The Covid-19 pandemic has presented us an opportunity to reshape the world order, to reorient our thinking: PM Modi
Humanity as a whole must be at the center of our thinking and action: PM Modi
We must remember that we hold this planet merely as trustees for our future generations: PM Modi

महामहिम!

मित्रों नमस्कार!

मानव इतिहास में एक परिवर्तनकारी क्षण पर रायसीना डायलॉग का यह संस्करण आयोजित हुआ है। एक वैश्विक महामारी बीते एक साल से पूरे विश्व को तबाह कर रही है। ऐसी आखिरी वैश्विक महामारी एक सदी पहले आई थी। भले ही, मानवता ने तब से अब तक कई संक्रामक बीमारियों का सामना किया है, लेकिन कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए आज विश्व पूरी तरह से तैयार नहीं है।

हमारे वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और उद्योग ने कुछ प्रश्नों के जवाब दिए हैं।

वायरस क्या है?

यह कैसे फैलता है?

हम इसके फैलाव को कैसे धीमा कर सकते हैं?

हम टीका कैसे बनाते हैं?

हम एक स्तर पर और फुर्ती के साथ टीके कैसे लगाएं?


इन और ऐसे कई अन्य प्रश्नों के कई जवाब सामने आए हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि कई और जवाब अभी आने बाकी हैं। लेकिन वैश्विक विचारकों और नेताओं के रूप में हमें निश्चित तौर पर स्वयं से कुछ और सवाल पूछने चाहिए।

अभी एक साल से ज्यादा समय से, हमारे समाज के सबसे अच्छे दिमाग इस महामारी से लड़ने में व्यस्त हैं। विश्व की सभी सरकारें सभी स्तरों पर इस महामारी को रोकने और नियंत्रित करने के प्रयास कर रही हैं। यह क्यों आया? क्या शायद ऐसा इसलिए हुआ कि आर्थिक विकास की दौड़ में मानवता के कल्याण की चिंता कहीं पीछे छूट गई है।

क्या शायद यह इसलिए हुआ है, क्योंकि प्रतिस्पर्धा के युग में, सहयोग की भावना को भुला दिया गया है। ऐसे प्रश्नों के जवाब हमारे हालिया इतिहास में खोजे जा सकते हैं। मित्रों, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध की भयावहता ने एक नई विश्व व्यवस्था बनाने की जररूत पैदा की थी। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, अगले कुछ दशकों में कई व्यवस्थाएं और संस्थाएं बनाई गईं, लेकिन दो युद्धों की छाया में उनका उद्देश्य केवल एक ही प्रश्न का जवाब तलाशने तक सीमित रहा कि कैसे तृतीय विश्व युद्ध को रोका जाए?

आज, मैं आपको बताता हूं कि यह प्रश्न ही गलत था, जिसके चलते रोग के कारणों को समझे बिना ही एक रोगी के लक्षणों का इलाज करने के लिए सारे कदम उठाए गए या इसे अलग तरीके से कहें तो सारे कदम पिछले युद्ध को दोबारा होने देने से रोकने के लिए उठाए गए। वास्तव में, भले ही मानवता ने तृतीय विश्व युद्ध का सामना नहीं किया है, लेकिन लोगों के जीवन में हिंसा का खतरा कम नहीं हुआ है। कई छद्म युद्धों और अंतहीन आतंकी हमलों के साथ, हिंसा की आशंका हर समय मौजूद है।


तो, सही प्रश्न क्या होगा?

उनमें शामिल हो सकते हैं:

हमारे पास अकाल और भूख क्यों हैं?

हमारे पास गरीबी क्यों है?

या ज्यादा बुनियादी तौर पर

हम उन समस्याओं को दूर करने में सहयोग क्यों नहीं कर सकते हैं, जिनसे पूरी मानवता को खतरा है?

मेरा विश्वास है कि अगर हमारी सोच इन लाइनों के अनुरूप होती तो बहुत विविध समाधान निकल आते।

मित्रों!

अभी भी देर नहीं हुई है। पिछले सात दशकों की चूक और गलतियों को भविष्य के बारे में हमारी विचार-प्रक्रिया में बाधा बनने देने की जरूरत नहीं है। कोविड-19 महामारी ने हमें विश्व व्यवस्था को नए आकार में ढालने, अपनी सोच को नए सिरे से व्यवस्थित करने का अवसर दिया है। हमें ऐसी व्यवस्थाएं बनानी चाहिए, जो आज की समस्याओं और भविष्य की चुनौतियों का समाधान करें और हमें पूरी मानवता के बारे में सोचना चाहिए, न कि सिर्फ उन लोगों के बारे में, जो हमारी सीमाओं में रहते हैं। मानवता समग्र रूप से हमारी सोच और गतिविधियों के केंद्र में होनी चाहिए।

मित्रों!

इस महामारी के दौरान, हमारे अपने विनम्र उपायों, अपने स्वयं के सीमित संसाधनों के भीतर, हमने भारत में कई कदम उठाने के प्रयास किए हैं। हमने अपने 1.3 अरब नागरिकों को महामारी से बचाने की कोशिशें की हैं। साथ ही हमने महामारी से निपटने में अन्य लोगों के प्रयासों में भी सहायता देने की कोशिश की है। अपने पास-पड़ोस में, हमने संकट से निपटने के लिए हमारी समन्वित क्षेत्रीय प्रतिक्रिया को भी प्रोत्साहित किया है। पिछले साल हमने डेढ़ सौ से ज्यादा देशों के साथ दवाएं और सुरक्षात्मक उपकरणों को साझा किया। हम पूर्ण रूप से समझते हैं कि मानव जाति इस महामारी को तब तक नहीं हरा पाएगी जब तक कि हम इसके लिए, सभी जगहों पर, अपने सभी तरह के भेदों को भुलाकर, बाहर नहीं आते हैं। यही वजह है कि इस साल कई बाधाओं के बावजूद, हमने 80 से ज्यादा देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की है। हम जानते हैं कि आपूर्ति बहुत कम है। हम जानते हैं कि मांग बहुत ज्यादा है। हम जानते हैं कि पूरी मानव जाति के टीकाकरण होने में एक लंबा समय लगेगा। लेकिन इसके साथ हम यह भी जानते हैं कि आशाएं मायने रखती हैं। यह सबसे अमीर देशों के नागरिकों के लिए भी जितना मायने रखती है, उतना ही कमजोर देशों के नागरिकों के लिए भी। और इसलिए हम महामारी के खिलाफ लड़ाई में पूरी मानवता के साथ अपने अनुभवों, अपनी विशेषज्ञता और अपने संसाधनों को साझा करना जारी रखेंगे।

मित्रों!

जैसा कि इस वर्ष रायसीना डायलॉग में हम वर्चुअल माध्यम से जुड़े हैं, मैं आपसे मानव केंद्रित दृष्टिकोण के लिए एक सशक्त आवाज के रूप में आगे आने की अपील करता हूं, जैसा कि दूसरे मामलों में हमें प्लान ‘ए’ और प्लान ‘बी’ रखने की आदत हो सकती है, लेकिन यहां दूसरी पृथ्वी ‘बी’ नहीं है, सिर्फ एक ही पृथ्वी है और इसलिए हमें यह याद रखना चाहिए कि हम अपनी भविष्य की पीढ़ी के लिए इस ग्रह के केवल ट्रस्टी हैं।

मैं आपको उस विचार के साथ छोड़कर जाऊंगा और अगले कुछ दिनों में बहुत उपयोगी चर्चा के लिए आपको शुभकामनाएं देता हूं। अपनी बात पूरी करने से पहले, मैं उन सभी गणमान्य व्यक्तियों को धन्यवाद देना चाहता हूं, जो इन चर्चाओं में हिस्सा ले रहे हैं। मैं डायलॉग के इस सत्र में बहुमूल्य उपस्थिति के लिए महामहिम, रवांडा के राष्ट्रपति और डेनमार्क के प्रधानमंत्री को विशेष तौर पर धन्यवाद देता हूं। मैं अपने मित्र ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष को धन्यवाद देना चाहता हूं, जो इस डायलॉग में बाद में शामिल होंगे।

अंत में, अन्य सभी लोगों की तरह महत्वपूर्ण, सभी आयोजकों के प्रति मेरा आभार और हार्दिक शुभकामनाएं। उन्होंने तमाम चुनौतियों के बावजूद इस साल का रायसीना डायलॉग आयोजित करने के लिए शानदार काम किया है।

धन्यवाद। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।

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Prime Minister shares Sanskrit Subhashitam highlighting virtues that lead to inner strength
December 18, 2025

The Prime Minister, Shri Narendra Modi, shared a Sanskrit Subhashitam —
“धर्मो यशो नयो दाक्ष्यम् मनोहारि सुभाषितम्।

इत्यादिगुणरत्नानां संग्रहीनावसीदति॥”

The Subhashitam conveys that a person who is dutiful, truthful, skilful and possesses pleasing manners can never feel saddened.

The Prime Minister wrote on X;

“धर्मो यशो नयो दाक्ष्यम् मनोहारि सुभाषितम्।

इत्यादिगुणरत्नानां संग्रहीनावसीदति॥”