पिछली शताब्दियों में मानवता ने जो चुनाव किए हैं, वे हमें एक खाई में ले आए हैं। जिस तरह से हमने अपनी अर्थव्यवस्थाओं, पर्यावरण और इकोलॉजी, अपनी शिक्षा और सामाजिक व्यवस्थाओं, अपने युवाओं और अगली पीढ़ी के पालन-पोषण का संचालन किया है... इन सबने हमें इस परिवर्तनशील अवस्था की ओर तेज़ी से बढ़ाया है और दुनिया को एक कगार पर ला खड़ा किया है। युद्ध के अनगिनत क्षेत्र, अस्थिर आर्थिक ढाँचे, तेज़ी से बिगड़ती इकोलॉजी और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि, मानसिक स्वास्थ्य महामारी और कई समाजों में मादक पदार्थों पर निर्भरता का संकट, ये सब इसके प्रमाण हैं।
यह विनाश और निराशा की तस्वीर पेश करने के लिए नहीं है। परिवर्तनशील अवस्था, संभावनाओं की अवस्था है - आज हम जो चुनाव करते हैं, वे हमें या तो जबरदस्त परिवर्तन या पतन की ओर ले जा सकते हैं। 8.5 अरब की आबादी के साथ, हम एक अनियंत्रित प्रजाति हैं - अभी तक चेतना के उस स्तर पर नहीं पहुँचे हैं जो हमें सामूहिक, एकीकृत निर्णय लेने की अनुमति दे।
हम समग्रता को चलाने के लिए सरकारों, कानूनों और नेतृत्व पर निर्भर हैं। ऐसे मोड़ पर, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम अपने लिए किस प्रकार के नेतृत्व की व्यवस्था करते हैं। यदि हम पृथ्वी के लिए एक स्थायी और सुंदर भविष्य चाहते हैं, तो हमें वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श की सत्यता को समझना होगा।
यह उचित ही है कि भारत, जिसने सदैव समावेशिता के इस दृष्टिकोण को प्रतिष्ठित किया है, ने अपने लिए नरेन्द्र मोदी के रूप में एक ऐसे नेता को चुना है जो मूलतः उन्हीं मूल्यों को साझा करता है। कई मायनों में, भारत ने एक ऐसे नेता को प्रकट किया है जो उसके मूल लोकाचार, उसके अंतर्निहित संस्कारों के साथ प्रतिध्वनित होता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है - इसलिए नहीं कि समावेशिता ही 'धर्मी मार्ग' प्रतीत होती है, बल्कि इसलिए कि आगे बढ़ते हुए, समावेशिता ही एकमात्र मार्ग है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने विश्व मंच पर एक अधिक समावेशी और सहयोगी मानवता के लिए बार-बार रोडमैप प्रस्तुत किया है। जी20 में अफ्रीकन-यूनियन के स्वागत में भारत की भूमिका, ग्लोबल-साउथ का हमारा नेतृत्व, नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों को बड़े पैमाने पर आपस में जोड़ने के लिए भारत द्वारा प्रस्तावित ‘One World, One Sun, One Grid’ पहल, हमारी neighborhood-first policy या संकट के दौरान First-Responder राष्ट्र के रूप में हमारी प्रशंसा, महामारी के दौरान 96 देशों को हमारी मानवीय सहायता - इन सब में, भारत ने निर्विवाद रूप से सिद्ध कर दिया है कि कर्म ही बोलते हैं, कि हम अदूरदर्शी व्यक्तिगत लाभों से अधिक मानवता को महत्व देते हैं।
समावेशिता का यह गुण नरेन्द्र भाई की नेतृत्व शैली में भी स्पष्ट दिखाई देता है। मन की बात पहल गवर्नेंस की विशाल मशीनरी में एक छोटी सी बात लग सकती है, लेकिन यह एक गहरा अर्थ रखती है। आम नागरिक से सीधा जुड़ाव बनाकर, वह उनके साथ जुड़ पाते हैं, उनकी कहानियों, संघर्षों और योगदानों का जश्न मनाते हैं। यह उन्हें हमारे लोगों की वास्तविक स्थिति से जोड़े रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि उनका शासन उसी के अनुरूप हो।
मैं योग को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में लाने में उनकी भूमिका की तहे दिल से सराहना करता हूँ। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा का नेतृत्व करके, उन्होंने योग के प्रति रुचि में अभूतपूर्व वृद्धि में योगदान दिया है और इससे होने वाले कल्याण को रेखांकित किया है। यह इस समय अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि योग की तकनीकें आज मानव जाति के सामने आने वाली मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक चुनौतियों का समाधान हैं। भारत का यह सभ्यता-राज्य अपनी वास्तविक क्षमता को साकार करने और एक गौरवशाली भविष्य की ओर लक्ष्य करने के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है।
हालाँकि, एक राष्ट्र के रूप में, हमें अभी भी बहुत कुछ करना है। भावी पीढ़ी का पोषण हमारे विकास की कुंजी है। हम नहीं चाहते कि भारत – अपनी बढ़ती युवा आबादी के साथ – अवसर के इस उपजाऊ दौर को गँवा दे।
अब समय आ गया है कि हम उन अधूरे आदर्शों की आखिरी बेड़ियाँ तोड़ दें जिन्होंने पिछले दशकों को जकड़ रखा था, और भारत के नागरिकों को अपने भविष्य के निर्माता बनने के लिए आमंत्रित करें।
इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर AI तक, व्यापार से लेकर रक्षा तक, शिक्षा से लेकर उद्योग तक, हमें जनता को सुपरसोनिक गति से आगे बढ़ाने का दायित्व सौंपना होगा। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान शासन व्यवस्था इस विश्वास को प्रदर्शित कर रही है, लेकिन असली परीक्षा जनता द्वारा इस विश्वास को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करने और अपनी क्षमता सिद्ध करने की है।
भारत में न केवल अपने 'सच्चे गौरव' के युग में प्रवेश करने की क्षमता है, बल्कि वह मानवता को भी इसमें ले जा सकता है। हमारे पास शीर्ष पर एक योग्य, साहसी और निस्वार्थ व्यक्ति है, लेकिन हमें याद रखना चाहिए - एक राष्ट्र सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं है, यह उसके लोग होते हैं। यह भारत के नागरिकों पर निर्भर करता है कि वे सुशासन और अवसरों के इस मंच का उपयोग कर वह स्वर्णिम भविष्य बनाएं जो हम चाहते हैं।
आइए इसे साकार करें!


