21वीं सदी में, भारत ने नई विश्व व्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वैश्विक राजनीति अब बहुध्रुवीय हो गई है, कोई भी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समूह भारत की उपस्थिति के बिना पूर्ण महसूस नहीं करता है। आपदा राहत से लेकर वैश्विक नीतिगत सहमति बनाने तक, दुनिया भारत की ओर देखती है।

पिछले दशक में भारत के ग्लोबल लीडर के रूप में उभरने के पीछे, दूरदर्शी हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी हैं।

चाहे वह रूस-यूक्रेन संघर्ष में मध्यस्थता करना हो या पश्चिम एशिया में संकटों को संबोधित करना हो, पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत अंतर्राष्ट्रीय मामलों को सुलझाने के केंद्र में रहा है।

आज भारतीय और विश्व शक्तियां दोनों समान रूप से इस विश्वास पर भरोसा करते हैं कि "यदि पीएम मोदी केंद्र में हैं, तो कुछ भी संभव है", उनके नेतृत्व को समाधान की 'गारंटी' के रूप में देखते हैं।

भारत के संदर्भ में पीएम मोदी को आधुनिक समय के 'भगीरथ' के रूप में देखा जाता है, जो राष्ट्र को लक्ष्य प्राप्त करने, चुनौतियों का समाधान करने और आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

चाहे वह सुदूर खेत में काम करने वाली महिला किसान हो, तकनीकी कंपनी में काम करने वाला युवा उद्यमी हो, देश की सीमाओं की रक्षा करने वाला सैनिक हो, या विदेश में रहने वाला भारतीय हो, सभी का पीएम की नीतियों, दृष्टिकोण और निर्णयों में अटूट विश्वास है। यह ट्रस्ट प्रधानमंत्री को साहसिक और निर्णायक कदम उठाने का अधिकार देता है।

एक प्रमुख उदाहरण अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त करना है, जिसे कभी असंभव माना जाता था। शुरुआत में विरोध हुआ, लेकिन आज धारा 370 और 35ए आज इतिहास बन गए हैं। मोदी के दृढ़ संकल्प ने कश्मीर में "दो झंडे, दो संविधान" के युग को समाप्त कर दिया है।

अब, अशांति के बजाय हम प्रगति देख रहे हैं, नए उद्योग उभर रहे हैं, और एफिल टॉवर से भी ऊंचे चिनाब रेलवे पुल जैसे इंजीनियरिंग के कारनामे साकार हो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर अब विकास के पथ पर है और दुनिया देख रही है। इस नए कश्मीर के लोग आगामी विधानसभा चुनावों के लिए तैयार हैं, जहां प्रधानमंत्री के राष्ट्रवाद, सुशासन और विकास के दृष्टिकोण की जीत तय है।

प्रधानमंत्री ने भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की अलख जगाई है। 500 साल के इंतजार के बाद, अयोध्या में भव्य नए मंदिर में श्री राम लला की प्रतिष्ठा और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आकांक्षाएं साकार हुई हैं।

2014 के बाद से, भारत ने खुद को जातिवाद, भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण पर पनपने वाले राजनीतिक दलों की पकड़ से मुक्त कर लिया है। सरकारी योजनाओं के पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त क्रियान्वयन से आम लोगों के दैनिक जीवन में काफी सुधार हुआ है।

इस बदलाव के पीछे 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास' के सिद्धांत से प्रेरित नई कार्य संस्कृति है। इस दर्शन के मूल में, जिसका लक्ष्य 'अंत्योदय से सर्वोदय' (अंतिम व्यक्ति के उत्थान से सभी का उत्थान) है, हाशिये पर पड़े लोगों को दी जाने वाली प्राथमिकता है। पहली बार, कृषि और किसान राजनीतिक चर्चा के केंद्र में आ गए हैं, फसल बीमा, MSP, सब्सिडी और मशीनीकृत खेती जैसी योजनाओं का लाभ बिना किसी भेदभाव के किसानों तक पहुंच रहा है।

प्रधानमंत्री ने लोगों को और अधिक की आकांक्षा करने के लिए प्रेरित किया है, जिससे प्रत्येक भारतीय को इस 'अमृत काल' के दौरान देश के विकास में सक्रिय रूप से भाग लेने का मौका मिला है। प्रधानमंत्री ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले तीन महीनों के भीतर दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए, 70 वर्ष से अधिक उम्र के सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए आयुष्मान स्वास्थ्य कवरेज का विस्तार किया और सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए 'एकीकृत पेंशन योजना' की शुरुआत की।

पिछले एक दशक में, JAM- जन धन, आधार और मोबाइल- के कार्यान्वयन ने सिस्टैमिक करप्शन को खत्म कर दिया है, जिससे यह सुनिश्चित हो गया है कि आम आदमी को सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिले। पीएम मोदी ने JAM को "खर्च किए गए प्रत्येक रुपये पर अधिकतम रिटर्न" देने वाला बताया, जिसका फोकस गरीबों को सशक्त बनाने और प्रौद्योगिकी को पूरी आबादी में व्यापक रूप से फैलाने पर है।

अकेले उत्तर प्रदेश में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से सिर्फ 11 विभागों में 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की बचत की गई है। टेक्नोलॉजी के उपयोग ने न केवल जीवन को आसान बनाया है बल्कि सरकार को न्यूनतम समय में अधिकतम परिणाम प्राप्त करने में भी सक्षम बनाया है। यूपीआई, डिजीलॉकर और डिजीयात्रा जैसे प्लेटफॉर्म आम नागरिकों के जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं।

बढ़ती पर्यावरणीय चुनौतियों के बीच, वैश्विक समुदाय तेजी से यह स्वीकार कर रहा है कि सतत विकास सच्ची प्रगति नहीं है और इससे मानवता को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यह समझ प्राचीन भारतीय दर्शन के अनुरूप है, जिसने हमेशा प्रकृति और पर्यावरण को उच्च महत्व दिया है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत पर्यावरण संरक्षण का वैश्विक समर्थक और संरक्षक बन गया है।

प्रधानमंत्री के 'पंचामृत' और 'लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट' (LiFE) अभियानों ने भारत को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक रोल मॉडल के रूप में स्थापित किया है। पिछले एक दशक में, भारत की स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में 2300% की वृद्धि हुई है, 2014 के बाद से सौर ऊर्जा की लागत में 70-80% की गिरावट आई है। प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना जैसी पहल के माध्यम से, देश अब नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से लाभान्वित हो रहा है, जो एक स्थायी भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।


कई प्रमुख देश अभी भी कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी घटनाओं से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे हैं, प्रधानमंत्री की कूटनीतिक कौशल और वित्तीय विशेषज्ञता के कारण, भारत न केवल इस कठिन समय से उबर गया है, बल्कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। वह क्षण तेजी से नजदीक आ रहा है जब भारत तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनेगा।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अपने नवीनतम वैश्विक विकास अनुमानों में भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में मान्यता दी है। आज दुनिया भारत को एक आकर्षक इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में देखती है। आर्थिक हित में इस उछाल से उत्तर प्रदेश सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक रहा है।

पिछले सप्ताह यूपी में आयोजित 'सेमीकॉन इंडिया' सम्मेलन ने सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग के लिए ग्लोबल हब बनने की भारत की यात्रा की औपचारिक शुरुआत की। लाल किले से पीएम ने ऐलान किया था, ''मेरा सपना है कि दुनिया के हर डिवाइस में भारत में बनी चिप हो।'' देश खुद को सेमीकंडक्टर पावरहाउस के रूप में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है।


प्रधानमंत्री की "सिलिकॉन डिप्लोमेसी" के साथ, भारत सेमीकंडक्टर उत्पादन में ग्लोबल लीडर बनने की ओर अग्रसर है।

यह दैवीय संयोग है कि देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की जयंती हमारे प्रधानमंत्री के जन्मदिन के साथ ही पड़ती है। आज, भारत भविष्य की आकांक्षाओं की नींव पर एक गौरवशाली वर्तमान गढ़ रहा है, एक ग्लोबल लीडर की भूमिका निभा रहा है, जिसमें पीएम मोदी इस 'अमृत नव निर्माण' के दूरदर्शी वास्तुकार हैं। हमें विश्वास है कि जनभागीदारी से 'विकसित एवं आत्मनिर्भर नये भारत' के निर्माण का उनका संकल्प साकार होगा।

(लेखक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं। व्यक्त विचार निजी हैं)

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भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार
September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)