17 सितंबर को, जब हमारा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का जन्मदिन मनाता है, तो माणा के लोग भारत की सीमा के बिल्कुल किनारे से इस उत्सव में शामिल होते हैं। हम हाथ जोड़कर भगवान बद्रीनाथ से उनकी दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं। हमारे लिए यह दिन सिर्फ़ अपने प्रधानमंत्री को बधाई देने का नहीं, बल्कि अपने गाँव के सफ़र को याद करने का भी है, भारत के "आखिरी गाँव" कहे जाने से लेकर देश का "प्रथम गाँव" बनने तक के गौरवशाली सफ़र का।

मेरा जन्म और पालन-पोषण माणा में हुआ। जहाँ तक मुझे याद है, हमारे प्रवेश द्वार पर लगे साइनबोर्ड पर लिखा था: भारत का आखिरी गाँव, माणा। हर बार जब हम उस पार जाते, तो हमारे दिल में कुछ डूब जाता। ऐसा लगता था जैसे हमें देश की स्मृतियों के किनारे धकेल दिया गया हो। हालाँकि हमने अपनी जान और देश के प्रति प्रेम से सीमा की रक्षा की, फिर भी हम "आखिरी" समझे जाने के दर्द के साथ जीते रहे। हम चुपचाप सहते रहे, क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प नहीं था।

लेकिन हमारी खामोशी में कभी निराशा नहीं थी। जब दिल्ली बहुत दूर लगती थी, तब भी हमें विश्वास था कि एक दिन बदलाव की बयार हम तक ज़रूर पहुँचेगी। वह क्षण तब आया जब मोदी जी हमारे प्रधानमंत्री बने। हमने देखा था कि कैसे उन्होंने भुज के बाद गुजरात का पुनर्निर्माण किया, कैसे वे केदारनाथ त्रासदी में डटे रहे। हमें विश्वास था कि उनके नेतृत्व में, भारत के भूले-बिसरे कोने आखिरकार दिखाई देंगे।

वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम से हमारी उम्मीदें हकीकत में बदल गईं। पहली बार हम गाँव वालों को लगा कि सरकार की धड़कन हमारे पहाड़ों तक पहुँच रही है। फिर वो दिन आया, 21 अक्टूबर, 2022, जो हमारी यादों में हमेशा के लिए अंकित हो जाएगा। जब प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि "हर सीमावर्ती गाँव देश का प्रथम गाँव है", तो हमारी आँखों से आँसू बह निकले। उस एक वाक्य ने वर्षों की उपेक्षा का बोझ उतार दिया। इसने हमें सम्मान दिया। इसने हमें बताया: हम अंत नहीं, हम शुरुआत हैं।

अप्रैल 2023 में, जब माणा के साइनबोर्ड को बदलकर "प्रथम भारतीय गाँव, माणा" कर दिया गया, तो ऐसा लगा जैसे इतिहास ने एक पन्ना पलट दिया हो। वह बोर्ड सिर्फ़ मेटल और रंग-रोगन से कहीं बढ़कर है, यह हमारा गौरव है, हमारी पहचान है, हमारी आवाज़ है।

पिछले एक दशक में, हमारे जीवन में आए बदलाव हर जगह दिखाई दे रहे हैं। जो सड़क कभी दूर का सपना लगती थी, वह अब मुख्यधारा के भारत को हमारे दरवाज़े तक ले आई है। जर्जर झोपड़ियों की जगह सुरक्षित घरों ने ले ली है। हर घर में पीने का साफ़ पानी बहता है। उज्ज्वला योजना की बदौलत अब महिलाओं को चूल्हे के धुएँ में खाँसना नहीं पड़ता। जो युवा कभी शहरों की ओर पलायन करने के बारे में सोचते थे, वे अब गाइड के रूप में, होमस्टे में, या बद्रीनाथ धाम और हमारे गाँव आने वाले तीर्थयात्रियों को स्थानीय उत्पाद बेचने का काम ढूंढ रहे हैं। यहाँ तक कि ITBP, जो हमारी रक्षा करती है, अब हमारी सब्ज़ियाँ और जड़ी-बूटियाँ खरीदती है, जिससे हम आत्मनिर्भरता में भागीदार बन रहे हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब हमारा दिल उपेक्षा से भारी नहीं है। मंत्री, अधिकारी और कर्मचारी अब हमसे मिलने आते हैं। जब आपदाएँ आती हैं, तो हमें अकेलापन महसूस नहीं होता, NDRF और SDRF हमारे पास पहुँचते हैं, और यहाँ तक कि हमारे प्रधानमंत्री भी दुःख की घड़ी में हमारे पास आए हैं, किसी दूर के शासक की तरह नहीं, बल्कि हमारे अपने बेटे की तरह।

यही बात माणा को उसकी नई आत्मा देती है। हम सिर्फ़ नक्शे पर एक गाँव नहीं हैं; हम भारत के प्रथम प्रवेश द्वार हैं, जो अपनी परंपराओं, संस्कृति और शक्ति को दुनिया तक पहुँचाते हैं। माणा का परिवर्तन इस बात का प्रमाण है कि जब सरकार अपनी सुदूर सीमाओं की भी परवाह करती है, तो पूरा देश ऊँचा उठता है।

आज, ग्राम प्रधान के रूप में, मैं गर्व और कृतज्ञता के साथ लिख रहा हूँ। हम, माणा के लोग, जानते हैं कि "अंतिम" से "प्रथम" तक का हमारा सफ़र हमारे प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता से ही संभव हुआ है। उनके जन्मदिन पर, हम न केवल शुभकामनाएँ देते हैं, बल्कि हमें न केवल विकास, बल्कि सम्मान, पहचान और आशा देने के लिए हार्दिक धन्यवाद भी देते हैं।

भारत के प्रथम गांव माणा से हम मोदी जी को अपना प्यार, प्रार्थना और प्रणाम भेजते हैं।

(लेखक उत्तराखंड के माणा गांव के प्रधान हैं)

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भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार
September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)