'जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी की इस भव्य विशाल मूर्ति के जरिए भारत मानवीय ऊर्जा और प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा है'
'जब हम रामानुजाचार्य जी को देखते हैं, तो हमें अहसास होता है कि प्रगतिशीलता और प्राचीनता में कोई विरोध नहीं है'
'ये जरूरी नहीं है कि सुधार के लिए अपनी जड़ों से दूर जाना पड़े। बल्कि जरूरी ये है कि हम अपनी असली जड़ों से जुड़ें, अपनी वास्तविक शक्ति से परिचित हों'
'रामानुजाचार्य जी के संदेश को लेकर आज देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के मंत्र के साथ अपने नए भविष्य की नींव रख रहा है'
'भारत के स्वाधीनता संग्राम में समानता, मानवता और आध्यात्म की ऊर्जा लगी थी, जो भारत को संतों से मिली थी' 'आज देश में एक ओर सरदार साहब की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी एकता की शपथ दोहरा रही है तो रामानुजाचार्य जी की स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी समानता का संदेश दे रही है। एक राष्ट्र के रूप में यह भारत की विशेषता है'
'तेलुगु संस्कृति ने भारत की विविधता को सशक्त किया है'
'तेलुगु फिल्म उद्योग तेलुगु संस्कृति की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ा रहा है'

ओम असमद् गुरुभ्यो नमः!

ओम श्रीमते रामानुजाय नमः!

कार्यक्रम में हमारे साथ उपस्थित तेलंगाना की राज्यपाल डॉक्टर तमिलसाई सौंदरराजन जी, पूज्य श्री जीयर स्वामी जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी जी कृष्ण रेड्डी जी, आदरणीय श्रीमान डॉक्टर रामेश्वर राव जी, भागवद् विभूतियों से सम्पन्न सभी पूज्य संतगण, देवियों और सज्जनों,

आज मां सरस्वती की आराधना के पावन पर्व, बसंत पंचमी का शुभ अवसर है। मां शारदा की विशेष कृपा अवतार श्री रामानुजाचार्य जी की प्रतिमा इस अवसर पर स्थापित हो रही है। मैं आप सभी को बसंत पंचमी की भी शुभकामनाएं देता हूं। मैं मां सरस्वती से ये प्रार्थना करता हूं कि जगद्गुरु रामानुजाचार्य जी का ज्ञान विश्व का पथ प्रदर्शन करे।

साथियों,

हमारे यहाँ कहा गया है- ‘ध्यान मूलम् गुरु मूर्ति’! अर्थात्, हमारे गुरु की मूर्ति ही हमारे ध्यान का केंद्र है। क्योंकि, गुरु के माध्यम से ही हमारे लिए ज्ञान प्रकट होता है। जो अबोध है, हमें उसका बोध होता है। अप्रकट को प्रकट करने की ये प्रेरणा,  सूक्ष्म को भी साकार करने का ये संकल्प, यही भारत की परंपरा रही है। हमने हमेशा उन मूल्यों और विचारों को आकार दिया है, जो युगों-युगों तक मानवता को दिशा दिखा सकें। आज एक बार फिर, जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी की इस भव्य विशाल मूर्ति के जरिए भारत मानवीय ऊर्जा और प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा है। रामानुजाचार्य जी की ये प्रतिमा उनके ज्ञान, वैराग्य और आदर्शों की प्रतीक है। मुझे विश्वास है, ये प्रतिमा न केवल आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगी, बल्कि भारत की प्राचीन पहचान को भी मजबूत करेगी। मैं आप सभी को, सभी देशवासियों को, और पूरे विश्व में फैले रामानुजाचार्य जी के सभी अनुयायियों को इस शुभ अवसर पर अनेक-अनेक बधाई देता हूँ।

साथियों,

अभी मैं 108 दिव्य देशम् मंदिरों के दर्शन करके आ रहा हूँ। आलवार संतों ने जिन 108 दिव्य देशम् मंदिरों का दर्शन पूरे भारत में भ्रमण करके किया था, कुछ वैसा ही सौभाग्य मुझे आज श्री रामानुजाचार्य जी की कृपा से यहीं मिल गया। मानवता के कल्याण का जो यज्ञ उन्होंने 11वीं शताब्दी में शुरू किया था, वही संकल्प यहाँ 12 दिनों तक विभिन्न अनुष्ठानों में दोहराया जा रहा है। पूज्‍य श्री जीयर स्वामी जी के स्नेह से आज ‘विश्वक् सेन इष्टि यज्ञ’ की पूर्णाहुति में शामिल होने का सौभाग्य भी मुझे मिला है। मैं इसके लिए जीयर स्वामी जी का विशेष रूप से आभार प्रकट करता हूँ। उन्होंने मुझे बताया है कि ‘विश्वक् सेन इष्टि यज्ञ’ संकल्पों और लक्ष्यों की पूर्ति का यज्ञ है। मैं इस यज्ञ के संकल्प को, देश के अमृत संकल्पों की सिद्धि के लिए नतमस्‍तक हो करके समर्पित करता हूँ। इस यज्ञ का फल मैं अपने 130 करोड़ देशवासियों के सपनों की पूर्ति के लिए अर्पित करता हूँ।

साथियों,

दुनिया की अधिकांश सभ्यताओं में, अधिकांश दर्शनों में किसी विचार को या तो स्वीकार किया गया है, या फिर उसका खंडन किया गया है। लेकिन भारत एक ऐसा देश है, जिसके मनीषियों ने ज्ञान को खंडन-मंडन, स्वीकृति-अस्वीकृति इससे ऊपर ही उठाकर के देखा। स्‍वंय उससे ऊपर उठे। दिव्‍य दृष्‍टि से उस विवाद को देखा। हमारे यहाँ अद्वैत भी है, द्वैत भी है। और, इन द्वैत-अद्वैत को समाहित करते हुये श्री रामानुजाचार्य जी का विशिष्टा-द्वैत भी हमारे लिये प्रेरणा है। रामानुजाचार्य जी के ज्ञान की एक अलग भव्यता है। साधारण दृष्टि से जो विचार परस्पर विरोधाभाषी लगते हैं, रामानुजाचार्य जी उन्हें बड़ी सहजता से एक सूत्र में पिरो देते हैं। उनके ज्ञान से, उनकी व्याख्या से सामान्य से सामान्य मानवी भी जुड़ जाता है। आप देखिए, एक ओर रामानुजाचार्य जी के भाष्यों में ज्ञान की पराकाष्ठा है, तो दूसरी ओर वो भक्तिमार्ग के जनक भी हैं। एक ओर वो समृद्ध सन्यास परंपरा के संत भी हैं, और दूसरी ओर गीता भाष्य में कर्म के महत्व को भी अत्‍यंत उत्तम रूप में प्रस्‍तुत करते हैं। वो खुद भी अपना पूरा जीवन कर्म के लिए समर्पित करते रहे हैं। रामानुजाचार्य जी ने संस्कृत ग्रन्थों की भी रचना की, और तमिल भाषा को भी भक्तिमार्ग में उतना ही महत्व दिया। आज भी रामानुज परंपरा के मंदिरों में थिरुप्पावाई के पाठ के बिना शायद ही कोई अनुष्ठान पूरा होता हो।

साथियों,

आज जब दुनिया में सामाजिक सुधारों की बात होती है, प्रगतिशीलता की बात होती है, तो माना जाता है कि सुधार जड़ों से दूर जाकर होगा। लेकिन, जब हम रामानुजाचार्य जी को देखते हैं, तो हमें अहसास होता है कि प्रगतिशीलता और प्राचीनता में कोई विरोध नहीं है। ये जरूरी नहीं है कि सुधार के लिए अपनी जड़ों से दूर जाना पड़े। बल्कि जरूरी ये है कि हम अपनी असली जड़ो से जुड़ें, अपनी वास्तविक शक्ति से परिचित हों! आज से एक हजार साल पहले तो रूढ़ियों का दबाव, अंधविश्‍वास का दबाव, कल्‍पना के बाहर कितना ज्यादा रहा होगा! लेकिन रामानुजाचार्य जी ने समाज में सुधार के लिए समाज को भारत के असली विचार से परिचित करवाया। उन्होंने दलितों-पिछड़ों को गले लगाया, उस समय जिन जातियों को लेकर कुछ और भावना थी, उन जातियों को उन्‍होंने विशेष सम्मान दिया। यादवगिरि पर उन्होंने नारायण मंदिर बनवाया, जिसमें दलितों को दर्शन पूजन का अधिकार दिया। रामानुजाचार्य जी ने बताया कि धर्म कहता है- “न जातिः कारणं लोके गुणाः कल्याण हेतवः” अर्थात्, संसार में जाति से नहीं, गुणों से कल्याण होता है। रामानुजाचार्य जी के गुरु श्री महापूर्ण जी ने एक बार दूसरी जाति के अपने एक मित्र का अंतिम संस्कार किया था। उस समय रामानुजाचार्य जी ने लोगों को भगवान श्रीराम की याद दिलाई थी। उन्होंने कहा कि अगर भगवान राम अपने हाथों से जटायु का अंतिम संस्कार कर सकते हैं, तो भेदभाव वाली सोच का आधार धर्म कैसे हो सकता है? ये अपने आप में बहुत बड़ा संदेश है।

साथियों,

हमारी संस्कृति की ये विशेषता रही है कि, सुधार के लिए, हमारे समाज के भीतर से ही लोग निकलते हैं। युगों से देखते आईए, समाज में जब भी कुछ बुराई के तत्‍व फैलने लगते हैं,  कोई न कोई महापुरुष हमारे ही बीच में से पैदा होता है। और ये हजारों वर्षों का अनुभव है कि ऐसे सुधारकों को हमेशा उनके कालखंड में शायद स्‍वीकृति मिली हो या ना मिली हो, चुनौतियाँ रही हो या ना रही हों, संकट झेलने पड़े हों या ना पड़े हों, विरोध भी सहना पड़ा हो, लेकिन उस विचार में, उस तत्‍व में इतनी ताकत रहती थी, उनका conviction इतना जबरदस्‍त होता था कि वो समाज के बुराईयों के खिलाफ लड़ने के लिए अपनी शक्‍ति लगा देते थे। लेकिन जब समाज इसे समझ पाता है तो जिसका कभी विरोध होता है, उसको स्‍वीकृति भी उतनी तेजी से मिलती है। सम्‍मान और आदर भी उतना ही मिलता है। ये इस बात का सबूत है कि बुराइयों के पक्ष में, कुरीतियों के पक्ष में, अंधविश्‍वास के पक्ष में in general हमारे समाज में सोशल sanction नहीं होता है। जो बुराई से लड़ते हैं, जो समाज को सुधारते हैं, हमारे यहां उन्हें ही मान और सम्मान मिलता है।

भाइयों बहनों,

आप सब लोग रामानुजाचार्य जी के जीवन के विभिन्न आयामों से परिचित हैं। वो समाज को सही दिशा देने लिए आध्यात्म के संदेशों का भी प्रयोग करते थे, और व्यवहारिक जीवन का भी! जाति के नाम पर जिनके साथ भेदभाव होता था, रामानुजाचार्य जी ने उन्हें नाम दिया थिरुकुलथार। यानि लक्ष्मी जी के कुल में जन्म लेने वाला, श्रीकुल, या दैवीय जन! वो स्नान करके आते समय अपने शिष्य ‘धनुर्दास’ के कंधे पर हाथ रखकर आते थे। ऐसा करके रामानुजाचार्य जी छुआछूत की बुराई को मिटाने का संकेत देते थे। यही वजह थी कि बाबा साहब अंबेडकर जैसे समानता के आधुनिक नायक भी रामानुजाचार्य जी की भरपूर प्रशंसा करते थे, और समाज को भी कहते थे कि अगर सीखना है तो रामानुजाचार्य जी की शिक्षा से सीखो। और इसीलिए, आज रामानुजाचार्य जी विशाल मूर्ति स्टेचू ऑफ equality के रूप में समानता का संदेश दे रही है। इसी संदेश को लेकर आज देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के मंत्र के साथ अपने नए भविष्य की नींव रख रहा है। विकास हो, सबका हो, बिना भेदभाव हो। सामाजिक न्याय, सबको मिले, बिना भेदभाव मिले। जिन्हें सदियों तक प्रताड़ित किया गया, वो पूरी गरिमा के साथ विकास के भागीदार बनें, इसके लिए आज का बदलता हुआ भारत, एकजुट प्रयास कर रहा है। आज सरकार जो योजनाएं चला रही है, उनका बहुत बड़ा लाभ हमारे दलित-पिछड़े भाई-बहनों को हो रहा है। चाहे पक्के घर देना हो या फिर उज्जवला का मुफ्त कनेक्शन, गैस कनेक्‍शन, चाहे 5 लाख रुपए तक मुफ्त इलाज की सुविधा हो या फिर बिजली का मुफ्त कनेक्शन, चाहे जनधन बैंक खाते खोलना हो या फिर स्वच्छ भारत अभियान के तहत करोड़ों शौचालयों का निर्माण करना हो, ऐसी योजनाओं ने दलित-पिछड़े, गरीब, शोषित-वंचित, सभी का भला किया है, बिना भेदभाव, सबको सशक्त किया है।

साथियों,

रामानुजाचार्य जी कहते थे- ‘‘उईरगलुक्कूल बेडम इल्लै’’। अर्थात्, सभी जीव समान हैं। वो ब्रह्म और जीव की एकता की बात ही करके रूकते नहीं थे, वो वेदान्त के इस सूत्र को स्‍वंय भी जीते थे। उनके लिए स्वयं में और दूसरों में कोई भेद नहीं था। यहाँ तक कि उन्हें अपने कल्याण से ज्यादा जीव के कल्याण की चिंता थी। उनके गुरु ने कितने ही प्रयासों के बाद जब उन्हें ज्ञान दिया, तो उसे गुप्त रखने के लिए कहा। क्योंकि, वो गुरुमंत्र उनके कल्याण का मंत्र था। उन्‍होंने साधना की थी, तपस्‍या की थी, जीवन समर्पित किया था और इसलिये ये गुरुमंत्र मिला था। लेकिन रामानुजाचार्य जी की सोच अलग थी। रामानुजाचार्य जी ने कहा- पतिष्ये एक एवाहं, नरके गुरु पातकात्। सर्वे गच्छन्तु भवतां, कृपया परमं पदम्। यानी, मैं अकेला नर्क जाऊँ तो भी कोई बात नहीं, लेकिन बाकी सबका कल्याण होना चाहिए। इसके बाद उन्होंने मंदिर के शिखर पर चढ़कर हर नर नारी को वो मंत्र सुनाया जो उनके गुरु ने उन्हें उनके कल्याण के लिए दिया था। समानता का ऐसा अमृत रामानुजाचार्य जी जैसा कोई महापुरुष ही निकाल सकता था, जिसने वेद वेदान्त का वास्तविक दर्शन किया हो।

साथियों,

रामानुजाचार्य जी भारत की एकता और अखंडता की भी एक प्रदीप्त प्रेरणा हैं। उनका जन्म दक्षिण में हुआ, लेकिन उनका प्रभाव दक्षिण से उत्तर और पूरब से पश्चिम तक पूरे भारत पर है। अन्नामाचार्य जी ने तेलगु में उनकी प्रशंसा की है, कनकदास जी ने कन्नड़ भाषा में रामानुजाचार्य जी की महिमा गायी है, गुजरात और राजस्थान में अगर आप जाएंगे, तो वहां भी अनेक संतों के उपदेशों में रामानुजाचार्य जी के विचारों की सुगंध महसूस होती है। और, उत्तर में रामानन्दीय परंपरा के गोस्वामी तुलसीदास जी से लेकर कबीरदास तक, हर महान संत के लिए रामानुजाचार्य परम गुरु हैं। एक संत कैसे अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा से पूरे भारत को एकता के सूत्र में पिरो देता है, रामानुजाचार्य जी के जीवन में हम ये देख सकते हैं। इसी आध्यात्मिक चेतना ने गुलामी के सैकड़ों वर्षों के कालखंड में, भारत की चेतना को जागृत रखा था।

साथियों,

ये भी एक सुखद संयोग है कि श्री रामानुजाचार्य जी पर ये समारोह उसी समय में हो रहा है, जब देश अपनी आज़ादी के 75 साल मना रहा है। आज़ादी के अमृत महोत्सव में हम स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को याद कर रहे हैं। आज देश अपने स्वाधीनता सेनानियों को कृतज्ञ श्रद्धांजलि दे रहा है। अपने इतिहास से हम अपने भविष्य के लिए प्रेरणा ले रहे हैं, ऊर्जा ले रहे हैं। इसीलिए, अमृत महोत्सव का ये आयोजन आजादी की लड़ाई के साथ साथ हजारों सालों की भारत की विरासत को भी समेटे हुये है। हम जानते हैं, भारत का स्वाधीनता संग्राम केवल अपनी सत्ता और अपने अधिकारों की लड़ाई भर नहीं था। इस लड़ाई में एक तरफ ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ थी, तो दूसरी ओर ‘जियो और जीने दो’ का विचार था। इसमें एक ओर, ये नस्लीय श्रेष्ठता और भौतिकवाद का उन्माद था, तो दूसरी ओर मानवता और आध्यात्म में आस्था थी। और इस लड़ाई में भारत विजयी हुआ, भारत की परंपरा विजयी हुई। भारत के स्वाधीनता संग्राम में समानता, मानवता और आध्यात्म की वो ऊर्जा भी लगी थी, जो भारत को रामानुजाचार्य जैसे संतों से मिली थी। 

क्या हम गांधी जी के बिना अपने स्वाधीनता संग्राम की कल्पना कर सकते हैं? और क्या हम अहिंसा और सत्य जैसे आदर्शों के बिना गांधी जी की कल्पना कर सकते हैं? आज भी गांधी जी का नाम आते ही ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’, ये धुन हमारे अन्तर्मन में बजने लगती है। इसके रचयिता नरसी मेहता जी, रामानुजाचार्य जी की भक्ति परंपरा के ही महान संत थे। इसलिए, हमारी आज़ादी की लड़ाई को जिस तरह हमारी आध्यात्मिक चेतना ऊर्जा दे रही थी, वही ऊर्जा आज़ादी के 75 साल में हमारे अमृत संकल्पों को भी मिलनी चाहिए। और आज जब मैं भाग्‍यनगर में हूं, हैदराबाद में हूं, तो सरदार पटेल जी का विशेष उल्लेख जरूर करूंगा। वैसे कृष्‍ण रेड्डी जी ने अपने वकतव्‍य में बड़ा विस्‍तार से उसके लिये कहा। भग्‍यनगर का कौन ऐसा भाग्‍यशाली होगा? कौन ऐसा हैदराबादी होगा जो सरदार पटेल की दीव्‍य दृष्‍टि, सरदार पटेल का सार्मथ्‍य और हैदराबाद की आन-बान-शान के लिये सरदार साहब की कूटनीति को न जानता हो? आज देश में एक ओर सरदार साहब की ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ एकता की शपथ दोहरा रही है, तो रामानुजाचार्य जी की ‘स्टेचू ऑफ equality’ समानता का संदेश दे रही है। यही एक राष्ट्र के रूप में भारत की चिर पुरातन विशेषता है। हमारी एकता सत्ता या शक्ति की बुनियाद पर नहीं खड़ी होती, हमारी एकता समानता और समादर इस सूत्र से सृजित होती है।

और साथियों,

आज जब मैं तेलंगाना में हूं, तो इस बात का जिक्र भी जरूर करूंगा कि कैसे तेलुगू कल्चर ने भारत की विविधता को सशक्त किया है। तेलगू कल्चर की जड़ों का विस्तार सदियों में फैला हुआ है। अनेक महान राजा, रानियां, इसके ध्वजावाहक रहे हैं। सातवाहन हों, काकातिया हो या विजयनगर साम्राज्य सभी ने तेलुगू संस्कृति की पताका को बुलंद किया। महान कवियों ने तेलुगू संस्कृति को समृद्ध किया है। पिछले वर्ष ही तेलांगना में स्थित 13वीं शताब्दी के काकातिया रुद्रेश्वर -रामाप्पा मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है I वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गनाईजेशन ने पोचमपल्ली को भी भारत के सबसे बेहतरीन tourism village का दर्जा दिया है। पोचमपल्ली की महिलाओ का हुनर पोचमपल्ली साड़ीयों के रूप में विश्व विख्यात है। ये वो संस्कृति है जिसने हमें हमेशा सद्भाव, भाई-चारा और नारी शक्ति का सम्मान करना सिखाया है। 

तेलुगू संस्कृति की इस गौरवशाली परंपरा को आज तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री भी पूरे आन-बान-शान से आगे बढ़ा रही है। तेलुगू सिनेमा का दायरा सिर्फ उतना ही नहीं है जहां तेलुगू बोली जाती है। इसका विस्तार पूरे विश्व में है। सिल्वर स्क्रीन से लेकर OTT प्लेटफॉर्म्स तक इस creativity की चर्चा छाई हुई है। भारत के बाहर भी खूब प्रशंसा हो रही है। तेलुगू भाषी लोगों का अपनी कला और अपनी संस्कृति के प्रति ये समर्पण, सभी के लिए प्रेरणा समान है।

साथियों,

आजादी के 75वें वर्ष में, इस अमृतकाल में, श्री रामानुजाचार्य जी की ये प्रतिमा प्रत्येक देशवासी को निरंतर प्रेरित करेगी। मुझे पूरा भरोसा है, आजादी के अमृतकाल में हम उन कुरीतियों को भी पूरी तरह समाप्त कर पाएंगे, जिन्हें खत्म करने के लिए श्री रामानुजाचार्य जी ने समाज को जागृत किया था। इसी भाव के साथ, पूज्‍य स्‍वामी जी का आदरपूर्वक धन्‍यवाद करते हुए, इस पवित्र अवसर में हिस्‍सेदार बनने के लिये आपने मुझे अवसर दिया, मैं आपका बहुत आभारी हूं! विश्‍व भर में फैले हुए प्रभु रामानुजाचार्य जी के विचारों से प्रभावित प्रेरित हर किसी को में अनेक-अनेक शुभाकमनाएँ देता हूं! मेरी वाणी को विराम देता हूँ।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद!

Explore More
आज सम्पूर्ण भारत, सम्पूर्ण विश्व राममय है: अयोध्या में ध्वजारोहण उत्सव में पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

आज सम्पूर्ण भारत, सम्पूर्ण विश्व राममय है: अयोध्या में ध्वजारोहण उत्सव में पीएम मोदी
'Will walk shoulder to shoulder': PM Modi pushes 'Make in India, Partner with India' at Russia-India forum

Media Coverage

'Will walk shoulder to shoulder': PM Modi pushes 'Make in India, Partner with India' at Russia-India forum
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
भारत आज ग्लोबल इकोनॉमी का ग्रोथ ड्राइवर बन रहा है: पीएम मोदी
December 06, 2025
India is brimming with confidence: PM
In a world of slowdown, mistrust and fragmentation, India brings growth, trust and acts as a bridge-builder: PM
Today, India is becoming the key growth engine of the global economy: PM
India's Nari Shakti is doing wonders, Our daughters are excelling in every field today: PM
Our pace is constant, Our direction is consistent, Our intent is always Nation First: PM
Every sector today is shedding the old colonial mindset and aiming for new achievements with pride: PM

आप सभी को नमस्कार।

यहां हिंदुस्तान टाइम्स समिट में देश-विदेश से अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित हैं। मैं आयोजकों और जितने साथियों ने अपने विचार रखें, आप सभी का अभिनंदन करता हूं। अभी शोभना जी ने दो बातें बताई, जिसको मैंने नोटिस किया, एक तो उन्होंने कहा कि मोदी जी पिछली बार आए थे, तो ये सुझाव दिया था। इस देश में मीडिया हाउस को काम बताने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता। लेकिन मैंने की थी, और मेरे लिए खुशी की बात है कि शोभना जी और उनकी टीम ने बड़े चाव से इस काम को किया। और देश को, जब मैं अभी प्रदर्शनी देखके आया, मैं सबसे आग्रह करूंगा कि इसको जरूर देखिए। इन फोटोग्राफर साथियों ने इस, पल को ऐसे पकड़ा है कि पल को अमर बना दिया है। दूसरी बात उन्होंने कही और वो भी जरा मैं शब्दों को जैसे मैं समझ रहा हूं, उन्होंने कहा कि आप आगे भी, एक तो ये कह सकती थी, कि आप आगे भी देश की सेवा करते रहिए, लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स ये कहे, आप आगे भी ऐसे ही सेवा करते रहिए, मैं इसके लिए भी विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं।

साथियों,

इस बार समिट की थीम है- Transforming Tomorrow. मैं समझता हूं जिस हिंदुस्तान अखबार का 101 साल का इतिहास है, जिस अखबार पर महात्मा गांधी जी, मदन मोहन मालवीय जी, घनश्यामदास बिड़ला जी, ऐसे अनगिनत महापुरूषों का आशीर्वाद रहा, वो अखबार जब Transforming Tomorrow की चर्चा करता है, तो देश को ये भरोसा मिलता है कि भारत में हो रहा परिवर्तन केवल संभावनाओं की बात नहीं है, बल्कि ये बदलते हुए जीवन, बदलती हुई सोच और बदलती हुई दिशा की सच्ची गाथा है।

साथियों,

आज हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी, डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर जी का महापरिनिर्वाण दिवस भी है। मैं सभी भारतीयों की तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

Friends,

आज हम उस मुकाम पर खड़े हैं, जब 21वीं सदी का एक चौथाई हिस्सा बीत चुका है। इन 25 सालों में दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। फाइनेंशियल क्राइसिस देखी हैं, ग्लोबल पेंडेमिक देखी हैं, टेक्नोलॉजी से जुड़े डिसरप्शन्स देखे हैं, हमने बिखरती हुई दुनिया भी देखी है, Wars भी देख रहे हैं। ये सारी स्थितियां किसी न किसी रूप में दुनिया को चैलेंज कर रही हैं। आज दुनिया अनिश्चितताओं से भरी हुई है। लेकिन अनिश्चितताओं से भरे इस दौर में हमारा भारत एक अलग ही लीग में दिख रहा है, भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है। जब दुनिया में slowdown की बात होती है, तब भारत growth की कहानी लिखता है। जब दुनिया में trust का crisis दिखता है, तब भारत trust का pillar बन रहा है। जब दुनिया fragmentation की तरफ जा रही है, तब भारत bridge-builder बन रहा है।

साथियों,

अभी कुछ दिन पहले भारत में Quarter-2 के जीडीपी फिगर्स आए हैं। Eight परसेंट से ज्यादा की ग्रोथ रेट हमारी प्रगति की नई गति का प्रतिबिंब है।

साथियों,

ये एक सिर्फ नंबर नहीं है, ये strong macro-economic signal है। ये संदेश है कि भारत आज ग्लोबल इकोनॉमी का ग्रोथ ड्राइवर बन रहा है। और हमारे ये आंकड़े तब हैं, जब ग्लोबल ग्रोथ 3 प्रतिशत के आसपास है। G-7 की इकोनमीज औसतन डेढ़ परसेंट के आसपास हैं, 1.5 परसेंट। इन परिस्थितियों में भारत high growth और low inflation का मॉडल बना हुआ है। एक समय था, जब हमारे देश में खास करके इकोनॉमिस्ट high Inflation को लेकर चिंता जताते थे। आज वही Inflation Low होने की बात करते हैं।

साथियों,

भारत की ये उपलब्धियां सामान्य बात नहीं है। ये सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, ये एक फंडामेंटल चेंज है, जो बीते दशक में भारत लेकर आया है। ये फंडामेंटल चेंज रज़ीलियन्स का है, ये चेंज समस्याओं के समाधान की प्रवृत्ति का है, ये चेंज आशंकाओं के बादलों को हटाकर, आकांक्षाओं के विस्तार का है, और इसी वजह से आज का भारत खुद भी ट्रांसफॉर्म हो रहा है, और आने वाले कल को भी ट्रांसफॉर्म कर रहा है।

साथियों,

आज जब हम यहां transforming tomorrow की चर्चा कर रहे हैं, हमें ये भी समझना होगा कि ट्रांसफॉर्मेशन का जो विश्वास पैदा हुआ है, उसका आधार वर्तमान में हो रहे कार्यों की, आज हो रहे कार्यों की एक मजबूत नींव है। आज के Reform और आज की Performance, हमारे कल के Transformation का रास्ता बना रहे हैं। मैं आपको एक उदाहरण दूंगा कि हम किस सोच के साथ काम कर रहे हैं।

साथियों,

आप भी जानते हैं कि भारत के सामर्थ्य का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय तक untapped रहा है। जब देश के इस untapped potential को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलेंगे, जब वो पूरी ऊर्जा के साथ, बिना किसी रुकावट के देश के विकास में भागीदार बनेंगे, तो देश का कायाकल्प होना तय है। आप सोचिए, हमारा पूर्वी भारत, हमारा नॉर्थ ईस्ट, हमारे गांव, हमारे टीयर टू और टीय़र थ्री सिटीज, हमारे देश की नारीशक्ति, भारत की इनोवेटिव यूथ पावर, भारत की सामुद्रिक शक्ति, ब्लू इकोनॉमी, भारत का स्पेस सेक्टर, कितना कुछ है, जिसके फुल पोटेंशियल का इस्तेमाल पहले के दशकों में हो ही नहीं पाया। अब आज भारत इन Untapped पोटेंशियल को Tap करने के विजन के साथ आगे बढ़ रहा है। आज पूर्वी भारत में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, कनेक्टिविटी और इंडस्ट्री पर अभूतपूर्व निवेश हो रहा है। आज हमारे गांव, हमारे छोटे शहर भी आधुनिक सुविधाओं से लैस हो रहे हैं। हमारे छोटे शहर, Startups और MSMEs के नए केंद्र बन रहे हैं। हमारे गाँवों में किसान FPO बनाकर सीधे market से जुड़ें, और कुछ तो FPO’s ग्लोबल मार्केट से जुड़ रहे हैं।

साथियों,

भारत की नारीशक्ति तो आज कमाल कर रही हैं। हमारी बेटियां आज हर फील्ड में छा रही हैं। ये ट्रांसफॉर्मेशन अब सिर्फ महिला सशक्तिकरण तक सीमित नहीं है, ये समाज की सोच और सामर्थ्य, दोनों को transform कर रहा है।

साथियों,

जब नए अवसर बनते हैं, जब रुकावटें हटती हैं, तो आसमान में उड़ने के लिए नए पंख भी लग जाते हैं। इसका एक उदाहरण भारत का स्पेस सेक्टर भी है। पहले स्पेस सेक्टर सरकारी नियंत्रण में ही था। लेकिन हमने स्पेस सेक्टर में रिफॉर्म किया, उसे प्राइवेट सेक्टर के लिए Open किया, और इसके नतीजे आज देश देख रहा है। अभी 10-11 दिन पहले मैंने हैदराबाद में Skyroot के Infinity Campus का उद्घाटन किया है। Skyroot भारत की प्राइवेट स्पेस कंपनी है। ये कंपनी हर महीने एक रॉकेट बनाने की क्षमता पर काम कर रही है। ये कंपनी, flight-ready विक्रम-वन बना रही है। सरकार ने प्लेटफॉर्म दिया, और भारत का नौजवान उस पर नया भविष्य बना रहा है, और यही तो असली ट्रांसफॉर्मेशन है।

साथियों,

भारत में आए एक और बदलाव की चर्चा मैं यहां करना ज़रूरी समझता हूं। एक समय था, जब भारत में रिफॉर्म्स, रिएक्शनरी होते थे। यानि बड़े निर्णयों के पीछे या तो कोई राजनीतिक स्वार्थ होता था या फिर किसी क्राइसिस को मैनेज करना होता था। लेकिन आज नेशनल गोल्स को देखते हुए रिफॉर्म्स होते हैं, टारगेट तय है। आप देखिए, देश के हर सेक्टर में कुछ ना कुछ बेहतर हो रहा है, हमारी गति Constant है, हमारी Direction Consistent है, और हमारा intent, Nation First का है। 2025 का तो ये पूरा साल ऐसे ही रिफॉर्म्स का साल रहा है। सबसे बड़ा रिफॉर्म नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी का था। और इन रिफॉर्म्स का असर क्या हुआ, वो सारे देश ने देखा है। इसी साल डायरेक्ट टैक्स सिस्टम में भी बहुत बड़ा रिफॉर्म हुआ है। 12 लाख रुपए तक की इनकम पर ज़ीरो टैक्स, ये एक ऐसा कदम रहा, जिसके बारे में एक दशक पहले तक सोचना भी असंभव था।

साथियों,

Reform के इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए, अभी तीन-चार दिन पहले ही Small Company की डेफिनीशन में बदलाव किया गया है। इससे हजारों कंपनियाँ अब आसान नियमों, तेज़ प्रक्रियाओं और बेहतर सुविधाओं के दायरे में आ गई हैं। हमने करीब 200 प्रोडक्ट कैटगरीज़ को mandatory क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर से बाहर भी कर दिया गया है।

साथियों,

आज के भारत की ये यात्रा, सिर्फ विकास की नहीं है। ये सोच में बदलाव की भी यात्रा है, ये मनोवैज्ञानिक पुनर्जागरण, साइकोलॉजिकल रेनसां की भी यात्रा है। आप भी जानते हैं, कोई भी देश बिना आत्मविश्वास के आगे नहीं बढ़ सकता। दुर्भाग्य से लंबी गुलामी ने भारत के इसी आत्मविश्वास को हिला दिया था। और इसकी वजह थी, गुलामी की मानसिकता। गुलामी की ये मानसिकता, विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में एक बहुत बड़ी रुकावट है। और इसलिए, आज का भारत गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पाने के लिए काम कर रहा है।

साथियों,

अंग्रेज़ों को अच्छी तरह से पता था कि भारत पर लंबे समय तक राज करना है, तो उन्हें भारतीयों से उनके आत्मविश्वास को छीनना होगा, भारतीयों में हीन भावना का संचार करना होगा। और उस दौर में अंग्रेजों ने यही किया भी। इसलिए, भारतीय पारिवारिक संरचना को दकियानूसी बताया गया, भारतीय पोशाक को Unprofessional करार दिया गया, भारतीय त्योहार-संस्कृति को Irrational कहा गया, योग-आयुर्वेद को Unscientific बता दिया गया, भारतीय अविष्कारों का उपहास उड़ाया गया और ये बातें कई-कई दशकों तक लगातार दोहराई गई, पीढ़ी दर पीढ़ी ये चलता गया, वही पढ़ा, वही पढ़ाया गया। और ऐसे ही भारतीयों का आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया।

साथियों,

गुलामी की इस मानसिकता का कितना व्यापक असर हुआ है, मैं इसके कुछ उदाहरण आपको देना चाहता हूं। आज भारत, दुनिया की सबसे तेज़ी से ग्रो करने वाली मेजर इकॉनॉमी है, कोई भारत को ग्लोबल ग्रोथ इंजन बताता है, कोई, Global powerhouse कहता है, एक से बढ़कर एक बातें आज हो रही हैं।

लेकिन साथियों,

आज भारत की जो तेज़ ग्रोथ हो रही है, क्या कहीं पर आपने पढ़ा? क्या कहीं पर आपने सुना? इसको कोई, हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कहता है क्या? दुनिया की तेज इकॉनमी, तेज ग्रोथ, कोई कहता है क्या? हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ कब कहा गया? जब भारत, दो-तीन परसेंट की ग्रोथ के लिए तरस गया था। आपको क्या लगता है, किसी देश की इकोनॉमिक ग्रोथ को उसमें रहने वाले लोगों की आस्था से जोड़ना, उनकी पहचान से जोड़ना, क्या ये अनायास ही हुआ होगा क्या? जी नहीं, ये गुलामी की मानसिकता का प्रतिबिंब था। एक पूरे समाज, एक पूरी परंपरा को, अन-प्रोडक्टिविटी का, गरीबी का पर्याय बना दिया गया। यानी ये सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि, भारत की धीमी विकास दर का कारण, हमारी हिंदू सभ्यता और हिंदू संस्कृति है। और हद देखिए, आज जो तथाकथित बुद्धिजीवी हर चीज में, हर बात में सांप्रदायिकता खोजते रहते हैं, उनको हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ में सांप्रदायिकता नज़र नहीं आई। ये टर्म, उनके दौर में किताबों का, रिसर्च पेपर्स का हिस्सा बना दिया गया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने भारत में मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम को कैसे तबाह कर दिया, और हम इसको कैसे रिवाइव कर रहे हैं, मैं इसके भी कुछ उदाहरण दूंगा। भारत गुलामी के कालखंड में भी अस्त्र-शस्त्र का एक बड़ा निर्माता था। हमारे यहां ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज़ का एक सशक्त नेटवर्क था। भारत से हथियार निर्यात होते थे। विश्व युद्धों में भी भारत में बने हथियारों का बोल-बाला था। लेकिन आज़ादी के बाद, हमारा डिफेंस मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम तबाह कर दिया गया। गुलामी की मानसिकता ऐसी हावी हुई कि सरकार में बैठे लोग भारत में बने हथियारों को कमजोर आंकने लगे, और इस मानसिकता ने भारत को दुनिया के सबसे बड़े डिफेंस importers के रूप में से एक बना दिया।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री के साथ भी यही किया। भारत सदियों तक शिप बिल्डिंग का एक बड़ा सेंटर था। यहां तक कि 5-6 दशक पहले तक, यानी 50-60 साल पहले, भारत का फोर्टी परसेंट ट्रेड, भारतीय जहाजों पर होता था। लेकिन गुलामी की मानसिकता ने विदेशी जहाज़ों को प्राथमिकता देनी शुरु की। नतीजा सबके सामने है, जो देश कभी समुद्री ताकत था, वो अपने Ninety five परसेंट व्यापार के लिए विदेशी जहाज़ों पर निर्भर हो गया है। और इस वजह से आज भारत हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर, यानी लगभग 6 लाख करोड़ रुपए विदेशी शिपिंग कंपनियों को दे रहा है।

साथियों,

शिप बिल्डिंग हो, डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग हो, आज हर सेक्टर में गुलामी की मानसिकता को पीछे छोड़कर नए गौरव को हासिल करने का प्रयास किया जा रहा है।

साथियों,

गुलामी की मानसिकता ने एक बहुत बड़ा नुकसान, भारत में गवर्नेंस की अप्रोच को भी किया है। लंबे समय तक सरकारी सिस्टम का अपने नागरिकों पर अविश्वास रहा। आपको याद होगा, पहले अपने ही डॉक्यूमेंट्स को किसी सरकारी अधिकारी से अटेस्ट कराना पड़ता था। जब तक वो ठप्पा नहीं मारता है, सब झूठ माना जाता था। आपका परिश्रम किया हुआ सर्टिफिकेट। हमने ये अविश्वास का भाव तोड़ा और सेल्फ एटेस्टेशन को ही पर्याप्त माना। मेरे देश का नागरिक कहता है कि भई ये मैं कह रहा हूं, मैं उस पर भरोसा करता हूं।

साथियों,

हमारे देश में ऐसे-ऐसे प्रावधान चल रहे थे, जहां ज़रा-जरा सी गलतियों को भी गंभीर अपराध माना जाता था। हम जन-विश्वास कानून लेकर आए, और ऐसे सैकड़ों प्रावधानों को डी-क्रिमिनलाइज किया है।

साथियों,

पहले बैंक से हजार रुपए का भी लोन लेना होता था, तो बैंक गारंटी मांगता था, क्योंकि अविश्वास बहुत अधिक था। हमने मुद्रा योजना से अविश्वास के इस कुचक्र को तोड़ा। इसके तहत अभी तक 37 lakh crore, 37 लाख करोड़ रुपए की गारंटी फ्री लोन हम दे चुके हैं देशवासियों को। इस पैसे से, उन परिवारों के नौजवानों को भी आंत्रप्रन्योर बनने का विश्वास मिला है। आज रेहड़ी-पटरी वालों को भी, ठेले वाले को भी बिना गारंटी बैंक से पैसा दिया जा रहा है।

साथियों,

हमारे देश में हमेशा से ये माना गया कि सरकार को अगर कुछ दे दिया, तो फिर वहां तो वन वे ट्रैफिक है, एक बार दिया तो दिया, फिर वापस नहीं आता है, गया, गया, यही सबका अनुभव है। लेकिन जब सरकार और जनता के बीच विश्वास मजबूत होता है, तो काम कैसे होता है? अगर कल अच्छी करनी है ना, तो मन आज अच्छा करना पड़ता है। अगर मन अच्छा है तो कल भी अच्छा होता है। और इसलिए हम एक और अभियान लेकर आए, आपको सुनकर के ताज्जुब होगा और अभी अखबारों में उसकी, अखबारों वालों की नजर नहीं गई है उस पर, मुझे पता नहीं जाएगी की नहीं जाएगी, आज के बाद हो सकता है चली जाए।

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज देश के बैंकों में, हमारे ही देश के नागरिकों का 78 thousand crore रुपया, 78 हजार करोड़ रुपए Unclaimed पड़ा है बैंको में, पता नहीं कौन है, किसका है, कहां है। इस पैसे को कोई पूछने वाला नहीं है। इसी तरह इन्श्योरेंश कंपनियों के पास करीब 14 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। म्यूचुअल फंड कंपनियों के पास करीब 3 हजार करोड़ रुपए पड़े हैं। 9 हजार करोड़ रुपए डिविडेंड का पड़ा है। और ये सब Unclaimed पड़ा हुआ है, कोई मालिक नहीं उसका। ये पैसा, गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों का है, और इसलिए, जिसके हैं वो तो भूल चुका है। हमारी सरकार अब उनको ढूंढ रही है देशभर में, अरे भई बताओ, तुम्हारा तो पैसा नहीं था, तुम्हारे मां बाप का तो नहीं था, कोई छोड़कर तो नहीं चला गया, हम जा रहे हैं। हमारी सरकार उसके हकदार तक पहुंचने में जुटी है। और इसके लिए सरकार ने स्पेशल कैंप लगाना शुरू किया है, लोगों को समझा रहे हैं, कि भई देखिए कोई है तो अता पता। आपके पैसे कहीं हैं क्या, गए हैं क्या? अब तक करीब 500 districts में हम ऐसे कैंप लगाकर हजारों करोड़ रुपए असली हकदारों को दे चुके हैं जी। पैसे पड़े थे, कोई पूछने वाला नहीं था, लेकिन ये मोदी है, ढूंढ रहा है, अरे यार तेरा है ले जा।

साथियों,

ये सिर्फ asset की वापसी का मामला नहीं है, ये विश्वास का मामला है। ये जनता के विश्वास को निरंतर हासिल करने की प्रतिबद्धता है और जनता का विश्वास, यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। अगर गुलामी की मानसिकता होती तो सरकारी मानसी साहबी होता और ऐसे अभियान कभी नहीं चलते हैं।

साथियों,

हमें अपने देश को पूरी तरह से, हर क्षेत्र में गुलामी की मानसिकता से पूर्ण रूप से मुक्त करना है। अभी कुछ दिन पहले मैंने देश से एक अपील की है। मैं आने वाले 10 साल का एक टाइम-फ्रेम लेकर, देशवासियों को मेरे साथ, मेरी बातों को ये कुछ करने के लिए प्यार से आग्रह कर रहा हूं, हाथ जोड़कर विनती कर रहा हूं। 140 करोड़ देशवसियों की मदद के बिना ये मैं कर नहीं पाऊंगा, और इसलिए मैं देशवासियों से बार-बार हाथ जोड़कर कह रहा हूं, और 10 साल के इस टाइम फ्रैम में मैं क्या मांग रहा हूं? मैकाले की जिस नीति ने भारत में मानसिक गुलामी के बीज बोए थे, उसको 2035 में 200 साल पूरे हो रहे हैं, Two hundred year हो रहे हैं। यानी 10 साल बाकी हैं। और इसलिए, इन्हीं दस वर्षों में हम सभी को मिलकर के, अपने देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करके रहना चाहिए।

साथियों,

मैं अक्सर कहता हूं, हम लीक पकड़कर चलने वाले लोग नहीं हैं। बेहतर कल के लिए, हमें अपनी लकीर बड़ी करनी ही होगी। हमें देश की भविष्य की आवश्यकताओं को समझते हुए, वर्तमान में उसके हल तलाशने होंगे। आजकल आप देखते हैं कि मैं मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान पर लगातार चर्चा करता हूं। शोभना जी ने भी अपने भाषण में उसका उल्लेख किया। अगर ऐसे अभियान 4-5 दशक पहले शुरू हो गए होते, तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती। लेकिन तब जो सरकारें थीं उनकी प्राथमिकताएं कुछ और थीं। आपको वो सेमीकंडक्टर वाला किस्सा भी पता ही है, करीब 50-60 साल पहले, 5-6 दशक पहले एक कंपनी, भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने के लिए आई थी, लेकिन यहां उसको तवज्जो नहीं दी गई, और देश सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में इतना पिछड़ गया।

साथियों,

यही हाल एनर्जी सेक्टर की भी है। आज भारत हर साल करीब-करीब 125 लाख करोड़ रुपए के पेट्रोल-डीजल-गैस का इंपोर्ट करता है, 125 लाख करोड़ रुपया। हमारे देश में सूर्य भगवान की इतनी बड़ी कृपा है, लेकिन फिर भी 2014 तक भारत में सोलर एनर्जी जनरेशन कपैसिटी सिर्फ 3 गीगावॉट थी, 3 गीगावॉट थी। 2014 तक की मैं बात कर रहा हूं, जब तक की आपने मुझे यहां लाकर के बिठाया नहीं। 3 गीगावॉट, पिछले 10 वर्षों में अब ये बढ़कर 130 गीगावॉट के आसपास पहुंच चुकी है। और इसमें भी भारत ने twenty two गीगावॉट कैपेसिटी, सिर्फ और सिर्फ rooftop solar से ही जोड़ी है। 22 गीगावाट एनर्जी रूफटॉप सोलर से।

साथियों,

पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना ने, एनर्जी सिक्योरिटी के इस अभियान में देश के लोगों को सीधी भागीदारी करने का मौका दे दिया है। मैं काशी का सांसद हूं, प्रधानमंत्री के नाते जो काम है, लेकिन सांसद के नाते भी कुछ काम करने होते हैं। मैं जरा काशी के सांसद के नाते आपको कुछ बताना चाहता हूं। और आपके हिंदी अखबार की तो ताकत है, तो उसको तो जरूर काम आएगा। काशी में 26 हजार से ज्यादा घरों में पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के सोलर प्लांट लगे हैं। इससे हर रोज, डेली तीन लाख यूनिट से अधिक बिजली पैदा हो रही है, और लोगों के करीब पांच करोड़ रुपए हर महीने बच रहे हैं। यानी साल भर के साठ करोड़ रुपये।

साथियों,

इतनी सोलर पावर बनने से, हर साल करीब नब्बे हज़ार, ninety thousand मीट्रिक टन कार्बन एमिशन कम हो रहा है। इतने कार्बन एमिशन को खपाने के लिए, हमें चालीस लाख से ज्यादा पेड़ लगाने पड़ते। और मैं फिर कहूंगा, ये जो मैंने आंकडे दिए हैं ना, ये सिर्फ काशी के हैं, बनारस के हैं, मैं देश की बात नहीं बता रहा हूं आपको। आप कल्पना कर सकते हैं कि, पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना, ये देश को कितना बड़ा फायदा हो रहा है। आज की एक योजना, भविष्य को Transform करने की कितनी ताकत रखती है, ये उसका Example है।

वैसे साथियों,

अभी आपने मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग के भी आंकड़े देखे होंगे। 2014 से पहले तक हम अपनी ज़रूरत के 75 परसेंट मोबाइल फोन इंपोर्ट करते थे, 75 परसेंट। और अब, भारत का मोबाइल फोन इंपोर्ट लगभग ज़ीरो हो गया है। अब हम बहुत बड़े मोबाइल फोन एक्सपोर्टर बन रहे हैं। 2014 के बाद हमने एक reform किया, देश ने Perform किया और उसके Transformative नतीजे आज दुनिया देख रही है।

साथियों,

Transforming tomorrow की ये यात्रा, ऐसी ही अनेक योजनाओं, अनेक नीतियों, अनेक निर्णयों, जनआकांक्षाओं और जनभागीदारी की यात्रा है। ये निरंतरता की यात्रा है। ये सिर्फ एक समिट की चर्चा तक सीमित नहीं है, भारत के लिए तो ये राष्ट्रीय संकल्प है। इस संकल्प में सबका साथ जरूरी है, सबका प्रयास जरूरी है। सामूहिक प्रयास हमें परिवर्तन की इस ऊंचाई को छूने के लिए अवसर देंगे ही देंगे।

साथियों,

एक बार फिर, मैं शोभना जी का, हिन्दुस्तान टाइम्स का बहुत आभारी हूं, कि आपने मुझे अवसर दिया आपके बीच आने का और जो बातें कभी-कभी बताई उसको आपने किया और मैं तो मानता हूं शायद देश के फोटोग्राफरों के लिए एक नई ताकत बनेगा ये। इसी प्रकार से अनेक नए कार्यक्रम भी आप आगे के लिए सोच सकते हैं। मेरी मदद लगे तो जरूर मुझे बताना, आईडिया देने का मैं कोई रॉयल्टी नहीं लेता हूं। मुफ्त का कारोबार है और मारवाड़ी परिवार है, तो मौका छोड़ेगा ही नहीं। बहुत-बहुत धन्यवाद आप सबका, नमस्कार।