लाल फीताशाही खत्म करने पर ही देश आगे बढ़ सकता है। कोई लाल फीताशाही नहीं, सिर्फ रेड कारपेट ही निवेशकों के प्रति मेरी नीति है। – नरेन्‍द्र मोदी

कई विश्लेषणों के अनुसार यूपीए शासन के अंतर्गत 2004-14 का दशक निवेश में कमी,परियोजनाओं में अवरोध और रोजगारहीन विकास का साक्षी रहा है। नीति संचालित नजरिये की कमी के चलते इस अवधि में पूंजीवाद का साम्राज्यवादी चेहरा भी देखा। इसके साथ ही मनमाने फैसले लेने की प्रवृत्ति से उत्पन्न लाल फीताशाही कई समस्याओं का मूल कारण बन गई, जिसने यूपीए शासन के दौरान भारत को पंगु बना दिया। अफसरशाही के अडंगों, अकुशल निर्णय प्रक्रिया और किसी भी तरह के व्यापार-उद्योग को शुरू करने के लिए ज़रूरी मंज़ूरियों के दुष्चक्र के कारण निवेशकों का आत्मविश्वास घटा। ऐसे माहौल में नरेन्‍द्र मोदी का व्यापार के लिए अनुकूल नज़रिया अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा वरदान सिद्ध हुआ है। जनकल्याण के लिए निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिए नरेन्‍द्र मोदी का विज़न एक अनोखी पहल है। नरेन्‍द्र मोदी ने जहां एक ओर नए क्षितिजों को खोजा और निवेशकों का स्वागत किया,वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार एवं अनावश्यक अवरोधों की गुंजाइश बिल्कुल खत्म कर दी। टाटा नॅनो प्रकरण ने इतिहास में अपनी जगह बना ली है। नरेंद्र मोदी ने एक बेमिसाल पहल करते हुए सिर्फ एक एसएमएस के जरिए टाटा समूह को अपना संयंत्र गुजरात में स्थानांतरित करने के लिए आमंत्रित किया, जो पश्चिम बंगाल में अपने संयंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहा था। इसके बाद उन्होने प्लांट के लिए रिकॉर्ड समय में सभी अनुमतियां और मंज़ूरियां दिलाई।

नरेन्‍द्र मोदी की नीतियों के परिणाम हालांकि साल 2010 के अंत तक स्पष्ट रूप से नज़र आने लगे, लेकिन 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने निवेश लाने और सुदृढ़ नीतियां कायम करने के प्रयास शुरु कर दिए थे। भयंकर भूकंप और 2002 के दंगों के बादनरेन्‍द्र मोदी ने राज्य की विकास यात्रा में निजी क्षेत्र को सहभागी बनने के लिए विशेष प्रयास किए।

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उनकी सरकार ने वाइब्रेंट गुजरात इन्वेस्टमेंट समिट आयोजित की, जिसे बाद में विभिन्न सरकारों द्वारा विभिन्न स्वरूपों में अपनाया गया। गुजरात को अच्छे निवेश गंतव्य के रूप में प्रमोट करने के लिए वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की शुरुआत 2003 में बहुत ही छोटे स्तर पर हुई थी। पूरे राज्य, देश और विश्वभर के निवेशकों, उद्योगपतियों, टेक्नोलॉजी प्रोवाइडर, प्रोफेशनल्स और एक्सपर्ट को एक साथ लाने के लिए इस दि्ववर्षीय आयोजन की परिकल्पना की गई। इस समिट में देशों के साथ राज्य की साझेदारी उभरी और इस कार्यक्रम में भारत के ग्रोथइंजन के रूप में गुजरात उभरकर आया ।

यह बिजनेस समिट उन अन्य प्रदेशों और देशों के लिए भी एक मंच बना, जो एक-दूसरे के साथ व्यापार करना चाहते थे, जिसमें गुजरात को भूमिका निभानी है। अंतत: यह कार्यक्रम एक बिजनेस इवेन्ट से आगे बढ़कर नॉलेज-शेयरिंग (ज्ञान के आदान-प्रदान) का कार्यक्रम बन गया। कहने की ज़रूरत नहीं है किऐसे प्रयासों ने गुजरात को देश भर का पसंदीदा गंतव्य बना दिया और बड़े निवेशों को आकर्षित किया। इससे युवाओं के लिए रोजगार की संभावनाएं बढ़ी और उत्पादन में भी तेज़ी आई। नरेन्‍द्र मोदी ने निजी निवेशों तथा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में लाल फीताशाही को खत्म किया। जब उन्होंने गुजरात की जिम्मेदारी ली थी, तब सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की हालत ख़राब थी। लेकिन एक ही दशक में इन कंपनियों का कायापलट हो गया और आज कुछ कंपनियां तो मुनाफ़ा भी कमा रही हैं ।

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नरेन्‍द्र मोदी ने पुरस्कार प्राप्त करने वाली बीआरटीएस, बंदरगा या यहां तक कि बिजली क्षेत्र में सार्वजनिक निजी साझेदारी को बढावा देने के लिए निजी क्षेत्र को आमंत्रित किया।

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 इस तरह नरेन्‍द्र मोदी ने उद्योगों के प्रति उस रूढ़िवादी भारतीय सोच को दूर किया,जिसमें उन्हें संदेह की नज़र से देखा जाता था या फिर उन्हें एकाधिकार कायम करने और पूंजीवादी साम्राज्यवाद का दोषी माना जाता था। उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र और जनता के साथ साझेदारी करने के लिए निजी क्षेत्र की शक्ति को पहचाना और अंतत: जनता को लाभ पहुंचाया।

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जल जीवन मिशन के 6 साल: हर नल से बदलती ज़िंदगी
August 14, 2025
"हर घर तक पानी पहुंचाने के लिए जल जीवन मिशन, एक प्रमुख डेवलपमेंट पैरामीटर बन गया है।" - प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

पीढ़ियों तक, ग्रामीण भारत में सिर पर पानी के मटके ढोती महिलाओं का दृश्य रोज़मर्रा की बात थी। यह सिर्फ़ एक काम नहीं था, बल्कि एक ज़रूरत थी, जो उनके दैनिक जीवन का अहम हिस्सा थी। पानी अक्सर एक या दो मटकों में लाया जाता, जिसे पीने, खाना बनाने, सफ़ाई और कपड़े धोने इत्यादि के लिए बचा-बचाकर इस्तेमाल करना पड़ता था। यह दिनचर्या आराम, पढ़ाई या कमाई के काम के लिए बहुत कम समय छोड़ती थी, और इसका बोझ सबसे ज़्यादा महिलाओं पर पड़ता था।

2014 से पहले, पानी की कमी, जो भारत की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक थी; को न तो गंभीरता से लिया गया और न ही दूरदृष्टि के साथ हल किया गया। सुरक्षित पीने के पानी तक पहुँच बिखरी हुई थी, गाँव दूर-दराज़ के स्रोतों पर निर्भर थे, और पूरे देश में हर घर तक नल का पानी पहुँचाना असंभव-सा माना जाता था।

यह स्थिति 2019 में बदलनी शुरू हुई, जब भारत सरकार ने जल जीवन मिशन (JJM) शुरू किया। यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य हर ग्रामीण घर तक सक्रिय घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) पहुँचाना है। उस समय केवल 3.2 करोड़ ग्रामीण घरों में, जो कुल संख्या का महज़ 16.7% था, नल का पानी उपलब्ध था। बाकी लोग अब भी सामुदायिक स्रोतों पर निर्भर थे, जो अक्सर घर से काफी दूर होते थे।

जुलाई 2025 तक, हर घर जल कार्यक्रम के अंतर्गत प्रगति असाधारण रही है, 12.5 करोड़ अतिरिक्त ग्रामीण परिवारों को जोड़ा गया है, जिससे कुल संख्या 15.7 करोड़ से अधिक हो गई है। इस कार्यक्रम ने 200 जिलों और 2.6 लाख से अधिक गांवों में 100% नल जल कवरेज हासिल किया है, जिसमें 8 राज्य और 3 केंद्र शासित प्रदेश अब पूरी तरह से कवर किए गए हैं। लाखों लोगों के लिए, इसका मतलब न केवल घर पर पानी की पहुंच है, बल्कि समय की बचत, स्वास्थ्य में सुधार और सम्मान की बहाली है। 112 आकांक्षी जिलों में लगभग 80% नल जल कवरेज हासिल किया गया है, जो 8% से कम से उल्लेखनीय वृद्धि है। इसके अतिरिक्त, वामपंथी उग्रवाद जिलों के 59 लाख घरों में नल के कनेक्शन किए गए, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि विकास हर कोने तक पहुंचे। महत्वपूर्ण प्रगति और आगे की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय बजट 2025–26 में इस कार्यक्रम को 2028 तक बढ़ाने और बजट में वृद्धि की घोषणा की गई है।

2019 में राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किए गए जल जीवन मिशन की शुरुआत गुजरात से हुई है, जहाँ श्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में सुजलाम सुफलाम पहल के माध्यम से इस शुष्क राज्य में पानी की कमी से निपटने के लिए काम किया था। इस प्रयास ने एक ऐसे मिशन की रूपरेखा तैयार की जिसका लक्ष्य भारत के हर ग्रामीण घर में नल का पानी पहुँचाना था।

हालाँकि पेयजल राज्य का विषय है, फिर भी भारत सरकार ने एक प्रतिबद्ध भागीदार की भूमिका निभाई है, तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करते हुए राज्यों को स्थानीय समाधानों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने का अधिकार दिया है। मिशन को पटरी पर बनाए रखने के लिए, एक मज़बूत निगरानी प्रणाली लक्ष्यीकरण के लिए आधार को जोड़ती है, परिसंपत्तियों को जियो-टैग करती है, तृतीय-पक्ष निरीक्षण करती है, और गाँव के जल प्रवाह पर नज़र रखने के लिए IoT उपकरणों का उपयोग करती है।

जल जीवन मिशन के उद्देश्य जितने पाइपों से संबंधित हैं, उतने ही लोगों से भी संबंधित हैं। वंचित और जल संकटग्रस्त क्षेत्रों को प्राथमिकता देकर, स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों और स्वास्थ्य केंद्रों में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करके, और स्थानीय समुदायों को योगदान या श्रमदान के माध्यम से स्वामित्व लेने के लिए प्रोत्साहित करके, इस मिशन का उद्देश्य सुरक्षित जल को सभी की ज़िम्मेदारी बनाना है।

इसका प्रभाव सुविधा से कहीं आगे तक जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि JJM के लक्ष्यों को प्राप्त करने से प्रतिदिन 5.5 करोड़ घंटे से अधिक की बचत हो सकती है, यह समय अब शिक्षा, काम या परिवार पर खर्च किया जा सकता है। 9 करोड़ महिलाओं को अब बाहर से पानी लाने की ज़रूरत नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह भी अनुमान है कि सभी के लिए सुरक्षित जल, दस्त से होने वाली लगभग 4 लाख मौतों को रोक सकता है और स्वास्थ्य लागत में 8.2 लाख करोड़ रुपये की बचत कर सकता है। इसके अतिरिक्त, आईआईएम बैंगलोर और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, JJM ने अपने निर्माण के दौरान लगभग 3 करोड़ व्यक्ति-वर्ष का रोजगार सृजित किया है, और लगभग 25 लाख महिलाओं को फील्ड टेस्टिंग किट का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया गया है।

रसोई में एक माँ का साफ़ पानी से गिलास भरते समय मिलने वाला सुकून हो, या उस स्कूल का भरोसा जहाँ बच्चे बेफ़िक्र होकर पानी पी सकते हैं; जल जीवन मिशन, ग्रामीण भारत में जीवन जीने के मायने बदल रहा है।