25 जुलाई की शाम पीएम नरेंद्र मोदी स्वर्गीय हरमोहन सिंह यादव की 10वी पुण्यतिथि के मौके पर लोगों को संबोधित करेंगे. आज की पीढ़ी को अंदाजा नहीं होगा की आखिर पीएम मोदी इस शख्सियत की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में क्यों सम्मिलित हो रहे हैं. दरअसल पीएम मोदी के इस कार्यक्रम में शामिल होने का मकसद हरमोहन सिंह यादव को यादव समाज के शीर्ष नेता और पिछड़ी जाति और किसानों के उद्धार के लिए जीवन अर्पित करने वाले मसीहा के रूप पूरे देश के सामने एक सम्मान देना है.

2014 में दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद पीएम मोदी ने राष्ट्रपति के पद के लिए पहले रामनाथ कोविंद और अब द्रौपदी मुर्मू को चुन कर देश-दुनिया को जता दिया है कि अनुसूचित जाति और जनजाति को सम्मान दिलाने का जो काम उन्होंने शुरू किया है, वो अनवरत जारी है. सभी वंचित और शोषित वर्गों यानी कतार में खड़े आखिरी व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं के लाभ पहुंचाने तक वो चैन से नहीं बैठने वाले हैं.

इस कड़ी में पीएम मोदी ने हरमोहन यादव को सम्मानित करने का काम किया है. हरमोहन यादव एक लंबे अर्से तक सक्रिय राजनीति में रहे. उनके बेटे सुखराम सिंह यादव भी राज्यसभा के सांसद रहे. उन्होंने कानपुर और आस-पास के इलाकों में कई शिक्षण संस्थाएं खोलीं. हरमोहन सिंह यादव का जन्म 1921 में कानपुर के एक गांव में हुआ था. 31 वर्ष की आयु में 1952 में वो गांव के प्रधान बने. 1970 से 1990 तक वे विधायक के रूप में राजनीति करते रहे. 1991 से 2003 तक वो राज्यसभा के सांसद रहे.

हरमोहन यादव अखिल भारतीय यादव महासभा के अध्यक्ष भी रहे. हरमोहन यादव चौधरी चरण सिंह और राम मनोहर लोहिया के करीबी भी रहे और किसानो के हक के लिए लड़ते हुए जेल भी गए. वे समाजवादी पार्टी के महत्वपूर्ण नेता रहे और मुलायम सिंह यादव के खासे नजदीक भी रहे. चरण सिंह की मृत्यु के बाद हरमोहन यादव ने ही यादव महासभा को प्रस्ताव दिया कि मुलायम सिंह को नेता चुन लिया जाए. इसके बाद से ही मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक ग्राफ बढ़ता चला गया.

सिर्फ मुलायम सिंह यादव को आगे बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि सिख विरोधी दंगो में भी हरमोहन सिंह यादव को अपने इलाके में सिखों की रक्षा करने के लिए दंगा करने उमड़ आई भीड़ को तितर-बितर कर दिया. जाहिर है यादवों के एक आइकॉन और एंटी सिख दंगो के खिलाफ लोहा लेने वाली शख्सियत को पीएम मोदी मान-सम्मान दे रहे हैं. ये कोई पहला मौका नहीं है कि पीएम मोदी अपनी पार्टी की विचारधारा के विरोधियों के योगदान को नई पहचान दे रहे हैं. पीएम मोदी के जीवन मे ऐसे कई उदाहरण हैं, जब उन्होंने राजनीतिक तल्खियां भुला कर विरोधियों को सम्मानित है.

यादव क्षत्रपों से संबंध

मुलायम सिंह यादव पीएम मोदी के विरोधी भले ही रहें हों लेकिन पीएम के हमेशा उनसे अच्छे संबंध रहे हैं. पीएम मोदी ने उनके हर जन्मदिन पर उन्हें बधाई दी है.

फरवरी 2015 में पीएम मोदी खुद सैफई गांव गए थे, जहां वह मुलायम के भतीजे तेज प्रताप और लालू यादव की बेटी राजलक्ष्मी की शादी में शामिल हुए थे.

जब लालू प्रसाद यादव की तबियत खराब हुई तो पीएम ने तेजस्वी यादव को फोन कर उनका हाल जाना था. बिहार विधान सभा के 100 साल पूरे होने पर आयोजित समारोह में पहुंचे पीएम मोदी ने तेजस्वी से मिलने पर सबसे पहले लालू यादव का हाल पूछा था.

एम करुणानिधि

नवंबर 2017 में पीएम मोदी चेन्नई में करुणानिधि को देखने उनके घर चले गए थे.

ये भी तब जब एआईएडीएमके सत्ता में थी और दोनों पार्टियों की तल्खी जग जाहिर है. यहां भी पीएम ने बड़ा दिल दिखाया और दलगत राजनीति से ऊपर उठते हुए करुणानिधि के घर गए.

देवगौड़ा

पीएम मोदी के उनसे हमेशा से अच्छे संबंध रहे हैं. देवगौड़ा ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा है की पीएम मोदी हमेशा उनके ट्वीट और सवालों का जवाब देते हैं. ये वही देवगौड़ा हैं जिन्होंने 2014 में ऐलान किया था कि अगर बीजेपी अपने दम पर जीती तो वे लोकसभा से इस्तीफा दे देंगे. लेकिन बाद में जब समय मांगा तो पीएम मोदी तुरंत मिलने के लिए तैयार हो गए.

देवगौड़ा को चलने में तकलीफ थी. जब उनकी कार संसद पहुंची तो पीएम मोदी ने खुद बाहर आ कर स्वागत किया. भावुक देवगौड़ा ने कहा था की पीएम मोदी का अपने एक बड़े विरोधी का ऐसा स्वागत करना दिल को छू गया. देवगौड़ा ने कहा था कि उनके इस्तीफा को भी पीएम मोदी ने ये कहते हुए मना कर दिया की चुनाव में ऐसे बयान चलते रहते हैं.

गुलाम नबी आजाद

फरवरी 2021 में पीएम मोदी ने आजाद के राज्यसभा से विदाई समारोह पर एक भावुक भाषण दिया. पीएम मोदी का गला भर आया जब उन्होंने जिक्र किया जब दोनों मुख्यमंत्री थे.

कश्मीर में एक आतंकी हमला हुआ था और गुजरात के लोग फंसे थे. तब भी आजाद साहब ने अपने परिवार की तरह उनकी चिंता की थी. उसे याद कर के ही पीएम मोदी ने कहा की आपको रिटायर नहीं होने दूंगा. आपके लिए हमारे दरवाजे सदा खुले रहेंगे. वाकई एक पीएम का ऐसे भावुक होना और एक विरोधी नेता के लिए बोलते हुए गला भर जाना दर्शाता है कि मोदी कितने बड़े स्टेट्समैन हैं.

सोनिया गांधी

अगस्त 2016 में सोनिया गांधी वाराणसी में अपने एक रोड शो के दौरान बीमार हो गईं थीं और वो तुरंत दिल्ली के लिए रवाना भी हो गईं थीं.

पीएम मोदी ने उनके जल्दी ठीक होने की कामना भी की और प्रियंका गांधी और शीला दीक्षित से उनका हाल पूछा था. पीएम ने विशेष विमान और डॉक्टर भेजते की पेशकश भी की थी. ऐसे ही एक गुजरात दौरे पर सोनिया गांधी के चॉपर में तकनीकि खराबी आई तो पीएम ने उनका हाल पूछा था.

नवल किशोर शर्मा

B2004 से 2009 गुजरात के राज्यपाल रहे. दिल्ली से लेकर हर तरफ विरोधियों की मौजूदगी के बीच शर्मा के कांग्रेसी होने के बाद भी मोदी से अच्छे संबंध रहे. मोदी मानते हैं कि उनको शासन के कई गुर शर्मा ने ही सिखाए.

प्रणब मुखर्जी

पीएम मोदी के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से भी मधुर संबंध रहे. पीएम मोदी ने प्रणब बाबू के पद छोड़ने के वक्त चिट्ठी भी लिखी. जिसे प्रणब बाबू ने शेयर भी किया था. अपनी किताब में भी प्रणब दादा ने पीएम मोदी से अच्छे संबंधों का जिक्र किया था. दोनों नेता विरोधी दलों से थे. दो राज्यों से थे. दोनों शीर्ष पद पर थे. फिर भी ऐसे प्रगाढ़ रिश्ते आज की राजनीति पर एक अमिट छाप छोड़ रहे हैं.

शरद पवार

राजनीति के दो विपरीत ध्रुवों पर रहने के बावजूद दोनों के संबंध कमाल के रहे हैं. पीएम मोदी हमेशा कहते हैं की सहकारिता और कृषि क्षेत्र पर पवार भाऊ की पकड़ से सीखने को ही मिला है. तभी तो पीएम मोदी 2 बार बारामती की यात्रा कर चुके हैं.

विरोधी दल के नेताओं को पद्म अवार्ड

पीएम मोदी राजनीति को किनारे रखते हुए विरोधी पक्ष के नेताओं को भी पद्म पुरस्कार देने से पीछे नहीं हटते हैं. पीएम मोदी का मानना है कि राजनीति से परे हट कर किसी नेता के योगदान को सम्मानित करना गलत नहीं है. तभी तो प्रणब मुखर्जी को 2019 में भारत रत्न, गुलाम नबी आजाद, शरद पवार, संगमा, तरुण गोगोई, मुजफ्फर बेग, तार लोचन सिंह और बुद्धदेब भट्टाचार्य को पद्म विभूषण से नवाजा जा चुका है. पीएम मोदी ने एक कदम आगे बढ़ कर उन नेताओं के लिए भी किया जो उनके सबसे बड़े विरोधी रहे. ये दुनिया के सामने है. ये दर्शाता है कि वो ऐसे पीएम हैं जो दलगत राजनीति से हट कर सोचते हैं और काम करते हैं. अब हरमोहन यादव को सम्मानित कर देश को उनकी याद दिलाएंगे, जिन्हें समाजवादी पार्टी भी भुला चुकी है.


डिस्कलेमर :

यह उन कहानियों को कलेक्ट करने का प्रयास है जो लोगों के जीवन पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और उनके प्रभाव पर उपाख्यान/ओपिनियन/एनालिसिस का वर्णन करती हैं।

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भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार
September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)