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"मुंबई समाचार भारत का दर्शन और देश की अभिव्यक्ति है"
"स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर भारत के नवनिर्माण तक, पारसी बहनों और भाइयों का योगदान बहुत बड़ा है"
"मीडिया को जितना आलोचना करने का अधिकार है, उतना ही महत्वपूर्ण दायित्व सकारात्मक खबरों को सामने लाने का भी है"
"भारतीय मीडिया के सकारात्मक योगदान ने महामारी से निपटने में देश की बहुत मदद की"

महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोशियारी जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री उद्धव ठाकरे जी, महाराष्ट्र में नेता प्रतिपक्ष श्री देवेंद्र फडणवीस जी, मुंबई समाचार के MD श्री एच एन कामा जी, श्री मेहरवान कामा जी, एडिटर भाई निलेश दवे जी, अखबार से जुड़े सभी साथी, देवियों और सज्जनों !

प्रथम तो निलेशभाई ने जो कहा उसके सामने मेरा विरोध जताता हुं, उन्होंने कहा कि भारत भाग्य विधाता, लेकिन भारत भाग्य विधाता जनता जनार्दन है, 130 करोड देशवासी है, मैं तो सेवक हुं।

मुझे विचार आता है कि मैं आज नहीं आया होता तो, तो मैने बहुत कुछ गंवाया होता, क्योंकि यहां से देखने का शुरु करुं तो लगभग सभी जानेमाने चहरे दिख रहे है। इतने सारे लोगों का दर्शन करने का मौका मिले उससे विशेष आनंद का अवसर और क्या हो सकता है। वहाँ से खिचडी हाथ उपर कर-कर के वंदन कर रहै है।

मुंबई समाचार के सभी पाठकों, पत्रकारों और कर्मचारियों को इस ऐतिहासिक समाचार पत्र की दो सौवीं वर्षगांठ पर हार्दिक शुभकामनाएं !! इन दो सदियों में अनेक पीढ़ियों के जीवन को, उनके सरोकारों को मुंबई समाचार ने आवाज़ दी है। मुंबई समाचार ने आज़ादी के आंदोलन को भी आवाज़ दी और फिर आज़ाद भारत के 75 वर्षों को भी हर आयु के पाठकों तक पहुंचाया। भाषा का माध्यम जरूर गुजराती रहा, लेकिन सरोकार राष्ट्रीय था। विदेशियों के प्रभाव में जब ये शहर बॉम्बे हुआ, बंबई हुआ, तब भी इस अखबार ने अपना लोकल कनेक्ट नहीं छोड़ा, अपनी जड़ों से जुड़ाव नहीं तोड़ा। ये तब भी सामान्य मुंबईकर का अखबार था और आज भी वही है - मुंबई समाचार ! मुंबई समाचार के पहले संपादक, महेरजी भाई के लेख तो उस समय भी बहुत चाव से पढ़े जाते थे। इस अखबार में छपी खबरों की प्रामाणिकता संदेह से परे रही है। महात्मा गांधी और सरदार पटेल भी अक्सर मुंबई समाचार का हवाला देते थे। आज यहां जो पोस्टल स्टैंप रिलीज़ हुआ है, बुक कवर रिलीज़ हुआ है, जो डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई है, उनके माध्यम से आपका ये अद्भुत सफर देश और दुनिया तक पहुंचने वाला है।

साथियों,

आज के दौर में जब हम ये सुनते हैं कि कोई न्यूज़पेपर 200 साल से चल रहा है तो आश्चर्य होना बहुत स्वाभाविक है। आप देखिए, जब ये अखबार शुरु हुआ था, तब रेडियो का आविष्कार नहीं हुआ था, टीवी का तो सवाल ही नहीं उठता है। बीते 2 वर्षों में हम सभी ने अनेक बार 100 साल पहले फैले स्पेनिश फ्लू की चर्चा की है। लेकिन ये अखबार उस वैश्विक महामारी से भी 100 साल पहले से शुरू हुआ था। तेज़ी से बदलते दौर में जब ऐसे तथ्य सामने आते हैं तब हमें आज मुंबई समाचार के 200 वर्ष होने का महत्व और ज्यादा समझ में आता है। और ये भी बहुत सुखद है कि मुंबई समाचार के 200 वर्ष और भारत की आज़ादी के 75 वर्ष का संयोग इस वर्ष ही बना है। इसलिए आज के इस अवसर पर हम सिर्फ भारत की पत्रकारिता के उच्च मानदंडों, राष्ट्रभक्ति के सरोकार से जुड़ी पत्रकारिता का ही उत्सव नहीं मना रहे, बल्कि ये आयोजन आजादी के अमृत महोत्सव की भी शोभा बढ़ा रहा है। जिन संस्कारों, जिन संकल्पों को लेकर आप चले हैं, मुझे विश्वास है कि राष्ट्र को जागरूक करने का आपका ये महायज्ञ, अबाध ऐसे ही जारी रहेगा।

साथियों,

मुंबई समाचार सिर्फ एक समाचार का माध्यम भर नहीं है, बल्कि एक धरोहर है। मुंबई समाचार भारत का दर्शन है, भारत की अभिव्यक्ति है। भारत कैसे हर झंझावात के बावजूद, अटल रहा है, उसकी झलक हमें मुंबई समाचार में भी मिलती है। समय-काल परिस्थिति के हर बदलाव के साथ भारत ने खुद को बदला है, लेकिन अपने मूल सिद्धांतों को और मजबूत किया है। मुंबई समाचार ने भी हर नए बदलाव को धारण किया। सप्ताह में एक बार से, सप्ताह में 2 बार, फिर दैनिक और अब डिजिटल, हर दौर की नई चुनौतियों को इस समाचार पत्र ने बखूबी अपनाया है। अपनी जड़ों से जुड़े हुए, अपने मूल पर गर्व करते हुए, कैसे बदलाव को अंगीकार किया जा सकता है, मुंबई समाचार इसका भी प्रमाण है।

साथियों,

मुंबई समाचार जब शुरू हुआ था तब गुलामी का अंधेरा घना हो रहा था। ऐसे कालखंड में गुजराती जैसी भारतीय भाषा में अखबार निकालना इतना आसान नहीं था। मुंबई समाचार ने उस दौर में भाषाई पत्रकारिता को विस्तार दिया। इसकी सफलता ने इनको माध्यम बनाया। लोकमान्य तिलक जी ने केसरी और मराठा साप्ताहिक पत्रों से आज़ादी के आंदोलन को धार दी। सुब्रमणियम भारती की कविताओं, उनके लेखों ने विदेशी सत्ता पर प्रहार किए।

साथियों,

गुजराती पत्रकारिता भी आज़ादी की लड़ाई का बहुत प्रभावी माध्यम बन गई थी। फर्दुनजी ने गुजराती पत्रकारिता की एक सशक्त नींव डाली। गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका से अपना पहला अखबार इंडियन ऑपीनियन शुरु किया था, जिसके संपादक जूनागढ़ के मशहूर मनसुख लाल नाज़र थे। इसके बाद पूज्य बापू ने पहली बार एडिटर के रूप में गुजराती अखबार नवजीवन की कमान संभाली, जिसे इंदुलाल याग्निक जी ने उनको सौंपा था। एक समय में, ए डी गोरवाला का ओपिनियन दिल्ली में सत्ता के गलियारों में काफी लोकप्रिय था। इमरजेंसी के दौरान सेंसरशिप के चलते प्रतिबंध लगा तो इसके साइक्लोस्टाइल प्रकाशित होने लग गए थे। आज़ादी की लड़ाई हो या फिर लोकतंत्र की पुनर्स्थापना, पत्रकारिता की एक बहुत अहम भूमिका रही है। इसमें भी गुजराती पत्रकारिता की भूमिका उच्च कोटि की रही है।

साथियों,

आज़ादी के अमृतकाल में भी भारतीय भाषाओं की एक अहम भूमिका रहने वाली है। जिस भाषा को हम जीते हैं, जिसमें हम सोचते हैं, उसके माध्यम से हम राष्ट्र की क्रिएटिविटी को निखारना चाहते हैं। इसी सोच के साथ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मेडिकल की पढ़ाई हो, साइंस और टेक्नोलॉजी की पढ़ाई हो, वो स्थानीय भाषा में कराने का विकल्प दिया गया है। इसी सोच के साथ भारतीय भाषाओं में दुनिया के बेस्ट कंटेंट के निर्माण पर बल दिया जा रहा है।

साथियों,

भाषाई पत्रकारिता ने, भारतीय भाषाओं के साहित्य ने आज़ादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जनसामान्य तक अपनी बातों के पहुंचाने के लिए पूज्य बापू ने भी पत्रकारिता को प्रमुख स्तंभ बनाया। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने रेडियो इनको माध्यम बनाया।

साथियों,

आज एक और पक्ष के बारे में आपसे जरूर बात करना चाहता हूं। आप भी जानते हैं कि इस अखबार को शुरू किया फर्दुनजी मुर्ज़बान ने और जब इस पर संकट आया तो इसको संभाला कामा परिवार ने। इस परिवार ने इस समाचार पत्र को नई ऊंचाई दी। जिस लक्ष्य के साथ इसको शुरू किया गया था, उसको मज़बूती दी।

साथियों,

भारत का हज़ारों वर्षों का इतिहास हमें बहुत कुछ सिखाता है। यहां जो भी आया, छोटा हो या बड़ा, कमज़ोर हो या बलवान, सभी को मां भारती ने अपनी गोद में फलने-फूलने का भरपूर अवसर दिया और पारसी समुदाय से बेहतर इसका उदाहरण कोई हो ही नहीं सकता है। जो कभी भारत आए थे, वो आज अपने देश को हर क्षेत्र में सशक्त कर रहे हैं। आज़ादी के आंदोलन से लेकर भारत के नवनिर्माण तक पारसी बहन-भाइयों का योगदान बहुत बड़ा है। संख्या से हिसाब से समुदाय देश के सबसे छोटे समुदायों में से है, एक तरह से माइक्रो-माइनॉरिटी है, लेकिन सामर्थ्य और सेवा के हिसाब से बहुत बड़ा है। भारतीय उद्योग, राजनीति, समाज सेवा, न्यायतंत्र, खेल और पत्रकारिता even सेना, फौज में हर क्षेत्र में पारसी समुदाय की एक छाप दिखती है। साथियों, भारत की यही परंपरा है, यही मूल्य हैं, जो हमें श्रेष्ठ बनाते हैं।

साथियों,

लोकतंत्र में चाहे जन प्रतिनिधि हो, राजनीतिक दल हो, संसद हो या न्यायपालिका हो, हर घटक का अपना-अपना रोल है, अपनी-अपनी निश्चित भूमिका है। इस भूमिका का सतत निर्वाह बहुत आवश्यक है। गुजराती में एक कहावत है - जेनु काम तेनु थाय; बिज़ा करे तो गोता खाय। यानि जिसका जो काम है, उसी को करना चाहिए। राजनीति हो, मीडिया हो या फिर कोई दूसरा क्षेत्र, सभी के लिए ये कहावत प्रासंगिक है। समाचार पत्रों का, मीडिया का काम समाचार पहुंचाना है, लोक शिक्षा का है, समाज और सरकार में कुछ कमियां हैं तो उनको सामने लाने का है। मीडिया का जितना अधिकार आलोचना का है, उतना ही बड़ा दायित्व सकारात्मक खबरों को सामने लाने का भी है। बीते वर्षों में मीडिया के एक बड़े वर्ग ने राष्ट्रहित से जुड़े, समाज हित से जुड़े अभियानों को बढ़-चढ़कर अपनाया है, उसका सकारात्मक प्रभाव आज देश अनुभव कर रहा है। स्वच्छ भारत अभियान से अगर देश के गांव और गरीब का जीवन, उसका स्वास्थ्य बेहतर हो रहा है, तो इसमें कुछ मीडिया के लोगों ने भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई है, प्रशंसनीय भूमिका निभाई है। आज भारत अगर डिजिटल पेमेंट्स के मामले में दुनिया में अग्रणी है, तो लोक शिक्षा का जो अभियान मीडिया ने चलाया, उससे देश की मदद हुई। आपको खुशी होगी, डिजिटल लेनदेन दुनिया का 40% कारोबार अकेला हिन्‍दुस्‍तान करता है। बीते 2 वर्षों में कोरोना काल के दौरान जिस प्रकार हमारे पत्रकार साथियों ने राष्ट्रहित में एक कर्मयोगी की तरह काम किया, उसको भी हमेशा याद किया जाएगा। भारत के मीडिया के सकारात्मक योगदान से भारत को 100 साल के इस सबसे बड़े संकट से निपटने में बहुत मदद मिली। मुझे विश्वास है कि आज़ादी के अमृतकाल में देश का मीडिया अपनी सकारात्मक भूमिका का और विस्तार करेगा। ये देश डिबेट और डिस्कशन्स के माध्यमों से आगे बढ़ने वाली समृद्ध परिपाटी का देश है। हज़ारों वर्षों से हमने स्वस्थ बहस को, स्वस्थ आलोचना को, सही तर्क को सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा बनाया है। हमने बहुत कठिन सामाजिक विषयों पर भी खुलकर स्वस्थ चर्चा की है। यही भारत की परिपाटी रही है, जिसको हमें सशक्त करना है।

साथियों,

आज मैं मुंबई समाचार के प्रबंधकों, पत्रकारों से विशेष रूप से उनसे आग्रह करना चाहता हूं। आपके पास 200 वर्षों का जो आर्काइव है, जिसमें भारत के इतिहास के अनेक turning points दर्ज हैं, उसको देश-दुनिया के सामने रखना बहुत ज़रूरी है। मेरा सुझाव है कि मुंबई समाचार, अपने इस पत्रकारीय खज़ाने को अलग-अलग भाषाओं में किताबों के रूप में, ज़रूर देश के सामने लाने का प्रयास करे। आपने महात्मा गांधी के बारे में जो रिपोर्ट किया, स्वामी विवेकानंद जी को रिपोर्ट किया, भारत की अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव को बारीकी से समझा-समझाया। ये सब अब रिपोर्ट मात्र नहीं हैं। ये वो पल हैं जिन्होंने भारत के भाग्य को बदलने में भूमिका निभाई है। इसलिए आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने का बहुत बड़ा माध्यम, बहुत बड़ा खजाना कामा साहब आपके पास है और देश इंतजार कर रहा है। भविष्य में पत्रकारिता के लिए भी एक बड़ा सबक आपके इतिहास में छुपा है। इस ओर आप सभी जरूर प्रयास करें और आज 200 वर्ष मैंने पहले भी कहा ये यात्रा कितने उतार-चढ़ाव देखे होंगे और 200 साल तक नियमित चलना, ये भी अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत है। इस महत्वपूर्ण अवसर पर आप सबने मुझे निमंत्रण दिया, आप सबके बीच आने का मौका मिला, इतने बड़े विशाल समुदाय से मिलने का मौका मिला और मैं कभी एक बार यहां मुंबई में किसी साहित्य के कार्यक्रम में आया था, शायद हमारे सूरज भाई दलाल ने मुझे बुलाया था। उस दिन मैंने कहा था कि मुंबई और महाराष्ट्र ये गुजरात की भाषा का ननीहाल है। एक बार फिर आप सभी को मुंबई समाचार के 200 वर्ष होने की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। कामा परिवार को आपने राष्ट्र की बहुत बड़ी सेवा की है, पूरा परिवार आपका बधाई का पात्र है और मैं मुंबई समाचार के सभी पाठकों को भी, वाचकों को भी हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। कामा साहब ने जो कहा वो सिर्फ शब्द नहीं थे, 200 साल तक, पीढ़ी दर पीढ़ी एक घर में एक अखबार नियमित पढ़ा जाए, देखा जाए, सुना जाए, ये अपने आप में ही उस अखबार की बहुत बड़ी ताकत है जी। और उसे ताकत देने वाले आप सब लोग हैं और इसलिए मैं गुजरातियों के इस सामर्थ्य को मैं बधाई देना चाहूंगा। मैं नाम नहीं लेना चाहता हूं, आज भी एक देश ऐसा है जहां एक शहर में, मैं विदेश की बात कर रहा हूं, सबसे ज्यादा सर्कुलेशन वाला अखबार गुजराती है। इसका मतलब हुआ कि गुजराती लोग शायद जल्दी समझ जाते हैं किस चीज में कहाँ ताकत है। चलिए हंसी-खुशी की शाम के साथ बहुत-बहुत धन्यवाद !

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PM celebrates Gold Medal by 4x400 Relay Men’s Team at Asian Games
October 04, 2023
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The Prime Minister, Shri Narendra Modi has congratulated Muhammed Anas Yahiya, Amoj Jacob, Muhammed Ajmal and Rajesh Ramesh on winning the Gold medal in Men's 4x400 Relay event at Asian Games 2022 in Hangzhou.

The Prime Minister posted on X:

“What an incredible display of brilliance by our Men's 4x400 Relay Team at the Asian Games.

Proud of Muhammed Anas Yahiya, Amoj Jacob, Muhammed Ajmal and Rajesh Ramesh for such a splendid run and bringing back the Gold for India. Congrats to them.”