आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्‍वतंत्रता दि‍वस 2014 के अवसर पर लाल कि‍ले के प्राचीर से देश कोसंबोधि‍त कि‍या ।

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इस अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ इस प्रकार है -

मेरे प्यारे देशवासियो,

आज देश और दुनिया में फैले हुए सभी हिन्दुस्तानी आज़ादी का पर्व मना रहे हैं। इस आज़ादी केपावन पर्व पर प्यारे देशवासियों को भारत के प्रधान सेवक की अनेक-अनेक शुभकामनाएँ।

मैं आपके बीच प्रधान मंत्री के रूप में नहीं, प्रधान सेवक के रूप में उपस्थित हूँ। देश की आज़ादी कीजंग कितने वर्षों तक लड़ी गई, कितनी पीढ़ियाँ खप गईं, अनगिनत लोगों ने बलिदान दिए, जवानी खपा दी,जेल में ज़िन्दगी गुज़ार दी। देश की आज़ादी के लिए मर-मिटने वाले समर्पित उन सभी आज़ादी केसिपाहियों को मैं शत-शत वंदन करता हूँ, नमन करता हूँ।

आज़ादी के इस पावन पर्व पर भारत के कोटि-कोटि जनों को भी मैं प्रणाम करता हूँ और आज़ादी कीजंग के लिए जिन्होंने कुर्बानियाँ दीं, उनका पुण्य स्मरण करते हुए आज़ादी के इस पावन पर्व पर माँ भारतीके कल्याण के लिए हमारे देश के गरीब, पीड़ित, दलित, शोषित, समाज के पिछड़े हुए सभी लोगों केकल्याण का, उनके लिए कुछ न कुछ कर गुज़रने का संकल्प करने का पर्व है।

मेरे प्यारे देशवासियो, राष्ट्रीय पर्व, राष्ट्रीय चरित्र को निखारने का एक अवसर होता है। राष्ट्रीय पर्वसे प्रेरणा ले करके भारत के राष्ट्रीय चरित्र, जन-जन का चरित्र जितना अधिक निखरे, जितना अधिक राष्ट्रके लिए समर्पित हो, सारे कार्यकलाप राष्ट्रहित की कसौटी पर कसे जाएँ, अगर उस प्रकार का जीवन जीनेका हम संकल्प करते हैं, तो आज़ादी का पर्व भारत को नई ऊँचाइयों पर ले जाने का एक प्रेरणा पर्व बनसकता है।

मेरे प्यारे देशवासियो, यह देश राजनेताओं ने नहीं बनाया है, यह देश शासकों ने नहीं बनाया है, यहदेश सरकारों ने भी नहीं बनाया है, यह देश हमारे किसानों ने बनाया है, हमारे मजदूरों ने बनाया है, हमारीमाताओं और बहनों ने बनाया है, हमारे नौजवानों ने बनाया है, हमारे देश के ऋषियों ने, मुनियों ने, आचार्योंने, शिक्षकों ने, वैज्ञानिकों ने, समाजसेवकों ने, पीढ़ी दर पीढ़ी कोटि-कोटि जनों की तपस्या से आज राष्ट्रयहाँ पहुँचा है। देश के लिए जीवन भर साधना करने वाली ये सभी पीढ़ियाँ, सभी महानुभाव अभिनन्दन केअधिकारी हैं। यह भारत के संविधान की शोभा है, भारत के संविधान का सामर्थ्य है कि एक छोटे से नगर केगरीब परिवार के एक बालक ने आज लाल किले की प्राचीर पर भारत के तिरंगे झण्डे के सामने सिर झुकानेका सौभाग्य प्राप्त किया। यह भारत के लोकतंत्र की ताकत है, यह भारत के संविधान रचयिताओं की हमेंदी हुई अनमोल सौगात है। मैं भारत के संविधान के निर्माताओं को इस पर नमन करता हूँ।

भाइयो एवं बहनो, आज़ादी के बाद देश आज जहाँ पहुँचा है, उसमें इस देश के सभी प्रधान मंत्रियों कायोगदान है, इस देश की सभी सरकारों का योगदान है, इस देश के सभी राज्यों की सरकारों का भी योगदानहै। मैं वर्तमान भारत को उस ऊँचाई पर ले जाने का प्रयास करने वाली सभी पूर्व सरकारों को, सभी पूर्वप्रधान मंत्रियों को, उनके सभी कामों को, जिनके कारण राष्ट्र का गौरव बढ़ा है, उन सबके प्रति इस पलआदर का भाव व्यक्त करना चाहता हूँ, मैं आभार की अभिव्यक्ति करना चाहता हूँ।

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यह देश पुरातन सांस्कृतिक धरोहर की उस नींव पर खड़ा है, जहाँ पर वेदकाल में हमें एक ही मंत्रसुनाया जाता है, जो हमारी कार्य संस्कृति का परिचय है, हम सीखते आए हैं, पुनर्स्मरण करते आए हैं-“संगच्छध्वम् संवदध्वम् सं वो मनांसि जानताम्।” हम साथ चलें, मिलकर चलें, मिलकर सोचें, मिलकरसंकल्प करें और मिल करके हम देश को आगे बढ़ाएँ। इस मूल मंत्र को ले करके सवा सौ करोड़ देशवासियोंने देश को आगे बढ़ाया है। कल ही नई सरकार की प्रथम संसद के सत्र का समापन हुआ। मैं आज गर्व सेकहता हूं कि संसद का सत्र हमारी सोच की पहचान है, हमारे इरादों की अभिव्यक्ति है। हम बहुमत के बलपर चलने वाले लोग नहीं हैं, हम बहुमत के बल पर आगे बढ़ना नहीं चाहते हैं। हम सहमति के मजबूतधरातल पर आगे बढ़ना चाहते हैं। "संगच्छध्वम्" और इसलिए इस पूरे संसद के कार्यकाल को देश ने देखाहोगा। सभी दलों को साथ लेकर, विपक्ष को जोड़ कर, कंधे से कंधा मिलाकर चलने में हमें अभूतपूर्वसफलता मिली है और उसका यश सिर्फ प्रधान मंत्री को नहीं जाता है, उसका यश सिर्फ सरकार में बैठे हुएलोगों को नहीं जाता है, उसका यश प्रतिपक्ष को भी जाता है, प्रतिपक्ष के सभी नेताओं को भी जाता है,प्रतिपक्ष के सभी सांसदों को भी जाता है और लाल किले की प्राचीर से, गर्व के साथ, मैं इन सभी सांसदों काअभिवादन करता हूं। सभी राजनीतिक दलों का भी अभिवादन करता हूं, जहां सहमति के मजबूत धरातलपर राष्ट्र को आगे ले जाने के महत्वपूर्ण निर्णयों को कर-करके हमने कल संसद के सत्र का समापन किया।

भाइयो-बहनो, मैं दिल्ली के लिए आउटसाइडर हूं, मैं दिल्ली की दुनिया का इंसान नहीं हूं। मैं यहां केराज-काज को भी नहीं जानता। यहां की एलीट क्लास से तो मैं बहुत अछूता रहा हूं, लेकिन एक बाहर केव्यक्ति ने, एक आउटसाइडर ने दिल्ली आ करके पिछले दो महीने में, एक इनसाइडर व्यू लिया, तो मैं चौंकगया! यह मंच राजनीति का नहीं है, राष्ट्रनीति का मंच है और इसलिए मेरी बात को राजनीति के तराजू सेन तोला जाए। मैंने पहले ही कहा है, मैं सभी पूर्व प्रधान मंत्रियों, पूर्व सरकारों का अभिवादन करता हूं,जिन्होंने देश को यहां तक पहुंचाया। मैं बात कुछ और करने जा रहा हूं और इसलिए इसको राजनीति केतराजू से न तोला जाए। मैंने जब दिल्ली आ करके एक इनसाइडर व्यू देखा, तो मैंने अनुभव किया, मैं चौंकगया। ऐसा लगा जैसे एक सरकार के अंदर भी दर्जनों अलग-अलग सरकारें चल रही हैं। हरेक की जैसेअपनी-अपनी जागीरें बनी हुई हैं। मुझे बिखराव नज़र आया, मुझे टकराव नज़र आया। एक डिपार्टमेंट दूसरेडिपार्टमेंट से भिड़ रहा है और यहां तक‍ भिड़ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खट-खटाकर एक ही सरकारके दो डिपार्टमेंट आपस में लड़ाई लड़ रहे हैं। यह बिखराव, यह टकराव, एक ही देश के लोग! हम देश को कैसेआगे बढ़ा सकते हैं? और इसलिए मैंने कोशिश प्रारम्भ की है, उन दीवारों को गिराने की, मैंने कोशिशप्रारम्भ की है कि सरकार एक असेम्बल्ड एन्टिटी नहीं, लेकिन एक ऑर्गेनिक युनिटी बने, ऑर्गेनिकएन्टिटी बने। एकरस हो सरकार - एक लक्ष्य, एक मन, एक दिशा, एक गति, एक मति – इस मुक़ाम परहम देश को चलाने का संकल्प करें। हम चल सकते हैं। आपने कुछ दिन पहले... इन दिनों अखबारों में चर्चाचलती है कि मोदी जी की सरकार आ गई, अफसर लोग समय पर ऑफिस जाते हैं, समय पर ऑफिस खुलजाते हैं, लोग पहुंच जाते हैं। मैं देख रहा था, हिन्दुस्तान के नेशनल न्यूज़पेपर कहे जाएं, टीवी मीडिया कहाजाए, प्रमुख रूप से ये खबरें छप रही थीं। सरकार के मुखिया के नाते तो मुझे आनन्द आ सकता है कि देखोभाई, सब समय पर चलना शुरू हो गया, सफाई होने लगी, लेकिन मुझे आनन्द नहीं आ रहा था, मुझे पीड़ाहो रही थी। वह बात मैं आज पब्लिक में कहना चाहता हूं। इसलिए कहना चाहता हूं कि इस देश में सरकारीअफसर समय पर दफ्तर जाएं, यह कोई न्यूज़ होती है क्या? और अगर वह न्यूज़ बनती है, तो हम कितनेनीचे गए हैं, कितने गिरे हैं, इसका वह सबूत बन जाती है और इसलिए भाइयो-बहनो, सरकारें कैसे चली हैं?आज वैश्विक स्पर्धा में कोटि-कोटि भारतीयों के सपनों को साकार करना होगा तो यह “होती है”, “चलतीहै”, से देश नहीं चल सकता। जन-सामान्य की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, शासन व्यवस्था नामका जो पुर्जा है, जो मशीन है, उसको और धारदार बनाना है, और तेज़ बनाना है, और गतिशील बनाना हैऔर उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं और मैं आपको विश्वास देता हूं, मेरे देशवासियो, इतने कम समय सेदिल्ली के बाहर से आया हूं, लेकिन मैं देशवासियों को विश्वास दिलाता हूं कि सरकार में बैठे हुए लोगों कासामर्थ्य बहुत है – चपरासी से लेकर कैबिनेट सेक्रेटरी तक हर कोई सामर्थ्यवान है, हरेक की एक शक्ति है,उसका अनुभव है। मैं उस शक्ति को जगाना चाहता हूं, मैं उस शक्ति को जोड़ना चाहता हूं और उस शक्तिके माध्यम से राष्ट्र कल्याण की गति को तेज करना चाहता हूं और मैं करके रहूंगा। यह हम पाकर रहेंगे, हमकरके रहेंगे, यह मैं देशवासियों को विश्वास दिलाना चाहता हूं और यह मैं 16 मई को नहीं कह सकता था,लेकिन आज दो-ढाई महीने के अनुभव के बाद, मैं 15 अगस्त को तिरंगे झंडे के साक्ष्य से कह रहा हूं, यहसंभव है, यह होकर रहेगा।

भाइयो-बहनो, क्या देश के हमारे जिन महापुरुषों ने आज़ादी दिलाई, क्या उनके सपनों का भारतबनाने के लिए हमारा भी कोई कर्तव्य है या नहीं है, हमारा भी कोई राष्ट्रीय चरित्र है या नहीं है? उस परगंभीरता से सोचने का समय आ गया है।

भाइयो-बहनो, कोई मुझे बताए कि हम जो भी कर रहे हैं दिन भर, शाम को कभी अपने आपसे पूछाकि मेरे इस काम के कारण मेरे देश के गरीब से गरीब का भला हुआ या नहीं हुआ, मेरे देश के हितों की रक्षाहुई या नहीं हुई, मेरे देश के कल्याण के काम में आया या नहीं आया? क्या सवा सौ करोड़ देशवासियों का यहमंत्र नहीं होना चाहिए कि जीवन का हर कदम देशहित में होगा? दुर्भाग्य कैसा है? आज देश में एक ऐसामाहौल बना हुआ है कि किसी के पास कोई भी काम लेकर जाओ, तो कहता है, "इसमें मेरा क्या"? वहीं सेशुरू करता है, "इसमें मेरा क्या" और जब उसको पता चलेगा कि इसमें उसका कुछ नहीं है, तो तुरन्तबोलता है, "तो फिर मुझे क्या"? "ये मेरा क्या" और "मुझे क्या", इस दायरे से हमें बाहर आना है। हर चीज़अपने लिए नहीं होती है। कुछ चीज़ें देश के लिए भी हुआ करती हैं और इसलिए हमारे राष्ट्रीय चरित्र को हमेंनिखारना है। "मेरा क्या", "मुझे क्या", उससे ऊपर उठकर "देशहित के हर काम के लिए मैं आया हूं, मैं आगेहूं", यह भाव हमें जगाना है।

भाइयो-बहनो, आज जब हम बलात्कार की घटनाओं की खबरें सुनते हैं, तो हमारा माथा शर्म से झुकजाता है। लोग अलग-अलग तर्क देते हैं, हर कोई मनोवैज्ञानिक बनकर अपने बयान देता है, लेकिन भाइयो-बहनो, मैं आज इस मंच से मैं उन माताओं और उनके पिताओं से पूछना चाहता हूं, हर मां-बाप से पूछनाचाहता हूं कि आपके घर में बेटी 10 साल की होती है, 12 साल की होती है, मां और बाप चौकन्ने रहते हैं, हरबात पूछते हैं कि कहां जा रही हो, कब आओगी, पहुंचने के बाद फोन करना। बेटी को तो सैकड़ों सवाल मां-बाप पूछते हैं, लेकिन क्या कभी मां-बाप ने अपने बेटे को पूछने की हिम्मत की है कि कहां जा रहे हो, क्योंजा रहे हो, कौन दोस्त है? आखिर बलात्कार करने वाला किसी न किसी का बेटा तो है। उसके भी तो कोई नकोई मां-बाप हैं। क्या मां-बाप के नाते, हमने अपने बेटे को पूछा कि तुम क्या कर रहे हो, कहां जा रहे हो?अगर हर मां-बाप तय करे कि हमने बेटियों पर जितने बंधन डाले हैं, कभी बेटों पर भी डाल करके देखो तोसही, उसे कभी पूछो तो सही।

भाइयो-बहनो, कानून अपना काम करेगा, कठोरता से करेगा, लेकिन समाज के नाते भी, हर मां-बापके नाते हमारा दायित्व है। कोई मुझे कहे, यह जो बंदूक कंधे पर उठाकर निर्दोषों को मौत के घाट उतारनेवाले लोग कोई माओवादी होंगे, कोई आतंकवादी होंगे, वे किसी न किसी के तो बेटे हैं। मैं उन मां-बाप सेपूछना चाहता हूं कि अपने बेटे से कभी इस रास्ते पर जाने से पहले पूछा था आपने? हर मां-बाप जिम्मेवारीले, इस गलत रास्ते पर गया हुआ आपका बेटा निर्दोषों की जान लेने पर उतारू है। न वह अपना भला कर पारहा है, न परिवार का भला कर पा रहा है और न ही देश का भला कर पा रहा है और मैं हिंसा के रास्ते पर गएहुए, उन नौजवानों से कहना चाहता हूं कि आप जो भी आज हैं, कुछ न कुछ तो भारतमाता ने आपको दियाहै, तब पहुंचे हैं। आप जो भी हैं, आपके मां-बाप ने आपको कुछ तो दिया है, तब हैं। मैं आपसे पूछना चाहताहूं, कंधे पर बंदूक ले करके आप धरती को लाल तो कर सकते हो, लेकिन कभी सोचो, अगर कंधे पर हलहोगा, तो धरती पर हरियाली होगी, कितनी प्यारी लगेगी। कब तक हम इस धरती को लहूलुहान करतेरहेंगे? और हमने पाया क्या है? हिंसा के रास्ते ने हमें कुछ नहीं दिया है।

भाइयो-बहनो, मैं पिछले दिनों नेपाल गया था। मैंने नेपाल में सार्वजनिक रूप से पूरे विश्व कोआकर्षित करने वाली एक बात कही थी। एक ज़माना था, सम्राट अशोक जिन्होंने युद्ध का रास्ता लिया था,लेकिन हिंसा को देख करके युद्ध छोड़, बुद्ध के रास्ते पर चले गए। मैं देख रहा हूं कि नेपाल में कोई एक समयथा, जब नौजवान हिंसा के रास्ते पर चल पड़े थे, लेकिन आज वही नौजवान संविधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हीं के साथ जुड़े लोग संविधान के निर्माण में लगे हैं और मैंने कहा था, शस्त्र छोड़कर शास्त्र के रास्ते परचलने का अगर नेपाल एक उत्तम उदाहरण देता है, तो विश्व में हिंसा के रास्ते पर गए हुए नौजवानों कोवापस आने की प्रेरणा दे सकता है।

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भाइयो-बहनो, बुद्ध की भूमि, नेपाल अगर संदेश दे सकती है, तो क्या भारत की भूमि दुनिया कोसंदेश नहीं दे सकती है? और इसलिए समय की मांग है, हम हिंसा का रास्ता छोड़ें, भाईचारे के रास्ते परचलें।

भाइयो-बहनो, सदियों से किसी न किसी कारणवश साम्प्रदायिक तनाव से हम गुज़र रहे हैं, देशविभाजन तक हम पहुंच गए। आज़ादी के बाद भी कभी जातिवाद का ज़हर, कभी सम्पद्रायवाद का ज़हर, येपापाचार कब तक चलेगा? किसका भला होता है? बहुत लड़ लिया, बहुत लोगों को काट लिया, बहुत लोगोंको मार दिया। भाइयो-बहनो, एक बार पीछे मुड़कर देखिए, किसी ने कुछ नहीं पाया है। सिवाय भारत मांके अंगों पर दाग लगाने के हमने कुछ नहीं किया है और इसलिए, मैं देश के उन लोगों का आह्वान करता हूंकि जातिवाद का ज़हर हो, सम्प्रदायवाद का ज़हर हो, आतंकवाद का ज़हर हो, ऊंच-नीच का भाव हो, यह देशको आगे बढ़ाने में रुकावट है। एक बार मन में तय करो, दस साल के लिए मोरेटोरियम तय करो, दस सालतक इन तनावों से हम मुक्त समाज की ओर जाना चाहते हैं और आप देखिए, शांति, एकता, सद्भावना,भाईचारा हमें आगे बढ़ने में कितनी ताकत देता है, एक बार देखो।

मेरे देशवासियो, मेरे शब्दों पर भरोसा कीजिए, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं। अब तक किए हुएपापों को, उस रास्ते को छोड़ें, सद्भावना, भाईचारे का रास्ता अपनाएं और हम देश को आगे ले जाने कासंकल्प करें। मुझे विश्वास है कि हम इसको कर सकते हैं।

भाइयो-बहनो, जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ रहा है, आधुनिकता का हमारे मन में एक भाव जगता है,पर हम करते क्या हैं? क्या कभी सोचा है कि आज हमारे देश में सेक्स रेशियो का क्या हाल है? 1 हजारलड़कों पर 940 बेटियाँ पैदा होती हैं। समाज में यह असंतुलन कौन पैदा कर रहा है? ईश्वर तो नहीं कर रहाहै। मैं उन डॉक्टरों से अनुरोध करना चाहता हूं कि अपनी तिजोरी भरने के लिए किसी माँ के गर्भ में पल रहीबेटी को मत मारिए। मैं उन माताओं, बहनों से कहता हूं कि आप बेटे की आस में बेटियों को बलि मतचढ़ाइए। कभी-कभी माँ-बाप को लगता है कि बेटा होगा, तो बुढ़ापे में काम आएगा। मैं सामाजिक जीवन मेंकाम करने वाला इंसान हूं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं कि पाँच बेटे हों, पाँचों के पास बंगले हों, घर में दस-दसगाड़ियाँ हों, लेकिन बूढ़े माँ-बाप ओल्ड एज होम में रहते हैं, वृद्धाश्रम में रहते हैं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं। मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं, जहाँ संतान के रूप में अकेली बेटी हो, वह बेटी अपने सपनों की बलि चढ़ाती है,शादी नहीं करती और बूढ़े माँ-बाप की सेवा के लिए अपने जीवन को खपा देती है। यह असमानता, माँ केगर्भ में बेटियों की हत्या, इस 21वीं सदी के मानव का मन कितना कलुषित, कलंकित, कितना दाग भरा है,उसका प्रदर्शन कर रहा है। हमें इससे मुक्ति लेनी होगी और यही तो आज़ादी के पर्व का हमारे लिए संदेश है।

अभी राष्ट्रमंडल खेल हुए हैं। भारत के खिलाड़ियों ने भारत को गौरव दिलाया है। हमारे करीब 64खिलाड़ी जीते हैं। हमारे 64 खिलाड़ी मेडल लेकर आए हैं, लेकिन उनमें 29 बेटियाँ हैं। इस पर गर्व करें औरउन बेटियों के लिए ताली बजाएं। भारत की आन-बान-शान में हमारी बेटियों का भी योगदान है, हम इसकोस्वीकार करें और उन्हें भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ लेकर चलें, तो सामाजिक जीवन में जो बुराइयाँ आईहैं, हम उन बुराइयों से मुक्ति पा सकते हैं। इसलिए भाइयो-बहनो, एक सामाजिक चरित्र के नाते, एकराष्ट्रीय चरित्र के नाते हमें उस दिशा में जाना है। भाइयो-बहनो, देश को आगे बढ़ाना है, तो विकास - एक हीरास्ता है। सुशासन - एक ही रास्ता है। देश को आगे ले जाने के लिए ये ही दो पटरियाँ हैं - गुड गवर्नेंस एंडडेवलपमेंट, उन्हीं को लेकर हम आगे चल सकते हैं। उन्हीं को लेकर चलने का इरादा लेकर हम चलना चाहतेहैं। मैं जब गुड गवर्नेंस की बात करता हूँ, तब आप मुझे बताइए कि कोई प्राइवेट में नौकरी करता है, अगरआप उसको पूछोगे, तो वह कहता है कि मैं जॉब करता हूँ, लेकिन जो सरकार में नौकरी करता है, उसकोपूछोगे, तो वह कहता है कि मैं सर्विस करता हूँ। दोनों कमाते हैं, लेकिन एक के लिए जॉब है और एक केलिए सर्विस है। मैं सरकारी सेवा में लगे सभी भाइयों और बहनों से प्रश्न पूछता हूँ कि क्या कहीं यह‘सर्विस’ शब्द, उसने अपनी ताकत खो तो नहीं दी है, अपनी पहचान खो तो नहीं दी है? सरकारी सेवा में जुड़ेहुए लोग ‘जॉब’ नहीं कर रहे हैं, ‘सेवा’ कर रहे हैं, ‘सर्विस’ कर रहे हैं। इसलिए इस भाव को पुनर्जीवितकरना, एक राष्ट्रीय चरित्र के रूप में इसको हमें आगे ले जाना, उस दिशा में हमें आगे बढ़ना है।

भाइयो-बहनो, क्या देश के नागरिकों को राष्ट्र के कल्याण के लिए कदम उठाना चाहिए या नहींउठाना चाहिए? आप कल्पना कीजिए, सवा सौ करोड़ देशवासी एक कदम चलें, तो यह देश सवा सौ करोड़कदम आगे चला जाएगा। लोकतंत्र, यह सिर्फ सरकार चुनने का सीमित मायना नहीं है। लोकतंत्र में सवासौ करोड़ नागरिक और सरकार कंधे से कंधा मिला कर देश की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कामकरें, यह लोकतंत्र का मायना है। हमें जन-भागीदारी करनी है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के साथ आगेबढ़ना है। हमें जनता को जोड़कर आगे बढ़ना है। उसे जोड़ने में आगे बढ़ने के लिए, आप मुझे बताइए किआज हमारा किसान आत्महत्या क्यों करता है? वह साहूकार से कर्ज़ लेता है, कर्ज़ दे नहीं सकता है, मरजाता है। बेटी की शादी है, गरीब आदमी साहूकार से कर्ज़ लेता है, कर्ज़ वापस दे नहीं पाता है, जीवन भरमुसीबतों से गुज़रता है। मेरे उन गरीब परिवारों की रक्षा कौन करेगा?

भाइयो-बहनो, इस आज़ादी के पर्व पर मैं एक योजना को आगे बढ़ाने का संकल्प करने के लिए आपकेपास आया हूँ - ‘प्रधान मंत्री जनधन योजना’। इस ‘प्रधान मंत्री जनधन योजना’ के माध्यम से हम देश केगरीब से गरीब लोगों को बैंक अकाउंट की सुविधा से जोड़ना चाहते हैं। आज करोड़ों-करोड़ परिवार हैं, जिनकेपास मोबाइल फोन तो हैं, लेकिन बैंक अकाउंट नहीं हैं। यह स्थिति हमें बदलनी है। देश के आर्थिकसंसाधन गरीब के काम आएँ, इसकी शुरुआत यहीं से होती है। यही तो है, जो खिड़की खोलता है। इसलिए‘प्रधान मंत्री जनधन योजना’ के तहत जो अकाउंट खुलेगा, उसको डेबिट कार्ड दिया जाएगा। उस डेबिटकार्ड के साथ हर गरीब परिवार को एक लाख रुपए का बीमा सुनिश्चित कर दिया जाएगा, ताकि अगर उसकेजीवन में कोई संकट आया, तो उसके परिवारजनों को एक लाख रुपए का बीमा मिल सकता है।

भाइयो-बहनो, यह देश नौजवानों का देश है। 65 प्रतिशत देश की जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु कीहै। हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा नौजवान देश है। क्या हमने कभी इसका फायदा उठाने के लिए सोचाहै? आज दुनिया को स्किल्ड वर्कफोर्स की जरूरत है। आज भारत को भी स्किल्ड वर्कफोर्स की जरूरत है। कभी-कभार हम अच्छा ड्राइवर ढूँढ़ते हैं, नहीं मिलता है, प्लम्बर ढूँढ़ते हैं, नहीं मिलता है, अच्छा कुक चाहिए,नहीं मिलता है। नौजवान हैं, बेरोजगार हैं, लेकिन हमें जैसा चाहिए, वैसा नौजवान मिलता नहीं है। देश केविकास को यदि आगे बढ़ाना है, तो ‘स्किल डेवलपमेंट’ और ‘स्किल्ड इंडिया’ यह हमारा मिशन है। हिन्दुस्तान के कोटि-कोटि नौजवान स्किल सीखें, हुनर सीखें, उसके लिए पूरे देश में जाल होना चाहिए औरघिसी-पिटी व्यवस्थाओं से नहीं, उनको वह स्किल मिले, जो उन्हें आधुनिक भारत बनाने में काम आए। वेदुनिया के किसी भी देश में जाएँ, तो उनके हुनर की सराहना हो और हम दो प्रकार के विकास को लेकरचलना चाहते हैं। मैं ऐसे नौजवानों को भी तैयार करना चाहता हूँ, जो जॉब क्रिएटर हों और जो जॉब क्रिएटकरने का सामर्थ्य नहीं रखते, संयोग नहीं है, वे विश्व के किसी भी कोने में जाकर आँख में आँख मिला करकेअपने बाहुबल के द्वारा, अपनी उँगलियों के हुनर के द्वारा, अपने कौशल्य के द्वारा विश्व का हृदय जीतसकें, ऐसे नौजवानों का सामर्थ्य हम तैयार करना चाहते हैं। भाइयो-बहनो, स्किल डेवलपमेंट को बहुत तेज़ीसे आगे बढ़ाने का संकल्प लेकर मैं यह करना चाहता हूँ।

भाइयो-बहनो, विश्व बदल चुका है। मेरे प्यारे देशवासियो, विश्व बदल चुका है। अब भारत अलग-थलग, अकेला एक कोने में बैठकर अपना भविष्य तय नहीं कर सकता। विश्व की आर्थिक व्यवस्थाएँ बदलचुकी हैं और इसलिए हम लोगों को भी उसी रूप में सोचना होगा। सरकार ने अभी कई फैसले लिए हैं, बजटमें कुछ घोषणाएँ की हैं और मैं विश्व का आह्वान करता हूँ, विश्व में पहुँचे हुए भारतवासियों का भी आह्वानकरता हूँ कि आज अगर हमें नौजवानों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार देना है, तो हमें मैन्युफैक्चरिंग सेक्टरको बढ़ावा देना पड़ेगा। इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट की जो स्थिति है, उसमें संतुलन पैदा करना हो, तो हमेंमैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर बल देना होगा। हमारे नौजवानों की जो विद्या है, सामर्थ्य है, उसको अगर काममें लाना है, तो हमें मैन्युफैक्चरिंग की ओर जाना पड़ेगा और इसके लिए हिन्दुस्तान की भी पूरी ताकतलगेगी, लेकिन विश्व की शक्तियों को भी हम निमंत्रण देते हैं। इसलिए मैं आज लाल किले की प्राचीर सेविश्व भर में लोगों से कहना चाहता हूँ, “कम, मेक इन इंडिया,” “आइए, हिन्दुस्तान में निर्माण कीजिए।” दुनिया के किसी भी देश में जाकर बेचिए, लेकिन निर्माण यहाँ कीजिए, मैन्युफैक्चर यहाँ कीजिए। हमारेपास स्किल है, टेलेंट है, डिसिप्लिन है, कुछ कर गुज़रने का इरादा है। हम विश्व को एक सानुकूल अवसरदेना चाहते हैं कि आइए, "कम, मेक इन इंडिया" और हम विश्व को कहें, इलेक्ट्रिकल से ले करकेइलेक्ट्रॉनिक्स तक "कम, मेक इन इंडिया", केमिकल्स से ले करके फार्मास्युटिकल्स तक "कम, मेक इनइंडिया", ऑटोमोबाइल्स से ले करके एग्रो वैल्यू एडीशन तक "कम, मेक इन इंडिया", पेपर हो या प्लास्टिक"कम, मेक इन इंडिया", सैटेलाइट हो या सबमेरीन "कम, मेक इन इंडिया"। ताकत है हमारे देश में! आइए,मैं निमंत्रण देता हूं।

भाइयो-बहनो, मैं देश के नौजवानों का भी एक आवाहन करना चाहता हूं, विशेष करके उद्योग क्षेत्र मेंलगे हुए छोटे-छोटे लोगों का आवाहन करना चाहता हूं। मैं देश के टेक्निकल एजुकेशन से जुड़े हुए नौजवानोंका आवाहन करना चाहता हूं। जैसे मैं विश्व से कहता हूं "कम, मेक इन इंडिया", मैं देश के नौजवानों कोकहता हूं - हमारा सपना होना चाहिए कि दुनिया के हर कोने में यह बात पहुंचनी चाहिए, "मेड इन इंडिया"। यह हमारा सपना होना चाहिए। क्या मेरे देश के नौजवानों को देश-सेवा करने के लिए सिर्फ भगत सिंह कीतरह फांसी पर लटकना ही अनिवार्य है? भाइयो-बहनो, लालबहादुर शास्त्री जी ने "जय जवान, जय किसान"एक साथ मंत्र दिया था। जवान, जो सीमा पर अपना सिर दे देता है, उसी की बराबरी में "जय जवान" कहाथा। क्यों? क्योंकि अन्न के भंडार भर करके मेरा किसान भारत मां की उतनी ही सेवा करता है, जैसे जवानभारत मां की रक्षा करता है। यह भी देश सेवा है। अन्न के भंडार भरना, यह भी किसान की सबसे बड़ी देशसेवा है और तभी तो लालबहादुर शास्त्री ने “जय जवान, जय किसान” कहा था।

भाइयो-बहनो, मैं नौजवानों से कहना चाहता हूं, आपके रहते हुए छोटी-मोटी चीज़ें हमें दुनिया सेइम्पोर्ट क्यों करनी पड़ें? क्या मेरे देश के नौजवान यह तय कर सकते हैं, वे ज़रा रिसर्च करें, ढूंढ़ें कि भारतकितने प्रकार की चीज़ों को इम्पोर्ट करता है और वे फैसला करें कि मैं अपने छोटे-छोटे काम के द्वारा,उद्योग के द्वारा, मेरा छोटा ही कारखाना क्यों न हो, लेकिन मेरे देश में इम्पोर्ट होने वाली कम से कम एकचीज़ मैं ऐसी बनाऊंगा कि मेरे देश को कभी इम्पोर्ट न करना पड़े। इतना ही नहीं, मेरा देश एक्सपोर्ट करनेकी स्थिति में आए। अगर हिन्दुस्तान के लाखों नौजवान एक-एक आइटम ले करके बैठ जाएं, तो भारतदुनिया में एक्सपोर्ट करने वाला देश बन सकता है और इसलिए मेरा आग्रह है, नौजवानों से विशेष करके,छोटे-मोटे उद्योगकारों से - दो बातों में कॉम्प्रोमाइज़ न करें, एक ज़ीरो डिफेक्ट, दूसरा ज़ीरो इफेक्ट। हम वहमैन्युफैक्चरिंग करें, जिसमें ज़ीरो डिफेक्ट हो, ताकि दुनिया के बाज़ार से वह कभी वापस न आए और हमवह मैन्युफैक्चरिंग करें, जिससे ज़ीरो इफेक्ट हो, पर्यावरण पर इसका कोई नेगेटिव इफेक्ट न हो। ज़ीरोडिफेक्ट, ज़ीरो इफेक्ट के साथ मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का सपना ले करके अगर हम आगे चलते हैं, तो मुझेविश्वास है, मेरे भाइयो-बहनो, कि जिस काम को ले करके हम चल रहे हैं, उस काम को पूरा करेंगे।

भाइयो-बहनो, पूरे विश्व में हमारे देश के नौजवानों ने भारत की पहचान को बदल दिया है। विश्वभारत को क्या जानता था? ज्यादा नहीं, अभी 25-30 साल पहले तक दुनिया के कई कोने ऐसे थे जोहिन्दुस्तान के लिए यही सोचते थे कि ये तो "सपेरों का देश" है। ये सांप का खेल करने वाला देश है, कालेजादू वाला देश है। भारत की सच्ची पहचान दुनिया तक पहुंची नहीं थी, लेकिन भाइयो-बहनो, हमारे 20-22-23 साल के नौजवान, जिन्होंने कम्प्यूटर पर अंगुलियां घुमाते-घुमाते दुनिया को चकित कर दिया। विश्वमें भारत की एक नई पहचान बनाने का रास्ता हमारे आई.टी. प्रोफेशन के नौजवानों ने कर दिया। अगर यहताकत हमारे देश में है, तो क्या देश के लिए हम कुछ सोच सकते हैं? इसलिए हमारा सपना "डिजिटलइंडिया" है। जब मैं "डिजिटल इंडिया" कहता हूं, तब ये बड़े लोगों की बात नहीं है, यह गरीब के लिए है। अगरब्रॉडबेंड कनेक्टिविटी से हिन्दुस्तान के गांव जुड़ते हैं और गांव के आखिरी छोर के स्कूल में अगर हम लाँगडिस्टेंस एजुकेशन दे सकते हैं, तो आप कल्पना कर सकते हैं कि हमारे उन गांवों के बच्चों को कितनी अच्छीशिक्षा मिलेगी। जहां डाक्टर नहीं पहुंच पाते, अगर हम टेलिमेडिसिन का नेटवर्क खड़ा करें, तो वहां पर बैठेहुए गरीब व्यक्ति को भी, किस प्रकार की दवाई की दिशा में जाना है, उसका स्पष्ट मार्गदर्शन मिल सकताहै। सामान्य मानव की रोजमर्रा की चीज़ें - आपके हाथ में मोबाइल फोन है, हिन्दुस्तान के नागरिकों के पासबहुत बड़ी तादाद में मोबाइल कनेक्टिविटी है, लेकिन क्या इस मोबाइल गवर्नेंस की तरफ हम जा सकते हैं?अपने मोबाइल से गरीब आदमी बैंक अकाउंट ऑपरेट करे, वह सरकार से अपनी चीज़ें मांग सके, वह अपनीअर्ज़ी पेश करे, अपना सारा कारोबार चलते-चलते मोबाइल गवर्नेंस के द्वारा कर सके और यह अगर करनाहै, तो हमें `डिजिटल इंडिया` की ओर जाना है। और `डिजिटल इंडिया` की तरफ जाना है, तो इसके साथहमारा यह भी सपना है, हम आज बहुत बड़ी मात्रा में विदेशों से इलेक्ट्रॉनिक गुड्ज़ इम्पोर्ट करते हैं। आपकोहैरानी होगी भाइयो-बहनो, ये टीवी, ये मोबाइल फोन, ये आईपैड, ये जो इलेक्ट्रॉनिक गुड्ज़ हम लाते हैं, देशके लिए पेट्रोलियम पदार्थों को लाना अनिवार्य है, डीज़ल और पेट्रोल लाते हैं, तेल लाते हैं। उसके बाद इम्पोर्टमें दूसरे नम्बर पर हमारी इलैक्ट्रॉनिक गुड्ज़ हैं। अगर हम `डिजिटल इंडिया` का सपना ले करकेइलेक्ट्रॉनिक गुड्ज़ के मैन्युफैक्चर के लिए चल पड़ें और हम कम से कम स्वनिर्भर बन जाएं, तो देश कीतिजोरी को कितना बड़ा लाभ हो सकता है और इसलिए हम इस `डिजिटल इंडिया` को ले करके जब आगेचलना चाहते हैं, तब ई-गवर्नेंस। ई-गवर्नेंस ईजी गवर्नेंस है, इफेक्टिव गवर्नेंस है और इकोनॉमिकल गवर्नेंसहै। ई-गवर्नेंस के माध्यम से गुड गवर्नेंस की ओर जाने का रास्ता है। एक जमाना था, कहा जाता था किरेलवे देश को जोड़ती है । ऐसा कहा जाता था। मैं कहता हूं कि आज आईटी देश के जन-जन को जोड़ने कीताकत रखती है और इसलिए हम `डिजिटल इंडिया` के माध्यम से आईटी के धरातल पर यूनिटी के मंत्र को साकार करना चाहते हैं।

भाइयो-बहनो, अगर हम इन चीजों को ले करके चलते हैं, तो मुझे विश्वास है कि `डिजिटल इंडिया`विश्व की बराबरी करने की एक ताकत के साथ खड़ा हो जाएगा, हमारे नौजवानों में वह सामर्थ्य है, यहउनको वह अवसर दे रहा है।

भाइयो-बहनो, हम टूरिज्म को बढ़ावा देना चाहते हैं। टूरिज्म से गरीब से गरीब व्यक्ति को रोजगारमिलता है। चना बेचने वाला भी कमाता है, ऑटो-रिक्शा वाला भी कमाता है, पकौड़े बेचने वाला भी कमाताहै और एक चाय बेचने वाला भी कमाता है। जब चाय बेचने वाले की बात आती है, तो मुझे ज़रा अपनापनमहसूस होता है। टूरिज्म के कारण गरीब से गरीब व्यक्ति को रोज़गार मिलता है। लेकिन टूरिज्म के अंदरबढ़ावा देने में भी और एक राष्ट्रीय चरित्र के रूप में भी हमारे सामने सबसे बड़ी रुकावट है हमारे चारों तरफदिखाई दे रही गंदगी । क्या आज़ादी के बाद, आज़ादी के इतने सालों के बाद, जब हम 21 वीं सदी के डेढ़दशक के दरवाजे पर खड़े हैं, तब क्या अब भी हम गंदगी में जीना चाहते हैं? मैंने यहाँ सरकार में आकरपहला काम सफाई का शुरू किया है। लोगों को आश्चर्य हुआ कि क्या यह प्रधान मंत्री का काम है? लोगों कोलगता होगा कि यह प्रधान मंत्री के लिए छोटा काम होगा, मेरे लिए बहुत बड़ा काम है। सफाई करना बहुतबड़ा काम है। क्या हमारा देश स्वच्छ नहीं हो सकता है? अगर सवा सौ करोड़ देशवासी तय कर लें कि मैंकभी गंदगी नहीं करूंगा तो दुनिया की कौन-सी ताकत है, जो हमारे शहर, गाँव को आकर गंदा कर सके?क्या हम इतना-सा संकल्प नहीं कर सकते हैं?

भाइयो-बहनो, 2019 में महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती आ रही है। महात्मा गांधी

की 150वीं जयंती हम कैसे मनाएँ? महात्मा गाँधी, जिन्होंने हमें आज़ादी दी, जिन्होंने इतने बड़े देश कोदुनिया के अंदर इतना सम्मान दिलाया, उन महात्मा गाँधी को हम क्या दें? भाइयो-बहनो, महात्मा गाँधीको सबसे प्रिय थी – सफाई, स्वच्छता। क्या हम तय करें कि सन् 2019 में जब हम महात्मा गाँधी की 150वींजयंती मनाएँगे, तो हमारा गाँव, हमारा शहर, हमारी गली, हमारा मोहल्ला, हमारे स्कूल, हमारे मंदिर, हमारेअस्पताल, सभी क्षेत्रों में हम गंदगी का नामोनिशान नहीं रहने देंगे? यह सरकार से नहीं होता है, जन-भागीदारी से होता है, इसलिए यह काम हम सबको मिल कर करना है।

भाइयो-बहनो, हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। क्या कभी हमारे मन को पीड़ा हुई कि आज भीहमारी माताओं और बहनों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है? डिग्निटी ऑफ विमेन, क्या यह हमसबका दायित्व नहीं है? बेचारी गाँव की माँ-बहनें अँधेरे का इंतजार करती हैं, जब तक अँधेरा नहीं आता है, वेशौच के लिए नहीं जा पाती हैं। उसके शरीर को कितनी पीड़ा होती होगी, कितनी बीमारियों की जड़ें उसमें सेशुरू होती होंगी! क्या हमारी माँ-बहनों की इज्ज़त के लिए हम कम-से-कम शौचालय का प्रबन्ध नहीं करसकते हैं? भाइयो-बहनो, किसी को लगेगा कि 15 अगस्त का इतना बड़ा महोत्सव बहुत बड़ी-बड़ी बातें करनेका अवसर होता है। भाइयो-बहनो, बड़ी बातों का महत्व है, घोषणाओं का भी महत्व है, लेकिन कभी-कभीघोषणाएँ एषणाएँ जगाती हैं और जब घोषणाएँ परिपूर्ण नहीं होती हैं, तब समाज निराशा की गर्त में डूब जाताहै। इसलिए हम उन बातों के ही कहने के पक्षधर हैं, जिनको हम अपने देखते-देखते पूरा कर पाएँ। भाइयो-बहनो, इसलिए मैं कहता हूँ कि आपको लगता होगा कि क्या लाल किले से सफाई की बात करना, लालकिले से टॉयलेट की बात बताना, यह कैसा प्रधान मंत्री है? भाइयो-बहनो, मैं नहीं जानता हूँ कि मेरी कैसीआलोचना होगी, इसे कैसे लिया जाएगा, लेकिन मैं मन से मानता हूँ। मैं गरीब परिवार से आया हूँ, मैंनेगरीबी देखी है और गरीब को इज्‍़ज़त मिले, इसकी शुरूआत यहीं से होती है। इसलिए ‘स्वच्छ भारत’ काएक अभियान इसी 2 अक्टूबर से मुझे आरम्भ करना है और चार साल के भीतर-भीतर हम इस काम कोआगे बढ़ाना चाहते हैं। एक काम तो मैं आज ही शुरू करना चाहता हूँ और वह है- हिन्दुस्तान के सभी स्कूलोंमें टॉयलेट हो, बच्चियों के लिए अलग टॉयलेट हो, तभी तो हमारी बच्चियाँ स्कूल छोड़ कर भागेंगी नहीं। हमारे सांसद जो एमपीलैड फंड का उपयोग कर रहे हैं, मैं उनसे आग्रह करता हूँ कि एक साल के लिए आपकाधन स्कूलों में टॉयलेट बनाने के लिए खर्च कीजिए। सरकार अपना बजट टॉयलेट बनाने में खर्च करे। मैंदेश के कॉरपोरेट सेक्टर्स का भी आह्वान करना चाहता हूँ कि कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहतआप जो खर्च कर रहे हैं, उसमें आप स्कूलों में टॉयलेट बनाने को प्राथमिकता दीजिए। सरकार के साथमिलकर, राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक साल के भीतर-भीतर यह काम हो जाए और जब हम अगले15 अगस्त को यहाँ खड़े हों, तब इस विश्वास के साथ खड़े हों कि अब हिन्दुस्तान का ऐसा कोई स्कूल नहीं है,जहाँ बच्चे एवं बच्चियों के लिए अलग टॉयलेट का निर्माण होना बाकी है।

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भाइयो-बहनो, अगर हम सपने लेकर चलते हैं तो सपने पूरे भी होते हैं। मैं आज एक विशेष बात औरकहना चाहता हूँ। भाइयो-बहनो, देशहित की चर्चा करना और देशहित के विचारों को देना, इसका अपनामहत्व है। हमारे सांसद, वे कुछ करना भी चाहते हैं, लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिलता है। वे अपनी बात बतासकते हैं, सरकार को चिट्ठी लिख सकते हैं, आंदोलन कर सकते हैं, मेमोरेंडम दे सकते हैं, लेकिन फिर भी,खुद को कुछ करने का अवसर मिलता नहीं है। मैं एक नए विचार को लेकर आज आपके पास आया हूं। हमारे देश में प्रधान मंत्री के नाम पर कई योजनाएं चल रही हैं, कई नेताओं के नाम पर ढेर सारी योजनाएंचल रही हैं, लेकिन मैं आज सांसद के नाम पर एक योजना घोषित करता हूं - "सांसद आदर्श ग्राम योजना"।हम कुछ पैरामीटर्स तय करेंगे और मैं सांसदों से आग्रह करता हूं कि वे अपने इलाके में तीन हजार से पांचहजार के बीच का कोई भी गांव पसंद कर लें और कुछ पैरामीटर्स तय हों - वहां के स्थल, काल, परिस्थिति केअनुसार, वहां की शिक्षा, वहां का स्वास्थ्य, वहां की सफाई, वहां के गांव का वह माहौल, गांव में ग्रीनरी, गांवका मेलजोल, कई पैरामीटर्स हम तय करेंगे और हर सांसद 2016 तक अपने इलाके में एक गांव को आदर्शगांव बनाए। इतना तो कर सकते हैं न भाई! करना चाहिए न! देश बनाना है तो गांव से शुरू करें। एक आदर्शगांव बनाएं और मैं 2016 का टाइम इसलिए देता हूं कि नयी योजना है, लागू करने में, योजना बनाने में कभीसमय लगता है और 2016 के बाद, जब 2019 में वह चुनाव के लिए जाए, उसके पहले और दो गांवों को करेऔर 2019 के बाद हर सांसद, 5 साल के कार्यकाल में कम से कम 5 आदर्श गांव अपने इलाके में बनाए। जोशहरी क्षेत्र के एम.पीज़ हैं, उनसे भी मेरा आवाहन है कि वे भी एक गांव पसंद करें। जो राज्य सभा केएम.पीज़ हैं, उनसे भी मेरा आग्रह है, वे भी एक गांव पसंद करें। हिन्दुस्तान के हर जिले में, अगर हम एकआदर्श गांव बनाकर देते हैं, तो सभी अगल-बगल के गांवों को खुद उस दिशा में जाने का मन कर जाएगा।एक मॉडल गांव बना करके देखें, व्यवस्थाओं से भरा हुआ गांव बनाकर देखें। 11 अक्टूबर को जयप्रकाशनारायण जी की जन्म जयंती है। मैं 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण जी की जन्म जयंती पर एक"सांसद आदर्श ग्राम योजना" का कम्प्लीट ब्ल्यूप्रिंट सभी सांसदों के सामने रख दूंगा, सभी राज्य सरकारोंके सामने रख दूंगा और मैं राज्य सरकारों से भी आग्रह करता हूं कि आप भी इस योजना के माध्यम से,अपने राज्य में जो अनुकूलता हो, वैसे सभी विधायकों के लिए एक आदर्श ग्राम बनाने का संकल्प करिए। आप कल्पना कर सकते हैं, देश के सभी विधायक एक आदर्श ग्राम बनाएं, सभी सांसद एक आदर्श ग्रामबनाएं। देखते ही देखते हिन्दुस्तान के हर ब्लॉक में एक आदर्श ग्राम तैयार हो जाएगा, जो हमें गांव कीसुख-सुविधा में बदलाव लाने के लिए प्रेरणा दे सकता है, हमें नई दिशा दे सकता है और इसलिए इस “सांसदआदर्श ग्राम योजना” के तहत हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

भाइयो-बहनो, जब से हमारी सरकार बनी है, तब से अखबारों में, टी.वी. में एक चर्चा चल रही है किप्लानिंग कमीशन का क्या होगा? मैं समझता हूं कि जिस समय प्लानिंग कमीशन का जन्म हुआ, योजनाआयोग का जन्म हुआ, उस समय की जो स्थितियाँ थीं, उस समय की जो आवश्यकताएँ थीं, उनके आधारपर उसकी रचना की गई। इन पिछले वर्षों में योजना आयोग ने अपने तरीके से राष्ट्र के विकास में उचितयोगदान दिया है। मैं इसका आदर करता हूं, गौरव करता हूं, सम्मान करता हूं, सत्कार करता हूं, लेकिन अबदेश की अंदरूनी स्थिति भी बदली हुई है, वैश्विक परिवेश भी बदला हुआ है, आर्थिक गतिविधि का केंद्रसरकारें नहीं रही हैं, उसका दायरा बहुत फैल चुका है। राज्य सरकारें विकास के केन्द्र में आ रही हैं और मैंइसको अच्छी निशानी मानता हूँ। अगर भारत को आगे ले जाना है, तो यह राज्यों को आगे ले जाकर हीहोने वाला है। भारत के फेडेरल स्ट्रक्चर की अहमियत पिछले 60 साल में जितनी थी, उससे ज्यादा आज केयुग में है। हमारे संघीय ढाँचे को मजबूत बनाना, हमारे संघीय ढाँचे को चेतनवंत बनाना, हमारे संघीय ढाँचेको विकास की धरोहर के रूप में काम लेना, मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री की एक टीम का फॉर्मेशन हो, केन्द्रऔर राज्य की एक टीम हो, एक टीम बनकर आगे चले, तो इस काम को अब प्लानिंग कमीशन के नए रंग-रूप से सोचना पड़ेगा। इसलिए लाल किले की इस प्राचीर से एक बहुत बड़ी चली आ रही पुरानी व्यवस्था मेंउसका कायाकल्प भी करने की जरूरत है, उसमें बहुत बदलाव करने की आवश्यकता है। कभी-कभी पुरानेघर की रिपेयरिंग में खर्चा ज्यादा होता है लेकिन संतोष नहीं होता है। फिर मन करता है, अच्छा है, एकनया ही घर बना लें और इसलिए बहुत ही कम समय के भीतर योजना आयोग के स्थान पर, एक क्रिएटिवथिंकिंग के साथ राष्ट्र को आगे ले जाने की दिशा, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की दिशा, संसाधनों काऑप्टिमम युटिलाइजेशन, प्राकृतिक संसाधनों का ऑप्टिमम युटिलाइजेशन, देश की युवा शक्ति केसामर्थ्य का उपयोग, राज्य सरकारों की आगे बढ़ने की इच्छाओं को बल देना, राज्य सरकारों को ताकतवरबनाना, संघीय ढाँचे को ताकतवर बनाना, एक ऐसे नये रंग-रूप के साथ, नये शरीर, नयी आत्मा के साथ,नयी सोच के साथ, नयी दिशा के साथ, नये विश्वास के साथ, एक नये इंस्टीट्यूशन का हम निर्माण करेंगेऔर बहुत ही जल्द योजना आयोग की जगह पर यह नया इंस्टीट्यूट काम करे, उस दिशा में हम आगे बढ़नेवाले हैं।

भाइयो-बहनो, आज 15 अगस्त महर्षि अरविंद का भी जन्म जयंती का पर्व है। महर्षि अरविंद ने एकक्रांतिकारी से निकल कर योग गुरु की अवस्था को प्राप्त किया था। उन्होंने भारत के भाग्य के लिए कहा थाकि “मुझे विश्वास है, भारत की दैविक शक्ति, भारत की आध्यात्मिक विरासत विश्व कल्याण के लिएअहम भूमिका निभाएगी”। इस प्रकार के भाव महर्षि अरविन्द ने व्यक्त किए थे। मेरी महापुरुषों की बातोंमें बड़ी श्रद्धा है। मेरी त्यागी, तपस्वी ऋषियों और मुनियों की बातों में बड़ी श्रद्धा है और इसलिए मुझे आजलाल किले की प्राचीर से स्वामी विवेकानन्द जी के वे शब्द याद आ रहे हैं जब स्वामी विवेकानन्द जी ने कहाथा, “मैं मेरी आँखों के सामने देख रहा हूँ।” विवेकानन्द जी के शब्द थे - “मैं मेरी आँखों के सामने देख रहा हूँकि फिर एक बार मेरी भारतमाता जाग उठी है, मेरी भारतमाता जगद्गुरु के स्थान पर विराजमान होगी, हरभारतीय मानवता के कल्याण के काम आएगा, भारत की यह विरासत विश्व के कल्याण के लिए कामआएगी।” ये शब्द स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने तरीके से कहे थे। भाइयो-बहनो, विवेकानन्द जी के शब्दकभी असत्य नहीं हो सकते। स्वामी विवेकानन्द जी के शब्द, भारत को जगद्गुरु देखने का उनका सपना,उनकी दीर्घदृष्टि, उस सपने को पूरा करना हम लोगों का कर्तव्य है। दुनिया का यह सामर्थ्यवान देश,प्रकृति से हरा-भरा देश, नौजवानों का देश, आने वाले दिनों में विश्व के लिए बहुत कुछ कर सकता है।

भाइयो-बहनो, लोग विदेश की नीतियों के संबंध में चर्चा करते हैं। मैं यह साफ मानता हूँ कि भारतकी विदेश नीति के कई आयाम हो सकते हैं, लेकिन एक महत्वपूर्ण बात है, जिस पर मैं अपना ध्यान केंद्रितकरना चाहता हूं कि हम आज़ादी की जैसे लड़ाई लड़े, मिल-जुलकर लड़े थे, तब तो हम अलग नहीं थे, हमसाथ-साथ थे। कौन सी सरकार हमारे साथ थी? कौन से शस्त्र हमारे पास थे? एक गांधी थे, सरदार थे औरलक्षावती स्वातंत्र्य सेनानी थे और इतनी बड़ी सल्तनत थी। उस सल्तनत के सामने हम आज़ादी की जंगजीते या नहीं जीते? विदेशी ताकतों को परास्त किया या नहीं किया? भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया यानहीं किया? हमीं तो थे, हमारे ही तो पूर्वज थे, जिन्होंने यह सामर्थ्य दिखाई थी। समय की मांग है, सत्ता केबिना, शासन के बिना, शस्त्र के बिना, साधनों के बिना भी इतनी बड़ी सल्तनत को हटाने का काम अगरहिंदुस्तान की जनता कर सकती है, तो भाइयो-बहनो, हम क्या गरीबी को हटा नहीं सकते? क्या हम गरीबीको परास्त नहीं कर सकते हैं? क्या हम गरीबी के खिलाफ लड़ाई जीत नहीं सकते हैं? मेरे सवा सौ करोड़प्यारे देशवासियो, आओ! आओ, हम संकल्प करें, हम गरीबी को परास्त करें, हम विजयश्री को प्राप्त करें। भारत से गरीबी का उन्मूलन हो, उन सपनों को लेकर हम चलें और पड़ोसी देशों के पास भी यही तो समस्याहै! क्यों न हम सार्क देशों के सभी साथी दोस्त मिल करके गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने की योजनाबनाएं? हम मिल करके लड़ाई लड़ें, गरीबी को परास्त करें। एक बार देखें तो सही, मरने-मारने की दुनियाको छोड़ करके जीवित रहने का आनंद क्या होता है! यही तो भूमि है, जहां सिद्दार्थ के जीवन की घटना घटीथी। एक पंछी को एक भाई ने तीर मार दिया और एक दूसरे भाई ने तीर निकाल करके बचा लिया। मां केपास गए – पंछी किसका, हंस किसका? मां से पूछा, मारने वाले का या बचाने वाले का? मां ने कहा, बचानेवाले का। मारने वाले से बचाने वाले की ताकत ज्यादा होती है और वही तो आगे जा करके बुद्ध बन जाता है।वही तो आगे जा करके बुद्ध बन जाता है और इसलिए, मैं पड़ोस के देशों से मिल-जुल करके गरीबी केखिलाफ लड़ाई को लड़ने के लिए सहयोग चाहता हूं, सहयोग करना चाहता हूं और हम मिल करके, सार्क देशमिल करके, हम दुनिया में अपनी अहमियत खड़ी कर सकते हैं, हम दुनिया में एक ताकत बनकर उभरसकते हैं। आवश्यकता है, हम मिल-जुल करके चलें, गरीबी से लड़ाई जीतने का सपना ले करके चलें, कंधे सेकंधा मिला करके चलें। मैं भूटान गया, नेपाल गया, सार्क देशों के सभी महानुभाव शपथ समारोह में आए,एक बहुत अच्छी शुभ शुरुआत हुई है। तो निश्चित रूप से अच्छे परिणाम मिलेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है औरदेश और दुनिया में भारत की यह सोच, हम देशवासियों का भला करना चाहते हैं और विश्व के कल्याण मेंकाम आ सकें, हिन्दुस्तान ऐसा हाथ फहराना चाहता है। इन सपनों को ले करके, पूरा करके, आगे बढ़ने काहम प्रयास कर रहे हैं।

भाइयो-बहनो, आज 15 अगस्त को हम देश के लिए कुछ न कुछ करने का संकल्प ले करके चलेंगे।हम देश के लिए काम आएं, देश को आगे बढ़ाने का संकल्प लेकर चलेंगे और मैं आपको विश्वास दिलाता हूंभाइयो-बहनो, मैं मेरी सरकार के साथियों को भी कहता हूं, अगर आप 12 घंटे काम करोगे, तो मैं 13 घंटेकरूंगा। अगर आप 14 घंटे कर्म करोगे, तो मैं 15 घंटे करूंगा। क्यों? क्योंकि मैं प्रधान मंत्री नहीं, प्रधानसेवक के रूप में आपके बीच आया हूं। मैं शासक के रूप में नहीं, सेवक के रूप में सरकार लेकर आया हूं।भाइयो-बहनो, मैं विश्वास दिलाता हूं कि इस देश की एक नियति है, विश्व कल्याण की नियति है, यहविवेकानन्द जी ने कहा था। इस नियति को पूर्ण करने के लिए भारत का जन्म हुआ है, इस हिन्दुस्तान काजन्म हुआ है। इसकी परिपूर्ति के लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों को तन-मन से मिलकर राष्ट्र के कल्याणके लिए आगे बढ़ना है।

मैं फिर एक बार देश के सुरक्षा बलों, देश के अर्द्ध सैनिक बलों, देश की सभी सिक्योरिटी फोर्सेज़ को,मां-भारती की रक्षा के लिए, उनकी तपस्या, त्याग, उनके बलिदान पर गौरव करता हूं। मैं देशवासियों कोकहता हूं, "राष्ट्रयाम् जाग्रयाम् वयम्", "Eternal vigilance is the price of liberty". हम जागते रहें, सेनाजाग रही है, हम भी जागते रहें और देश नए कदम की ओर आगे बढ़ता रहे, इसी एक संकल्प के साथ हमेंआगे बढ़ना है। सभी मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए -

भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय।

जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द।

वंदे मातरम्, वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

(समाप्त)

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प्रधानमंत्री ने PRAGATI की 50वीं बैठक की अध्यक्षता की
December 31, 2025
In last decade, PRAGATI led ecosystem has helped accelerate projects worth more than ₹85 lakh crore: PM
PM’s Mantra for the Next Phase of PRAGATI: Reform to Simplify, Perform to Deliver, Transform to Impact
PM says PRAGATI is essential to sustain reform momentum and ensure delivery
PM says Long-Pending Projects have been Completed in National Interest
PRAGATI exemplifies Cooperative Federalism and breaks Silo-Based Functioning: PM
PM encourages States to institutionalise PRAGATI-like mechanisms especially for the social sector at the level of Chief Secretary
In the 50th meeting, PM reviews five critical infrastructure projects spanning five states with a cumulative cost of more than ₹40,000 crore
Efforts must be made for making PM SHRI schools benchmark for other schools of state governments: PM

Prime Minister Shri Narendra Modi chaired the 50th meeting of PRAGATI - the ICT-enabled multi-modal platform for Pro-Active Governance and Timely Implementation - earlier today, marking a significant milestone in a decade-long journey of cooperative, outcome-driven governance under the leadership of Prime Minister Shri Narendra Modi. The milestone underscores how technology-enabled leadership, real-time monitoring and sustained Centre-State collaboration have translated national priorities into measurable outcomes on the ground.

Review undertaken in 50th PRAGATI

During the meeting, Prime Minister reviewed five critical infrastructure projects across sectors, including Road, Railways, Power, Water Resources, and Coal. These projects span 5 States, with a cumulative cost of more than ₹40,000 crore.

During a review of PM SHRI scheme, Prime Minister emphasized that the PM SHRI scheme must become a national benchmark for holistic and future ready school education and said that implementation should be outcome oriented rather than infrastructure centric. He asked all the Chief Secretaries to closely monitor the PM SHRI scheme. He further emphasized that efforts must be made for making PM SHRI schools benchmark for other schools of state government. He also suggested that Senior officers of the government should undertake field visits to evaluate the performance of PM SHRI schools.

On this special occasion, Prime Minister Shri Narendra Modi described the milestone as a symbol of the deep transformation India has witnessed in the culture of governance over the last decade. Prime Minister underlined that when decisions are timely, coordination is effective, and accountability is fixed, the speed of government functioning naturally increases and its impact becomes visible directly in citizens’ lives.

Genesis of PRAGATI

Recalling the origin of the approach, the Prime Minister said that as Chief Minister of Gujarat he had launched the technology-enabled SWAGAT platform (State Wide Attention on Grievances by Application of Technology) to understand and resolve public grievances with discipline, transparency, and time-bound action.

Building on that experience, after assuming office at the Centre, he expanded the same spirit nationally through PRAGATI bringing large projects, major programmes and grievance redressal onto one integrated platform for review, resolution, and follow-up.

Scale and Impact

Prime Minister noted that over the years the PRAGATI led ecosystem has helped accelerate projects worth more than 85 lakh crore rupees and supported the on-ground implementation of major welfare programmes at scale.

Since 2014, 377 projects have been reviewed under PRAGATI, and across these projects, 2,958 out of 3,162 identified issues - i.e. around 94 percent - have been resolved, significantly reducing delays, cost overruns and coordination failures.

Prime Minister said that as India moves at a faster pace, the relevance of PRAGATI has grown further. He noted that PRAGATI is essential to sustain reform momentum and ensure delivery.

Unlocking Long-Pending Projects

Prime Minister said that since 2014, the government has worked to institutionalise delivery and accountability creating a system where work is pursued with consistent follow-up and completed within timelines and budgets. He said projects that were started earlier but left incomplete or forgotten have been revived and completed in national interest.

Several projects that had remained stalled for decades were completed or decisively unlocked after being taken up under the PRAGATI platform. These include the Bogibeel rail-cum-road bridge in Assam, first conceived in 1997; the Jammu-Udhampur-Srinagar-Baramulla rail link, where work began in 1995; the Navi Mumbai International Airport, conceptualised in 1997; the modernisation and expansion of the Bhilai Steel Plant, approved in 2007; and the Gadarwara and LARA Super Thermal Power Projects, sanctioned in 2008 and 2009 respectively. These outcomes demonstrate the impact of sustained high-level monitoring and inter-governmental coordination.

From silos to Team India

Prime Minister pointed out that projects do not fail due to lack of intent alone—many fail due to lack of coordination and silo-based functioning. He said PRAGATI has helped address this by bringing all stakeholders onto one platform, aligned to one shared outcome.

He described PRAGATI as an effective model of cooperative federalism, where the Centre and States work as one team, and ministries and departments look beyond silos to solve problems. Prime Minister said that since its inception, around 500 Secretaries of Government of India and Chief Secretaries of States have participated in PRAGATI meetings. He thanked them for their participation, commitment, and ground-level understanding, which has helped PRAGATI evolve from a review forum into a genuine problem-solving platform.

Prime Minister said that the government has ensured adequate resources for national priorities, with sustained investments across sectors. He called upon every Ministry and State to strengthen the entire chain from planning to execution, minimise delays from tendering to ground delivery.

Reform, Perform, Transform

On the occasion, the Prime Minister shared clear expectations for the next phase, outlining his vision of Reform, Perform and Transform saying “Reform to simplify, Perform to deliver, Transform to impact.”

He said Reform must mean moving from process to solutions, simplifying procedures and making systems more friendly for Ease of Living and Ease of Doing Business.

He said Perform must mean to focus equally on time, cost, and quality. He added that outcome-driven governance has strengthened through PRAGATI and must now go deeper.

He further said that Transform must be measured by what citizens actually feel about timely services, faster grievance resolution, and improved ease of living.

PRAGATI and the journey to Viksit Bharat @ 2047

Prime Minister said Viksit Bharat @ 2047 is both a national resolve and a time-bound target, and PRAGATI is a powerful accelerator to achieve it. He encouraged States to institutionalise similar PRAGATI-like mechanisms especially for the social sector at the level of Chief Secretary.

To take PRAGATI to the next level, Prime Minister emphasised the use of technology in each and every phase of the project life cycle.

Prime Minister concluded by stating that PRAGATI@50 is not merely a milestone it is a commitment. PRAGATI must be strengthened further in the years ahead to ensure faster execution, higher quality, and measurable outcomes for citizens.

Presentation by Cabinet Secretary

On the occasion of the 50th PRAGATI milestone, the Cabinet Secretary made a brief presentation highlighting PRAGATI’s key achievements and outlining how it has reshaped India’s monitoring and coordination ecosystem, strengthening inter-ministerial and Centre-State follow-through, and reinforcing a culture of time-bound closure, which resulted in faster implementation of projects, improved last-mile delivery of Schemes and Programmes and quality resolution of public grievances.