2014 से पहले, एक के बाद एक घोटालों ने पुराने भारतीय एलीट क्लास के भ्रष्ट तरीकों का खुलासा किया, जिसने संसद, मीडिया और कारोबारी जगत के शीर्ष स्तरों में गहरी पैठ बना ली थी। योग्यता के बजाय राजनीतिक कनेक्शन के चलते अधिकाधिक नए कारोबारी उभर कर सामने आए। 2014 के पहले, बिग बिजनेस और पॉलिटिक्स के बीच का गठजोड़, राजनीतिक सत्ता का एक ‘हॉलमार्क’ बन गया था।
भारतीयों को इन साजिशों और सांठगांठ वाले क्रोनी कैपिटलिज्म से निराशा हुई, जब 2G लाइसेंस चहेतों को दिए गए, इस धोखाधड़ी से जाहिर तौर पर देश को 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ; कोयला खदानों के लाइसेंस फ्लाई-बाई-नाइट ऑपरेटरों को दिए गए, जिससे सरकार को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ और सुप्रीम कोर्ट को कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द करना पड़ा। देश के सबसे बड़े घोटालों में से एक कोयला घोटाला ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डाला। घोटाले के कारण, वास्तविक कंपनियां कोयला ब्लॉकों के खनन के लिए आगे नहीं आईं और भारत को बाहर से कोयला मंगाने के लिए मजबूर होना पड़ा। नुकसानदायक नीतियां और भ्रष्टाचार; इकोनॉमिक डेवलपमेंट में ठहराव, लगातार डबल डिजिट में इन्फ्लेशन और नौकरियों के संकट का कारण बने। क्रोनी कैपिटलिज्म ने भारत की साख और वैश्विक छवि में गहरी सेंध लगाई।
टैक्स हेवेन के माध्यम से संदिग्ध स्रोतों से विदेशी पूंजी प्रवाह, अवैध खनन कारोबार को राजनीतिक संरक्षण एवं कानून तोड़ने वालों तथा टैक्स चोरी करने वाले धनाढ्यों को दंडित करने की अनिच्छा को वैधता प्रदान की गई थी। तत्कालीन मौजूदा मंत्रियों को बचाने और सत्ता बरकरार रखने के लिए एजेंसियों का "दुरुपयोग" किया गया। अस्तित्व बचाने के लिए, ED और CBI को आय से अधिक संपत्ति की जांच का सामना कर रहे गठबंधन सहयोगी नेताओं पर नरम रुख अपनाने के लिए कहा गया। आम जनता की चिंता सतही साबित हुई। तत्कालीन सत्ता, जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों से निपटने के लिए "स्पष्ट रूप से अनिच्छुक" थी। यह बड़े कारोबारों के लिए टैक्स बोनस प्रदान करने और फॉरेन फाइनेंशियल सट्टेबाजों के लिए अनुकूल शर्तें बनाए रखने में विश्वास करती थी। इन सबने विकृत पूंजीवाद को बढ़ावा दिया, जिसे भारत की ग्रोथ स्टोरी के रूप में प्रचारित किया गया।
जबकि पिछली सरकार के दस वर्षों को भ्रष्टाचार और परिवारवाद के चलते एक “खोया हुआ दशक” कहा जा सकता है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की "पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस" ने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना दिया। एक "बर्बाद" अर्थव्यवस्था, जिसे 2014 में केंद्र में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने फिर से खड़ा किया।
मोदी सरकार ने वस्तुओं और सेवाओं की ऑनलाइन खरीदारी के लिए सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) लॉन्च किया। इसके बाद, GeM वस्तुओं और सेवाओं के स्रोत के लिए मोदी सरकार का अनिवार्य ई-मार्केटप्लेस बन गया, क्योंकि यह सभी विभागों और मंत्रालयों पर लागू होता था। सरकारी ई-मार्केटप्लेस ने पारदर्शिता लाई, सरकारी खरीद को सुव्यवस्थित किया और भारत की खरीद सेवाओं में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया। सरकार ने सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य आइडेंटिफिकेशन सिस्टम्स के साथ पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता शुरू की। इस सिस्टम को एक डिजिटल ट्रेल छोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिससे भारत में कारोबार करने में खुलापन आया है।
जन-धन, आधार और मोबाइल (JAM) त्रिमूर्ति द्वारा संचालित, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT), भारत में मोदी सरकार के भ्रष्टाचार मिटाने और वेलफेयर केंद्रित रिफॉर्म्स का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया। लीकेज को रोककर 2 लाख करोड़ रुपये की "बचत" करते हुए, DBT की सफलता ने भारत के लिए वैश्विक प्रशंसा हासिल की है। IMF ने DBT को एक "लॉजिस्टिक चमत्कार" बताया है, जिसने बिचौलियों और मिडिलमैन सस्थाओं को खत्म करके सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में दक्षता और पारदर्शिता ला दी है।
2014 में जब नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने, तो उनकी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि भ्रष्टाचार के मामलों को दर्ज करने, जांच करने और मुकदमा चलाने में जांच एजेंसियों पर किसी भी तरह का दबाव और दखल न हो। इसके अलावा, जांच एजेंसियों को न केवल स्वतंत्र बनाया गया, बल्कि मोदी सरकार ने उन्हें मजबूत भी किया। मोदी सरकार ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) 2002 के तहत, सरकार के कामकाज में अधिक जवाबदेही लाने के लिए ED को 15 और एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करने की अनुमति दी। इसके अलावा, मोदी सरकार द्वारा गैर-कानूनी वित्तीय गतिविधियों से निपटने के लिए, ब्लैक मनी (Undisclosed Foreign Income and Assets) और Imposition of Tax Act-2015 और साथ ही साथ ब्लैक मनी पर SIT की स्थापना को अधिनियमित किया गया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप कई मामले शुरू हुए और बड़ी मात्रा में काला धन बरामद हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी के लगातार दो कार्यकाल में देश में "जबरदस्त बुनियादी बदलाव" देखने को मिले हैं। उनकी पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस, अभूतपूर्व पैमाने और गहराई पर उसे क्रियान्वित करने तथा दशकों से अनसुलझी समस्याओं का समाधान निकालने एवं भारत के बारे में दृष्टिकोण को बदलने की उनकी क्षमता, सबसे परिभाषित बदलाव रहे हैं। 2014 से पहले, बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार ने अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया और इसके विकास को अवरुद्ध कर दिया, जिससे हमारा देश नई ऊंचाइयों तक नहीं पहुंच सका। वहीं, देश का इकोनॉमिक मैनेजमेंट, इंक्लूजिविटी पर फोकस, कारोबारी सुगमता और वेलफेयर प्रोग्राम का सफल कार्यान्वयन, आज इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी की ‘पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस’ ने पिछले दस वर्षों में भारत को ‘कमजोर पांच' से दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में पहुंचाया है, जो अब शीर्ष तीन में शामिल होने के लिए अग्रसर है। जबकि भारत का वैश्विक कद और प्रभाव लगातार बढ़ रहा है।




