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“सुगम्य भारत अभियान एक क्रांतिकारी पहल; कर्नाटक कांग्रेस ने अधिकारों और सम्मान को कमजोर किया,” दिव्यांगजनों के बजट में कटौती पर भाजपा मंत्री
December 03, 2024

‘सुगम्य भारत अभियान’ की वर्षगांठ के अवसर पर, भारत के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने सभी के लिए समावेशी और सुलभ समाज के निर्माण के लिए केंद्र सरकार की अडिग प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में हासिल प्रगति पर विचार करते हुए, डॉ. कुमार ने इस पहल के परिवर्तनकारी प्रभाव को रेखांकित किया और इसे भारत की सच्ची समावेशिता की दिशा में एक और अहम पड़ाव बताया।

डॉ. वीरेंद्र कुमार ने निर्बाध और समावेशी भारत बनाने में हासिल की गई उल्लेखनीय प्रगति पर जोर दिया। उन्होंने सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में यूनिवर्सल पहुंच को बढ़ावा देने वाली प्रमुख पहल पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "सुगम्य भारत अभियान सार्वजनिक स्थानों, परिवहन और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में यूनिवर्सल पहुंच को बढ़ावा देने में एक गेम-चेंजर रहा है। यह पहल मोदी सरकार के इस विश्वास को दर्शाती है कि सच्ची प्रगति तभी संभव है जब हर नागरिक, चाहे वह किसी भी शारीरिक क्षमता का हो, अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने में सक्षम हो।"

डॉ. कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में परिवर्तनकारी पहलों पर प्रकाश डाला, तथा दिव्यांग व्यक्तियों को सशक्त बनाने पर उनके गहन प्रभाव पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी ने विकलांग के बजाय दिव्यांग शब्द के उपयोग को प्रोत्साहित करके सामाजिक दृष्टिकोण को पुनः परिभाषित किया, जिससे दिव्यांगों के लिए अधिक सामाजिक रूप से समावेशी, सम्मानजनक और गरिमापूर्ण जीवन को बढ़ावा मिला। उन्होंने दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 के ऐतिहासिक प्रावधानों पर भी प्रकाश डाला, जिसके तहत दिव्यांगता की परिभाषा को 7 श्रेणियों से बढ़ाकर 21 श्रेणियों में कर दिया गया है, जिससे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक भागीदारी में समान अवसर सुनिश्चित हुए हैं। डॉ. कुमार ने विभिन्न क्षेत्रों में दिव्यांग व्यक्तियों को सहायता प्रदान करने के लिए सरकार की पहल की सराहना की। उन्होंने भारत के पैरा-एथलीटों की उल्लेखनीय उपलब्धियों पर प्रकाश डाला, जिन्होंने टोक्यो 2020 पैरालिंपिक में 19 पदक और पेरिस 2024 पैरालिंपिक में 29 पदक जीते। उन्होंने कहा कि ये सफलताएँ मोदी सरकार द्वारा प्रदान की गई समावेशी नीतियों और ठोस समर्थन को दर्शाती हैं।

कर्नाटक में हालिया घटनाक्रम पर ध्यान केंद्रित करते हुए, डॉ. कुमार ने सरकार के दिव्यांगजनों के लिए धन में 80% की अभूतपूर्व कटौती के फैसले पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एक ओर जहां केंद्र सरकार दिव्यांग समुदाय को सशक्त बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने फिर से अपने असली रंग दिखाते हुए उनकी जरूरतों को अनदेखा कर उनके सम्मान को ठेस पहुंचाई है।

उन्होंने कहा, "कांग्रेस ने निम्नता का एक नया स्तर छू लिया है, वह सस्ती वोट बैंक की राजनीति के नाम पर दिव्यांगजनों से उनके सम्मान और अधिकारों को छीनने के लिए नीचे गिर गई है। वे मौलिक मानवीय सम्मान से ज़्यादा मुफ़्त चीज़ों को प्राथमिकता देते हैं।"

डॉ. वीरेंद्र कुमार ने कहा, "वर्ष 2024-25 में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए बजट को ₹53 करोड़ से घटाकर मात्र ₹10 करोड़ करने का निर्णय विश्वासघात से कम नहीं है, जो समाज के इस महत्वपूर्ण वर्ग की प्रगति और सशक्तिकरण के लिए हानिकारक है। ऐसे समय में जब केंद्र सरकार निर्बाध और समावेशी भारत के निर्माण के प्रयासों में तेजी ला रही है, इस तरह का कदम इन सामूहिक उपलब्धियों को कमजोर करता है।"

उन्होंने कहा, "कर्नाटक में 13 लाख से ज़्यादा दिव्यांग लोग रहते हैं। उनके लिए आवंटित संसाधनों में कटौती से उनकी शिक्षा, रोज़गार और ज़रूरी सहायता सेवाओं तक पहुँच पर बुरा असर पड़ेगा, जिससे उनका भविष्य दांव पर लग जाएगा।"

डॉ. कुमार ने बताया कि बजट कटौती से हाशिए पर पड़े समुदायों की सीधी अनदेखी हो रही है, जिसे उन्होंने उदासीनता का स्पष्ट उदाहरण कहा। उन्होंने कांग्रेस की लम्बी परंपरा को सामने रखा, जिसमें राजनीतिक हितों को जनकल्याण से ऊपर रखा जाता है और इस फैसले को एक नया निम्न स्तर बताया। उन्होंने कहा कि इस कटौती से हजारों दिव्यांग व्यक्तियों की ज़िंदगियां सीधे तौर पर खतरे में पड़ रही हैं, जो इस धन पर निर्भर हैं ताकि उन्हें शिक्षा, रोजगार के अवसर और महत्वपूर्ण सहायता सेवाएं मिल सकें।

डॉ. कुमार ने अंत में कहा, “जब हम सुगम्य भारत अभियान की 9वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तो मैं सभी राज्य सरकारों से अपील करता हूं कि वे केंद्र सरकार की पहुंच और समावेशिता के दृष्टिकोण के साथ तालमेल बैठाएं। मैं विशेष रूप से कर्नाटक सरकार से अनुरोध करता हूं कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे और दिव्यांग व्यक्तियों की मदद के लिए फंडिंग बहाल करे। तभी हम एक सच्चे मायने में सुगम और समावेशी भारत का निर्माण कर सकते हैं।”