प्रधानमंत्री मोदी आर्थिक विकास, सामाजिक कल्याण और तकनीकी नवाचार के आधार पर एक परिवर्तनकारी भारत देखते हैं। उनके विजन में 'मेक इन इंडिया' और 'डिजिटल इंडिया' जैसी पहलें शामिल हैं, जिसका उद्देश्य मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाना, डिजिटल डिवाइड को पाटना और टेक्नोलॉजी के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाना है।

सरकार के नौ वर्ष पूरे होने पर, आइए हम भारत के लिए प्रधानमंत्री मोदी के विजन के नौ निर्णायक पहलुओं पर गौर करें।

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर बताते हैं कि मोदी सरकार के तहत सभी निर्णयों और नीति-निर्माण में हमेशा ‘लॉन्ग टर्म विजन’ को प्राथमिकता दी गई है। यहाँ तक कि अगले 25 वर्षों के लिए विकसित भारत के लिए पीएम मोदी द्वारा बार-बार उपयोग की जाने वाली अमृत-काल की अवधारणा भी इसी विजन से मेल खाती है। पीएम मोदी के पास भारत की सांस्कृतिक विरासत और इतिहास को उसके आधुनिक और विकसित भविष्य से जोड़ने की अद्भुत क्षमता है।

उद्योगपति बाबा कल्याणी बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी हमेशा एक 'आत्मनिर्भर भारत' का निर्माण करने का विजन रखते रहे हैं, जहाँ भारतीय सेना के लिए रक्षा उपकरणों का निर्माण स्वदेशी तरीके से किया जाता है। उन्होंने यह भी इंगित किया कि कैसे गणतंत्र दिवस परेड के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने 21 तोपों की सलामी के दौरान भारत में बने हुए आर्टिलरी गन का उपयोग करने पर जोर दिया।

बिहार भाजपा की नेता श्रीमती किरण घई अपने गाँव की एक लाभार्थी की कहानी सुनाती हैं, जहाँ प्रेमा नाम की लाभार्थी मोदी सरकार द्वारा 'जीवन सुगमता' से जुडी सुविधा के बारे में बताती हैं। जब किरण जी ने प्रेमा जी से पूछा कि आने वाले चुनावों में वह किसे वोट देंगी, तो उन्होंने जवाब दिया, "मोदीजी को।" उन्होंने बताया कि उनकी पिछली सभी पीढ़ियाँ बिजली की सुविधा से वंचित थीं और केवल मोदी सरकार में ही उन्हें और उनके गाँव को बिना रुकावट के लगातार बिजली मिल रही है। उन्होंने आगे कहा कि पिछली पीढ़ी की महिलाओं को घरेलू प्रदूषण का सामना करना पड़ता था और आज महिलाएँ रसोई गैस का लाभ उठाने में सक्षम हैं, जिससे उनका जीवनयापन आसान हो गया है।

केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने कई ऊँचे और रसूखदार लोगों के 'लाल बत्ती' वाले वाहनों के 'VIP कल्चर' को समाप्त कर दिया है, जिन्हें VIP के रूप में प्राथमिकता मिलती थी। प्रधानमंत्री मोदी हमेशा यह मानते रहे हैं कि वह 'प्रधान सेवक' हैं और लोगों की, सेवा के सम्मानजनक मूल्यों के माध्यम से सेवा की जानी चाहिए।

भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे बताते हैं कि भारतीय सेना ने भारत-म्यांमार और भारत-पाकिस्तान सीमाओं पर विभिन्न सर्जिकल स्ट्राइक्स कार्रवाई की हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि भारत हमेशा इस तरह की हमले करने की क्षमता रखता था, लेकिन सरकार द्वारा राजनीतिक इच्छाशक्ति और स्वीकृति केवल प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में प्रदान की गई, जिससे भारत की 'राष्ट्रीय सुरक्षा' को मजबूती मिली है।

केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर का कहना है कि भारत के 75 साल के इतिहास में पीएम मोदी एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन्होंने उच्च और निम्न दोनों स्तरों पर 'भ्रष्टाचार और बिचौलियों की संस्कृति' को खत्म करने की इच्छा प्रकट की और प्रयास किए। पीएम मोदी का हमेशा से मानना रहा है कि अगर ब्यूरोक्रेट्स ईमानदार हैं तो भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा और यह मोदी सरकार के शासन की पहचान बन गई है।

15वें वित्‍त आयोग के अध्‍यक्ष एन. के. सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा वित्तीय ढिलाई और ‘फ्रीबी कल्‍चर’ को हतोत्साहित किया है और वित्तीय सुधार को बढ़ावा दिया है। उनका हमेशा से मानना रहा है कि यदि कम सीएडी के साथ हमारे मैक्रोइकॉनोमिक आधार मजबूत हैं, तो बड़े विदेशी भंडार और कम ऋण सेवाक्षमता के साथ भारत समृद्ध होगा। इसलिए, महामारी के दौरान भी पीएम मोदी ने सरकारी खजाने को फ्रीबी संस्कृति में लिप्त होने से रोका, जो बड़े और असेवायोग्य ऋण पैदा करता।

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भारत के 'ट्रांसफॉर्मेटिव इंफ्रास्ट्रक्चर' के लिए पीएम मोदी के विजन का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी स्मार्ट शहरों में रेट्रोफिटिंग की अवधारणा लाए हैं, जो एक बहुत ही व्यावहारिक दृष्टिकोण है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक सिटी के लिए आईडिया को तब ट्रांसफॉर्म किया जब उन्होंने सड़कों के निर्माण के साथ-साथ शौचालयों के निर्माण पर भी जोर दिया और साथ ही सॉलिड और लिक्विड वेस्ट निपटान प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए उचित कदम उठाए। इससे शहरों की गुणवत्ता और इन मापकों पर प्रदर्शन में सुधार हुआ और शहरों को स्मार्ट शहरों में बदलने में मदद मिली।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के सीईओ डॉ. आर. एस. शर्मा ने उल्लेख किया है कि कैसे पीएम मोदी के पास 'डिजिटल इंडिया' और संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की भव्य दृष्टि है। पीएम मोदी ने हमेशा भारत को एक डिजिटल इकॉनमी और एक नॉलेज पॉवर के रूप में बनाने का लक्ष्य रखा है।

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भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार
September 27, 2025

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई उपस्थिति और संगठनात्मक नेतृत्व की खूब सराहना हुई है। लेकिन कम समझा और जाना गया पहलू है उनका पेशेवर अंदाज, जिसे उनके काम करने की शैली पहचान देती है। एक ऐसी अटूट कार्यनिष्ठा जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री और बाद में भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए दशकों में विकसित की है।


जो उन्हें अलग बनाता है, वह दिखावे की प्रतिभा नहीं बल्कि अनुशासन है, जो आइडियाज को स्थायी सिस्टम में बदल देता है। यह कर्तव्य के आधार पर किए गए कार्य हैं, जिनकी सफलता जमीन पर महसूस की जाती है।

साझा कार्य के लिए योजना

इस साल उनके द्वारा लाल किले से दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भावना साफ झलकती है। प्रधानमंत्री ने सबको साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया है। उन्होंने आम लोगों, वैज्ञानिकों, स्टार्ट-अप और राज्यों को “विकसित भारत” की रचना में भागीदार बनने के लिए आमंत्रित किया। नई तकनीक, क्लीन ग्रोथ और मजबूत सप्लाई-चेन में उम्मीदों को व्यावहारिक कार्यक्रमों के रूप में पेश किया गया तथा जन भागीदारी — प्लेटफॉर्म बिल्डिंग स्टेट और उद्यमशील जनता की साझेदारी — को मेथड बताया गया।

GST स्ट्रक्चर को हाल ही में सरल बनाने की प्रक्रिया इसी तरीके को दर्शाती है। स्लैब कम करके और अड़चनों को दूर करके, जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करने की लागत घटा दी है और घर-घर तक इसका असर जल्दी पहुंचने लगा है। प्रधानमंत्री का ध्यान किसी जटिल रेवेन्यू कैलकुलेशन पर नहीं बल्कि इस बात पर था कि आम नागरिक या छोटा व्यापारी बदलाव को तुरंत महसूस करे। यह सोच उसी cooperative federalism को दर्शाती है जिसने जीएसटी परिषद का मार्गदर्शन किया है: राज्य और केंद्र गहन डिबेट करते हैं, लेकिन सब एक ऐसे सिस्टम में काम करते हैं जो हालात के हिसाब से बदलता है, न कि स्थिर होकर जड़ रहता है। नीतियों को एक living instrument माना जाता है, जिसे अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार ढाला जाता है, न कि कागज पर केवल संतुलन बनाए रखने के लिए रखा जाता है।

हाल ही में मैंने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 मिनट का समय मांगा और उनकी चर्चा में गहराई और व्यापकता देखकर प्रभावित हुआ। छोटे-छोटे विषयों पर उनकी समझ और उस पर कार्य करने का नजरिया वाकई में गजब था। असल में, जो मुलाकात 15 मिनट के लिए तय थी वो 45 मिनट तक चली। बाद में मेरे सहयोगियों ने बताया कि उन्होंने दो घंटे से अधिक तैयारी की थी; नोट्स, आंकड़े और संभावित सवाल पढ़े थे। यह तैयारी का स्तर उनके व्यक्तिगत कामकाज और पूरे सिस्टम से अपेक्षा का मानक है।

नागरिकों पर फोकस

भारत की वर्तमान तरक्की का बड़ा हिस्सा ऐसी व्यवस्था पर आधारित है जो नागरिकों की गरिमा सुनिश्चित करती है। डिजिटल पहचान, हर किसी के लिए बैंक खाता और तुरंत भुगतान जैसी सुविधाओं ने नागरिकों को सीधे जोड़ दिया है। लाभ सीधे सही नागरिकों तक पहुँचते हैं, भ्रष्टाचार घटता है और छोटे बिजनेस को नियमित पैसा मिलता है, और नीति आंकड़ों के आधार पर बनाई जाती है। “अंत्योदय” — अंतिम नागरिक का उत्थान — सिर्फ नारा नहीं बल्कि मानक बन गया है और प्रत्येक योजना, कार्यक्रम के मूल में ये देखने को मिलता है।

हाल ही में मुझे, असम के नुमालीगढ़ में भारत के पहले बांस आधारित 2G एथेनॉल संयंत्र के शुभारंभ के दौरान यह अनुभव करने का सौभाग्य मिला। प्रधानमंत्री इंजीनियरों, किसानों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ खड़े होकर, सीधे सवाल पूछ रहे थे कि किसानों को पैसा उसी दिन कैसे मिलेगा, क्या ऐसा बांस बनाया जा सकता है जो जल्दी बढ़े और लंबा हो, जरूरी एंज़ाइम्स देश में ही बनाए जा सकते हैं, और बांस का हर हिस्सा डंठल, पत्ता, बचा हुआ हिस्सा काम में लाया जा रहा है या नहीं, जैसे एथेनॉल, फ्यूरफुरल या ग्रीन एसीटिक एसिड।

चर्चा केवल तकनीक तक सीमित नहीं रही। यह लॉजिस्टिक्स, सप्लाई-चेन की मजबूती और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन तक बढ़ गई। उनके द्वारा की जा रही चर्चा के मूल केंद्र मे समाज का अंतिम व्यक्ति था कि उसको कैसे इस व्यवस्था के जरिए लाभ पहुंचाया जाए।

यही स्पष्टता भारत की आर्थिक नीतियों में भी दिखती है। हाल ही में ऊर्जा खरीद के मामलें में भी सही स्थान और संतुलित खरीद ने भारत के हित मुश्किल दौर में भी सुरक्षित रखे। विदेशों में कई अवसरों पर मैं एक बेहद सरल बात कहता हूँ कि सप्लाई सुनिश्चित करें, लागत बनाए रखें, और भारतीय उपभोक्ता केंद्र में रहें। इस स्पष्टता का सम्मान किया गया और वार्ता आसानी से आगे बढ़ी।

राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दिखावे के बिना संभाला गया। ऐसे अभियान जो दृढ़ता और संयम के साथ संचालित किए गए। स्पष्ट लक्ष्य, सैनिकों को एक्शन लेने की स्वतंत्रता, निर्दोषों की सुरक्षा। इसी उद्देश्य के साथ हम काम करते हैं। इसके बाद हमारी मेहनत के नतीजे अपने आप दिखाई देते हैं।

कार्य संस्कृति

इन निर्णयों के पीछे एक विशेष कार्यशैली है। उनके द्वारा सबकी बात सुनी जाती है, लेकिन ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाती है। सबकी बातें सुनने के बाद जिम्मेदारी तय की जाती है, इसके साथ ये भी तय किया जाता है कि काम को कैसे करना है। और जब तक काम पूरा नहीं हो जाता है उस पर लगातार ध्यान रखा जाता है। जिसका काम बेहतर होता है उसका उत्साहवर्धन भी किया जाता है।

प्रधानमंत्री का जन्मदिन विश्वकर्मा जयंती, देव-शिल्पी के दिवस पर पड़ना महज़ संयोग नहीं है। यह तुलना प्रतीकात्मक भले हो, पर बोधगम्य है: सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे चिरस्थायी धरोहरें संस्थाएं, सुस्थापित मंच और आदर्श मानक ही होते हैं। आम लोगों को योजनाओं का समय से और सही तरीके से फायदा मिले, वस्तुओं के मूल्य सही रहें, व्यापारियों के लिए सही नीति और कार्य करने में आसानी हो। सरकार के लिए यह ऐसे सिस्टम हैं जो दबाव में टिकें और उपयोग से और बेहतर बनें। इसी पैमाने से नरेन्द्र मोदी को देखा जाना चाहिए, जो भारत की कहानी के अगले अध्याय को आकार दे रहे हैं।

(श्री हरदीप पुरी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, भारत सरकार)