरोसा उस युवा को मिलता है, जिसके लिए नए अवसर पैदा होते हैं। और इसलिए आज हम असम को, असीम संभावनाओं की इसी उड़ान पर आगे बढ़ते देख रहे हैं।

साथियों,

आज भारत को देखने का दुनिया का नज़रिया बदला है, और भारत की भूमिका भी बदली है। भारत अब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। 11 साल के भीतर-भीतर ये कैसे हुआ?

साथियों,

इसमें बहुत बड़ी भूमिका आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चर के विकास की है। भारत 2047 की तैयारी कर रहा है, विकसित भारत के संकल्प को सिद्ध करने के लिए हम इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस कर रहे हैं। और सबसे अहम बात ये है कि, विकास के इस महान अभियान में देश के हर राज्य की, हर क्षेत्र की भागीदारी है। हम पिछड़ों को प्राथमिकता दे रहे हैं। देश का हर राज्य एक साथ प्रगति करे, और विकसित भारत के मिशन में अपना योगदान दे, हमारी सरकार इस दिशा में काम कर रही है। और मुझे खुशी है कि आज असम और पूर्वोत्तर हमारे इस मिशन का नेतृत्व कर रहे हैं। हमने Act East पॉलिसी के जरिए पूर्वोत्तर को प्राथमिकता दी, और आज, हम असम को भारत के ईस्टर्न गेटवे के रूप में उभरता देख रहे हैं। असम भारत को ASEAN देशों से जोड़ने के लिए ब्रिज की भूमिका निभा रहा है। ये शुरुआत अभी बहुत आगे तक जाएगी। और, असम कई क्षेत्रों में विकसित भारत का इंजन बनेगा।

साथियों,

आज असम और पूरा नॉर्थ ईस्ट भारत के विकास का नया प्रवेशद्वार बन रहा है। मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी के संकल्प ने इस क्षेत्र की दिशा और इसकी दशा, दोनों बदली हैं। असम में नए पुल बनाने की रफ्तार, नए मोबाइल टावर लगाने की स्पीड, विकास के हर काम की गति, सपनों को हकीकत में बदल रही है। ब्रह्मपुत्र पर बने पुलों ने असम की कनेक्टिविटी को नई मजबूती और नया आत्मविश्वास दिया है। आजादी के बाद के 6-7 दशक में यहाँ केवल तीन बड़े पुल बन पाए थे। लेकिन पिछले एक दशक में चार नए मेगा ब्रिज पूरे किए गए हैं, इनके अलावा कई ऐतिहासिक परियोजनाएँ आकार ले रही हैं। बोगीबील और ढोला-सादिया जैसे सबसे लंबे पुलों ने असम को रणनीतिक रूप से और अधिक सशक्त बना दिया है। रेलवे कनेक्टिविटी में भी एक क्रांतिकारी बदलाव आया है। बोगीबील ब्रिज के शुरू होने से अपर असम और देश के बाकी हिस्सों के बीच की दूरी सिमट गई है। गुवाहाटी से न्यू जलपाईगुड़ी तक चलने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस ने यात्रा के समय को कम कर दिया है। देश में वाटरवेज के विकास का फायदा भी असम को मिल रहा है। कार्गो ट्रैफिक में 140 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, ये इस बात का प्रमाण है कि ब्रह्मपुत्र केवल नदी नहीं, बल्कि आर्थिक शक्ति का प्रवाह है। पांडु में पहली शिप रिपेयर सुविधा विकसित हो रही है, वाराणसी से डिब्रूगढ़ तक चलने वाली गंगा विकास क्रूज़ को लेकर उत्साह है, इससे नॉर्थ ईस्ट, ग्लोबल क्रूज़ टूरिज्म के मानचित्र पर स्थापित हो गया है।

साथियों,

काँग्रेस की सरकारों ने असम और पूर्वोत्तर को विकास से दूर रखने का जो पाप किया था, उसका बहुत बड़ा खामियाजा देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता को उठाना पड़ा। काँग्रेस की सरकारों में हिंसा का दौर दशकों तक फलता फूलता रहा, हम केवल 10-11 साल के भीतर उसे खत्म करने की तरफ बढ़ रहे हैं। पूर्वोत्तर में पहले जहां हिंसा और खून-खराबा होता था, आज वहाँ 4G और 5G टेक्नालजी से डिजिटल कनेक्टिविटी पहुँच रही है। जो जिले, कभी हिंसा ग्रस्त माने जाते थे, आजवो आकांक्षी जिलों के रूप में विकसित हो रहे हैं। आने वाले समय में यही इलाके इंडस्ट्रियल कॉरिडॉर भी बनेंगे। इसीलिए, आज नॉर्थईस्ट को लेकर एक नया भरोसा जगा है। हमें इसे और मजबूती देनी है।

साथियों,

हमें असम और पूर्वोत्तर के विकास में कामयाबी इसलिए भी मिल रही है, क्योंकि हम इस क्षेत्र की पहचान और संस्कृति की सुरक्षा कर रहे हैं। काँग्रेस ने एक और पाप किया था, उसने यहाँ की पहचान को मिटाने की साजिश की थी। और ये षड्यंत्र केवल कुछ वर्षों का नहीं है! काँग्रेस के इस पाप की जड़ें आज़ादी के पहले से जुड़ी हैं। वो समय, जब मुस्लिम लीग और अँग्रेजी हुकूमत मिलकर भारत के विभाजन की जमीन तैयार कर रहे थे, उस समय असम को भी अविभाजित बंगाल का, यानी ईस्ट पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की योजना बनाई गई थी। काँग्रेस उस साजिश का हिस्सा बनने जा रही थी। तब बोरदोलोई जी अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़े हो गए थे। उन्होंने असम की पहचान को खत्म करने के इस षड्यंत्र का विरोध किया। और, असम को देश से अलग होने से बचा लिया। भाजपा पार्टी, हमेशा पार्टी लाइन से ऊपर उठकर हर देशभक्त का सम्मान करती है। अटल जी के नेतृत्व में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई, तब उन्हें भारत रत्न दिया गया।

भाइयों बहनों,

बोरदोलोई जी ने आज़ादी के पहले तो असम को बचा लिया था, लेकिन, उनके बाद काँग्रेस ने फिर से असम विरोधी और देश विरोधी काम शुरू कर दिये। काँग्रेस ने अपना वोटबैंक बढ़ाने के लिए मजहबी तुष्टीकरण के षड्यंत्र रचे हैं। बंगाल और असम में अपने वोटबैंक वाले घुसपैठियों को खुली छूट दी गई है। यहाँ की डेमोग्राफी को बदला गया है। इन घुसपैठियों ने हमारे जंगलों पर कब्जा किया, हमारी ज़मीनों पर कब्जा किया। इसका नतीजा ये हुआ कि पूरे असम की सुरक्षा और पहचान दांव पर लग गई है।

साथियों,

आज हिमंत जी की सरकार और उनकी टीम के सभी साथी बहुत मेहनत से, असम के संसाधनों को इस गैर-कानूनी और देशविरोधी अतिक्रमण से मुक्त करा रही है। असम के संसाधन असम के लोगों के काम आयें, इसके लिए हर स्तर पर काम हो रहा है। केंद्र सरकार ने भी घुसपैठ रोकने के लिए सख्ती की है। अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए उनकी पहचान भी कराई जा रही है।

लेकिन भाइयों बहनों,

काँग्रेस पार्टी और इंडी गठबंधन के लोग खुलकर देशविरोधी एजेंडों पर उतर आए हैं। देश का सुप्रीम कोर्ट तक घुसपैठियों को बाहर करने की बात कर चुका है। लेकिन, ये लोग घुसपैठियों के बचाव में बयानबाजी कर रहे हैं। इनके वकील कोर्ट में घुसपैठियों को बसाने की पैरवी कर रहे हैं। चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव के लिए SIR की प्रक्रिया करवा रहा है, तो, इन लोगों को देश के हर कोने में तकलीफ हो रही है। ऐसे लोग, असमिया भाई-बहनों के हितों को नहीं बचाएंगे। ये लोग आपकी जमीन और जंगलों पर किसी और का कब्जा होने देंगे, इनकी देशविरोधी मानसिकता पुराने दौर की हिंसा और अशांति वाले हालात पैदा कर सकती है। और इसलिए मेरे असम के भाई-बहन, हमें बहुत सावधान रहना है। जिस असम की अस्मिता के लिए बोरदोलोई जी जैसे लोगों ने जीवन भर अपना सब कुछ नौछावर किया, हमें उसकी रक्षा करनी है। असम के लोगों को एकजुट रहना है। हमें असम के विकास को डिरेल होने से बचाना है, काँग्रेस के षडयंत्रों को पल-पल, कदम-कदम पर विफल करते रहना है।

साथियों,

आज दुनिया भारत की ओर उम्मीद से देख रही है। भारत के भविष्य का नया सूर्योदय पूर्वोत्तर से ही होना है। इसके लिए, हमें साथ मिलकर अपने सपनों के लिए काम करना होगा। हमें असम के विकास को सबसे आगे रखकर चलना होगा। मुझे विश्वास है, हमारे ये सामूहिक प्रयास असम को नई ऊंचाई पर लेकर जाएंगे। हम विकसित भारत के सपने पूरा करेंगे। और विकसित असम से विकसित भारत का रास्ता बनने वाला है। इसी कामना के साथ मैं एक बार फिर नए टर्मिनल की बधाई देता हूं। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरे साथ बोलिए-

वंदे मातरम्।

वंदे मातरम्।

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