पिछले तीन सालों में उद्यमिता ने भारत की कल्पना को उसकी बेहतरी के लिए अपना लिया है। हमने देखा है कि जिस तरह से हाल के समय में उद्यमिता के पहले चरण में कंपनी शुरू करने, आरंभिक पूंजी इकट्ठा करने और कारोबार को खड़ा करने के काम हुए हैं, अतीत में पहले ऐसा करना कभी संभव नहीं था। जो रास्ता केवल धनाढ्य परिवारों और कुलीन घरानों के लिए उपलब्ध था, आज हर भारतीय के लिए खुला है। इसके लिए उद्यमिता के बूम का शुक्रगुजार होना चाहिए।
मई 2014 में दफ्तर संभालने के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार ने नीतियों में बदलाव की एक श्रृंखला शुरू की, जिसने उद्यमिता की इस अभूतपूर्व लहर को पैदा किया। कंपनियों को इनकॉरपोरेट करने में जहां पहले हफ्तों लगते थे, अब ये कुछ दिनों में होने लगा है। मोदी सरकार ने सभी उद्योगों के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को उदार बना दिया है और भारत ने वैश्विक पूंजी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं जबकि दुनिया के बाकी देश अब भी संरक्षणवादी नीतियों पर डटे हैं।
2015 के बजट में कॉरपोरेट टैक्स की दर को धीरे-धीरे घटाने का वादा सरकार ने किया था। उसी राह पर चलते हुए सरकार ने 50 करोड़ से कम राजस्व देने वाली कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स घटाकर 25 फीसदी कर दिया, जो अब 500 करोड़ से कम राजस्व देने वाले मझोले उद्योगों के लिए भी लागू हो गया है। बौद्धिक संपदा पर आधारित स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने पेटेंट के लाइसेंस की कमाई पर रियायती टैक्स दर 10 फीसदी लागू किया है और अब भारत इस दृष्टि से वैश्विक समूह में आ खड़ा हुआ है। स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (SIDBI) अब भारत के Venture capital industry के लिए महत्वपूर्ण घरेलू निवेशक के तौर पर उभरा है। SIDBI के सहयोग से कई नये आरंभिक कोष बने हैं जो भारतीय उद्यमियों को मदद कर रहे हैं। इनका संबंध आपूर्ति मसले पर निजी पूंजी बाजार से भी रहा है।
सार्वजनिक इक्विटी पूंजी बाजार भी सुधरा है, जिसका मूल काम कारोबार के लिए पूंजी का विकास करना है। सार्वजनिक बाजार में देखें तो इम्पलॉइज प्रोविडेन्ट फंड (EPF) के आने से इक्विटी मार्केट स्थिर हुआ है और इसमें गहराई आयी है। इससे संगठित क्षेत्र के कामगारों को भारत के दीर्घकालिक आर्थिक विकास का फायदा मिलेगा। आधार कार्यक्रम की सफलता से अब बैंक और डिमेट अकाउन्ट खोलने पर होने वाले खर्च में 95 फीसदी की कमी हो गयी है। E-KYC सुविधा के साथ आधार से जुड़े अकाउन्ट खोलने में अब हफ्तों के बजाए कुछ मिनट लगते हैं।
भारतीय कारोबार के विकास में स्टॉक मार्केट ने दशकों से सहयोगी भूमिका निभायी है। 1970 और 1980 के दशक में जब बैंक नयी कंपनियों को लोन के तौर पर पूंजी देने में कोताही बरतती थी, निडर उद्यमियों ने इक्विटी बाजार की ओर रुख किया। इस प्रक्रिया में लोकतांत्रिक तरीके से धन तैयार हुए और आम लोग भी रिलायंस इंडस्ट्रीज और इन्फोसिस जैसी कंपनियों के विकास में योगदान देना शुरू किया, जिनकी गिनती आज भारत के ब्लू चिप कॉरपोर्ट्स में होती है।
दो विचार हैं जिन पर सरकार को विचार करना चाहिए- एक, पूंजी के आवंटन को नये सिरे से अर्थव्यवस्था में स्ट्रीमलाइन किया जाए और दूसरा ये सुनिश्चित किया जाए कि भारतीय उद्यमियों के बनाए धन को समाज में व्यापक रूप से साझा किया जाए।
जो प्राइवेट इक्विटी इन्वेस्टमेंट लिस्टेड हैं और लिस्टेड नहीं हैं- उनके बीच long-term capital gains (LTCG) की टैक्स दर में बड़ा अंतर है। Unlisted equities के लिए LTCG के लिए holding period 2 साल से ज्यादा है और उस पर लागू होने वाली रियायत की दर 20 फीसदी है। Listed equities के लिए holding period 1 साल है और लाभ टैक्स फ्री होता है। अगर स्टॉक मार्केट में निवेश से तुलना करें तो व्यवहार में इतने बड़े फर्क के कारण स्टार्टअप के आरंभिक निवेश बहुत आकर्षक नहीं रह जाते। यहां तक कि जो नौकरी के अवसर और आविष्कार से जुड़े सकारात्मक प्रभाव हैं वह भी स्टार्ट अप निवेश में ठोस तरीके से दिखायी नहीं पड़ते।
यह मुद्दा पहले से ही प्रधानमंत्री की सोच की जद में रहा है। इस साल की शुरुआत में मुंबई के कैपिटल मार्केट कम्युनिटी के बीच अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि स्टॉक मार्केट से जुड़े लोगों को ‘राष्ट्र निर्माण में साफ-सुथरे तरीके से टैक्स चुकाते हुए योगदान’ करना चाहिए। लाभांश पर कराधान को भी देखना महत्वपूर्ण है। डिविडेन्ट डिस्ट्रीबूय्शन टैक्स (DDT) का वर्तमान दौर सभी शेयर होल्डर्स के लिए अप्रत्यक्ष कर लगाने जैसा है। हालांकि यह कंपनी के पॉकेट से ही जाता है। शेयरधारक जो सामूहिक रूप से कंपनी के स्वामी होते हैं, लाभ पर कॉरपोरेट इनकम टैक्स पहले ही कंपनी स्तर पर दे चुके होते हैं। प्रभावी रूप से DDT उन शेयरधारकों, जो कंपनी नियंत्रित नहीं करते, जिनकी संख्या कम है, उन पर दोहरे कर का पाप है। लाभांशों पर हर तरह के टैक्स हटाते हुए और सूचीबद्ध व गैरसूचीबद्ध प्राइवेट इक्विटी इन्वेस्टमेंट में टैक्स का अंतर खत्म करते हुए सूचीबद्ध शेयरों के लिए LTCG शुरू करने का लम्बा सफर तय करना होगा। इससे पूंजी आबंटन में सुधार होगा।
आखिरकार न्यू लिस्टिंग में कैपिटल मार्केट नियंत्रण और शुरूआती पब्लिक ऑफरिंग को छूट देने की जरूरत है। औद्योगिक कारोबार के लिए आधुनिक तकनीक और ज्ञान आधारित स्टार्ट अप को अनुकूलित और समाहित करना भी जरूरी है। उदाहरण के लिए जो कंपनियां भारतीय एक्सचेंज में सूचीबद्ध होना चाह रही हैं। उनके लिए जरूरी है कि उनके पास पिछले 5 में से 3 साल में टैक्स पूर्व ऑपरेटिव प्रॉफिट 15 करोड़ रुपये हों। पिछले समय में जब निवेशकों में जागरूकता और ज्ञान की कम थी, इस तरह के नियम छोटे अनुभवहीन निवेशकों की रक्षा के लिए बनाए गये थे।
आज का परिदृश्य बदल चुका है। एक करोड़ भारतीय व्यवस्थित निवेश योजनाओं के जरिए स्टॉक मार्केट से जुड़े हैं और सूचीबद्ध स्टॉक में हर महीने 4 हजार करोड़ से ज्यादा की रकम आ रही है। यह वो संख्या है जो पिछले कुछ सालों में दुगनी हो गयी है। ईपीएफ के फायदों से जुड़कर करोड़ों भारतीय अप्रत्यक्ष रूप से इक्विटी के मालिक हैं। न्यू मीडिया प्लेटफॉर्म और डिजिटल कनेक्टिविटी स्टॉक मार्केट में निवेश के अवसरों और चुनौतियों से आम लोगों को अवगत करा रहे हैं, उनकी जानकारी बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।
लाभ के लिए भारत में सूचीबद्ध होने वाला हाई टेक कारोबार ऐसा उदाहरण है जिसने शानदार प्रगति की। इसने अपना एसेट बेस बनाया, लेकिन अब भी यह नुकसान देने वाली कंपनी है जो जनता से आरंभिक पूंजी जुटाने के लिए दुनिया की ओर देखने को मजबूर है। भारतीय कंपनियों को भारत में ही रोके रखने के लिए ऐसी छूट भी जरूरी है। यह भारत में तेजी से बढ़ते रीटेल इन्वेस्टर को आधार बनाने का अवसर देगा। आज जो निवेश करेंगे, वही कल के कॉरपोरेट चैम्पियन होंगे।
कालाधन के खिलाफ सरकार के युद्ध ने निवेश के विकल्प के तौर पर सोना और जमीन के प्रति आकर्षण को कम करके देखा है। कराधान और नियामक नीतियां आगे भी बचत को उत्पादक बनाने में और संपत्ति से कैश फ्लो पैदा करने में मदद करेगी, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी। नवाचार प्रेरित अर्थव्यवस्था की ओर भारत बढ़ रहा है और ये नीतिगत सुधार हमारे देश को इस रास्ते पर तेजी से आगे बढाएंगे।
(राजीव मंत्री नवम कैपिटल के वेंचर कैपिटल में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर है और भारतीय एन्टरप्राइज काउंसिल के संस्थापक रहे हैं।)
(जो विचार ऊपर व्यक्त किए गए हैं, वो लेखक के अपने विचार हैं और ये जरूरी नहीं कि नरेंद्र मोदी वेबसाइट एवं नरेंद्र मोदी एप इससे सहमत हो।)