राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सभी भारतीयों को स्वतंत्रता दिवस की बधाई दी
आधुनिक भारत का उदय एक ऐतिहासिक हर्षोल्लास का क्षण था; परंतु यह अकल्पनीय पीड़ा के रक्त से भी रंजित था: राष्ट्रपति
भारत की प्रगति को हमारे मूल्यों, आर्थिक विकास और राष्ट्र के संसाधनों के समान वितरण के आधार पर मापा जाएगा: राष्ट्रपति मुखर्जी
हमारी नीतियां ऐसे मापदंड पर निर्धारित होनी चाहिए जो निकट भविष्य में ‘भूख से मुक्ति’ की चुनौती का सामना कर सके : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
हमारा लोकतंत्र रचनात्मक है क्योंकि यह बहुलवादी है, परंतु इस विविधता को सहिष्णुता और धैर्य के साथ आगे बढ़ाना होगा: राष्ट्रपति

प्यारे देशवासियो :

हमारी स्वतंत्रता की 68वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर, मैं आपका और विश्व भर के सभी भारतवासियों का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों का विशेष अभिनंदन करता हूं। मैं, अपने उन सभी खिलाड़ियों को भी बधाई देता हूँ जिन्होंने भारत तथा दूसरे देशों में आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया और पुरस्कार जीते। मैं, 2014 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी को बधाई देता हूं, जिन्होंने देश का नाम रौशन किया।

मित्रो :

2. 15 अगस्त, 1947 को, हमने राजनीतिक स्वतंत्रता हासिल की। आधुनिक भारत का उदय एक ऐतिहासिक हर्षोल्लास का क्षण था; परंतु यह देश के एक छोर से दूसरे छोर तक अकल्पनीय पीड़ा के रक्त से भी रंजित था। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध महान संघर्ष के इस पूरे दौर में जो आदर्श तथा विश्वास कायम रहे वे अब दबाव में थे।

3. महानायकों की एक महान पीढ़ी ने इस विकट चुनौती का सामना किया। उस पीढ़ी की दूरदर्शिता तथा परिपक्वता ने हमारे इन आदर्शों को, रोष और भावनाओं के दबाव के अधीन विचलित होने अथवा अवनत होने से बचाया। इन असाधारण पुरुषों एवं महिलाओं ने हमारे संविधान के सिद्धांतों में, सभ्यतागत दूरदर्शिता से उत्पन्न भारत के गर्व, स्वाभिमान तथा आत्मसम्मान का समावेश किया, जिसने पुनर्जागरण की प्रेरणा दी और हमें स्वतंत्रता प्रदान की।। हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसा संविधान प्राप्त हुआ है जिसने महानता की ओर भारत की यात्रा का शुभारंभ किया।

4. इस दस्तावेज का सबसे मूल्यवान उपहार लोकतंत्र था, जिसने हमारे प्राचीन मूल्यों को आधुनिक संदर्भ में नया स्वरूप दिया तथा विविध स्वतंत्रताओं को संस्थागत रूप प्रदान किया। इसने स्वाधीनता को शोषितों और वंचितों के लिए एक सजीव अवसर में बदल दिया तथा उन लाखों लोगों को समानता तथा सकारात्मक पक्षपात का उपहार दिया जो सामाजिक अन्याय से पीड़ित थे। इसने एक ऐसी लैंगिक क्रांति की शुरुआत की जिसने हमारे देश को प्रगति का उदाहरण बना दिया। हमने अप्रचलित परंपराओं और कानूनों को समाप्त किया तथा शिक्षा और रोजगार के माध्यम से महिलाओं के लिए बदलाव सुनिश्चित किया। हमारी संस्थाएं इस आदर्शवाद का बुनियादी ढांचा हैं।

प्यारे देशवासियो,

5. अच्छी से अच्छी विरासत के संरक्षण के लिए लगातार देखभाल जरूरी होती है। लोकतंत्र की हमारी संस्थाएं दबाव में हैं। संसद परिचर्चा के बजाय टकराव के अखाड़े में बदल चुकी है। इस समय, संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के उस वक्तव्य का उल्लेख करना उपयुक्त होगा, जो उन्होंने नवंबर, 1949 में संविधान सभा में अपने समापन व्याख्यान में दिया था :

‘‘किसी संविधान का संचालन पूरी तरह संविधान की प्रकृति पर ही निर्भर नहीं होता। संविधान केवल राज्य के विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका जैसे अंगों को ही प्रदान कर सकता है। इन अंगों का संचालन जिन कारकों पर निर्भर करता है, वह है जनता तथा उसकी इच्छाओं और उसकी राजनीति को साकार रूप देने के लिए उसके द्वारा गठित किए जाने वाले राजनीतिक दल। यह कौन बता सकता है कि भारत की जनता तथा उनके दल किस तरह आचरण करेंगे’’?

यदि लोकतंत्र की संस्थाएं दबाव में हैं तो समय आ गया है कि जनता तथा उसके दल गंभीर चिंतन करें। सुधारात्मक उपाय अंदर से आने चाहिए।

प्यारे देशवासियो :

6. हमारे देश की उन्नति का आकलन हमारे मूल्यों की ताकत से होगा, परंतु साथ ही यह आर्थिक प्रगति तथा देश के संसाधनों के समतापूर्ण वितरण से भी तय होगी। हमारी अर्थव्यवस्था भविष्य के लिए बहुत आशा बंधाती है। ‘भारत गाथा’ के नए अध्याय अभी लिखे जाने हैं। ‘आर्थिक सुधार’ पर कार्य चल रहा है। पिछले दशक के दौरान हमारी उपलब्धि सराहनीय रही है; और यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि कुछ गिरावट के बाद हमने 2014-15 में 7.3 प्रतिशत की विकास दर वापस प्राप्त कर ली है। परंतु इससे पहले कि इस विकास का लाभ सबसे धनी लोगों के बैंक खातों में पहुंचे, उसे निर्धनतम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। हम एक समावेशी लोकतंत्र तथा एक समावेशी अर्थव्यवस्था हैं; धन-दौलत की इस व्यवस्था में सभी के लिए जगह है। परंतु सबसे पहले उनको मिलना चाहिए जो अभावों के कगार पर कष्ट उठा रहे हैं। हमारी नीतियों को निकट भविष्य में ‘भूख से मुक्ति’ की चुनौती का सामना करने में सक्षम होना चाहिए।

प्यारे देशवासियो :

7. मनुष्य और प्रकृति के बीच पारस्परिक संबंधों को सुरक्षित रखना होगा। उदारमना प्रकृति अपवित्र किए जाने पर आपदा बरपाने वाली विध्वंसक शक्ति में बदल सकती है जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर जानमाल की हानि होती है। इस समय, जब मैं आपको संबोधित कर रहा हूं देश के बहुत से हिस्से बड़ी कठिनाई से बाढ़ की विभीषिका से उबर पा रहे हैं। हमें पीड़ितों के लिए तात्कालिक राहत के साथ ही पानी की कमी और अधिकता दोनों के प्रबंधन का दीर्घकालीन समाधान ढूंढ़ना होगा।

प्यारे देशवासियो :

8. जो देश अपने अतीत के आदर्शवाद को भुला देता है वह अपने भविष्य से कुछ महत्त्वपूर्ण खो बैठता है। विभिन्न पीढ़ियों की आकांक्षाएं आपूर्ति से कहीं अधिक बढ़ने के कारण हमारे शिक्षण संस्थानों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। परंतु नीचे से ऊपर तक गुणवत्ता का क्या हाल है? हम गुरु शिष्य परंपरा को तर्कसंगत गर्व के साथ याद करते हैं; तो फिर हमने इन संबंधों के मूल में निहित स्नेह, समर्पण तथा प्रतिबद्धता का परित्याग क्यों कर दिया? गुरु किसी कुम्हार के मुलायम तथा दक्ष हाथों के ही समान शिष्य के भविष्य का निर्माण करता है। विद्यार्थी, श्रद्धा तथा विनम्रता के साथ शिक्षक के ऋण को स्वीकार करता है। समाज, शिक्षक के गुणों तथा उसकी विद्वता को सम्मान तथा मान्यता देता है। क्या आज हमारी शिक्षा प्रणाली में ऐसा हो रहा है? विद्यार्थियों, शिक्षकों और अधिकारियों को रुककर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।

प्यारे देशवासियो :

9. हमारा लोकतंत्र रचनात्मक है क्योंकि यह बहुलवादी है, परंतु इस विविधता का पोषण सहिष्णुता और धैर्य के साथ किया जाना चाहिए। स्वार्थी तत्त्व सदियों पुरानी इस पंथनिरपेक्षता को नष्ट करने के प्रयास में सामाजिक सौहार्द को चोट पहुंचाते हैं। लगातार बेहतर होती जा रही प्रौद्योगिकी के द्वारा त्वरित संप्रेषण के इस युग में हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्क रहना चाहिए कि कुछ इने-गिने लोगों की कुटिल चालें हमारी जनता की बुनियादी एकता पर कभी भी हावी न होने पाएं। सरकार और जनता, दोनों के लिए कानून का शासन परम पावन है परंतु समाज की रक्षा एक कानून से बड़ी शक्ति द्वारा भी होती है : और वह है मानवता। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘आपको मानवता पर भरोसा नहीं खोना चाहिए। मानवता एक समुद्र है; यदि समुद्र की कुछ बूंदें मैली हो जाएं, तो समुद्र मैला नहीं हो जाता’’।

मित्रो :

10. शांति, मैत्री तथा सहयोग विभिन्न देशों और लोगों को आपस में जोड़ता है। भारतीय उपमहाद्वीप के साझा भविष्य को पहचानते हुए, हमें संयोजकता को मजबूत करना होगा, संस्थागत क्षमता बढ़ानी होगी तथा क्षेत्रीय सहयोग के विस्तार के लिए आपसी भरोसे को बढ़ाना होगा। जहां हम विश्व भर में अपने हितों को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रगति कर रहे हैं, वहीं भारत अपने निकटस्थ पड़ोस में सद्भावना तथा समृद्धि बढ़ाने के लिए भी बढ़-चढ़कर कार्य कर रहा है। यह प्रसन्नता की बात है कि बांग्लादेश के साथ लम्बे समय से लंबित सीमा विवाद का अंतत: निपटारा कर दिया गया है।

प्यारे देशवासियो;

11. यद्यपि हम मित्रता में अपना हाथ स्वेच्छा से आगे बढ़ाते हैं परंतु हम जानबूझकर की जा रही उकसावे की हरकतों और बिगड़ते सुरक्षा परिवेश के प्रति आंखें नहीं मूंद सकते। भारत, सीमा पार से संचालित होने वाले शातिर आतंकवादी समूहों का निशाना बना हुआ है। हिंसा की भाषा तथा बुराई की राह के अलावा इन आतंकवादियों का न तो कोई धर्म है और न ही वे किसी विचारधारा को मानते हैं। हमारे पड़ोसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके भू-भाग का उपयोग भारत के प्रति शत्रुता रखने वाली ताकतें न कर पाएं। हमारी नीति आतंकवाद को बिल्कुल भी सहन न करने की बनी रहेगी। राज्य की नीति के एक उपकरण के रूप में आतंकवाद का प्रयोग करने के किसी भी प्रयास को हम खारिज करते हैं। हमारी सीमा में घुसपैठ तथा अशांति फैलाने के प्रयासों से कड़ाई से निबटा जाएगा।

12. मैं उन शहीदों को श्रद्धांजलि देता हूं जिन्होंने भारत की रक्षा में अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया। मैं अपने सुरक्षा बलों के साहस और वीरता को नमन करता हूं जो हमारे देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा तथा हमारी जनता की हिफाजत के लिए निरंतर चौकसी बनाए रखते हैं। मैं, विशेषकर उन बहादुर नागरिकों की भी सराहना करता हूं जिन्होंने अपने जीवन को जोखिम की परवाह न करते हुए बहादुरी के साथ एक दुर्दांत आतंकवादी को पकड़ लिया।

प्यारे देशवासियो;

13. भारत 130 करोड़ नागरिकों, 122 भाषाओं, 1600 बोलियों तथा 7 धर्मों का एक जटिल देश है। इसकी शक्ति, प्रत्यक्ष विरोधाभासों को रचनात्मक सहमतियों के साथ मिलाने की अपनी अनोखी क्षमता में निहित है। पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में यह एक ऐसा देश है जो ‘मजबूत परंतु अदृश्य धागों’ से एक सूत्र में बंधा हुआ है तथा ‘‘उसके ईर्द-गिर्द एक प्राचीन गाथा की मायावी विशेषता व्याप्त है; मानो कोई सम्मोहन उसके मस्तिष्क को वशीभूत किए हुए हो। वह एक मिथक है और एक विचार है, एक सपना है और एक परिकल्पना है, परंतु साथ ही वह एकदम वास्तविक, साकार तथा सर्वव्यापी है।’’

14. हमारे संविधान द्वारा प्रदत्त उर्वर भूमि पर, भारत एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में विकसित हुआ है। इसकी जड़ें गहरी हैं परंतु पत्तियां मुरझाने लगी हैं। अब नवीकरण का समय है।

15. यदि हमने अभी कदम नहीं उठाए तो क्या सात दशक बाद हमारे उत्तराधिकारी हमें उतने ही सम्मान तथा प्रशंसा के साथ याद कर पाएंगे जैसा हम 1947 में भारतवासियों के स्वप्न को साकार करने वालों को करते हैं। भले ही उत्तर सहज न हो परंतु प्रश्न तो पूछना ही होगा।

धन्यवाद,

जय हिंद!

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Prime Minister lauds the passing of amendments proposed to Oilfields (Regulation and Development) Act 1948
December 03, 2024

The Prime Minister Shri Narendra Modi lauded the passing of amendments proposed to Oilfields (Regulation and Development) Act 1948 in Rajya Sabha today. He remarked that it was an important legislation which will boost energy security and also contribute to a prosperous India.

Responding to a post on X by Union Minister Shri Hardeep Singh Puri, Shri Modi wrote:

“This is an important legislation which will boost energy security and also contribute to a prosperous India.”