- On Wednesday, Bharatiya Janata Party (BJP) prime ministerial candidate Narendra Modi spoke to Asian News International (ANI), discussing his thoughts on the Lok Sabha Elections and what he would do if elected.
- He said that he wants the credibility of the Indian institutions and the respect of Constitutional organisations to increase and that if the country stands on multiple pillars of constitutional institutions, it will emerge stronger
- Modi also said that Congress will deliver worst performance in its history, NDA its best
Explore More
Media Coverage
Nm on the go
पीएम मोदी ने Nikkei को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि BRICS समूह "बहुध्रुवीय विश्व को आकार देने में अहम भूमिका निभाता है।" उन्होंने कहा कि यह विशेष रूप से "ऐसे समय में है जब वर्ल्ड-ऑर्डर दबाव में है और ग्लोबल गवर्नेंस की संस्थाओं में प्रभावशीलता या विश्वसनीयता का अभाव है।"
हाल के महीनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए "जवाबी" टैरिफ ने वैश्विक व्यापार को हिलाकर रख दिया है और भू-राजनीतिक बदलावों को जन्म दिया है। बुधवार सेअमेरिका, भारत पर 50% शुल्क लगा रहा है, क्योंकि वाशिंगटन रूसी तेल खरीद को लेकर नई दिल्ली पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है।
पीएम मोदी, जिन्होंने शुक्रवार को जापान की दो दिवसीय यात्रा शुरू की, ने Nikkeiके Editor-in-Chief Hiroshi Yamazaki से कहा कि समूह का एजेंडा - जो अपने मूल सदस्यों ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से बढ़कर 10 देशों को शामिल करने वाला बन गया है - नई दिल्ली के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों, जैसे ग्लोबल गवर्नेंस रिफॉर्म, रक्षा, बहुपक्षवाद, डेवलपमेंट और AI, से जुड़ा है।
प्रस्तुत हैं, बातचीत के प्रमुख अंश...
प्रश्न: अपनी जापान यात्रा के महत्व और उन विशिष्ट क्षेत्रों के बारे में अपने विचार बताइए जहाँ जापानी तकनीक और निवेश की आवश्यकता है।
उत्तर: जापान की यात्रा हमेशा सुखद होती है। इस बार मेरी जापान यात्रा प्रधानमंत्री [शिगेरु] इशिबा के साथ वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए है। हालाँकि पिछले साल से मैं प्रधानमंत्री इशिबा से दो बार बहुपक्षीय कार्यक्रमों के दौरान मिल चुका हूँ, फिर भी यह यात्रा विशेष है।
हम हर साल एक-दूसरे के देश में शिखर सम्मेलन आयोजित करने की परंपरा की ओर लौट रहे हैं। वार्षिक शिखर सम्मेलन हमें अपने राष्ट्रों के नेताओं के रूप में एक साथ बैठने, उभरती राष्ट्रीय और वैश्विक प्राथमिकताओं पर विचारों का आदान-प्रदान करने, convergence के नए क्षेत्रों की खोज करने और सहयोग के मौजूदा अवसरों को मज़बूत करने का अवसर प्रदान करता है।
भारत और जापान दो जीवंत लोकतंत्र और दुनिया की दो अग्रणी अर्थव्यवस्थाएँ हैं। देखिए, हम दोनों दुनिया की शीर्ष पाँच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं। हमारे संबंध विश्वास, मित्रता और पारस्परिक सद्भावना पर आधारित हैं। इसलिए, तेज़ी से बदलती तकनीक के दौर में, नियम-आधारित व्यवस्था को बनाए रखने, विश्व अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और घरेलू स्तर पर विकास को नई गति प्रदान करने में हमारी भूमिका है। हमारे दृष्टिकोण convergent हैं और हमारे संसाधन एक-दूसरे के complementaryहैं, जो भारत और जापान को स्वाभाविक साझेदार बनाता है। 2022 में जापान के साथ मेरी पिछली वार्षिक शिखर बैठक के बाद से, दुनिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई बदलाव आए हैं। हमारी अपनी नीतिगत प्राथमिकताएँ भी विकसित हुई हैं।
उदाहरण के लिए, आर्थिक सुरक्षा या सप्लाई-चेन के लचीलेपन को ही लें। वैश्वीकरण का आधार ही जाँच के घेरे में है। हर देश व्यापार और टेक्नोलॉजी में विविधता लाने की आवश्यकता महसूस कर रहा है। कई देश इस प्रयास में भारत को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में देख रहे हैं। स्वाभाविक रूप से, इस बार, मैं प्रधानमंत्री इशिबा के साथ इन बड़े बदलावों का संयुक्त रूप से आकलन करने और आने वाले वर्षों में हमारी साझेदारी को स्थिरता और विकास की दिशा में ले जाने के लिए नए लक्ष्य और तंत्र निर्धारित करने का प्रयास करने की आशा करता हूँ।
जब मैं भारतीय राज्य गुजरात का मुख्यमंत्री था, तब से ही जापान और जापान के लोगों के साथ मेरी गहरी मित्रता रही है। मैं भारत-जापान साझेदारी का बहुत बड़ा समर्थक रहा हूँ। यह बंधन निरंतर मजबूत होता जा रहा है।
दरअसल, यहाँ आने से कुछ दिन पहले ही, आपने देखा होगा कि मैं एक कार्यक्रम का हिस्सा था जहाँ सुजुकी समूह के पहले बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन को हरी झंडी दिखाई गई थी। यह तथ्य कि इनका निर्माण भारत में होगा और दुनिया भर में निर्यात किया जाएगा, भारत में बहुत उत्साह पैदा कर रहा है।
इसी स्थान पर, हमने तोशिबा, डेंसो और सुजुकी के एक संयुक्त प्रयास का भी उद्घाटन किया, जो बैटरी इकोसिस्टम और ग्रीन मोबिलिटी के क्षेत्र में क्रांति लाएगा।
ये सिर्फ़ एक क्षेत्र के कुछ उदाहरण हैं। तो, आप कल्पना कर सकते हैं कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत कई अन्य सहयोगों में कितना उत्कृष्ट कार्य हो रहा है।
लेकिन यह समय की माँग है और दुनिया की भी ज़रूरत है कि हम इस साझेदारी को अगले स्तर पर ले जाएँ।
भारत-जापान संबंध एक विशाल फलक हैं। हम साथ मिलकर बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं, चाहे वह व्यापार और निवेश, विज्ञान और टेक्नोलॉजी, रक्षा और सुरक्षा, या लोगों के बीच आदान-प्रदान का क्षेत्र हो।
जापान की तकनीकी क्षमता और भारत द्वारा प्रदान किए गए निवेश के अवसर हमें एक आदर्श साझेदार बनाते हैं। हमारा अगली पीढ़ी का इंफ्रास्ट्रक्चर कार्यक्रम - पीएम गति शक्ति - और स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, सेमीकंडक्टर मिशन, एआई मिशन और हाई टेक्नोलॉजी विकास योजना जैसी अन्य पहल असीम संभावनाएँ प्रदान करती हैं।.
प्रश्न: मानव संसाधन का आदान-प्रदान जापान-भारत संबंधों का एक प्रमुख स्तंभ है। भारत जापान से किस प्रकार की प्रतिभाओं को आकर्षित करने की आशा करता है, और क्या भारत से जापान भेजे जाने वाले लोगों की कोई लक्षित संख्या है?
उत्तर: भारत और जापान के लोगों के बीच अपार सद्भावना स्वाभाविक रूप से मानव संसाधन के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देती है। भारत में कुशल, प्रतिभाशाली और तकनीक-प्रेमी युवाओं की दुनिया की सबसे बड़ी आबादी है। और आप जहाँ भी जाएँ, प्रवासी भारतीय अपनेprofessionalism, अनुशासन और कड़ी मेहनत के लिए जाने जाते हैं।
मैं दोनों देशों के बीच एक स्वाभाविक पूरकता देखता हूँ। भारत के हाई-स्किल्ड और सेमी-स्किल्ड प्रोफेशनल,छात्र और वैज्ञानिक जापान से बहुत कुछ सीख सकते हैं और साथ ही, वे जापान के विकास में योगदान दे सकते हैं। इसी प्रकार, भारत के मैन्युफैक्चरिंग, स्वच्छ ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर और हाई-टेक्नोलॉजी से संबंधित क्षेत्रों में जापानी विशेषज्ञता, निवेश और प्रबंधकीय कौशल का हार्दिक स्वागत है।
इस माध्यम से, मैं जापानी लोगों को "अतुल्य भारत" की खोज और अनुभव के लिए भी आमंत्रित करता हूँ। हम भारत में और भी अधिक जापानी पर्यटकों और छात्रों का स्वागत करना चाहेंगे।
मैं प्रधानमंत्री के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों के इन पहलुओं पर चर्चा करने और दोनों देशों के बीच लोगों के आपसी आदान-प्रदान के लिए नई महत्वाकांक्षाएँ स्थापित करने के लिए उत्सुक हूँ।
प्रश्न: भारत ने 2032 के आसपास जापान के नवीनतम शिंकानसेन मॉडल, E10, को पेश करने का निर्णय लिया है। क्या यह सही है कि E10 का उत्पादन जापान और भारत में संयुक्त रूप से किया जाएगा? भारत की मेक इन इंडिया पहल पर संयुक्त उत्पादन से आपको क्या प्रभाव पड़ने की उम्मीद है? क्या आपका लक्ष्य अंततः भारत से अन्य ग्लोबल साउथ देशों को शिंकानसेन ट्रेनों का निर्यात करना भी है?
उत्तर: मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल परियोजना भारत और जापान के बीच एक प्रमुख परियोजना है। हम वर्षों से इस परियोजना के साथ जापान के जुड़ाव की सराहना करते हैं। हम इसके लिए अपनी सबसे उन्नत और भविष्य की हाई-स्पीड रेल तकनीक को पेश करने की जापान की इच्छा का भी स्वागत करते हैं। MAHSR परियोजना के अलावा, अब हमने भारत में हाई-स्पीड रेल के एक बड़े नेटवर्क का लक्ष्य रखा है। इस प्रयास में जापानी फर्मों की भागीदारी का स्वागत है।
जापान के पास प्रणालियाँ हैं। भारत गति, कौशल और पैमाना लाता है। हमारा संयोजन अद्भुत परिणाम दे रहा है।
चाहे ऑटोमोबाइल हो, ऑटो कंपोनेंट हो या इलेक्ट्रॉनिक्स, ऐसी कई जापानी कंपनियों के उदाहरण हैं जो भारत में निर्माण कर रही हैं और दुनिया को सफलतापूर्वक उत्पाद निर्यात कर रही हैं।
यदि हम साझेदारी का सही मॉडल ढूंढ सकें और इस क्षेत्र में भी सफलता की कहानी दोहरा सकें, तो हम दुनिया के लिए और अधिक उत्पादों और सेवाओं का co-innovate and co-develop करने में सक्षम होंगे।
प्रश्न: क्वाड ने जापान-भारत संबंधों को अगले स्तर पर पहुँचा दिया है। ऐसा कहा जा रहा है कि वर्ष के अंत में चारों देशों के नेताओं की एक शिखर बैठक भारत में होगी। आप क्वाड से क्या भूमिका की अपेक्षा करते हैं, और विशेष रूप से जापान से क्या भूमिका की अपेक्षा करते हैं?
उत्तर: यह स्मरणीय है कि क्वाड पहली बार 2004 की विनाशकारी हिंद महासागर सुनामी के बाद चार लोकतंत्रों के बीच एक spontaneous coordination के रूप में अस्तित्व में आया था। इसकी शुरुआत सार्वजनिक हित साधने के एक मंच के रूप में हुई थी, लेकिन समय के साथ, इसने दिखाया कि हम मिलकर क्या हासिल कर सकते हैं। इसलिए, यह धीरे-धीरे सहयोग के एक व्यापक और अधिक महत्वाकांक्षी ढाँचे के रूप में विकसित हुआ है।
आज, क्वाड ने वास्तविक गति पकड़ ली है। इसका एजेंडा व्यापक क्षेत्रों को कवर करता है। समुद्री और स्वास्थ्य सुरक्षा, साइबर रेजिलिएंस, समुद्र के नीचे केबल कनेक्टिविटी, STEM शिक्षा, disaster-resilient infrastructure और यहाँ तक कि logistics coordination भी।
क्वाड ने हिंद-प्रशांत के तीन प्रमुख उप-क्षेत्रों - दक्षिण पूर्व एशिया, प्रशांत द्वीप समूह और हिंद महासागर क्षेत्र - के साथ सहयोग पर भी ज़ोर दिया है। इसमें आसियान, प्रशांत द्वीप समूह फोरम और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन की केंद्रीय भूमिका को स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई है।
पहलों और परियोजनाओं से परे, इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि क्वाड किस चीज़ के लिए खड़ा है। जीवंत लोकतंत्रों, खुली अर्थव्यवस्थाओं और बहुलवादी समाजों के रूप में, हम एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्ध हैं। साथ मिलकर, क्वाड एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध है, जो दबाव से मुक्त हो, अंतर्राष्ट्रीय कानून पर आधारित हो, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करे, और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की ओर उन्मुख हो।
प्रश्न: ब्रिक्स के भीतर, भारत और ब्राज़ील ने बहुत अच्छे संबंध बनाए हैं। हालाँकि, अमेरिकी टैरिफ मुद्दों के कारण भारत और ब्राज़ील दोनों को नुकसान हुआ है। आप भविष्य में एक संगठन के रूप में ब्रिक्स के विकास की कल्पना कैसे करते हैं?
उत्तर: ब्रिक्स एक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय समूह है जिसका एक महत्वपूर्ण एजेंडा है जिसमें भारत के लिए महत्वपूर्ण कई मुद्दे शामिल हैं जैसे ग्लोबल गवर्नेंस में सुधार, ग्लोबल-साउथ की आवाज़ को बढ़ावा देना, शांति और सुरक्षा, बहुपक्षवाद को मज़बूत करना, विकास संबंधी मुद्दे और आर्टिफिशियल-इंटेलिजेंस।
बहुध्रुवीय विश्व को आकार देने में ब्रिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका है, खासकर ऐसे समय में जब वर्ल्ड-ऑर्डर दबाव में है और ग्लोबल गवर्नेंस की संस्थाओं में प्रभावशीलता या विश्वसनीयता का अभाव है।
प्रश्न: जैसा कि आपने 15 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में उल्लेख किया था, भारत को औपनिवेशिक शासन के दौरान गुलामी जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा। हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि उन्नत राष्ट्र अभी भी ग्लोबल-साउथ के विकास को एक खतरे के रूप में देखते हैं और इसे दबाने का प्रयास कर रहे हैं। इस मामले पर आपका क्या दृष्टिकोण है?
उत्तर: जब वैश्विक संगठन 20वीं सदी की मानसिकता के साथ काम करते हैं, तो वे 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना कैसे कर सकते हैं? इसीलिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और ब्रेटन वुड्स संस्थानों सहित वैश्विक संस्थाओं में सुधार का लगातार आह्वान किया है ताकि उन्हें प्रासंगिक, प्रभावी और विश्वसनीय बनाया जा सके।
हम एक बहुध्रुवीय और समावेशी विश्व व्यवस्था के पक्षधर हैं, जहाँ ग्लोबल-साउथ की आवाज़ को वैश्विक बातचीत में उचित स्थान मिले। आखिरकार, ग्लोबल-साउथ मानवता के एक बड़े और बढ़ते हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है और उनकी प्रगति से पूरे विश्व को लाभ होता है। निर्णय लेने की रूपरेखा में वैग्लोबल-साउथ के उचित प्रतिनिधित्व और भागीदारी के बिना ग्रह के भविष्य की कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती।
भारत इस बहस में सबसे आगे रहा है। चाहे हमारी G20 अध्यक्षता हो, ग्लोबल-साउथ की आवाज़ शिखर सम्मेलन हो या अन्य बहुपक्षीय कार्यक्रम, हम हमेशा मानव-केंद्रित वैश्वीकरण के एक मॉडल पर जोर देते रहे हैं।
प्रश्न: अतीत में, जापानी निर्माता सेमीकंडक्टर और लिक्विड क्रिस्टल पैनल के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी थे। हालाँकि, अब ये विरासत उद्योग हैं। ऐसी कंपनियों की संख्या बढ़ रही है जो इस तकनीक को भारत में ट्रांसफर करना चाहती हैं और भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम बनाना चाहती हैं। इससे चीन पर निर्भरता कम करने में दोनों पक्षों को लाभ होगा, और जापान भी अपनी तकनीक को नया जीवन दे सकेगा। इस पर प्रधानमंत्री की क्या राय है?
उत्तर: विज्ञान और उच्च तकनीक हमारी सरकार की एक बड़ी प्राथमिकता है। सेमीकंडक्टर इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। भारत में यह उद्योग तेज़ी से बढ़ रहा है। छह यूनिट्स पहले ही स्थापित हो चुकी हैं, और चार और निर्माणाधीन हैं। और इसी साल के अंत तक, आप बाज़ार में "मेड इन इंडिया" चिप्स देखेंगे।
हम केंद्र (केंद्र सरकार) और राज्यों, दोनों स्तरों पर सेमीकंडक्टर क्षेत्र को मज़बूत नीतिगत समर्थन और प्रोत्साहन दे रहे हैं। हमें एक मज़बूत डेमोग्राफी डिविडेंड प्राप्त है। इसका लाभ उठाने के लिए, हम हज़ारों कुशल पेशेवरों को प्रशिक्षित भी कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य न केवल भारत की ज़रूरतों को पूरा करना है, बल्कि वैश्विक तकनीकी क्षेत्र को भी सहयोग देना है।
जैसा कि आप जानते हैं, जापान सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में तकनीकी रूप से अग्रणी रहा है, और मशीनरी और विशिष्ट रसायनों जैसे क्षेत्रों में अभी भी इसकी अद्वितीय क्षमताएँ हैं।
आपने डिस्प्ले क्षेत्र का ज़िक्र किया। यह भी एक दिलचस्प क्षेत्र है। क्योंकि भारत में दृश्य-श्रव्य उत्पादों और अनुप्रयोगों की माँग बढ़ रही है। साथ ही, तकनीक के प्रति रुचि भी बढ़ रही है। भारत और जापान के लिए इन सभी क्षेत्रों में सहयोग करना बेहद ज़रूरी है।
हमने 2023 में G2G समझौता ज्ञापन (सरकार-से-सरकार समझौता ज्ञापन) और कई व्यावसायिक सहयोगों के साथ सेमीकंडक्टर क्षेत्र में पहले ही एक मज़बूत शुरुआत कर दी है।
एक ओर हमारा आकर्षक बाज़ार, कुशल मैनपावर, बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था और नीतिगत समर्थन है। दूसरी ओर जापानी तकनीकी विशेषज्ञता और प्रबंधकीय कौशल है। इन दोनों के एक साथ आने से, साथ मिलकर हासिल की जा सकने वाली उपलब्धियों की कोई सीमा नहीं है।
प्रश्न: रक्षा सहयोग के संदर्भ में, भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ टेक्नोलॉजी-ट्रांसफर और संयुक्त उत्पादन शुरू कर दिया है। भारत जापान से किन विशिष्ट तकनीकों का अनुरोध कर रहा है और किस प्रकार के संयुक्त उत्पादन पर विचार किया जा रहा है?
उत्तर: रक्षा और सुरक्षा में सहयोग जापान के साथ हमारी विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी का एक प्रमुख स्तंभ है। इसकी गति दोनों देशों के बीच राजनीतिक विश्वास के स्तर और एक शांतिपूर्ण, स्थिर, समृद्ध और दबाव-मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझा दृष्टिकोण से उत्पन्न होती है।
जापान के साथ हमारी रक्षा उपकरण और टेक्नोलॉजी साझेदारी पर हमारा मुख्य ध्यान केंद्रित है। यूनिकॉर्न (यूनिफाइड कॉम्प्लेक्स रेडियो एंटीना) परियोजना पर चर्चाएँ अच्छी तरह से आगे बढ़ रही हैं, जो भारतीय नौसेना की परिचालन क्षमताओं को और बढ़ाएगी। भारतीय नौसेना और जापानी समुद्री आत्मरक्षा बल भारत में जहाज रखरखाव के क्षेत्र में भी संभावित सहयोग की संभावनाएँ तलाश रहे हैं।
भारतीय रक्षा उद्योग क्षेत्र ने पिछले 10 वर्षों में मजबूत वृद्धि देखी है और इसमें कई स्वदेशी क्षमताएँ हैं। यह इक्विपमेंट और टेक्नोलॉजीज के co-development and co-production में सार्थक सहयोग के अवसर प्रदान करता है।
प्रश्न: प्रधानमंत्री मोदी और जापान के governors के बीच एक बैठक निर्धारित है। किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा की गई यह पहली ऐसी पहल है। इस बैठक की योजना क्यों बनाई गई?
उत्तर:हाल के वर्षों में, हमारे संबंधों में विशेष रूप से सकारात्मक रुझान देखना बहुत उत्साहजनक रहा है। भारतीय राज्य और जापानी प्रांत अपनी साझेदारियों को तेज़ी से गहरा कर रहे हैं।
मुझे बताया गया है कि अकेले इसी वर्ष, भारत के आधा दर्जन से अधिक मुख्यमंत्रियों ने निवेश, पर्यटन और अन्य संबंधों को बढ़ावा देने के लिए अपने आधिकारिक और व्यावसायिक प्रतिनिधिमंडलों के साथ जापान का दौरा किया है। इसी प्रकार, जापानी प्रांतों में भारत को जानने, साथ मिलकर काम करने, साथ मिलकर व्यापार करने और हमारी सापेक्षिक शक्तियों और लाभों से लाभ उठाने की गहरी भावना है।
मैंने आपको पहले ही बताया था कि जब मैं एक भारतीय राज्य का मुख्यमंत्री था, तब भी मैंने जापान के साथ कितनी लगन से काम किया था। मेरा हमेशा से दृढ़ विश्वास रहा है कि हमारे राज्य और प्रान्त हमारे संबंधों के लाभों को जमीनी स्तर तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
मुझे बताया गया है कि प्रधानमंत्री इशिबा भी जापान के कायाकल्प में क्षेत्रों की भूमिका को महत्व देते हैं। इसीलिए, इस यात्रा के दौरान जापानी प्रान्तों के राज्यपालों के साथ अपनी बैठकों में, मैं उनके विचार सुनने के लिए उत्सुक हूँ कि भारत और भारतीय उनके साथ और अधिक निकटता से कैसे काम कर सकते हैं और हम उनके प्रान्तों के लिए उनके दृष्टिकोण में कैसे योगदान दे सकते हैं।
वास्तव में, इस यात्रा में मेरी प्राथमिकताओं में से एक हमारे लोगों के बीच और भी अधिक जुड़ाव को प्रोत्साहित करना है, जिसमें हमारे राज्य और प्रान्त इस यात्रा में प्रमुख स्टेकहोल्डर्सहों।
सोर्स: Nikkei Asia

