मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार! ‘मन की बात’ का ये बारहवां एपिसोड है और इस हिसाब से देखें तो एक साल बीत गया। पिछले वर्ष, 3 अक्टूबर को पहली बार मुझे ‘मन की बात’ करने का सौभाग्य मिला था। ‘मन की बात’ - एक वर्ष, अनेक बातें। मैं नहीं जानता हूँ कि आपने क्या पाया, लेकिन मैं इतना ज़रूर कह सकता हूँ, मैंने बहुत कुछ पाया।
लोकतंत्र में जन-शक्ति का अपार महत्व है। मेरे जीवन में एक मूलभूत सोच रही है और उसके कारण जन-शक्ति पर मेरा अपार विश्वास रहा है। लेकिन ‘मन की बात’ ने मुझे जो सिखाया, जो समझाया, जो जाना, जो अनुभव किया, उससे मैं कह सकता हूँ कि हम सोचते हैं, उससे भी ज्यादा जन-शक्ति अपरम्पार होती है। हमारे पूर्वज कहा करते थे कि जनता-जनार्दन, ये ईश्वर का ही अंश होता है। मैं ‘मन की बात’ के मेरे अनुभवों से कह सकता हूँ कि हमारे पूर्वजों की सोच में एक बहुत बड़ी शक्ति है, बहुत बड़ी सच्चाई है, क्योंकि मैंने ये अनुभव किया है। ‘मन की बात’ के लिए मैं लोगों से सुझाव माँगता था और शायद हर बार दो या चार सुझावों को ही हाथ लगा पाता था। लेकिन लाखों की तादाद में लोग सक्रिय हो करके मुझे सुझाव देते रहते थे। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी शक्ति है, वर्ना प्रधानमंत्री को सन्देश दिया, mygov.in पर लिख दिया, चिठ्ठी भेज दी, लेकिन एक बार भी हमारा मौका नहीं मिला, तो कोई भी व्यक्ति निराश हो सकता है। लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगा।
हाँ... मुझे इन लाखों पत्रों ने एक बहुत बड़ा पाठ भी पढ़ाया। सरकार की अनेक बारीक़ कठिनाइयों के विषय में मुझे जानकारी मिलती रही और मैं आकाशवाणी का भी अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने इन सुझावों को सिर्फ एक कागज़ नहीं माना, एक जन-सामान्य की आकांक्षा माना। उन्होंने इसके बाद कार्यक्रम किये। सरकार के भिन्न-भिन्न विभागों को आकाशवाणी में बुलाया और जनता-जनार्दन ने जो बातें कही थीं, उनके सामने रखीं। कुछ बातों का निराकरण करवाने का प्रयास किया। सरकार के भी हमारे भिन्न-भिन्न विभागों ने, लोगों में इन पत्रों का analysis किया और वो कौन-सी बातें हैं कि जो policy matters हैं? वो कौन-सी बातें हैं, जो person के कारण परेशानी हैं? वो कौन-सी बातें हैं, जो सरकार के ध्यान में ही नहीं हैं? बहुत सी बातें grass-root level से सरकार के पास आने लगीं और ये बात सही है कि governance का एक मूलभूत सिद्धांत है कि जानकारी नीचे से ऊपर की तरफ जानी चाहिए और मार्गदर्शन ऊपर से नीचे की तरफ जाना चाहिये। ये जानकारियों का स्रोत, ‘मन की बात’ बन जाएगा, ये कहाँ सोचा था किसी ने? लेकिन ये हो गया।
और उसी प्रकार से ‘मन की बात’ ने समाज- शक्ति की अभिव्यक्ति का एक अवसर बना दिया। मैंने एक दिन ऐसे ही कह दिया था कि सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) और सारी दुनिया अचरज हो गयी, शायद दुनिया के सभी देशों से किसी-न-किसी ने लाखों की तादाद में सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) और बेटी को क्या गरिमा मिल गयी। और जब वो सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) करता था, तब अपनी बेटी का तो हौसला बुलंद करता था, लेकिन अपने भीतर भी एक commitment पैदा करता था। जब लोग देखते थे, उनको भी लगता था कि बेटियों के प्रति उदासीनता अब छोड़नी होगी। एक Silent Revolution था।
भारत के tourism को ध्यान में रखते हुए मैंने ऐसे ही नागरिकों को कहा था, “Incredible India”, कि भई, आप भी तो जाते हो, जो कोई अच्छी तस्वीर हो, तो भेज देना, मैं देखूंगा। यूँ ही हलकी-फुलकी बात की थी, लेकिन क्या बड़ा गज़ब हो गया! लाखों की तादाद में हिन्दुस्तान के हर कोने की ऐसी-ऐसी तस्वीरें लोगों ने भेजीं। शायद भारत सरकार के tourism ने, राज्य सरकार के tourism department ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि हमारे पास ऐसी-ऐसी विरासतें हैं। एक platform पर सब चीज़ें आयीं और सरकार का एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ। लोगों ने काम को बढ़ा दिया।
मुझे ख़ुशी तो तब हुई कि पिछले अक्टूबर महीने के पहले मेरी जो पहली ‘मन की बात’ थी, तो मैंने गाँधी जयंती का उल्लेख किया था और लोगों को ऐसे ही मैंने प्रार्थना की थी कि 2 अक्टूबर महात्मा गाँधी की जयंती हम मना रहे हैं। एक समय था, खादी फॉर नेशन (Khadi for Nation). क्या समय का तकाज़ा नहीं है कि खादी फॉर फैशन (Khadi for Fashion) - और लोगों को मैंने आग्रह किया था कि आप खादी खरीदिये। थोडा बहुत कीजिये। आज मैं बड़े संतोष के साथ कहता हूँ कि पिछले एक वर्ष में करीब-करीब खादी की बिक्री डबल हुई है। अब ये कोई सरकारी advertisement से नहीं हुआ है। अरबों-खरबों रूपए खर्च कर के नहीं हुआ है। जन-शक्ति का एक एहसास, एक अनुभूति।
एक बार मैंने ‘मन की बात’ में कहा था, गरीब के घर में चूल्हा जलता है, बच्चे रोते रहते हैं, गरीब माँ - क्या उसे gas cylinder नहीं मिलना चाहिए? और मैंने सम्पन्न लोगों से प्रार्थना की थी कि आप subsidy surrender नहीं कर सकते क्या? सोचिये... और मैं आज बड़े आनंद के साथ कहना चाहता हूँ कि इस देश के तीस लाख परिवारों ने gas cylinder की subsidy छोड़ दी है - और ये अमीर लोग नहीं हैं। एक TV channel पर मैंने देखा था कि एक retired teacher, विधवा महिला, वो क़तार में खड़ी थी subsidy छोड़ने के लिए। समाज के सामान्य जन भी, मध्यम वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग जिनके लिए subsidy छोड़ना मुश्किल काम है। लेकिन ऐसे लोगों ने छोड़ा। क्या ये Silent Revolution नहीं है? क्या ये जन-शक्ति के दर्शन नहीं हैं?
सरकारों को भी सबक सीखना होगा कि हमारी सरकारी चौखट में जो काम होता है, उस चौखट के बाद एक बहुत बड़ी जन-शक्ति का एक सामर्थ्यवान, ऊर्जावान और संकल्पवान समाज है। सरकारें जितनी समाज से जुड़ करके चलती हैं, उतनी ज्यादा समाज में परिवर्तन के लिए एक अच्छी catalytic agent के रूप में काम कर सकती हैं। ‘मन की बात’ में, मुझे सब जिन चीज़ों में मेरा भरोसा था, लेकिन आज वो विश्वास में पलट गया, श्रद्धा में पलट गया और इसलिये मैं आज ‘मन की बात’ के माध्यम से फिर एक बार जन-शक्ति को शत-शत वन्दन करना चाहता हूँ, नमन करना चाहता हूँ। हर छोटी बात को अपनी बना ली और देश की भलाई के लिए अपने-आप को जोड़ने का प्रयास किया। इससे बड़ा संतोष क्या हो सकता है?
‘मन की बात’ में इस बार मैंने एक नया प्रयोग करने के लिए सोचा। मैंने देश के नागरिकों से प्रार्थना की थी कि आप telephone करके अपने सवाल, अपने सुझाव दर्ज करवाइए, मैं ‘मन की बात’ में उस पर ध्यान दूँगा। मुझे ख़ुशी है कि देश में से करीब पचपन हज़ार से ज़्यादा phone calls आये। चाहे सियाचिन हो, चाहे कच्छ हो या कामरूप हो, चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी हो। हिन्दुस्तान का कोई भू-भाग ऐसा नहीं होगा, जहाँ से लोगों ने phone calls न किये हों। ये अपने-आप में एक सुखद अनुभव है। सभी उम्र के लोगों ने सन्देश दिए हैं। कुछ तो सन्देश मैंने खुद ने सुनना भी पसंद किया, मुझे अच्छा लगा। बाकियों पर मेरी team काम कर रही है। आपने भले एक मिनट-दो मिनट लगाये होंगे, लेकिन मेरे लिए आपका phone call, आपका सन्देश बहुत महत्वपूर्ण है। पूरी सरकार आपके सुझावों पर ज़रूर काम करेगी।
लेकिन एक बात मेरे लिए आश्चर्य की रही और आनंद की रही। वैसे ऐसा लगता है, जैसे चारों तरफ negativity है, नकारात्मकता है। लेकिन मेरा अनुभव अलग रहा। इन पचपन हज़ार लोगों ने अपने तरीके से अपनी बात बतानी थी। बे-रोकटोक था, कुछ भी कह सकते थे, लेकिन मैं हैरान हूँ, सारी बातें ऐसी ही थीं, जैसे ‘मन की बात’ की छाया में हों। पूरी तरह सकारात्मक, सुझावात्मक, सृजनात्मक - यानि देखिये देश का सामान्य नागरिक भी सकारात्मक सोच ले करके चल रहा है, ये तो कितनी बड़ी पूंजी है देश की। शायद 1%, 2% ऐसे फ़ोन हो सकते हैं जिसमें कोई गंभीर प्रकार की शिकायत का माहौल हो। वर्ना 90% से भी ज़्यादा एक ऊर्जा भरने वाली, आनंद देने वाली बातें लोगों ने कही हैं।
एक बात और ध्यान में मेरे आई, ख़ास करके specially abled - उसमें भी ख़ासकर के दृष्टिहीन अपने स्वजन, उनके काफी फ़ोन आये हैं। लेकिन उसका कारण ये होगा, शायद ये TV देख नहीं पाते, ये रेडियो ज़रूर सुनते होंगे। दृष्टिहीन लोगों के लिए रेडियो कितना बड़ा महत्वपूर्ण होगा, वो मुझे इस बात से ध्यान में आया है। एक नया पहलू मैं देख रहा हूँ, और इतनी अच्छी-अच्छी बातें बताई हैं इन लोगों ने और सरकार को भी संवेदनशील बनाने के लिए काफी है।
मुझे अलवर, राजस्थान से पवन आचार्य ने एक सन्देश दिया है, मैं मानता हूँ, पवन आचार्य की बात पूरे देश को सुननी चाहिए और पूरे देश को माननी चाहिए। देखिये, वो क्या कहना चाहते हैं, जरुर सुनिए – “मेरा नाम पवन आचार्य है और मैं अलवर, राजस्थान से बिलॉन्ग करता हूँ। मेरा मेसेज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से यह है कि कृपया आप इस बार ‘मन की बात’ में पूरे भारत देश की जनता से आह्वान करें कि दीवाली पर वो अधिक से अधिक मिट्टी के दियों का उपयोग करें। इस से पर्यावरण का तो लाभ होगा ही होगा और हजारों कुम्हार भाइयों को रोज़गार का अवसर मिलेगा। धन्यवाद।”
पवन, मुझे विश्वास है कि पवन की तरह आपकी ये भावना हिन्दुस्तान के हर कोने में जरुर पहुँच जाएगी, फैल जाएगी। अच्छा सुझाव दिया है और मिट्टी का तो कोई मोल ही नहीं होता है, और इसलिए मिट्टी के दिये भी अनमोल होते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से भी उसकी एक अहमियत है और दिया बनता है गरीब के घर में, छोटे-छोटे लोग इस काम से अपना पेट भरते हैं और मैं देशवासियों को जरुर कहता हूँ कि आने वाले त्योहारों में पवन आचार्य की बात अगर हम मानेंगे, तो इसका मतलब है, कि दिया हमारे घर में जलेगा, लेकिन रोशनी गरीब के घर में होगी।
मेरे प्यारे देशवासियो, गणेश चतुर्थी के दिन मुझे सेना के जवानों के साथ दो-तीन घंटे बिताने का अवसर मिला। जल, थल और नभ सुरक्षा करने वाली हमारी जल सेना हो, थल सेना हो या वायु सेना हो – Army, Air Force, Navy. 1965 का जो युद्ध हुआ था पाकिस्तान के साथ, उसको 50 वर्ष पूर्ण हुए, उसके निमित्त दिल्ली में इंडिया गेट के पास एक ‘शौर्यांजलि’ प्रदर्शनी की रचना की है। मैं उसे चाव से देखता रहा, गया था तो आधे घंटे के लिए, लेकिन जब निकला, तब ढाई घंटे हो गए और फिर भी कुछ अधूरा रह गया। क्या कुछ वहाँ नही था? पूरा इतिहास जिन्दा कर के रख दिया है। Aesthetic दृष्टि से देखें, तो भी उत्तम है, इतिहास की दृष्टि से देखें, तो बड़ा educative है और जीवन में प्रेरणा के लिए देखें, तो शायद मातृभूमि की सेवा करने के लिए इस से बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती है। युद्ध के जिन proud moments और हमारे सेनानियों के अदम्य साहस और बलिदान के बारे में हम सब सुनते रहते थे, उस समय तो उतने photograph भी available नहीं थे, इतनी videography भी नहीं होती थी। इस प्रदर्शनी के माध्यम से उसकी अनुभूति होती है।
लड़ाई हाजीपीर की हो, असल उत्तर की हो, चामिंडा की लड़ाई हो और हाजीपीर पास के जीत के दृश्यों को देखें, तो रोमांच होता है और अपने सेना के जवानों के प्रति गर्व होता है। मुझे इन वीर परिवारों से भी मिलना हुआ, उन बलिदानी परिवारों से मिलना हुआ और युद्ध में जिन लोगों ने हिस्सा लिया था, वे भी अब जीवन के उत्तर काल खंड में हैं। वे भी पहुँचे थे। और जब उन से हाथ मिला रहा था तो लग रहा था कि वाह, क्या ऊर्जा है, एक प्रेरणा देता था। अगर आप इतिहास बनाना चाहते हैं, तो इतिहास की बारीकियों को जानना-समझना ज़रूरी होता है। इतिहास हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। इतिहास से अगर नाता छूट जाता है, तो इतिहास बनाने की संभावनाओं को भी पूर्ण विराम लग जाता है। इस शौर्य प्रदर्शनी के माध्यम से इतिहास की अनुभूति होती है। इतिहास की जानकारी होती है। और नये इतिहास बनाने की प्रेरणा के बीज भी बोये जा सकते हैं। मैं आपको, आपके परिवारजनों को - अगर आप दिल्ली के आस-पास हैं - शायद प्रदर्शनी अभी कुछ दिन चलने वाली है, आप ज़रूर देखना। और जल्दबाजी मत करना मेरी तरह। मैं तो दो-ढाई घंटे में वापिस आ गया, लेकिन आप को तो तीन-चार घंटे ज़रूर लग जायेंगे। जरुर देखिये।
लोकतंत्र की ताकत देखिये, एक छोटे बालक ने प्रधानमंत्री को आदेश किया है, लेकिन वो बालक जल्दबाजी में अपना नाम बताना भूल गया है। तो मेरे पास उसका नाम तो है नहीं, लेकिन उसकी बात प्रधानमंत्री को तो गौर करने जैसी है ही है, लेकिन हम सभी देशवासियों को गौर करने जैसी है। सुनिए, ये बालक हमें क्या कह रहा है:
“प्रधानमंत्री मोदी जी, मैं आपको कहना चाहता हूँ कि जो आपने स्वच्छता अभियान चलाया है, उसके लिये आप हर जगह, हर गली में डस्टबिन लगवाएं।”
इस बालक ने सही कहा है। हमें स्वच्छता एक स्वभाव भी बनाना चाहिये और स्वच्छता के लिए व्यवस्थायें भी बनानी चाहियें। मुझे इस बालक के सन्देश से एक बहुत बड़ा संतोष मिला। संतोष इस बात का मिला, 2 अक्टूबर को मैंने स्वच्छ भारत को लेकर के एक अभियान को चलाने की घोषणा की, और मैं कह सकता हूँ, शायद आज़ादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ होगा कि संसद में भी घंटों तक स्वच्छता के विषय पर आजकल चर्चा होती है। हमारी सरकार की आलोचना भी होती है। मुझे भी बहुत-कुछ सुनना पड़ता है, कि मोदी जी बड़ी-बड़ी बातें करते थे स्वच्छता की, लेकिन क्या हुआ ? मैं इसे बुरा नहीं मानता हूँ। मैं इसमें से अच्छाई यह देख रहा हूँ कि देश की संसद भी भारत की स्वच्छता के लिए चर्चा कर रही है।
और दूसरी तरफ देखिये, एक तरफ संसद और एक तरफ इस देश का शिशु - दोनों स्वच्छता के ऊपर बात करें, इससे बड़ा देश का सौभाग्य क्या हो सकता है। ये जो आन्दोलन चल रहा है विचारों का, गन्दगी की तरफ नफरत का जो माहौल बन रहा है, स्वच्छता की तरफ एक जागरूकता आयी है - ये सरकारों को भी काम करने के लिए मजबूर करेगी, करेगी, करेगी! स्थानीय स्वराज की संस्थाओं को भी - चाहे पंचायत हो, नगर पंचायत हो, नगर पालिका हो, महानगरपालिका हो या राज्य हो या केंद्र हो - हर किसी को इस पर काम करना ही पड़ेगा। इस आन्दोलन को हमें आगे बढ़ाना है, कमियों के रहते हुए भी आगे बढ़ाना है और इस भारत को, 2019 में जब महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती हम मनायेंगे, महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने की दिशा में हम काम करें।
और आपको मालूम है, महात्मा गांधी क्या कहते थे? एक बार उन्होंने कहा है कि आज़ादी और स्वच्छता दोनों में से मुझे एक पसंद करना है, तो मैं पहले स्वच्छता पसंद करूँगा, आजादी बाद में। गांधी के लिए आजादी से भी ज्यादा स्वच्छता का महत्त्व था। आइये, हम सब महात्मा गांधी की बात को मानें और उनकी इच्छा को पूरी करने के लिए कुछ कदम हम भी चलें। दिल्ली से गुलशन अरोड़ा जी ने MyGov पर एक मेसेज छोड़ा है।
उन्होंने लिखा है कि दीनदयाल जी की जन्म शताब्दी के बारे में वो जानना चाहते हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो, महापुरुषों का जीवन सदा-सर्वदा हमारे लिए प्रेरणा का कारण रहता है। और हम लोगों का काम, महापुरुष किस विचारधारा के थे, उसका मूल्यांकन करना हमारा काम नहीं है। देश के लिये जीने-मरने वाले हर कोई हमारे लिये प्रेरक होते हैं। और इन दिनों में तो इतने सारे महापुरुषों को याद करने का अवसर आ रहा है, 25 सितम्बर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय, 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण जी, 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल - कितने अनगिनत नाम हैं, मैं तो बहुत कुछ ही बोल रहा हूँ, क्योंकि ये देश तो बहुरत्ना वसुंधरा है।
आप कोई भी date निकाल दीजिये, इतिहास के झरोखे से कोई-न-कोई महापुरुष का नाम मिल ही जाएगा। आने वाले दिनों में इन सभी महापुरुषों को हम याद करें, उनके जीवन का सन्देश हम घर-घर तक पहुंचायें और हम भी उनसे कुछ-न-कुछ सीखने का प्रयास करें।
मैं विशेष करके 2 अक्टूबर के लिए फिर से एक बार आग्रह करना चाहता हूँ। 2 अक्टूबर पूज्य बापू महात्मा गांधी की जन्म-जयन्ती है। मैंने गत वर्ष भी कहा था कि आपके पास हर प्रकार के fashion के कपड़े होंगे, हर प्रकार का fabric होगा, बहुत सी चीजें होंगी, लेकिन उसमें एक खादी का भी स्थान होना चाहिये। मैं एक बार फिर कहता हूँ कि 2 अक्टूबर से लेकर के एक महीने भर खादी में रियायत होती है, उसका फायदा उठाया जाए। और खादी के साथ-साथ handloom को भी उतना ही महत्व दिया जाये। हमारे बुनकर भाई इतनी मेह्नत करते हैं, हम सवा सौ करोड़ देशवासी 5 रूपया, 10 रुपया, 50 रूपया की भी कोई हैंडलूम की चीज़, कोई खादी की चीज़ ख़रीद लें, ultimately वो पैसा, वो गरीब बुनकर के घर में जायेगा। खादी बनाने वाली ग़रीब विधवा के घर में जायेगा। और इसलिए इस दीवाली में हम खादी को ज़रुर अपने घर में जगह दें, अपने शरीर पर जगह दें। मैं कभी ये आग्रह नहीं करता हूँ कि आप पूर्ण रूप से खादीधारी बनें! कुछ – बस, इतना ही आग्रह है मेरा। और देखिये, पिछली बार क़रीब-क़रीब बिक्री को double कर दिया। कितने ग़रीबों का फ़ायदा हुआ है। जो काम सरकार अरबों-खरबों रूपये के advertisement से नहीं कर सकती है, वो आप लोगों ने छोटे से मदद से कर दी। यही तो जनशक्ति है। और इसलिए मैं फिर से एक बार उस काम के लिए आपको आग्रह करता हूँ।
प्यारे देशवासियो, मेरा मन एक बात से बहुत आनंद से भर गया है। मन करता है, इस आनंद का आपको भी थोड़ा स्वाद मिलना चाहिये। मैं मई महीने में कोलकाता गया था और सुभाष बोस के परिवारजन मिलने आये थे। उनके भतीजे चंद्रा बोस ने सब organize किया था। काफी देर तक सुभाष बाबू के परिवारजनों के साथ हंसी-खुशी की शाम बिताने का मुझे अवसर मिला था। और उस दिन ये तय किया था कि सुभाष बाबू का वृहत परिवार प्रधानमंत्री निवास-स्थान पर आये। चंद्रा बोस और उनके परिवारजन इस काम में लगे रहे थे और पिछले हफ्ते मुझे confirmation मिला कि 50 से अधिक सुभाष बाबू के परिवारजन प्रधानमंत्री निवास-स्थान पर आने वाले हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, मेरे लिए कितनी बड़ी खुशी का पल होगा! नेताजी के परिवारजन, शायद उनके जीवन में पहली बार सबको मिलकर के एक साथ प्रधानमंत्री निवास जाने का अवसर आया होगा। लेकिन उससे ज्यादा मेरे लिए खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री निवास-स्थान में ऐसी मेहमाननवाज़ी का सौभाग्य कभी भी नहीं आया होगा, जो मुझे अक्टूबर में मिलने वाला है। सुभाष बाबू के 50 से अधिक - और सारे परिवार के लोग अलग-अलग देशों में रहते हैं - सब लोग खास आ रहे हैं। कितना बड़ा आनंद का पल होगा मेरे लिए। मैं उनके स्वागत के लिए बहुत खुश हूँ, बहुत ही आनंद की अनुभूति कर रहा हूँ।
एक सन्देश मुझे भार्गवी कानड़े की तरफ से मिला और उसका बोलने का ढंग, उसकी आवाज़, ये सब सुन करके मुझे ये लगा, वो ख़ुद भी लीडर लगती है और शायद लीडर बनने वाली होगी, ऐसा लगता है।
“मेरा नाम भार्गवी कानड़े है। मैं प्रधानमंत्री जी से ये निवेदन करना चाहती हूँ कि आप युवा पीढ़ी को voters registration के बारे में जागृत करें, जिससे आने वाले समय में युवा पीढ़ी का सहभाग बढ़े और भविष्य में युवा पीढ़ी का महत्वपूर्ण सहयोग सरकार चुनने में हो और चलाने में भी हो सके। धन्यवाद।”
भार्गवी ने कहा है कि मतदाता सूची में नाम register करवाने की बात और मतदान करने की बात। आपकी बात सही है। लोकतंत्र में हर मतदाता देश का भाग्यविधाता होता है और ये जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है। मतदान का परसेंटेज भी बढ़ रहा है। और मैं इसके लिए भारत के चुनाव आयोग को विशेष रूप से बधाई देना चाहता हूँ। कुछ वर्ष पहले हम देखते थे कि हमारा Election Commission एक सिर्फ़ regulator के रूप में काम कर रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसमें बहुत बड़ा बदलाव आया है। आज हमारा Election Commission सिर्फ़ regulator नहीं रहा है, एक प्रकार से facilitator बन गया है, voter-friendly बन गया है और उनकी सारी सोच, सारी योजनाओं में मतदाता उनके केंद्र में रहता है। ये बहुत अच्छा बदलाव आया है। लेकिन सिर्फ़ चुनाव आयोग काम करता रहे, इससे चलने वाला नहीं है। हमें भी स्कूल में, कॉलेज में, मोहल्ले में, ये जागृति का माहौल बनाये रखना चाहिये - सिर्फ़ चुनाव आये, तब जागृति हो, ऐसा नहीं। मतदाता सूची अपग्रेड होती रहनी चाहिये, हमें भी देखते रहना चाहिये। मुझे अमूल्य जो अधिकार मिला है, वो मेरा अधिकार सुरक्षित है कि नहीं, मैं अधिकार का उपयोग कर रहा हूँ कि नहीं कर रहा हूँ, ये आदत हम सबको बनानी चाहिये। मैं आशा करता हूँ, देश के नौजवान अगर मतदाता सूची में register नहीं हुए हैं, तो उन्हें होना चाहिये और मतदान भी अवश्य करना चाहिये। और मैं तो चुनावों के दिनों में publicly कहा करता हूँ कि पहले मतदान, फिर जलपान। इतना पवित्र काम है, हर किसी ने करना चाहिये।
परसों मैं काशी का भ्रमण करके आया। बहुत लोगों से मिला, बहुत सारे कार्यक्रम हुए। इतने लोगों से मिला, लेकिन दो बालक, जिनकी बात मैं आपसे करना चाहता हूँ। एक मुझे क्षितिज पाण्डेय करके 7वीं कक्षा का छात्र मिला। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में केंद्रीय विद्यालय में वो 7वीं कक्षा में पढ़ता है। वैसे है बड़ा तेजतर्रार। उसका confidence level भी बड़ा गज़ब है| लेकिन इतनी छोटी आयु में Physics के अनुसंधान में उसकी रूचि मैंने देखी। मुझे लगा कि बहुत-कुछ वो पढ़ता होगा, internet surfing करता होगा, नये-नये प्रयोग देखता होगा, Rail Accidents कैसे रोके जाएँ, कौन सी technology हो, energy में खर्चा कैसे कम हो, Robots में feelings कैसे आये, न-जाने क्या-क्या बातें बता रहा था। बड़ा गज़ब का था, भाई! खैर, मैं बारीकी से उसका ये तो नहीं देख पाया कि वो जो कह रहा है, उसमें कितनी बारीकी है, क्या है, लेकिन उसका confidence level, उसकी रुचि, और मैं चाहता हूँ कि हमारे देश के बालकों की विज्ञान के प्रति रुचि बढ़नी चाहिये। बालक के मन में लगातार सवाल उठने चाहिये - क्यों? कैसे? कब? ये बालक मन से पूछना चाहिये।
वैसे ही मुझे सोनम पटेल, एक बहुत ही छोटी बालिका से मिलना हुआ। 9 साल की उम्र है। वाराणसी के सुन्दरपुर निवासी सदावृत पटेल की वो एक बेटी, बहुत ही गरीब परिवार की बेटी है। और मैं हैरान था कि बच्ची, पूरी गीता उसको कंठस्थ है। लेकिन सबसे बड़ी बात मुझे ये लगी कि जब मैंने उसको पूछा, तो वो श्लोक भी बताती थी, अंग्रेजी में interpretation करती थी, उसकी परिभाषा करती थी, हिन्दी में परिभाषा करती थी। मैंने उनके पिताजी को पूछा, तो बोले, वो पांच साल की उम्र से बोल रही है। मैंने कहा, कहाँ सीखा? बोले, हमें भी मालूम नहीं है। तो मैंने कहा, और पढ़ाई में क्या हाल है, सिर्फ़ गीता ही पढ़ती रहती है और भी कुछ करती है? तो उन्होंने कहा, नहीं जी, वो Mathematics एक बार हाथ में ले ले, तो शाम को उसको सब मुखपाठ होता है। History ले ले, शाम को सब याद होता है। बोले, हम लोगों के लिए भी आश्चर्य है, पूरे परिवार में कि कैसे उसके अंदर है। मैं सचमुच में बड़ा प्रभावित था। कभी कुछ बच्चों को celebrity का शौक हो जाता है, ऐसा ही सोनम में कुछ नहीं था। अपने आप में ईश्वर ने कोई शक्ति ज़रूर दी है, ऐसा लग रहा था मुझे।
खैर इन दोनों बच्चे, मेरी काशी यात्रा में एक विशेष मेरी मुलाक़ात थी। तो मुझे लगा, आपसे भी बता दूं। TV पर जो आप देखते हैं, अखबारों में पढ़ते हैं, उसके सिवाय भी बहुत सारे काम हम करते हैं। और कभी-कभी ऐसे कामों का कुछ आनंद भी आता है। वैसा ही, इन दो बालकों के साथ, मेरी बातचीत मेरे लिए यादगार थी।
मैंने देखा है कि ‘मन की बात’ में कुछ लोग मेरे लिए काफी कुछ काम लेकर के आते हैं। देखिये, हरियाणा के संदीप क्या कह रहे हैं – “संदीप, हरियाणा। सर, मैं चाहता हूँ कि आप जो ‘मन की बात’ ये महीने में एक बार करते हैं, आपको वीकली करनी चाहिए, क्योंकि आपकी बात से बहुत प्रेरणा मिलती है।”
संदीप जी, आप क्या-क्या करवाओगे मेरे पास? महीने में एक बार करने के लिए भी मुझे इतनी मशक्कत करनी पड़ती है, समय का इतना adjust करना पड़ता है। कभी-कभी तो हमारे आकाशवाणी के सारे हमारे साथियों को आधा-आधा पौना-पौना घंटा मेरा इंतजार करके बैठे रहना पड़ता है। लेकिन मैं आपकी भावना का आदर करता हूँ। आपके सुझाव के लिए मैं आपका आभारी हूँ। अभी तो एक महीने वाला ही ठीक है।
‘मन की बात’ का एक प्रकार से एक साल पूरा हुआ है। आप जानते हैं, सुभाष बाबू रेडियो का कितना उपयोग करते थे? जर्मनी से उन्होंने अपना रेडियो शुरू किया था। और हिन्दुस्तान के नागरिकों को आज़ादी के आन्दोलन के सम्बन्ध में वो लगातार रेडियो के माध्यम से बताते रहते थे। आज़ाद हिन्द रेडियो की शुरुआत एक weekly News Bulletin से उन्होंने की थी। अंग्रेजी, हिन्दी, बंगाली, मराठी, पंजाबी, पश्तो, उर्दू - सभी भाषाओं में ये रेडियो वो चलाते थे।
मुझे भी अब आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ करते-करते अब एक साल हो गया है। मेरे मन की बात आपके कारण सच्चे अर्थ में आपके मन की बात बन गयी है। आपकी बातें सुनता हूँ, आपके लिए सोचता हूँ, आपके सुझाव देखता हूँ, उसी से मेरे विचारों की एक दौड़ शुरू हो जाती है, जो आकाशवाणी के माध्यम से आपके पास पहुँचती है। बोलता मैं हूँ, लेकिन बात आपकी होती है और यही तो मेरा संतोष है। अगले महीने ‘मन की बात’ के लिए फिर से मिलेंगे। आपके सुझाव मिलते रहें। आपके सुझावों से सरकार को भी लाभ होता है। सुधार की शुरुआत होती है। आपका योगदान मेरे लिए बहुमूल्य है, अनमोल है।
फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनायें। धन्यवाद।
Citizens Agree With Dream Big, Innovate Boldly: PM Modi's Inspiring Diplomacy and National Pride
8 mins👏
— 🇮🇳 Sangitha Varier 🚩 (@VarierSangitha) December 18, 2025
Unbelievable scenes!
A historic,standing ovation for our Hon #PM @narendramodi Ji
His disarming,effortless leadership connection&inclusive,holistic approach has made him a once in a lifetime global spearhead across nations,ethnicity,faith & ideology.#PMModiInEthiopia pic.twitter.com/rTJpoNjw25
Under #PM's visionary leadership, #India-#Oman ties reach new heights! His Muscat Business Forum address invites investments, boosting innovation & growth. Strategic outreach strengthens bonds for shared prosperity. Proud of Modi's diplomacy! pic.twitter.com/BRw4UK4eaU
— Manika Rawat (@manikarawa46306) December 18, 2025
India is on a positive wave length to becoming electronic powerhouse, under d leadership of PM Modi. Electronic exports have surged eightfold in d last 10yrs. Many countries recognise &use UPI as digital payments. In 2023-24, IT exports reached $ 200 billion.! #GharGharSwadeshi pic.twitter.com/0OKZwX4bqW
— Rukmani Varma 🇮🇳 (@pointponder) December 18, 2025
A Gesture Reflecting Deep Friendship!
— Zahid Patka (Modi Ka Parivar) (@zahidpatka) December 18, 2025
RARE & UNPRECEDENTED GESTURE
Royal farewell: Ethiopian PM drives PM @narendramodi Ji to the airport ahead of his onward journey to Oman symbolising warmth, trust, and the close bond between the leaders.https://t.co/VTsAedE8Vh@PMOIndia pic.twitter.com/fdrOQBKpFn
PM @narendramod Ji , Mr Worldwide indeed! From G20 success to Oman bilateral triumphs, his diplomacy puts India first on global stage. Grateful for the affectionate welcome reflecting enduring bonds. More power to our beloved PM! #PMModiInOman
— Satvik Thakur (@SatvikThak74563) December 18, 2025
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की अफ्रीका यात्राओं ने भारत-अफ्रीका संबंधों को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। इथियोपिया से घाना तक की यात्राएँ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत कर रही हैं। 11 वर्षों में 28 सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिले, जो भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा का प्रमाण हैं। pic.twitter.com/Tpwrm6nvcT
— Raushan (@raushan_jai) December 18, 2025
Grateful to PM @narendramodi Ji for #SHANTIBILL2025, a game-changer for energy independence! Harnessing India's thorium reserves, creating high-skill jobs & upholding global safety norms. Modi's decisive action powers tomorrow's India! #ViksitBharat pic.twitter.com/Lc67wPG3S1
— SatyaMalik (@Satyamalik247) December 18, 2025
Big shoutout to Modi ji! Even with US tariffs and world slowdown, Gita Gopinath expects India at nearly 7% growth. His smart moves on economy are why we're the brightest spot globally. Proud Indian today!#ModiHaiToMumkinHaihttps://t.co/FbV8cxazC0
— Harshit (@Harshit80048226) December 18, 2025
Dear Prime Minister @narendramodi
— Chandani (@Chandani_ya) December 18, 2025
Ji, your words in Oman are pure gold: "Dream big. Learn deeply. Innovate boldly." Yaar this is the motivation every Indian kid needs right now! You're shaping the future of millions. So grateful sir! #MyPMmyPride pic.twitter.com/ccH4aR7vE3


