प्रगति हर भारतीय की है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस समावेशी विकास और राष्ट्रीय आत्मविश्वास की भावना के प्रतीक हैं। उनका जीवन यात्रा, गुजरात की साधारण पृष्ठभूमि से लेकर भारत को वैश्विक मंच पर मार्गदर्शन देने तक, उस राष्ट्र की उभरती कहानी को दर्शाती है जो उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। हमारे लिए छत्तीसगढ़ में ये गुण दूर की आदर्श बातें नहीं बल्कि जीती-जागती वास्तविकताएं हैं।


बस्तर के जंगलों से लेकर पीएम-श्री स्कूलों की कक्षाओं तक, नई सड़कों से लेकर गांवों के घरों में नल का पानी तक, उनके नेतृत्व की छाप पूरे राज्य में दिखाई देती है। छत्तीसगढ़ के साथ उनका जुड़ाव राज्य के गठन (2000) से पहले का है। 1998 से 2000 के बीच, जब यह अभी भी मध्य प्रदेश का हिस्सा था, मोदी संगठनात्मक प्रभारी के रूप में काम कर रहे थे और इस क्षेत्र के साथ गहरा संबंध बनाए।


बाद में, 2014 से 2018 के बीच केंद्रीय मंत्री के रूप में, मैंने स्टील, खनन, श्रम और रोजगार मंत्रालयों में उनके तहत काम किया। उनके खनिज-समृद्ध राज्यों पर ध्यान ने खनिज और खनन (विकास और विनियमन) अधिनियम में संशोधनों जैसे सुधारों को आकार दिया, जिससे छत्तीसगढ़ के लिए राजस्व और अवसर बढ़े।

बस्तर—जो कभी डर का पर्याय था—अब शांति और अवसर की कहानी बता रहा है। अब सड़कें दूर-दराज के गांवों को बाजारों से जोड़ती हैं, स्कूल और होस्टल खुले हैं और बच्चे वापस कक्षाओं में जा रहे हैं। महिलाएं आयुष्मान भारत स्वास्थ्य कार्ड और उज्ज्वला गैस कनेक्शन प्राप्त कर चुकी हैं। कल्याण और सुरक्षा के बढ़ने से हिंसा में भी बहुत कमी आई है।


उनके निर्देशन में वरिष्ठ नेताओं सहित 450 से ज़्यादा माओवादियों का सफाया किया जा चुका है। मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सल-मुक्त बनाने का लक्ष्य निकट है। बेहतर सुरक्षा व्यवस्था ने बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और विकास पहलों को राज्य के हर कोने तक पहुँचाने में मदद की है, जिससे सतत प्रगति का माहौल बना है।

छत्तीसगढ़ के इंफ्रास्ट्रक्चर में केंद्र सरकार के निवेश ने राज्य की कायापलट कर दी है। रेलवे का लगभग पूर्ण विद्युतीकरण, नए आवास और धान की सुनिश्चित खरीद ने आत्मविश्वास बढ़ाया है। किसानों को देश में धान के लिए सबसे ज्यादा एमएसपी का फायदा मिल रहा है—3,100 रुपये प्रति क्विंटल, जिसकी अधिकतम सीमा 21 क्विंटल प्रति एकड़ है। संबद्ध गतिविधियों पर जोर देने के कारण छत्तीसगढ़ ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे "दुग्ध क्रांति" की नींव रखी जा रही है।


ग्रामीण सशक्तिकरण पहल भी उतनी ही परिवर्तनकारी हैं। 31 लाख से ज्यादा परिवारों को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से जोड़ा गया है और लखपति दीदी और वन धन विकास केंद्र जैसी योजनाओं से आदिवासी महिलाओं और वन-उपज संग्रहकर्ताओं को, खासकर लघु वन उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के तहत, बेहतर मुनाफा हासिल करने में मदद मिली है।

प्रमुख राष्ट्रीय योजनाओं ने छत्तीसगढ़ में जीवन को स्पष्ट रूप से बदल दिया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 26 लाख से ज़्यादा घरों ने सुरक्षा और सम्मान प्रदान किया है। जल जीवन मिशन नल के पानी की पहुँच बढ़ा रहा है, जबकि सौभाग्य विद्युतीकरण, सौर सब्सिडी, स्वच्छ भारत पहल के तहत शौचालय और डिजिटल भुगतान बस्तर और उसके आसपास के गाँवों में बदलाव ला रहे हैं। UPI, जनधन खाते, मुद्रा ऋण और DBT ने वित्तीय समावेशन को और मजबूत किया है।


राष्ट्रीय स्तर पर, मोदी के नेतृत्व ने विस्तार और स्पष्टता दी है। GST ने भारत को एक ही बाजार में बदल दिया। मेक इन इंडिया ने उत्पादन को बढ़ाया, डिजिटल इंडिया ने नागरिकों को तकनीक के माध्यम से सशक्त बनाया, और जन धन–आधार–मोबाइल त्रिनिटी ने लाभ का सीधे हस्तांतरण सुनिश्चित किया। सामाजिक सुधार, आर्थिक बदलाव के साथ-साथ आगे बढ़े हैं, जबकि कृषि अब भी मुख्य चिंता का विषय बनी हुई है।


रिकॉर्ड एमएसपी के साथ-साथ पीएम-किसान योजना, किसानों को सालाना 6,000 रुपये प्रदान कर रही है, जिसकी 20वीं किस्त अगस्त 2025 में जारी की जाएगी। राष्ट्रीय बाजरा अभियान खेती के पैटर्न को नया रूप दे रहा है, पोषण बढ़ा रहा है और निर्यात को बढ़ावा दे रहा है, जिससे विशेष रूप से छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को लाभ हो रहा है।

इन उपलब्धियों के पीछे एक अनुशासन और सादगी से परिपूर्ण व्यक्ति का हाथ है। मोदी की लंबी दिनचर्या योग और ध्यान पर आधारित है, जबकि कविता और साहित्य के प्रति उनका प्रेम संतुलन प्रदान करता है। पचहत्तर वर्ष की आयु में भी, उनका ध्यान भारत के अमृत काल पर केंद्रित है—जिसका लक्ष्य स्वतंत्रता की शताब्दी, 2047 तक देश को दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल करना है।


(लेखक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हैं)

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September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)