17 सितंबर और एक नए भारत का निर्माण

Published By : Admin | September 17, 2025 | 15:04 IST

17 सितंबर का दिन खास है क्योंकि यह कई लोगों और समूहों के लिए महत्व रखता है। प्राचीन हिन्दू ग्रंथों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्म इसी दिन हुआ था। वे दिव्य वास्तुकार और सृष्टि के निर्माता माने जाते हैं और सभी कारीगरों के पूर्वज के रूप में पूजे जाते हैं। इसी दिन 1948 में, 13 महीने की कठिन प्रतीक्षा के बाद, हैदराबाद रियासत स्वतंत्र हुई। स्वतंत्रता के बाद यह निजाम मीर उस्मान अली खान और उनकी मिलिशिया, रज़ाकार, के नियंत्रण में थी। भारत के पहले गृहमंत्री, सरदार वल्लभभाई पटेल, ने ऑपरेशन पोलो के तहत पुलिस कार्रवाई का आदेश दिया। इस ऑपरेशन के पांच दिनों के बाद पूरे हैदराबाद दक्कन को 17 सितंबर को आज़ाद कराया गया। 1950 में इसी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्म हुआ था। आजादी के बाद जन्मे भारत के पहले प्रधानमंत्री और पिछले छह दशकों में लगातार तीन राष्ट्रीय चुनाव जीतने वाले एकमात्र प्रधानमंत्री के रूप में, उनका कार्यकाल किसी मिसाल से कम नहीं रहा है।

17 सितंबर की इन तीन घटनाओं को क्या जोड़ता है? पीएम मोदी के कौशल और कारीगरी व शिल्प कौशल को बढ़ावा देने पर जोर देने के बीच की कड़ी हमारे प्राचीन ग्रंथों में निहित है। पुराणों में माना जाता है कि विश्वकर्मा के पांच मुख थे और इनमें से प्रत्येक मुख से एक पुत्र उत्पन्न हुआ। प्रत्येक पुत्र पांच प्रमुख कारीगर समुदायों में से एक का पूर्वज बन गया - लोहार, बढ़ई, कांस्य (पीतल) कारीगर, राजमिस्त्री और सुनार। सहस्राब्दियों से, भारत की शिल्पकला विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित थी। 2014 में, सत्ता में आने के बाद, मोदी सरकार ने शिक्षा, रोजगार और रोजगार के बीच भारी बेमेल को दूर करने के लिए कौशल विकास और उद्यमिता (MSDE) का एक अलग मंत्रालय बनाया। प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना का निर्माण कारीगरों और शिल्पकारों के उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार के लिए एक तार्किक विस्तार था इसलिए, विश्वकर्मा से प्रेरणा आकस्मिक नहीं है, बल्कि एक सुनियोजित एवं सावधानीपूर्वक तैयार की गई कार्ययोजना है।

ऐसा माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा एक महान निर्माता थे; उन्होंने भगवान कृष्ण के अनुरोध पर द्वारका, हस्तिनापुर (पांडवों और कौरवों की नगरी) का निर्माण किया था, और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का भी निर्माण किया था। इसी प्रकार, मोदी सरकार भी आधुनिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर निरंतर ध्यान केंद्रित कर रही है। पूंजी निवेश पर इस फोकस के कारण पिछले एक दशक में राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई में 60% की वृद्धि हुई है, ऑपरेशनल हवाई अड्डों की संख्या दोगुनी होकर 160 हो गई है और देश भर में 1,275 रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण हुआ है। आकांक्षाओं के अनुरूप, विकसित भारत के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है - एक ऐसा विकसित भारत जो गरीबी मुक्त हो और जिसमें सभी के लिए पर्याप्त अवसर हों, भगवान विश्वकर्मा की महान कृति, स्वर्ग लोक या देवताओं के निवास के समान।

15 अगस्त 2022 को, जब भारत ने स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे किए, पीएम मोदी ने ‘पांच प्रण’ या ‘पांच संकल्प’ की बात की। इन पांच संकल्पों में विकसित भारत के निर्माण पर ध्यान देना, औपनिवेशिक मानसिकता को समाप्त करना, अपनी विरासत और धरोहर पर गर्व करना, एकता को मजबूत करना और नागरिकों के कर्तव्यों को निभाना शामिल था। अगर विकसित भारत के निर्माण में भगवान विश्वकर्मा से प्रेरणा ली जाती है, तो अपने मन से औपनिवेशिक सोच को हटाने का संकल्प फलदायी हो सकता है। वास्तव में, उस समय की अधिकांश राजनीतिक और बौद्धिक नेतृत्व में गहरी जमी हुई औपनिवेशिक मानसिकता के कारण हैदराबाद के मुक्ति संग्राम की वीर गाथा हमारी राष्ट्रीय चेतना से दूर हो गई थी।

कहानी एकदम सीधी है: 1947 में जब भारत को आजादी मिली, निजाम, जो भारत के लगभग 7% भूभाग और 5% आबादी पर शासन करता था, जिसमें अधिकांश हिंदू थे, भारत में विलय नहीं करना चाहता था। उस समय हैदराबाद में आधुनिक तेलंगाना, कर्नाटक के उत्तर-पूर्वी जिले कलबुर्गी, बेल्लारी, रायचूर, यादगीर, कोप्पल, विजयनगर और बीदर, और महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र शामिल था, जिसमें औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद और परभणी जिले शामिल थे। निज़ाम को मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM) के संस्थापक कासिम रिज़वी का समर्थन प्राप्त था। रिज़वी ने हैदराबाद दक्कन को एक स्वतंत्र इस्लामी राष्ट्र बनाने के निज़ाम के प्रयास में उसका समर्थन किया और निज़ाम की 24,000 की नियमित सेना में वृद्धि के लिए लगभग 150,000 MIM स्वयंसेवक प्रदान किए। रजाकारों ने गाँवों में उत्पात मचाया, हिंदू महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार किया, पुरुषों की बेरहमी से हत्या की और जो कुछ भी दिखाई दिया उसे नष्ट कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने रंगापुरम और लक्ष्मीपुरम गाँवों में रजाकारों द्वारा किए गए नरसंहारों को दक्षिण भारत का जलियाँवाला बाग बताया था। भैरनपल्ली और परकल गाँवों में रजाकारों द्वारा किए गए नरसंहार इस क्षेत्र के मौखिक इतिहास का हिस्सा हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक दर्दनाक रूप से वर्णित किए जाते हैं। इन्हीं परिस्थितियों में पटेल ने निर्णायक कार्रवाई की और 17 सितंबर, 1948 को हैदराबाद राज्य के लोग आजाद हुए और भारतीय संघ का हिस्सा बने।

यही वो असुविधाजनक सच्चाईयां हैं जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर और हाल ही में राज्य स्तर पर भी, एक के बाद एक सरकारों ने दबाने की कोशिश की है। लोग भूल जाते हैं कि शोएबुल्लाह खान जैसे मुस्लिम पत्रकार ही निज़ाम के शासन के खिलाफ आंदोलन में सबसे आगे थे और राज्य को भारत में मिलाने की वकालत करने पर रजाकारों ने उनकी हत्या कर दी थी। इस ऐतिहासिक दिन का जश्न न मनाकर, वे वास्तव में पूर्ववर्ती हैदराबाद रियासत के आम लोगों - हिंदुओं और मुसलमानों - द्वारा दिए गए बलिदानों की अनदेखी करते हैं।

मार्च 2024 में, हैदराबाद की मुक्ति के 76 वर्षों बाद, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने 17 सितंबर को हैदराबाद मुक्ति दिवस के रूप में मनाने के लिए एक राजपत्र अधिसूचना जारी की। पिछले दशक में कई पुराने और अप्रचलित ढाँचे हटा दिए गए हैं और शासन के नए तरीके सामने आए हैं। हमारी पुरानी विरासत अब एक आधार बन गई है, जिससे हम भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं, जो हमारी क्षमता के अनुसार, अपने ही नियमों पर फलदायी परिणाम देगा।


(जी किशन रेड्डी केंद्रीय कोयला और खनन मंत्री हैं और सिकंदराबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। आलेख में व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।)

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)