बिहार महान ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत की भूमि; यहाँ जितनी पुरानी गंगा धारा है, उतनी ही पुरानी ज्ञान धारा है: पीएम मोदी
हमारे विश्वविद्यालयों को शिक्षण के पारंपरिक तरीकों से आगे शिक्षा के नवीन तरीकों की दिशा में बढ़ने की जरूरत: पीएम मोदी
वैश्वीकरण के इस युग में, हमें विश्व में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और चीजों में नित हो रहे बदलाव को समझना होगा: प्रधानमंत्री
भारत, जिसे सपेरों की भूमि कहा जाता था, आज आईटी क्षेत्र के प्रमुख देशों में एक: प्रधानमंत्री मोदी
युवा आकांक्षाओं से परिपूर्ण भारत एक युवा राष्ट्र है। हमारे युवा भारत और पूरे विश्व के लिए काफी कुछ कर सकते हैं: पीएम मोदी

 

विशाल संख्या में उपस्थित सभी नौजवान साथियो, 

अभी हमारे मुख्यमंत्री जी बता रहे थे मैं देश का पहला प्रधानमंत्री हूँ जो पटना युनिवर्सिटी को कार्यक्रम में शरीक हो रहा है। मैं इसे सौभाग्य मानता हूँ और मैने देखा है कि पहले जितने प्रधानमंत्री हुए वो कई अच्छे काम मेरे लिए बाकी छोड़कर गए हैं। और वैसा ही अच्छा काम करने का मुझे आज सौभाग्य मिला है। 

मैं सबसे पहले इस पवित्र धरती को नमन करता हूँ, क्योंकि आज हमारा देश जहां भी है, उसे यहां तक पहुंचाने में इस University Campus का बड़ा योगदान है। चीन में एक कहावत है कि अगर आप सालभर का सोचते हैं, तो अनाज बोईए, अगर आप 10-20 साल का सोचते हैं तो फलों का वृक्ष बोईए, लेकिन अगर आप पीढ़ियों का सोचते हैं तो आप मनुष्य को बोईए। यह पटना युनिवर्सिटी उस बात का जीता-जागता सबूत है कि 100 साल पहले जो बीज बोया गया, 100 साल के भीतर अनेक पीढ़िया यहां आकर, मां सरस्वती की साधना करके आगे निकल गईं, लेकिन वो साथ-साथ देश को भी आगे ले गई। यहां पर कुछ राजनेताओं का जिक्र हुआ जो इसी University से निकलकर के किस प्रकार से भिन्न भिन्न स्थानों पर उन्होंने सेवाएं की हैं, लेकिन मैं आज अनुभव से कह सकता हूँ कि आज हिंदुस्तान का शायद ही कोई राज्य ऐसा होगा जहां सिविल सर्विस का नेतृत्व करने वाले पहले 5 लोगों में बिहार की पटना युनिवर्सिटी का विद्यार्थी न हो, यह हो नहीं सकता है। 

एक दिन मे मैं भारत में राज्यों से आए हुए हर छोटे-मोटे अधिकारियों के साथ मे विचार-विमर्श कर रहा हूँ। Daily 80-90-100 लोगों से बात करने के लिए मैं बैठता हूँ, डेढ-दो घंटे मैं बातचीत करता हूं और मैं अनुभव करता हूं कि उसमें सबसे बड़ा bulk बिहार का होता है। उन्होंने सरस्वती की उपासना में अपने आप को खपा दिया है। लेकिन अब वक्त बदल चुका है, अब हमें सरस्वती और लक्ष्मी दोनों को साथ-साथ चलाना है। बिहार के पास सरस्वती की कृपा है, बिहार के पास लक्ष्मी की कृपा भी बन सकती है और इसलिए ये भारत सरकार की सोच ये सरस्वती और लक्ष्मी का मिलन करते हुए बिहार को नई उचाईयों पर ले जाना है। 

नीतिश जी का जो Commitment है, बिहार के विकास के प्रति उनकी जो प्रतिबद्धता है और भारत सरकार पूर्वी भारत के विकास के प्रति संकल्पबद्ध है, ये दोनों अवधारणाएं 2022 जब देश आजदी के 75 साल मनाए, तो मेरा बिहार राज्य भी हिंदुस्तान के समृद्ध राज्यों की बराबरी में आकर खड़ा रहे, वो संकल्प लेकर आगे बढ़ना है। 

हमारी ये पटना नगरी गंगा जी के तट पर है और जितनी पुरानी गंगा धारा है बिहार उतनी ही पुरानी ज्ञान धारा का, विरासत का मालिक है। जितनी पुरानी ज्ञान गंगा की विरासत है, जैसे जितनी गंगा धारा की विरासत आपके पास है। हिंदुस्तान में जब भी चर्चा आती है तो नालंदा, विक्रमशिला को कौन भूल सकता है। मानव जीवन के संशोधन के क्षेत्र के शायद ही कोई ऐसे क्षेत्र रहे होंगे जिसमें सदियों से इस धरती का योगदान न रहा हो, इस धरती का नेतृत्व न रहा हो। जिसके पास इतनी अहम विरासत हो, वो विरासत अपने आप में एक बहुत बड़ी प्रेरणा होती है और जो अपने समृद्ध इतिहास का स्मरण रखता है उसी की कोख में भावी इतिहास गर्भाधान करता है। जो इतिहास को भूल जाता है उसकी कोख बांझ रह जाती है। और इसलिए भावी इतिहास या निर्माण का गर्भाधान भी समृद्ध शक्तिशाली, भव्य, दिव्य भारत का सपना भी, उसका गर्भाधान भी इसी धरती पर संभव है और इस धरती पर से पुलकित होने का सामर्थ्य है। क्योंकि इसके पास महान ऐतिहासिक विरासत है, सांस्कृतिक विरासत है, जीते -जागते उदाहरण है। मैं समझता हूं कि इतना बडा सामर्थ्य शायद ही किसी के पास होता है। 

एक समय था, जब हम स्कूल-कॉलेज में सीखने के लिए जाते थे, लेकिन वो युग समाप्त हो चुका है। आज विश्व जिस तेजी से बदल रहा है, मानव की सोच जिस प्रकार से बदल रही है, सोचने का दायरा जिस प्रकार से बदल रहा है, Technology Intervention, जीवन की सोच को, जीवन के व्यहार को Way of Life को आमूल-चूल परिवर्तन कर रहा है तब हमारी Universities भी, Universities में आने वाले हर विद्यार्थी के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती यह है, चुनौती यह नहीं कि नया क्या सिखाएं, चुनौती यह है कि पुराना जो सीखकर के आया है उसे कैसे भुलाएं। Unlearn करना, de-learn करना और बाद में Re-learn करना यह आज के युग की एक बहुत बड़ी आवश्यकता है। 

Forbs Magazine के Mr. Forbs ने एक बार कहा था, शिक्षा की एक बड़ी मजेदार परिभाषा उन्होंने दी थी, उन्होंने कहा कि शिक्षा का काम है दिमाग को खाली करना। हमारी सोच क्या रही दिमाग को भरना, रटते रहना, नयीं-नयीं चीज़े करते रहना, भरते रहना। Forbs का कहना है शिक्षा का उद्देश्य है दिमाग को खाली करना और आगे कहा दिमाग को खुला करना। अगर सच्चे अर्थ में युगानुकूल परिवर्तन लाना है तो हम सबको भी हमारी Universities में दिगाम खाली करने का अभियान चलाना होगा, दिमाग खोलने का अभियान चलाना होगा, जब खुलेगा तो चारों तरफ से नए विचारो के प्रवेश की संभावना बनेगी, जब खाली होगा तो नए भरने के लिए जगह बनेगी। और इसलिए आज ये Universities उसे Learning दें, Teaching नहीं, Learning को बल देते हुए आगे चलना है और समय की मांग यह है कि हम हमारे शिक्षा संस्थानों को उस दिशा में कैसे लेकर जाएं? 

मानव संस्कृति के विकास यात्रा को देखा जाए तो एक बात जिसमें Consistency है, स्थातत्य है और वो है Innovation, नवाचार। हर युग में मानव जात कोई न कोई Innovation करते हुए अपनी Life Style में उसे जोड़ते चले गए। आज Innovation एक बहुत बड़े Competition के कालखंड से गुजर रहा है। दुनिया में वही देश प्रगति कर सकते हैं जो देश Innovation को प्राथामिकता देते हैं। संस्थानों को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन संस्थान को इतना Modification नहीं है वो सिर्फ Cosmetic Change को संशोधन नहीं माना जाता है। विज्ञान के, जीवन के मूलभूत सिद्धांतों के उपर कालवाह्य चीजों से मुक्ति पाने का रास्ता ढूंढना और भविष्य को ध्यान में रखते हुए यह रास्ते इंगित करना, नए संसाधन इंगित लाना और जीवन को नई उचाईयों पर ले जाना यह समय की मांग हैं। और जब तक हम, हमारे सारे क्षेत्र और जरूरी एक भी ज्ञान और Technology ही संशोधन का क्षेत्र है, समाज शास्त्र भी Innovative way में समाज को दिशा दे सकता है। और इसलिए हमारी Universities का महात्मय है आने वाले युग की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और विश्व जिस प्रकार से Globalize हुआ है तो Competition भी Globalize हुए हैं, स्पर्धा भी वैश्विक हुई है और आज हम सिर्फ अपने ही देश में स्पर्धा करने से चलता नहीं है, अड़ोस-पड़ोस से स्पर्धा कर इतना चलता नहीं है, एक वैश्विक परिस्थिति में और भविष्य की परिस्थिति के संदर्भ में भी में उस स्पर्धा को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करना है। देश को अगर आगे बढ़ाना है, नई उचाईयों पर ले जाना है, बदलते हुए विश्व में हमें अपनी जगह ताकत के साथ खडी करनी है तो हमारी युवा पीढ़ी के द्वारा Innovation को जितना बल दिया जाएगा हम दुनिया के अंदर एक ताकत के साथ खड़े रहेंगे। 

जब IT Revolution आया किस प्रकार से विश्व का भारत के प्रति सोचने का बदलाव शुरू हुआ, वर्ना दुनिया हमें हमेशा सांप-सपेरों वाला देश मानती थी। दुनिया की यही सोच थी कि भारतीयों ने काला जादू, भारतीयों ने भूत-प्रेत, भारतीयों ने अंध-श्रद्धा, भारतीयों ने सांप और सपेरों की दुनिया, लेकिन जब IT Revolution में जब हमारे देश के 18-20 साल के बच्चे उंगलियों पर दुनिया को एक नई दुनिया दिखाना शुरू कर दिया तो विश्व चौकन्ना हो गया कि यह क्या चीज़ बच्चे बता रहे हैं। भारत की तरफ देखने का नज़रिया बदल गया। 

मुझे बराबर याद है जब मैं कई वर्षों पहले एक बार ताईवान गया था। तब तो मैं मुख्यमंत्री भी नहीं था, कहीं चुनाव की दुनिया से मेरा नाता नहीं था, वहां की सरकार के निमंत्रण पर गया था। तो मेरे साथ एक Interpreter था। दस दिन का मेरा वहां tour था। वो Interpreter मुझे बातचीत के माध्यम के रूप में मेरे साथ रहता था। अब दस दिन साथ रहे तो थोड़ा परिचय हो गया, थोड़ी दोस्ती हो गई। तो 6-8 दिन के बाद उसने मुझे एक दिन पूछा, बोले साहब आपको बुरा न लगे तो मुझे कुछ जानकारी चाहिए। मैने कहा जरूर पूछिए। वो बोले आपको बुरा तो नहीं लगेगा ना? मैने कहा नहीं-नहीं लगेगा, बताईए न क्या बात है? ठीक है साहब फिर बाद में बात करता हूं। संकोचवश वो बोल नहीं पाया। फिर दोबारा जब हम Traveling में हम साथ थे, तो मैने फिर से निकाला, मैने कहा कि भई वो तुम पूछ रहे थे, क्या था? बोले, साहब मुझे बडा संकोच होता है। मैने कहा चिंता मत करो तेरे मन में जो है, पूछो मुझे। वो Computer Engineer था। तो उसने पूछा साहब कि ये हिंदुस्तान अभी भी वैसा ही है, सांप-सपेरों वाला, जादू-टोने वाला। वो मेरी तरफ देखता रहा। फिर मैने उसको बोला कि मुझे देखकर क्या लगता है? तो थोड़ा वो संकोच में पड़ गया, थोड़ा शर्मिन्दगी महसूस करने लगा। बोला Sorry - Sorry Sir मैने कुछ गलत पूछ लिया। मैने कहा कि ऐसा नहीं है भई, तुमने ठीक पूछा है। मैने कहा कि तुम्हारे मन में ये जो तुम्हारी जानकारी है लेकिन अब हमारा थोड़ा पहले जैसा नहीं रहा है, थोड़ा De-valuation हुआ है। बोले वो कैसे? मैने कहा कि पहले हमारे जो पूर्वज थे वो सांप से खेला करते थे, हमारी जो नई पीढ़ी है वो Mouse से खेला करती है। वो समझ गया कि मैं किस Mouse की बात कर रहा हूं। वो गणेश जी वाला चूहा नहीं, वो computer वाला चूहा था। 

मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि यह चीजे है जो देश की ताकत बढ़ाती हैं, लेकिन कभी-कभार हम सिद्धांतों के आधार पर एक-आध Project लेकर के एक-आध Innovative चीज बनाकर के शायद Prize भी जीत लेते हैं, लेकिन आज हिंदुस्तान के सामने सबसे बड़ी आवश्यकता यह है और में 100 साल पुरानी पटना युनिवर्सिटी जिसने देश को बहुत कुछ दिया है, उस पवित्र धरती से देश भर के नौजवानों को आज आह्वान करता हूं, विद्यार्थियों को आह्वान करता हूं, Faculties को आह्वान करता हूं, Universities को आह्वान करता हूं कि हम हमारे आस-पास जो समस्या देखते हैं, सामान्य मानविकी जो कठिनाईया देखते हैं, उसके समाधान के लिए कोई Innovative way ढूंढ सकते हैं क्या? उसके लिए कोई नई टैक्नॉलाजी ढूंढ सकते हैं क्या? उसके लिए Technology सस्ती हो, सरल हो, Affordable हो, User Friendly हो। अगर एक बार ऐसे छोटे-छोटे Projects के Innovation को हम बल देंगे वो आगे चलकर के Start-up में Convert होगा, हिंदुस्तान के नौजवान Start-up के माध्यम से Universities की शिक्षा-दीक्षा का Innovation, भारत सरकार की बैंकों की ‘मुद्रा योजना’ से बैंकिंग मदद और Start-up की दिशा में कदम आप कल्पना नहीं कर सकते, आज हिंदुस्तान Start-up की दुनिया में चौथे नंबर पर खड़ा है और देखते ही देखते हिंदुस्तान Start-up की दुनिया में अग्रिम पंक्ति में आ सकता है। और अगर वो आर्थिक विकास की एक नई दुनिया हिंदुस्तान के हर कोने में हर युवा के हाथ में Start-up को लेकर कुछ करने का इरादा हो तो कितना बड़ा परिवर्तन और परिणाम मिल सकता है इसका मैं भलि-भांति अंदाजा कर सकता हूं। इसलिए देश की Universities को मैं निमंत्रण देता हूं, मैं पटना युनिवर्सिटी को विशेष रूप से निमंत्रण देता हूं कि आईए Innovation को बढावा दें। हम दुनिया से आगे निकलने के लिए अपनी एक महारथ हासिल करें। 

और भारत के पास Talent की कमी नहीं है और भारत भाग्यवान है कि आज हमारे पास 800 मिलियन देश की 65 प्रतिशत जनसंख्या, 35 वर्ष से कम उम्र की है। मेरा हिंदुस्तान जवान है, मेरे हिंदुस्तान के सपने भी जवान है। जिस देश के पास यह ताकत हो वो दुनिया को क्या नहीं दे सकता है। वो देश अपने सपनों को क्यों पूरा नहीं कर सकता है, मेरा विश्वास है कि अवश्य कर सकता है। 

और इसलिए अभी नीतिश जी ने बड़े विस्तार से एक विषय को बड़े आग्रह से रखा और आपने भी उसको ताकत दी तालियां बजा-बजकाकर के। लेकिन मैं मानता हूं कि केन्द्रीय युनिवर्सिटी, ये बीते हुए कल की बात है। मैं उसे एक कदम आगे ले जाना चाहता हूं और मैं आज यही निमंत्रण देने के लिए आज इस युनिवर्सिटी कार्यक्रम में विशेष रूप से आया हूं। हमारे देश में शिक्षा क्षेत्र के Reform बहुत मंद गति से चले हैं। हमारे शिक्षाविदों में भी आपसी मतभेद बड़े तीव्र रहे हैं और Reform के हर कदम Reform से ज्यादा समस्याओं को उजागर करने के कारण बने हैं और उसी का परिणाम रहा है कि लंबे अरसे तक हमारी शिक्षा व्यवस्था में और खासकर उच्च शिक्षा में बदलते हुए विश्व की बराबरी करने के लिए जो Innovation चाहिए Reform चाहिए सरकारे उसमें कुछ कम पड़ गई हैं। इस सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं, कुछ हिम्मत दिखाई है। अभी आप में से जिनको अध्यन का स्वभाव होगा आपने देखा होगा, हमारे देश में कई सालों से चर्चा चल रही थी IIM सरकारी कब्जे में रहे या न रहे? स्वतंत्र रहे न रहे, आधा-अधूरा स्वतंत्र है सरकार रहे? सरकार में लगता था कि हम इतना पैसा देते हैं और हमारी कोई बात ही नहीं चलती तो कैसे चलेगा? मैं डेढ-दो साल तक सुनता रहा, सुनता रहा, सुनता रहा और आपको जानकर के खुशी होगी और देश के Academic World को भी जानकर खूशी होगी ऐसे विषयों की ज्यादातर अखबारों में चर्चा नहीं आती है, ये विषय ऐसे होते है कि वो खबरों में जल्दी जगह पाते नहीं है, लेकिन कुछ लोगों ने आर्टिकल जरूर लिखे हैं। पहली बार देश ने IIM को पूरी तरह सरकारी कब्जे से बाहर निकालकर के उसे Professionally Open-Up कर दिया। यह बहुत बड़ा फैसला किया है। जैसे पटना युनिवर्सिटी के लिए IAS, IPS, IFS ये बाएं हाथ का खेल है वैसे ही IIM के लिए, देश भर की IIM Institute के लिए विश्व को CEO सप्लाई करना, वो बाएं हाथ का खेल रहा हैं। इसलिए विश्व की इतनी बड़ी Prestigious Institute सरकारी नियमों, बंधनों, बाबूओं के उसमें आना-जाना Meeting को खींचना ये सारी चीजों से हमने मुक्त कर दिया है। मुझे विश्वास है कि हमने IIM को इतना बड़ा अवसर दिया है कि IIM के लोग इस अवसर को एक अद्भुत मौका मानकर के देश की आशा आकांशाओं के अनुकूल अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय करके देश को कुछ दिखा देंगे। मैने उनसे एक आग्रह किया है IIM के Reform के अंदर एक बात को जोड़ा गया है कि अब IIM को चलाने में IIM के जो Alumina है उनकी सक्रिय भागीदारी चाहिए। पटना युनिवर्सिटी जैसी पुरानी युनिवर्सिटी में मेरा भी आग्रह है कि आपका Alumina बहुत समृद्ध है, सामर्थ्यवान है उस Alumina को किसी भी हालत में युनिवर्सिटी के साथ जोड़ना चाहिए, युनिवर्सिटी की विकास यात्रा को उसको भागीदार बनाना चाहिए। आप देखते हैं कि दुनिया में जितनी भी top Universities है उसको आगे बढ़ाने में Alumina का बहुत बड़ा योगदान होता है और सिर्फ Money से नहीं Intellectual, Experience, Status, पद, प्रतिष्ठा यह सारी चीजें उसके साथ जुड़ जाती हैं। हमारे देश में यह परंपरा बहुत कम मात्रा में है, तो भी जरा उदासीन है। किसी एकआध Function में बुला लिया, माला-वाला पहना दी, या तो दान मिला, उससे जुड़ा रहता है। हमें Alumina अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत होती है उसके जीवन संपर्क की व्यवस्थाओं को विकसित करना होगा। 

जो मैं बात कर रहा था कि हम Central University से एक कदम आगे जाना चाहते हैं और मैं पटना युनिवर्सिटी को उस एक कदम आगे ले जाने के लिए निमंत्रण देने आया हूं। भारत सरकार ने एक सपना देश की Universities के सामने प्रस्तुत किया है। विश्व के 500 top Universities में हिंदुस्तान का कहीं नामो-निशान नहीं है। जिस धरती पर नालंदा, विक्रमशिला, तक्षशिला, बल्लभी ऐसी Universities कोई 1300 साल पहले, कोई 1500 साल पहले, कोई 1700 साल पहले पूरे विश्व को आकर्षित करती थी क्या वो हिंदुस्तान दुनिया की पहली 500 Universities में कहीं न हो? यह कलंक मिटाना चाहिए कि नहीं मिटाना चाहिए, यह स्थिति बदलनी चाहिए कि नहीं बदलनी चाहिए। क्या कोई बाहर वाला आकर बदलेगा? हमे ही तो बदलना होगा, सपने भी तो हमारे होने चाहिए, संकल्प भी तो हमारे होने चाहिए और सिद्धि के लिए पुरूषार्थ भी तो हमारा होना चाहिए। 

इसी मिजाज़ से एक योजना भारत सरकार लाई है और वो योजना यह है कि देश कि 10 Private University और देश की 10 Public Universities, Total 20 Universities इनको World Class बनाने के लिए एक आज जो सरकार के सारे बंधन हैं, सरकार के जो कानून नियम हैं, उससे उनको मुक्ति देना। दूसरा आने वाले 5 साल में इन Universities को 10 हजार करोड़ रूपया देना। लेकिन यह Universities का Selection किसी नेता की इच्छा पर नहीं होगा, प्रधानमंत्री की इच्छा पर नहीं होगा, किसी मुख्यमंत्री की चिट्ठी और सिफारिश से नहीं होगा। पूरे देश की Universities को Challenge रूप में निमंत्रित किया गया है, उस Challenge रूप में हर किसी को आना होगा, अपने सामर्थ्य को सिद्ध करना होगा और Challenge रूप में जो Top 10 Private आएगी, Top 10 Public आएगी, उसका एक Third Party Professional agency द्वारा Challenge group में Selection होगा। उस Challenge group में राज्य सरकारों कि भी जिम्मेदारी होगी, जिस नगर में यह Universities होगी उनकी जिम्मेवारी होगी, जो लोग Universities चलाते होंगे उनकी जिम्मवारी होगी। उनके इतिहास को देखा जाएगा उनके Performance को देखा जाएगा। वैश्विक स्तर पर आवश्यक बदलाव का उनका रोड़मैप देखा जाएगा और ये जो Universities Top 10-10 आएंगी, 20 total उनको सरकार के नियमों, बंधनों से मुक्त करके एक स्वतंत्रता दी जाएगी। उनको जिस दिशा में जैसे आगे बढ़ना है आगे बढ़ने के लिए अवसर दिया जाएगा। इस काम के लिए 5 साल के भीतर-भीतर इन Universities को 10 हजार करोड रूपया दिया जाएगा। ये Central Universities से कई गुना आगे हैं। बहुत बड़ा फैसला है और पटना इसमें पीछे नहीं रहनी चाहिए ये निमंत्रण देने के लिए मैं आपके पास आया हूं। मैं आपसे आग्रह करता हूं कि पटना युनिवर्सिटी आगे आए, उसकी Faculties आगे आए और इस महत्वपूर्ण योजना और पटना युनिवर्सिटी हिंदुस्तान के आन-बान और शान जो पटना की ताकत है वो विश्व के अंदर भी पटना युनिवर्सिटी की ताकत बने उसको आगे लेकर चलने की दिशा में आप मेरे साथ चलिए, इसी एक सद्भावना के साथ मेरी तरफ से आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। 

इस शताब्दी समारोह में आपने जितने संकल्प किए हैं उन सभी संकल्पों को आप परिपूर्ण करें, इसी एक भावना के साथ मेरी तरफ से आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। 

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Prime Minister welcomes Param Vir Gallery at Rashtrapati Bhavan as a tribute to the nation’s indomitable heroes
December 17, 2025
Param Vir Gallery reflects India’s journey away from colonial mindset towards renewed national consciousness: PM
Param Vir Gallery will inspire youth to connect with India’s tradition of valour and national resolve: Prime Minister

The Prime Minister, Shri Narendra Modi, has welcomed the Param Vir Gallery at Rashtrapati Bhavan and said that the portraits displayed there are a heartfelt tribute to the nation’s indomitable heroes and a mark of the country’s gratitude for their sacrifices. He said that these portraits honour those brave warriors who protected the motherland through their supreme sacrifice and laid down their lives for the unity and integrity of India.

The Prime Minister noted that dedicating this gallery of Param Vir Chakra awardees to the nation in the dignified presence of two Param Vir Chakra awardees and the family members of other awardees makes the occasion even more special.

The Prime Minister said that for a long period, the galleries at Rashtrapati Bhavan displayed portraits of soldiers from the British era, which have now been replaced by portraits of the nation’s Param Vir Chakra awardees. He stated that the creation of the Param Vir Gallery at Rashtrapati Bhavan is an excellent example of India’s effort to emerge from a colonial mindset and connect the nation with a renewed sense of consciousness. He also recalled that a few years ago, several islands in the Andaman and Nicobar Islands were named after Param Vir Chakra awardees.

Highlighting the importance of the gallery for the younger generation, the Prime Minister said that these portraits and the gallery will serve as a powerful place for youth to connect with India’s tradition of valour. He added that the gallery will inspire young people to recognise the importance of inner strength and resolve in achieving national objectives, and expressed hope that this place will emerge as a vibrant pilgrimage embodying the spirit of a Viksit Bharat.

In a thread of posts on X, Shri Modi said;

“हे भारत के परमवीर…
है नमन तुम्हें हे प्रखर वीर !

ये राष्ट्र कृतज्ञ बलिदानों पर…
भारत मां के सम्मानों पर !

राष्ट्रपति भवन की परमवीर दीर्घा में देश के अदम्य वीरों के ये चित्र हमारे राष्ट्र रक्षकों को भावभीनी श्रद्धांजलि हैं। जिन वीरों ने अपने सर्वोच्च बलिदान से मातृभूमि की रक्षा की, जिन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए अपना जीवन दिया…उनके प्रति देश ने एक और रूप में अपनी कृतज्ञता अर्पित की है। देश के परमवीरों की इस दीर्घा को, दो परमवीर चक्र विजेताओं और अन्य विजेताओं के परिवारजनों की गरिमामयी उपस्थिति में राष्ट्र को अर्पित किया जाना और भी विशेष है।”

“एक लंबे कालखंड तक, राष्ट्रपति भवन की गैलरी में ब्रिटिश काल के सैनिकों के चित्र लगे थे। अब उनके स्थान पर, देश के परमवीर विजेताओं के चित्र लगाए गए हैं। राष्ट्रपति भवन में परमवीर दीर्घा का निर्माण गुलामी की मानसिकता से निकलकर भारत को नवचेतना से जोड़ने के अभियान का एक उत्तम उदाहरण है। कुछ साल पहले सरकार ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में कई द्वीपों के नाम भी परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखे हैं।”

“ये चित्र और ये दीर्घा हमारी युवा पीढ़ी के लिए भारत की शौर्य परंपरा से जुड़ने का एक प्रखर स्थल है। ये दीर्घा युवाओं को ये प्रेरणा देगी कि राष्ट्र उद्देश्य के लिए आत्मबल और संकल्प महत्वपूर्ण होते है। मुझे आशा है कि ये स्थान विकसित भारत की भावना का एक प्रखर तीर्थ बनेगा।”