प्रधानमंत्री बनने पर मैंने कहा कि यह एक पद की बात नहीं है, बल्कि जिम्मेदारी निभाने की बात है: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
बीते दो वर्षों के दौरान देश हर क्षेत्र में आगे बढ़ा है। हमारी कोशिश हर क्षेत्र में कुछ नया करने और बदलाव लाने की है: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
सिस्टम में भरोसा पैदा करने की बड़ी चुनौती हमारे सामने थी। आज वैसी हताशाओं का कोई निशान बाकी नहीं है: प्रधानमंत्री
अब विदेश नीति सिर्फ सरकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पीपल-टु-पीपल कॉन्टैक्ट भी जरूरी है: मोदी
दुनिया के नेताओं और देशों ने भारत को लेकर अपना नजरिया बदला। इसका बहुत फायदा हुआ: प्रधानमंत्री मोदी
हमें छोटे देशों के महत्व को भी समझने की जरूरत है। आज प्रत्येक देश का बराबर महत्व है: प्रधानमंत्री मोदी
हमारी कामयाबी यह है कि हमने एससीओ और एमटीसीआर की सदस्यता हासिल कर ली है: प्रधानमंत्री
चीन के साथ भारत की कई समस्याएं हैं, जिन्हें धीरे-धीरे हल करने का प्रयास चल रहा है: प्रधानमंत्री
अब हमें दुनिया को अपनी पोजिशन बताने की जरूरत नहीं। आतंकवाद पर भारत की बातों को दुनिया अब मान रही है: मोदी
लक्ष्मण-रेखा पाक को तय करनी होगी। क्या बातचीत चुनी हुई सरकार के साथ की जाए या दूसरे तत्वों के साथ: प्रधानमंत्री मोदी
हमारी फिलॉसफी आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचना है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन ही हमारी विचारधारा के केंद्र में है: मोदी
मेरे आर्थिक अजेंडा के केंद्र में गरीब व्यक्ति है। गरीब को इस तरह मजबूत बनाना होगा कि वह गरीबी को हराने की इच्छाशक्ति रखें: प्रधानमंत्री
महात्मा गांधी भी यह सवाल उठाया करते थे कि आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति के लिए क्या है: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
जो जितना रोजगार पैदा करेगा, उसे उतना टैक्स बेनिफिट मिलेगा। हमारा मेन फोकस आम नागरिक के लिए रोजगार पैदा करना है: मोदी
रघुराम राजन की देशभक्ति किसी से कम नहीं है और मुझे भरोसा है कि वह किसी पद पर रहें या ना रहें लेकिन वह भारत की सेवा जारी रखेंगे: मोदी
हमारी कोशिशों से ही पहली बार जी-20 समिट में ब्लैकमनी मसले पर चर्चा हुई। स्विट्जरलैंड भी खुद आगे आकर बात कर रहा है: प्रधानमंत्री मोदी
सभी विपक्षी पार्टियां जीएसटी विधेयक के समर्थन में हैं, लेकिन केवल एक पार्टी ने इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया है: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
मैंने विकास के मु्द्दे पर चुनाव लड़ा। विकास मेरा दृढ़ विश्वास है, ये मेरी प्रतिबद्धता है: प्रधानमंत्री
देश की नई पीढ़ी केवल विकास में विश्वास करती है। सभी समस्याओं का हल विकास के जरिये ही किया जा सकता है: मोदी
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी केंद्रीय योजनाएं किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
यदि आप पक्षपात के बिना देखेंगे तो मैं एक अराजनैतिक प्रधानमंत्री हूं। चुनावी दिनों के अलावा मैं कभी राजनीति नहीं करता: मोदी
मेरा फोकस पूरी तरह गवर्नेंस पर है। चुनाव को ध्यान में रखकर सरकार नहीं चल सकती: प्रधानमंत्री मोदी
मैं हमेशा लक्ष्य ऊंचा करता रहता हूं। यदि आज मैं 100 की रफ्तार से दौड़ता हूं तो 200 की रफ्तार से दौड़ने का लक्ष्य बनाता हूं: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारे सहयोगी न्यूज चैनल 'टाइम्स नाउ' के एडिटर-इन-चीफ अरनब गोस्वामी को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दिया है। यह देश में एक प्रधानमंत्री का किसी प्राइवेट न्यूज चैनल को दिया गया पहला इंटरव्यू है। इस लंबी बातचीत में मोदी ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों मोर्चों पर चुनौतियों के अलावा एनएसजी में भारत की विफलता, पािकस्तान से संबंध और महंगाई जैसे मुद्दों पर भी अपनी बेबाक राय रखी। पेश हैं इसके प्रमुख अंश -

प्रधानमंत्री जी, मैं अपनी बात 20 मई 2014 से शुरू करता हूं, जब आम चुनावों के नतीजे आए चार दिन हो चुके थे। इस दिन संसद के सेंट्रल हॉल में आपने ऐतिहासिक भाषण दिया था। आपने कहा था कि इन नतीजों से जिम्मेदारी का एक नया युग शुरू हो रहा है। आपने कहा था कि अगले आम चुनावों (2019) से पहले आप एक बार फिर इसी तरह संसद और अपने सांसदों के बीच आएंगे और अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करेंगे। आपके इस कार्यकाल का 40 फीसदी पूरा हो चुका है, अब तक आप अपना कितना लक्ष्य हासिल कर पाए हैं?
सांसद बनने से पहले मैं संसद के सेंट्रल हॉल में नहीं गया था। यही वजह है कि प्रधानमंत्री बनने पर मैंने कहा कि यह एक पद की बात नहीं है, बल्कि यह प्रधानमंत्री के तौर पर काम करने और उसकी जिम्मेदारी निभाने की बात है। मैंने यह भी कहा था कि मेरी सरकार गरीबों के लिए कमिटेड रहेगी। दिल्ली का माहौल मेरे लिए नया था। भारत सरकार कैसे काम करती है- यह भी मैंने पहले बार जाना था। लेकिन इसके बावजूद इस छोटे से कार्यकाल में देश हर क्षेत्र में आगे बढ़ा है। अगर आप पिछली सरकारों से तुलना करें तो पाएंगे कि हमारी सरकार ने किसी भी मुद्दे की अनदेखी नहीं की है। हमारी कोशिश हर क्षेत्र में कुछ नया करने और बदलाव लाने की है। मैंने महसूस किया था कि पूरा सिस्टम हताशा में डूबा हुआ है। सिस्टम में भरोसा पैदा करने और आम जनता में विश्वास बढ़ाने की बड़ी चुनौती हमारे सामने थी। आज मैं यह बात पूरे भरोसे से कह सकता हूं कि अब वैसी हताशाओं का कोई निशान बाकी नहीं है। जब भी हमारी सरकार की परफॉर्मेंस की बात उठती है, आपको यह तुलना पिछली सरकार के 10 सालों के कामकाज के आधार पर करनी चाहिए। तभी आप जान पाएंगे कि तब और अब में क्या फर्क आया है। तभी आपको अपने उजले भविष्य का अहसास हो सकेगा।

जहां तक विदेश नीति की बात है, पिछले प्रधानमंत्रियों की तुलना में आपने इसमें खासी दिलचस्पी दिखाई है। आपकी विदेश नीति की दिलचस्प बात यह है कि विभिन्न ताकतों और हितों के बीच आपने संतुलन बनाने की कोशिश की है। एक तरफ आप अमेरिका से रिश्ते बरकरार रखते हुए मिसाइल संधि- एमसीटीआर पर दस्तखत करते हैं। तो दूसरी तरफ कुछ ही समय पहले आपने ईरान के साथ चाबहार समझौता किया है। मेरा सवाल यह है कि भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर विभिन्न ताकतों को साधना कितना आसान है?
आपको यह समझना चाहिए कि किस बात ने हमारी विदेश नीति को आज इतनी ताकत दी है। पिछले 30 सालों से देश में अस्थिर सरकारों का दौर था। इस अवधि में स्पष्ट बहुमत वाली पार्टी को सरकार बनाने का मौका नहीं मिला। दुनिया किसी देश की सरकार की ताकत को इस बात से आंकती है कि उसकी अपने देश में क्या हैसियत है। मैं भारत की जनता का शुक्रगुजार हूं कि उसने 30 साल बाद स्पष्ट बहुमत वाली सरकार चुनी, जिसका विश्व राजनीति पर अच्छा असर पड़ा। इससे दुनिया के नेताओं और देशों ने भारत को लेकर अपना नजरिया बदला। इसका बहुत फायदा हुआ। दुनिया देश के मुखिया को जानना चाहती है लेकिन मोदी को कोई जानता नहीं था। पूरा विश्व जानना चाहता था कि आखिर भारत का प्रधानमंत्री कौन है। अगर कोई मोदी को मीडिया के जरिये जानने की कोशिश करता तो वह मोदी के बारे में वास्तविक मोदी से अलग एक छवि बनाता, जिसका नुकसान हमारे देश को होता। इसलिए बतौर प्रधानमंत्री मुझे विदेश नीति के संबंध में प्रो-ऐक्टिव होना पड़ा। इसीलिए मैं विश्व नेताओं से निजी तौर पर मिला।

विदेशी नीति के मामले में आपकी कोई पहचान नहीं थी?
विदेश नीति के मुकाबले यह बात वैदेशिक संबंधों की है। बेशक मैं इसके लिए नया था। इसलिए जरूरी था कि मैं इसे लेकर अपनी दिलचस्पी दिखाऊं। इसके अलावा हमने एक टीम की तरह काम किया। विदेश मंत्रालय, पीएमओ के अधिकारी, वित्त मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, रक्षा मंत्री- हर किसी ने साथ होकर काम किया, अलग रहकर नहीं। इसका असर अब साफ दिख रहा है और यह सिर्फ एक मोदी के कारण नहीं हुआ। हमें यह भी समझने की जरूरत है कि पहले विश्व दो-ध्रुवीय था। विदेश नीति भी दो महाशक्तियों के इर्दगिर्द सिमटी हुई थी। भारत ने यह समझने में देरी की कि यह दो-ध्रुवीय स्थिति एक सिक्के के दो पहलुओं जैसी थी। इसी तरह पहले विदेश नीति सरकारों के बीच की बात मानी जाती थी। पर अब बदले हुए हालात में यह सिर्फ सरकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सरकारों के परस्पर संबंधों के साथ-साथ पीपल-टु-पीपल कॉन्टैक्ट भी एक जरूरी चीज है। इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए आज हम विश्व से जुड़ रहे हैं। हम सभी देशों से सम्मान से बात करते हैं और किसी भी देश को छोटा नहीं मानते। हम पूरी दुनिया से अपने संबंध बना रहे हैं। इसके लिए मैं भावना के साथ सऊदी अरब से बातचीत करता हूं, उसी सम्मान के साथ ईरान, अमेरिका, रूस से बात करता हूं। साथ ही हमें छोटे देशों के महत्व को भी समझने की जरूरत है। एक बार मैं विदेश सेवा के अधिकारियों के साथ बैठा और थोड़ा काव्यात्मक लहजे में मैंने उन्हें बताया कि एक वक्त वह था, जब हम समंदर के किनारे लहरें गिना करते थे। लेकिन अब वक्त आ गया है कि हम पतवार लेकर समंदर में खुद उतरें।

एनएसजी की सदस्यता के लिए आपने एड़ी-चोटी का जोर लगाया। हम अब इसके कितने नजदीक हैं, क्या चीन के विरोध को लेकर क्या आप निराश हैं?
हमारा देश यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल में सीट पाने, एससीओ की सदस्यता के लिए और एमटीसीआर या फिर एनएसजी सदस्यता इनके लिए काफी अरसे से कोशिश करता रहा है, चाहे कोई भी सरकार सत्ता में रही हो। हम इसी सिलसिले को आगे बढ़ा रहे हैं। हमारी कामयाबी यह है कि हमने एससीओ और एमटीसीआर की सदस्यता हासिल कर ली है। मुझे पूरी उम्मीद है कि हम एनएसजी मेंबरशिप भी हासिल कर लेंगे। इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

पहले मसूद अजहर का मामला और अब एनएसजी की बात, चीन ने हर जगह अड़ंगा लगाया है। जबकि आप निजी तौर पर कई कोशिशें कर रहे हैं, चीन हर मौके पर भारत का विरोध क्यों कर रहा है?
वैचारिक तौर पर भिन्न होना स्वाभाविक है पर इस भिन्नता को खत्म करने का तरीका परस्पर संवाद बढ़ाना है। चीन के साथ भारत की कई समस्याएं हैं, जिन्हें धीरे-धीरे हल करने का प्रयास चल रहा है। मैं कह सकता हूं कि मुद्दों को सुलझाने के लिए चीन हमारे साथ सहयोग कर रहा है। कुछ मसलों पर सैद्धांतिक तौर पर उन्हें समस्या है, तो कुछ पर हमारे सिद्धांत आड़े आते हैं। दोनों के बीच कुछ मूलभूत समस्याएं हैं पर महत्वपूर्ण यह है कि हम चीन से आंख में आंख डालकर बात कर रहे हैं और भारत के हितों को उनके सामने रख रहे हैं।

क्या एनएसजी के मुद्दे पर हम चीन को राजी कर पाएंगे?
देखिए, विदेश नीति का मतलब माइंडसेट बदलना नहीं है। इस अर्थ बातचीत के साझा बिंदुओं की तलाश करना है। हमें हर देश के साथ मिल-बैठकर बात करनी होती है। यह एक सतत जारी रहने वाली प्रक्रिया है।

अमेरिकी कांग्रेस में आपके भाषण की काफी सराहना हुई है। आपने लतीफे गढ़े, लोगों को हंसाया। कैसे कर पाए यह सब?
मैं थोड़ा-बहुत हास्य-विनोद कर सकता हूं, लेकिन ह्यूमर आजकल एक रिस्की चीज हो गया है। चौबीसों घंटे चलने वाले टीवी चैनलों के दौर में कब एक छोटा-सा शब्द बड़े मुद्दे में तब्दील हो जाए- कहा नहीं जा सकता। पर मैं आपको एक पते की बात बताता हूं। सार्वजनिक जीवन में ह्यूमर के खात्मे की वजह है भय। मैं खुद डरा रहता हूं। पहले जब मैं भाषण देता था, काफी विनोद करता था लेकिन कभी उसे लेकर कोई बखेड़ा नहीं खड़ा हुआ।

तो क्या अब आप ज्यादा सतर्क रहने लगे हैं?
बात सतर्कता की नहीं, डर की है। हर कोई डरा रहता है। मैं खुद भी। मैंने यह संसद में देखा है, जहां हंसी-मजाक खत्म हो चला है। यह चिंता की बात है। मैं यह बात मुहावरे में कहना चाहता हूं...

जी, जरूर...
बल्कि जब आप कोई कहावत या मुहावरा भी कहते हैं, तो भी खतरा यह है कि वे उसे किसी और चीज से जोड़ लें और उस पर चर्चा शुरू हो जाए...

लेकिन आपको अपना सेंस ऑफ ह्यूमर नहीं छोड़ना चाहिए।
पर सच यह है कि मेरे अमेरिकी दौरे, वहां के भाषण और हमारे देश को दिए गए सम्मान को लेकर एक हाइप क्रिएट कर दिया गया। इसका असर यह हुआ कि अब हमारी सरकार की आलोचना एनएसजी को लेकर नहीं हो रही बल्कि इसलिए हो रही है कि हम वहां (अमेरिका) में काफी सफल रहे।

अमेरिका में दिए अपने भाषण में आपने एक दिलचस्प जुमले- हम इतिहास की हिचकिचाहट से बाहर आ गए हैं- का इस्तेमाल किया। मेरा सवाल यह है कि हम अमेरिका के आखिर कितने नजदीक जा सकते हैं, जबकि देश में बहुतेरे लोग मानते हैं कि अमेरिका आज भी पाकिस्तान को सपॉर्ट कर रहा है और उसे सैन्य सहयोग दे रहा है।
मैं आपके जरिये अपील करना चाहूंगा कि भारत से जुड़ी हर चीज को पाकिस्तान के चश्मे से देखना बंद किया जाए। यह हमारी क्षुद्रता और बड़ी गलती होगी, अगर हम खुद को किसी दूसरे मुल्क से जोड़कर देखें और उसी मुताबिक कोई काम करें। एक स्वतंत्र देश होने के नाते हमारी अपनी नीतियां और अपना भविष्य है।

पाकिस्तान पर नरमी तो नहीं? मोदी जी इससे पहले 8 मई 2014 को जब आपने मुझे इंटरव्यू दिया था, तब चुनाव का आखिरी चरण ही शेष था। हम अभी पाकिस्तान पर चर्चा कर रहे हैं। दो दिन पहले ही लश्कर-ए-तैबा ने हमारे आठ जवानों को मार दिया। 8 मई के इंटरव्यू में आपने बहुत अच्छी बात कही थी - 'क्या बम, बंदूक और पिस्तौल के शोर में बातचीत सुनी जा सकती है?' क्या आप मानते हैं कि हम पाकिस्तान को लेकर बहुत उदार हो गए हैं?
दो बातें हैं। पहला- भारत अपने पड़ोसियों से दोस्ताना रिश्ते चाहता है। मैं लगातार कहता रहा हूं कि भारत को गरीबी से लड़ना है, पाकिस्तान को भी गरीबी से लड़ना है। क्यों न हम मिलकर गरीबी से लड़ें, इलेक्शन कैंपेन के दौरान भी मैंने यह बात कही थी। मैंने शपथग्रहण में सार्क देशों को न्योता भेजा और वे आए भी। हमारी मंशा, विचार और मौजूदा व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। दूसरी बात, जिन्हें मेज पर काम करना है, वे वहीं पर काम करेंगे और जिन्हें सीमा पर काम करना है, वे पूरी ताकत से सीमा पर काम करेंगे। हर कोई दी गई जिम्मेदारी पूरी तरह निभाएगा। हमारे जवान अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं। बेशक, आतंकियों पर दबाव बढ़ा है, उनकी साजिशें नाकाम हुई हैं। जिन मंसूबों से वे आगे बढ़े थे, उन्हें नाकाम किया गया है इसलिए उनमें हताशा है और इसी कारण इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। हमारे जवान अपनी जान जोखिम में डालकर देश की सुरक्षा कर रहे हैं। हमें उन पर गर्व है।

पिछले साल अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के बीच पाकिस्तान से काफी संपर्क हुआ। 30 नवंबर को आप नवाज शरीफ से पैरिस में मिले, सात दिन बाद ही एनएसए लेवल की बातचीत बैंकॉक में हुई। फिर आप अफगानिस्तान होते हुए रूस गए और वापसी में नवाज शरीफ के यहां अप्रत्याशित भेंट करने गए। यह एक निजी भेंट थी मगर काफी अहमियत रखती थी। आठ दिन बाद ही पाकिस्तानी आतंकवादी पठानकोट पर हमला करते हैं। क्या पाकिस्तान इन तीन महीनों में हमसे सही तरीके से मुखातिब हो रहा था?

पाकिस्तान में अलग-अलग तरह की फोर्स काम करती हैं। सरकार सिर्फ लोकतांत्रिक रूप से चुने गए सिस्टम के साथ ही बात करती है। हमारी कोशिश देश के हितों की रक्षा करना और शांति स्थापित करना है जिसके लिए हम लगातार कोशिश कर रहे हैं और हमारे प्रयास कई बार सफल होते हैं। जहां तक मुलाकात और वार्ता का सवाल है, हम शुरू से ही कह रहे हैं कि हम दोस्ताना रिश्ते चाहते हैं, मगर अपने हितों से समझौता किए बगैर। यही वजह है कि हमारे देश के सैनिकों को दुश्मन की हरकतों का पुरजोर जवाब देने की पूरी छूट दी गई है।

पाकिस्तान को लेकर कुछ लक्ष्मण-रेखाएं रही हैं। जैसे कि 2014 में माना जाता था कि पाकिस्तान सरकार से बातचीत सीधे होगी, हुर्रियत शामिल नहीं होगी। दूसरी लक्ष्मण-रेखा थी कि पहले पाक 26/11 पर कार्रवाई करे मगर इस पर कुछ प्रगति होती नहीं दिखी। तीसरी बात पठानकोट केस में तरक्की को लेकर है। यह बताएं कि पाकिस्तान को लेकर अब हमारी लक्ष्मण-रेखा क्या है। अगर पाक इन दायरों में रहेगा तो क्या बातचीत राजनीतिक स्तर पर होगी या किसी दूसरे स्तर पर?
लक्ष्मण-रेखा पाक को तय करनी होगी। क्या बातचीत चुनी हुई सरकार के साथ की जाए या दूसरे तत्वों के साथ। भारत को इन स्थितियों के कारण ही हमेशा सतर्क रहना होता है। मेरे लगातार प्रयासों के नतीजे भी आ रहे हैं। अब हमें दुनिया को अपनी पोजिशन बताने की जरूरत नहीं। दुनिया भारत की पोजिशन की एकसुर में सराहना कर रही है। दुनिया देख रही है कि पाकिस्तान के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है। अगर हम बाधा बनते तो दुनिया को समझाना पड़ता पर हम बाधा नहीं बन रहे हैं। आतंकवाद का मसला ही लें तो दुनिया कभी भी आतंकवाद पर हमारी थियरी को नहीं मानती थी। वे कह देते थे कि यह आपके यहां लॉ एंड ऑर्डर की समस्या है। आज दुनिया उन बातों को स्वीकार कर रही है जिन्हें भारत कहता आ रहा था। आतंकवाद पर भारत की बातचीत, आतंक से पहुंची क्षति, मानवता को हुए नुकसान , इन सभी बातों को दुनिया अब मान रही है। ऐसे में मेरा मानना है कि हमें इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होगा।

बीते दो सालों में आपने कई योजनाएं शुरू कीं - जनधन योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, स्वच्छ भारत, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया। क्या बतौर पीएम आपकी इकॉनमिक फिलॉसफी के केंद्र में सामाजिक अजेंडा है?
पहली बात, हमारी फिलॉसफी आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचना है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन ही हमारी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विचारधारा के केंद्र में है। महात्मा गांधी भी यह सवाल उठाया करते थे कि आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति के लिए क्या है/ इसलिए विकास को लेकर मेरा मापदंड बेहद सीधा है कि गरीबों में से भी सबसे गरीब शख्स को विकास से कैसे फायदा पहुंचाया जाए। मेरे आर्थिक अजेंडा के केंद्र में गरीब व्यक्ति है। गरीब को इस तरह मजबूत बनाना होगा कि वह गरीबी को हराने की इच्छाशक्ति रखें। एक तरीका यह भी है कि बेशक व्यक्ति गरीबी में ही रहे मगर उसकी जरूरत की चीजें उपलब्ध कराने में मदद दी जाए। मैं यह नहीं कहता कि यह सही है या गलत, मगर यह भी एक रास्ता है। आज देश की स्थिति यह है कि हमें गरीब को मजबूत बनाना होगा ताकि वे गरीबी को हराने में सहयोगी बनकर काम करें। ये सभी स्कीमें गरीब को मजबूत करने और जीवन की गुणवत्ता बदलने के लिए हैं। प्रधानमंत्री जनधन योजना का मतलब सिर्फ गरीब का बैंक खाता खुलवाना नहीं है बल्कि उसे यह अहसास दिलाना भी है कि वह देश के इकॉनमिक सिस्टम का हिस्सा है। जिस बैंक को वह दूर से देखा करता था, वह उसमें दाखिल हो सकता है। यह मनोवैज्ञानिक बदलाव लाने का काम करता है। अब दूसरी तरह से देखिए, क्या आपने कभी सोचा था कि गरीब लोगों के योगदान से बैंकिंग सिस्टम में 40 हजार करोड़ रुपये डाले जा सकते हैं। जिन गरीबों के कभी बैंक खाते नहीं थे, उन्होंने 100 रुपये, 50 रुपये और 200 रुपये जमा करवाए। इसका मतलब कि गरीब व्यक्ति ने 100 रुपये बचाए और उसके जीवन में बदलाव शुरू हो गया।

एक ओर जनता की अपेक्षाएं हैं और दूसरी तरफ आपका विजन है। कई योजनाएं जो आपने बताईं उनका तुरंत असर नहीं दिख रहा। मुमकिन है वे तीन, चार या पांच साल में असर दिखाएं पर लोगों को त्वरित नतीजे चाहिए। आर्थिक मोर्चे पर कई आंकड़े सुधरने के बावजूद लोग कह रहे हैं कि नौकरियों की तादाद नहीं बढ़ रही है। श्रम से जुड़े ताजा आंकड़े क्या आपकी चिंता का विषय नहीं हैं?
पहली बात, देश में 80 करोड़ लोग 35 साल की उम्र से कम के हैं। हमें स्वीकारना होगा कि नौकरियों की मांग बेहद ज्यादा है। पर उन्हें रोजगार मिलेगा कहां, निवेश आएगा, उसका इस्तेमाल इंफ्रास्ट्रक्चर, मेनुफेक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में होगा। हमने मुद्रा योजना शुरू की है। देश में तीन करोड़ से ज्यादा लोग धोबी, नाई, दूधवाले, अखबार बेचने वाले, ठेलीवाले हैं। हमने उन्हें करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये बिना किसी गारंटी के दिए हैं। लोगों ने यह पैसा क्यों लिया, अपना काम फैलाने के लिए। जब वे ऐसा करेंगे, उन्हें एक के बजाय काम पर दो लोगों को रखना होगा। पहले दो थे तो अब तीन रखने होंगे। जब तीन करोड़ छोटे व्यवसायियों को पैसा मिलेगा, वे अपना काम फैलाएंगे। यह सब श्रम विभाग के रजिस्टर में दर्ज नहीं होगा। हमने एक बात और तय की है। देश में बड़े मॉल साल में रोजाना चलते हैं मगर छोटी दुकानें छुट्टियों पर बंद रहती हैं। हमने बजट में ऐलान किया कि छोटे दुकानदार भी देर रात तक दुकान चला सकते हैं। वह भी हफ्ते के सातों दिन। अब अगर दुकानदार ऐसा करेगा तो उसे ज्यादा लोग रखने पड़ेंगे, तो क्या इससे रोजगार नहीं बढ़ेगा।

क्या आपका फोकस आंत्रप्रन्यॉरशिप पर है? हमारा फोकस हर पहलू पर है। हम साल 2022 तक हर व्यक्ति के लिए एक मकान सुनिश्चित करना चाहते हैं। हाउसिंग सेक्टर के पास रोजगार सृजन की सबसे ज्यादा क्षमता है। हम टेक्सटाइल पॉलिसी लाए। इसके तहत उन लोगों को टैक्स बेनिफिट मिलेगा जो रोजगार पैदा करेंगे। जो जितना रोजगार पैदा करेगा, उसे उतना टैक्स बेनिफिट मिलेगा। पहली बार रोजगार सृजन को टैक्स से जोड़ा गया है। ये सभी चीजें रोजगार बढ़ाएंगी और हमारा मेन फोकस आम नागरिक के लिए रोजगार पैदा करना है।

रघुराम राजन के आरबीआई गवर्नर पद से बाहर होने को लेकर जो विवाद हुआ, उस पर आपकी राय क्या है? कहा गया कि इससे ग्लोबल इकॉनमी के तौर पर भारत की इमेज और परसेप्शन पर असर पड़ेगा।
जब मेरी सरकार 2014 में बनी थी, तब टीवी पर यही चर्चा होती थी कि क्या मोदी सरकार राजन को अपना कार्यकाल पूरा करने देगी क्योंकि पिछली सरकार उन्हें पद पर लाई थी। मगर आपने सभी धारणाओं को धराशायी होते देखा होगा। रघुराम राजन अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। दूसरी बात, सरकार में मेरा दो साल का अनुभव बताता है कि जो लोग विवाद पैदा कर रहे हैं, वे राजन के साथ ही नाइंसाफी कर रहे हैं।

आपने हाल में बीजेपी कार्यकारिणी में सात शब्द कहे थे - सेवाभाव, संतुलन, संयम, संवाद, समन्वय, सकारात्मक और संवेदना। आपने कहा था कि पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को इन गुणों को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उतारना चाहिए। रघुराम राजन के संदर्भ में आपकी ही पार्टी के राज्यसभा सांसद ने कई टिप्पणियां कीं। बाद में उन्होंने सीनियर ब्यूरोक्रेट्स के बारे में भी आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं। क्या आप इसे सही मानते हैं?
चाहे कोई मेरी पार्टी से हो या नहीं, ऐसी चीजें गलत हैं। देश को ऐसे पब्लिसिटी स्टंट्स से फायदा नहीं होने वाला। कोई यह समझे कि वह सिस्टम से बड़ा है, तो वह गलत है। मैं साफ बात करता हूं। इस बारे में मेरी दो राय नहीं।

लोगों को उम्मीद थी कि आप खाने की चीजों की कीमत कम करवाएंगे। इसका राजनीतिक ही नहीं सामाजिक प्रभाव भी पड़ता है। बीते दो हफ्तों में ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि कुछ जगहों पर अरहर की दाल 150 रुपये किलो और दूसरी दालें 200 रुपये किलो तक पहुंच गईं। टमाटर के दाम भी बढ़ रहे थे। क्या यह सिर्फ मौसमी असर है क्योंकि हर साल खाद्य महंगाई दर 7.5 पर्सेंट की दर से बढ़ रही है। वहीं दुनिया भर में कच्चे तेल के दाम गिरे हैं। क्या इससे लोगों के बीच सरकार को लेकर धारणाएं नहीं बनतीं?
महंगाई को आप धारणा से जुड़ा मसला नहीं मान सकते। कीमतों में बढ़ोतरी को हकीकत ही मानना चाहिए। आप देखिए पिछली सरकारों के दौर में कीमतों में कितनी तेजी थी। आज वह तेजी कम हुई है। आप आंकड़ों में भी इसे देख सकते हैं। दूसरी बात, देश ने पिछले दो सालों में भयंकर सूखा झेला है। सूखे का सीधा असर सब्जियों, खाने और दालों के दाम पर पड़ता है क्योंकि ये सब मिट्टी से ही उपजाई जाती हैं। सूखे पर किसी का बस नहीं है। ऐसी स्थिति में दूसरा ऑप्शन इंपोर्ट का होता है। भारत सरकार ने बड़ी तादाद में दालों का आयात किया है। तीसरा, महंगाई से निपटना केंद्र और राज्य सरकारों की साझा जिम्मेदारी है। यही वजह है कि केंद्र ने सख्त कानून बनाने का हक राज्यों को दिया है। कितना स्टॉक रखना है, कितना नहीं, यह फैसला राज्य ले सकते हैं। कुछ राज्यों ने अच्छा किया है, कुछ कोशिश कर रहे हैं। इस मसले पर केंद्र और राज्य दोनों मिलकर काम कर रहे हैं। जहां तक दालों का सवाल है, इनका उत्पादन देश में काफी कम रहा है। जो किसान पहले दाल उगाते थे, अब चीनी पैदा कर रहे हैं। यह भी चिंता की बात है। हम दालों के लिए विशेष इनसेंटिव देते हैं। उनके लिए अलग एमएसपी रखते हैं। हमारा फोकस दालों का उत्पादन बढ़ाने पर है। हम विदेश से इंपोर्ट करके दालों का स्टॉक भी बना रहे हैं।
जीएसटी बिल पिछले डेढ़ साल से रुका पड़ा है। क्या आप सोचते हैं कि यह बिल आर्थिक सुधारों की दिशा में कोई उल्लेखनीय तब्दीली ला पाएगा? हाल में आपने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता से मुलाकात की थी। इसके अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी जीएसटी बिल को लेकर समर्थन का आश्वासन दिया था। आप उम्मीद करते हैं कि यह बिल संसद के अगले सत्र में पास हो पाएगा?
पहली बात हमें यह समझने की जरूरत है कि यह बिल आर्थिक सुधार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस बिल को लेकर बहुत सी सही जानकारी सामने नहीं आ सकी हैं। इस बिल के पास नहीं होने की वजह से न सिर्फ यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल बल्कि दूसरे राज्यो के गरीब लोगों को नुकसान हो रहा है। राज्यसभा में बैठे सांसदों को यह बात समझनी चाहिए। जीएसटी बिल गरीब लोगों के लिए फायदेमंद है। यही कारण है कि ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव या नवीन पटनायक के अलावा दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस बिल के समर्थन में हैं। मुझे उम्मीद है कि यह बिल जरूर पास होगा। इस बिल के फंसे होने की वजह से राज्य 40,000 करोड़ रुपये से वंचित हैं।

आपने जीएसटी का जिक्र करते हुए इगो (अहंकार) शब्द का इस्तेमाल किया था। यह अहंकार का मुद्दा कैसे बन गया?
प्रधानमंत्री इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता है। जो लोग इस बिल में बाधा बन रहे हैं वही इस सवाल का जवाब दे सकते हैं। बावजूद इसके मैं कोशिश करना जारी रखूंगा। मैं उन्हें मनाने के लिए तैयार हूं। मेरा एकमात्र लक्ष्य है, उत्तर प्रदेश जैसे गरीब राज्य और गरीबों की भलाई।
जनता उम्मीद करती है कि काला धन वापस देश में आएंगे और उनके बैंक खातों में डाले जाएंगे। आप इस उम्मीद का मुकाबला कैसे करेंगे?
लोगों के मन में यह आम धारणा है कि जो भी काला धन बनाते हैं वे उसे विदेश में जमा करते हैं। यह मसला हमेशा संसद में अटका, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने एसआईटी बना दी, तब भी पिछली सरकार ने इसे तीन साल अटकाए रखा। साल 2014 के बाद राजनीतिक दल, मीडिया और आम आदमी भांपने लगा कि कहीं गड़बड़ है। तब जाकर ब्लैकमनी अजेंडा बन गया। आज भी मैं कहता हूं कि विदेशी खातों में काला धन है तो विदेशी सरकारों से बात करने के कुछ कायदे भी हैं। हमारी कोशिशों से ही पहली बार जी-20 समिट में ब्लैकमनी मसले पर चर्चा हुई। स्विट्जरलैंड भी खुद आगे आकर बात कर रहा है। हमने मॉरिशस सरकार से भी बात की और पुरानी संधि में बदलाव किया।

ऐसे विलफुल डिफॉल्टर हैं, जो देश से काफी पैसा लेकर भाग गए। लोग पूछ रहे हैं कि क्या मोदी सरकार कार्रवाई करेगी?
यह सवाल लोगों के दिमाग में नहीं है। लोगों का भरोसा है कि अगर इस मसले पर कोई कुछ कर सकता है तो वह मोदी ही हैं और वे ही करेंगे भी। कानून क्या होता है, ये मैं उन लोगों को दिखाऊंगा।

पिछली सरकार से जुड़े भ्रष्टाचार के कई मामले अब उजागर हुए हैं। इनमें अगुस्टा वेस्टलैंड और रक्षा से जुड़े भष्टाचार भी हैं। विपक्ष मोदी सरकार पर राजनीतिक बदले की कार्रवाई का आरोप लगा रहा है। आपका क्या कहना है?
बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो दिखाई नहीं देती हैं। कोई इस चीज को नहीं समझ सकता कि मैं किस तरह की गंदगी का सामना कर रहा हूं। जो काम कर रहा है उसी को पता है कि कितनी गंदगी है। इसके पीछे कई तरह की ताकते हैं। जहां तक अगुस्टा हेलिकॉप्टर सौदे की बात है, मेरा मानना है कि इसके पीछे काफी पेशेवर और अनुभवी लोगों का हाथ है। जांच एजेंसियां प्रोफेशनल तरीके से इसके तह तक जाएंगी और इसमें शामिल लोगों को बेनकाब करेंगी।
अगले सात-आठ महीने में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। आप वाराणसी का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। पूरे देश की नजरें इस चुनाव पर होंगी। हाल में कुछ ऐसे बयान बीजेपी, संघ और दूसरे संगठनों की ओर से आए हैं, जिससे प्रतीत होता है कि यूपी चुनाव में ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक कार्ड खेला जा सकता है। आपको नहीं लगता कि यूपी चुनाव में सांप्रदायिक अजेंडा विकास पर हावी तो नहीं हो जाएगा?
मेरा दृढ़ विश्वास है और यह मेरी प्रतिबद्धता है कि ऐसा नहीं होगा। आपने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान देखा था। मैंने आम चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा था। देश की नई पीढ़ी केवल विकास में विश्वास करती है। मेरा विश्वास है कि सभी समस्याओं का हल विकास के जरिये ही किया जा सकता है। विकास ही उस तनाव को भी कम कर सकता है जिसके बारे में लोग चर्चा करते हैं। हम लोगों को रोजगार, भोजन और वो तमाम सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं, जो उन्हें मिलनी चाहिए। इससे सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी।

क्या सांप्रदायिक बयान देने वालों पर लगाम लगाने की जरूरत नहीं? क्या यह समझा जाए कि धर्म के नाम पर कोई राजनीति नहीं होगी?
मेरा पूर्ण विश्वास है कि देश विकास के मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहिए। और इसके लिए जरूरी है कि देश विकास को लेकर आगे बढ़े। मैं मीडिया से यह कहना चाहूंगा कि वो ऐसे लोगों को हीरो न बनाए जो इस तरह के बयान देते हैं।

लेकिन वे इस तरह बयान लगातार दे रहे हैं।
उन्हें हीरो बनाना बंद कीजिए। वो खुद शांत हो जाएंगे।

चुनावों पर बात करते हैं। दिल्ली और बिहार के बाद असम, पश्चिम बंगाल। इसके बाद पंजाब, यूपी और फिर में गुजरात में विधानसभा चुनाव होगा। क्या आपको नहीं लगता कि देश स्थायी रूप से एक चुनावी साइकिल में फंसा हुआ है?
पिछले संसद सत्र से पहले स्पीकर ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी जिसमें सभी दलों के नेता इस बात पर एकमत थे कि केंद्र और राज्य के चुनाव के साथ होने चाहिए। इनमें से कुछ नेताओं ने कहा कि मोदीजी कुछ भी करिए देश में लगातार होने वाले चुनाव से छुटकारा मिलना चाहिए।

क्या वे आपकी पार्टी के नेता थे?
नहीं, वो मेरी पार्टी के नेता नहीं थे। इसलिए मैं चाहता हूं कि इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए। इसमें गलत क्या है/ एक दिन मैंने कहा कि इस पर चर्चा होनी चाहिए। संसदीय कमिटी में भी इस मसले पर चर्चा हो चुकी है। चुनाव कराना निर्वाचन आयोग का काम है। मैं समझता हूं कि इस मुद्दे पर आयोग को भी एक पत्र लिखना चाहिए। चुनाव का मुद्दा भी कहीं न कहीं कालेधन से जुड़ा हुआ है। अगर देश को कालेधन की समस्या से छुटकारा पाना है तो चुनाव सुधार जरूरी हैं।

मैं समझता हूं कि यह (एक साथ चुनाव) दिलचस्प विचार है। वहीं, क्षेत्रीय पार्टियों को लगता है कि एक साथ चुनाव होने से वे बुरी तरह प्रभावित होंगे और बीजेपी जैसी नैशनल पार्टी को इसका लाभ मिलेगा।
ओडिशा इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। 2014 में लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा में विधानसभा चुनाव हुआ था। लेकिन बीजेपी ओडिशा में कोई लाभ नहीं ले सकी, जबकि केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी। यह इस अंतर को दर्शाता है।

क्या आपके दिमाग में 2019 है?
जिन्होंने मुझे गुजरात में देखा है और जो मुझे पिछले दो साल से देख रहे हैं वो जानते होंगे मैं अराजनैतिक प्रधानमंत्री हूं। चुनाव से इतर मैं कभी भी राजनीति में नहीं पड़ता।

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81% of India Inc. Backs PM’s Internship Scheme: Nirmala Sitharaman Praises Industry’s Game-Changing Support!
January 17, 2025

Union Minister of Finance and Corporate Affairs, Nirmala Sitharaman, praised the overwhelming response from corporate India to the Prime Minister’s Internship Scheme, citing its transformative potential for the youth and the country’s economy. Speaking on the reports that highlight an impressive 81% support from India Inc. for the scheme, the Minister expressed confidence that the initiative would bridge the gap between education and employability while advancing a culture of skill development through Corporate Social Responsibility (CSR).

According to studies conducted by TeamLease and Zeenews, an increasing number of companies have committed to integrating internships into their CSR strategies. Reports indicate that 10% of corporate India plans to onboard interns under the PM Internship Scheme in 2025, marking a milestone for both industry and academia.

Minister Sitharaman emphasized that the PM Internship Scheme is not merely an employment initiative but a comprehensive approach to nurturing a skilled workforce. “This initiative is a step toward empowering our youth with hands-on experience, grooming them to meet the demands of a rapidly progressing global job market” she said.

The reports revealed a growing recognition among businesses that internships are not just beneficial for students but also provide organizations with fresh perspectives, innovative solutions, and a pipeline of future-ready talent. This aligns perfectly with the government’s vision of Atmanirbhar Bharat, where skill development plays a vital role.

Minister Sitharaman highlighted the importance of public-private collaboration in making the scheme a success. “The PM Internship Scheme is a proof of our government’s dedication to strengthen collaboration between academia and industry. This partnership is crucial in ensuring that our youth acquire practical knowledge and technical skills, to go with their academic learning,” she stated.

She also praised the corporate sector for its proactive role in blending internships into their organizational frameworks. With 81% of India Inc. supporting the scheme, it signifies the industry’s alignment with national priorities. The program provides companies with an opportunity to leverage the energy and creativity of the youth, while students gain exposure to industry standards and work culture.

By integrating internships into their CSR initiatives, companies encourage social development while gaining a skilled workforce. Minister Sitharaman emphasized the dual benefits of the PM Internship Scheme, calling it a “win-win” where students gain practical experience, and businesses build future-ready talent while fulfilling social responsibilities.

“The PM Internship Scheme is designed to benefit not just urban students but also those from rural and underserved communities. We are working to create structures that ensure equal access to opportunities, regardless of geographical or socio-economic barriers,” Minister Sitharaman affirmed.

Minister Sitharaman also expressed optimism about the long-term impact of the PM Internship Scheme on India’s socio-economic fabric. “The youth of today are the leaders of tomorrow. By preparing them with industry-relevant skills and real-world exposure, we are investing in the future of our nation” she concluded.

As the PM Internship Scheme continues to gain momentum, it stands as a shining example of the government’s resolve to align education, skill development, and employment opportunities. Minister Nirmala Sitharaman’s remarks showcase the importance of collective effort in creating an ecosystem where the aspirations of the youth converge with the vision of a self-reliant and prosperous India.