मंच पर विराजमान पंजाब के लोकप्रिय मुख्यमंत्री परम आदरणीय प्रकाश सिंह बादल जी, मंत्री परिषद के मेरे सभी साथी, मध्यप्रदेश से पधारे हुए डॉ. कुशमारिया जी, श्रीमान् अशोक गुलाटी जी, डेनमार्क जो इस कार्यक्रम में हमारा पार्टनर कंट्री है, श्रीमान् एंडर्स ए आर्डिसन, अनेक देशों से पधारे हुए सारे डिग्नेटरीज, मंचस्थ सभी महानुभाव और देश के कोने-कोने से आए हुए सभी मेरे किसान भाइयों..!

आप सबका महात्मा गांधी और सरदार पटेल की इस पुण्य भूमि में मैं स्वागत करता हूँ। गुजरात में और हिन्दुस्तान में इस प्रकार का ये पहला प्रयास है। विश्व के अनेक देश एक एग्रीकल्चर समिट के पार्टनर बने हैं, शरीक हुए हैं। वैसे अच्छा होता कि ये काम दिल्ली में बैठी हुई सरकार करती, लेकिन मैंने सोचा कोई करे या ना करे, हम इंतजार क्यों करें..? ये देश हमारा भी तो है, हम सबका है। चाहे किसान नागालेंड का हो, मिजोरम का हो, पंजाब का हो, कश्मीर का हो, तमिलनाडु का हो, बिहार का हो, मध्यप्रदेश का हो, झारखंड का हो, छत्तीसगढ़ का हो, ये भी तो हमारे भाई-बहन हैं, उनका भी तो भला होना चाहिए..! क्यों ना हम कृषि के संबंध में एक नए सिरे से सोचें..! अनुभव ये आया है कि हिन्दुस्तान के आधे से अधिक किसानों को ये पता भी नहीं होगा कि सरकार में भी कोई कृषि विभाग होता है। कोई कनेक्ट नहीं है, सरकार सरकार के ठिकाने पर है, किसान किसान के ठिकाने पर है, यूनिवर्सिटियाँ यूनिवर्सिटीयों के ठिकाने पर है। गुजरात के पिछले कुछ वर्षों के अनुभव से मैं कहता हूँ कि अगर हम सरकार की चार दीवारों से बाहर निकलें, गाँव से जुड़े, किसान से जुड़े, हमारी युनिवर्सिटियों को जोड़ें, हमारे रिसर्च स्कॉलरर्स को जोड़ें, फर्टीलाइजर पैदा करने वालों को जोड़े, बीजली सप्लाई करने वालों को जोड़े, पैस्टीसाइड करने वालों को जोड़े, यानि जितने भी इन कामों से जुड़े हुए लोगों को जोड़तें हैं, एक्सपीरियंस करते हैं, मिलजुल कर एक रणनीति बनाते हैं, तो कैसा चमत्कार होता है ये गुजरात के किसानों ने करके दिखाया है..!

मित्रों, गुजरात एक रेगिस्तान, और उधर पाकिस्तान..! नदी नहीं है हमारे पास, मुश्किल से एक नर्मदा और एक ताप्ती। हिन्दुस्तान के एग्रीकल्चर के मैप पर कभी गुजरात का नामोनिशान नहीं था। लेकिन ये व्यू बदलने के कारण, किसानों के पास सही बात पहुंचने के कारण हमें बहुत बड़ा लाभ मिला है। ये लाभ का हक केवल गुजरात को ही नहीं हो सकता है, हिन्दुस्तान का हर किसान इसका लाभ ले सकता है। उसमें से हमें विचार आया कि सरकार से ज्यादा किसान प्रोग्रेसिव होता है, प्रगतिशील होता है, रिस्क लेने को तैयार होता है, एक्सपेरिंमेंट करने को तैयार होता है और हिन्दुस्तान के हर जिले में कोई ना कोई एक किसान है जिसने अपनी बुद्घि से, अपनी समझ से कुछ ना कुछ नया किया है। और इसलिए हमें विचार आया कि क्यों ना हम हिन्दुस्तान के हर एक जिले से जो प्रगतिशील किसान है उसे बुलाएं, उसकी बात सुने, समझें, इसका सम्मान करें और आज मुझे गर्व से कहना है कि इस कार्यक्रम में जो सभी किसान आएं हैं, वो लोग प्रदर्शनी देखने जाएंगे तो सभी इस प्रकार के प्रगतिशील किसानों ने क्या प्रगति की है, उसके अलग रचना की है। आप जा कर के उसे देख सकते हैं, उससे बातचीत करके उससे समझ सकते हैं। इससे इतनी ज्यादा जानकारियाँ मिलती हैं, इतना अनुभव मिलता है कि जिसका लाभ आने वाले दिनों में होने वाला है..!

उसी प्रकार से टैक्नोलॉजी में भी बहुत रेवोल्यूशन हुए हैं। ना सिर्फ हिन्दुस्तान में, हिन्दुस्तान के बाहर भी कृषि संबंधित टैक्नोलॉजी में बहुत बड़ा बदलाव आया है। क्यों ना हम उन सारी चीजों को लाएं, बुलाएं, समझें..! मैं एक बार इज़राइल के एग्रीकल्चर फेयर को देखने गया था। और मैं देख रहा था कि हिन्दुस्तान के करीब-करीब सभी जिलों से किसान लाखों रूपया खर्च करके इज़राइल आए थे और वो उस पूरे मेले को घूम-घूम कर देख रहे थे, समझने की कोशिश कर रहे थे, लिख रहे थे। उसके मन में कुछ करने की इच्छा थी, वो ज्ञान, इन्फोर्मेशन की तलाश में था। और हमारे मन में विचार आया था कि लाखों रूपया खर्च करके हमारा किसान इज़राइल जाता है, क्यों ना हम पूरी दुनिया को हमारे यहाँ ले आएं, ताकि हमारा किसान अपने घर बैठ कर के इन चीजों को देख पाए, समझ पाए..! ये पूरा इवेंट, ये समिट, ये प्रयास देश के किसानों के लिए है, देश के गाँव के लिए है, देश के आने वाले कृषि क्षेत्र के विकास के लिए है और उस सपनों को पूरा करने के लिए ये हमने कोशिश की है..!

Inaugural Function of Vibrant Gujarat Agriculture Summit 2013

भाइयों-बहनों, मुझे बताया गया कि समिट में 29 स्टेट्स, 29 राज्य, 2 यूनियन टेरेटरीज और हिन्दुस्तान के 542 डिस्ट्रिक्ट के किसान यहाँ मौजूद हैं..! 542 जिलों से किसान आए हों, सामान्य किसान, ये शायद देश की पहली घटना हुई होगी, जो इतने बड़े समिट में हिस्सा ले रहे हैं। गुजरात बाहर से चार हजार से अधिक किसान यहाँ पहुंचे हैं। महाराष्ट्र में गणेशोत्सव का बहुत बड़ा पर्व होता है उसके बावजूद भी महाराष्ट्र से बहुत बड़ी तादाद में हमारे किसान भाई यहाँ मौजूद हैं और मेरे लिए खुशी की बात है कि गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर ये समिट हो रहा है और गणेश जी विघ्नहर्ता हैं, आने वाले दिनों में विघ्नहर्ता गणेश हमारे गाँव के हमारे किसानों के सामने जितने भी विघ्न हैं, उन विघ्नों से मुक्ति दिलाएंगे, ये मुझे पूरा भरोसा है, विश्वास है, मेरी श्रद्घा है..!

भाइयों-बहनों, यहाँ अनेक विषयों पर चर्चा होगी। जैसा हमारे गुलाटी जी कह रहे थे कि भाई, आने वाले दिनों में पानी का उपयोग हमारे सामने सबसे बडी चुनौती होगी, और ये सही बात है और इसलिए गुजरात ने एक मंत्र लिया है, जिस मंत्र को लागू करते हुए हम काम कर रहे हैं, ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’, पानी के एक-एक बूंद से, उसका माहात्म्य समझते हुए अधिकतम फसल कैसे पैदा हो, इस मंत्र को लेकर आगे बढ़ना है। और जिस राज्य ने कृषि में पानी का माहात्म्य समझा... पानी के प्रभाव का भी माहात्म्य समझना पड़ता है और पानी के अभाव का भी माहात्म्य समझना पड़ता है, ये कोई स्केयरसिटी वाला विषय नहीं है, अधिक पानी भी संकट पैदा कर सकता है..! तो पानी के प्रभाव से भी कृषि बचे, पानी के अभाव से भी कृषि बचे और उस समस्या का समाधान ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’, इस मंत्र को हम चरितार्थ करेंगे तब निकलेगा। गुजरात में, चालीस-पैतालिस साल की गुजरात की यात्रा, 1960 में गुजरात ने अलग से अपना काम शुरू किया। गुजरात में सिर्फ 12,000 हैक्टेयर भूमि में माइक्रो-इरिगेशन का प्रबंध हुआ था, स्प्रिंकलर्स, ड्रिप इरिगेशन, 12,000 हैक्टेयर में... हमने पिछले एक दशक में इस स्थिति को बदल कर के करीब नौ लाख हैक्टेयर भूमि में माइक्रो-इरिगेशन का प्रबंध किया और उसका परिणाम ये आया है कि पानी तो बचा, मेहनत भी बच रही है और फसल भी अच्छी हो रही है..!

किसानों को भी लग रहा है कि हमें वैज्ञानिक तरीके से खेती करने की दिशा में जाना पड़ेगा। हमारी परंपरागत खेती है, उसका माहात्म्य है। सदियों से हमारे पूर्वजों ने जो विधा को विकसित किया है उसका माहात्म्य है, लेकिन समय की माँग ऐसी है कि हमें उसमें आमूलचूल परिवर्तन की दिशा में जाना पड़ेगा। जमीन के टुकड़े छोटे होते जा रहे हैं, परिवार का विस्तार हो रहा है। पहले जो भूमि थी उसके दो टुकड़े, फिर छह टुकड़े, फिर आठ टुकड़े... एक-एक परिवार के सदस्य के पास जमीन कम होती जा रही है। कम जमीन में ज्यादा फसल की चिंता अनिवार्य बन गई है। मित्रों, हमारे देश में जमीन के क्षेत्रफल की रक्षा... आपके पास दो हैक्टेयर भूमि है तो उसकी रक्षा कैसे हो, आपके पास 5 हैक्टेयर भूमि है तो उसकी रक्षा कैसे हो..! ऊस पर तो राजनेता तो काफी अपना दिमाग खपा रहे हैं। सिर्फ जमीन के क्षेत्रफल की रक्षा से जमीन की रक्षा नहीं होती, अगर आज हमें जमीन की रक्षा करनी है तो जमीन की तबीयत भी देखनी होगी। कहीं हमारी जमीन की तबीयत तो खराब नहीं हो रही है। अनाप-शनाप पैस्टीसाइड्स डाल कर के, प्राकृतिक आवश्यकताओं के विपरीप व्यवहार करके, कहीं हमारे देश की उपजाऊ जमीन धीरे-धीरे बंजर भूमि की ओर तो बदल नहीं रही है..? और इसलिए जितना माहात्म्य, जितनी आवश्यकता जमीन के क्षेत्रफल की रक्षा करने की है, जमीन के स्वास्थ्य की चिंता करना भी उतना ही आवश्यक है..!

गुजरात ने एक प्रयोग किया। श्रीमान् स्वामीनाथन ने उसको बड़ा सराहा और पूरे देश में उसकी चर्चा हुई। हमारे गुलाटी जी भी उसकी तारीफ सबदूर करते रहते हैं। और हमने ‘सॉइल हैल्थ’ नाम का प्रयोग किया। आज हिन्दुस्तान में इंसान के पास हैल्थ कार्ड नहीं है, लेकिन गुजरात ने कोशिश की कि किसान को उसकी जमीन की प्रकृति कैसी है, तबीयत कैसी है, क्या कमियाँ हैं, जमीन कौन-कौन से रोग से ग्रस्त है, उस रोग से उसको कैसे मुक्त किया जाए, इसके लिए उस सॉइल हैल्थ कार्ड का प्रयोग किया और उसको तुरंत ध्यान में आया कि जिस जमीन से मैं इतना सारा कमा रहा हूँ, उस जमीन की भी तो मुझे कभी देखभाल करनी पड़ेगी..! और जिस प्रकार से पानी का महत्व है उसी प्रकार से जमीन की क्वालिटी का भी महत्व है..! और मित्रों, हम हिन्दुस्तान के लोग भाग्यवान हैं, विश्व में भिन्न-भिन्न प्रकार की 60 प्रकार की जमीनों के प्रकार माने गए हैं, उस साठ प्रकार की जमीनों की मान्यताओं में वैज्ञानिक तरीके से जो प्रकार माना गया है उसमें 48 प्रकार की जमीन आज हिन्दुस्तान की सरजमीन पर मौजूद है। ये बहुत बड़ा, एक रिच हैरिटेज हमारे पास मौजूद है, एक बहुत बड़ी संपत्ति है.! दुनिया में 60 प्रकार की जितनी जमीनें हैं, उसमें से 48 प्रकार हमारे यहाँ मौजूद है..! उसका वैज्ञानिक तरीके से उपयोग करके हमारी फसल कैसे पैदा हो और जमीन के अनुकूल फसल हो, उचित समय पर फसल हो, अगर इसको वैज्ञानिक तौर-तरीकों पर हम विकसित करें, तो मैं नहीं मानता कि हमारे किसान की मेहनत बेकार जाएगी। हमारा किसान मेहनत करेगा, तो उसको उचित परिणाम भी मिलेगा, अगर आधुनिक विज्ञान और टैक्नोलॉजी को हम उसके साथ जोड़ें..!

हम इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी के रेवोल्यूशन की बात करते हैं लेकिन अभी भी हमारे गाँव के किसान तक इस विज्ञान को हम नहीं पहुचा पाएं हैं। बदले हुए युग में हमारे किसान की सोच भी ग्लोबल बनानी पड़ेगी..! टैक्नोलॉजी के माध्यम से उसे पता चलता है कि कहाँ क्या हो रहा है, वो जान सकता है और वो उस प्रयोगों को कर सकता है। मित्रों, गल्फ कंट्रीज में खजूर की खेती होती है और वो खजूर काफी बिकती भी है, लेकिन हमारे कच्छ के किसानों ने इसपे जोर लगाया, दुनिया के देशों से वो अपना सीड्स ले आए, प्रयोग किया और आज गल्फ कंट्रीज से खजूर बाजार में आती है, उससे दो-ढाई तीन महीने पहले गुजरात की खजूर बाजार में आती है, क्योंकि हमें वेदर बेनिफिट और ज्योग्राफिक लोकेशन का बेनिफिट मिलता है और उसके कारण उसको ग्लोबल मार्केट मिलता है। और अब ये हम टैक्नोलॉजी से स्टडी कर सकते हैं कि कहाँ फसल कब होने वाली है, कितनी देर से होने वाली है, वहाँ की रिक्वायरमेंट क्या होगी, हम हमारी फसल को किस प्रकार से बेच सकते हैं..! अगर हम सहज रूप से इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी का, ई-गर्वनेंस का उपयोग जितना जल्दी कृषि क्षेत्र में लाए, और आवश्कता है कि हमारे देश के जो 35 साल से कम उम्र के किसान हैं, उनको ये इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी के नॉलेज से हमें अवगत करवाना चाहिए, मिशन मोड पर काम करना चाहिए। आज वो मोबाइल फोन रखता है, मोबाइल फोन से भी विश्व के कृषि प्रवाहों को जान सकता है, वेदर को जान सकता है, आने वाले वेदर के परिवर्तनों को जान सकता है। जितना ज्यादा हमारे किसानों को इन वैज्ञानिक तौर-तरीकों के साथ जोड़ेंगे, उतना हमें लाभ होगा..!

Inaugural Function of Vibrant Gujarat Agriculture Summit 2013

भाइयों-बहनों, जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है। एक समय था, जब देश आजाद हुआ तब हिन्दुस्तान की जीडीपी में 51% कॉन्ट्रीब्यूशन खेती का था, गाँव का था, किसान का था, आज वो घटते-घटते-घटते करीब 14% आ गया है..! अगर ये स्थिति और बढ़ती चली गई तो स्थिति क्या होगी..! आज बैंक अपने काम कर रहे हैं, किसानों के ऋण माफ करने के लिए तो योजनाएं बन जाती है, चुनाव आते-आते सब चीजें आती हैं, लेकिन किसान कर्जदार ना बने, ये उपाय हम नहीं खोजेंगे तो हम किसान को बचा नहीं पाएंगे। और कर्जदार क्यों होगा..? मुझे आज दु:ख के साथ कहना है, भारत सरकार कितनी ही बातें क्यों ना करती हो, बैंकिंग क्षेत्र के नेटवर्क की बात करती हो, नाबार्ड की बातें करती हो, बैंकिंग एक्सपांशन की बातें करती हो, लेकिन आज भी हिन्दुस्तान में 30% से भी कम किसान ऐसे हैं जिनको बैंक से कर्ज मिलता है, बाकी सारे किसान सर्राफ के यहाँ से कर्ज लेते हैं और वो इतना ऊंचा ब्याज होता है कि वो उस कर्ज में डूबता चला जाता है..! और भाइयों-बहनों, हमारे किसान की आत्महत्या की स्थिति क्या है..? हम हैरान हो जाएंगे मित्रों, कि हमारे देश में किसानों की आत्महत्या की संख्या चौंकाने वाली है और उसका भी मूल कारण है उसका कर्ज..! बैंकिंग व्यवस्था से उसको अगर कर्ज मिलता है, तो कभी मान लीजिए फसल खराब हुई भी, कर्ज हो भी गया, तो उसको कभी उस सर्राफ की तरह परेशानियाँ झेलनी नहीं पड़ेगी, जिसके कारण वो सर्राफ से बचने के लिए मौत को पंसद कर लेता है और लाखों की तादाद में हमारे किसानों को आत्महत्या करनी पड़ रही है..! और कभी कभी क्या होता है कि बैंक वाला कहता है कि हाँ, मैं तो देने को तैयार हूँ, तेरे गाँव में मेरी बैंक बन गई है, मेरी ब्रांच है, मेरा अफसर बैठा है... लेकिन प्रोसेस इतनी कॉम्पलीकेटिड बनाई गई है, कागजी कारोबार इतना बड़ा है कि गाँव के किसान के लिए वो संभव नहीं है..! क्यों ना उसका सरलीकरण किया जाए, क्यों ना उस पर विश्वास किया जाए..! जब तक हमारी पूरी बैंकिग व्यवस्था, कर्ज देने की पूरी व्यवस्था किसान सेन्ट्रीक नहीं बनाएंगे, क्रॉप सेन्ट्रीक नहीं बनाएंगे, तब तक हम किसान को मरने से नहीं बचा पाएंगे..! और इसलिए उसमें भी आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है और इसलिए हमारे देश में सारे सवालों के जवाब खोजने पड़ेंगे। हम किसानों को कुदरत के भरोसे उसकी जिंदगी जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते..!

उसी प्रकार से, हमारे सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है कि जब जमीने कम हो रही है, परिवार का होल्डिंग कम होता जा रहा है, तो परिवार को जीने के लिए भी आवश्यकताओं की पूर्तिै करना बहुत आवश्यक बन जाता है। और उसका एक उपाय है कि उसकी प्रोडक्टीविटी कैसे बढ़े..! प्रोडक्टीविटी में हम कितने पीछे हैं..! क्या हमारे पास टेलेंट नहीं है, हमारे पास कृषि यूनिवर्सिटी नहीं है, रिसर्च स्कॉलर नहीं है..? तो कमी किस बात की है। ऐसा कौन सा कारण है कि आज हमारे पास जितनी जमीन है, उस जमीन में से जितनी पैदावार होनी चाहिए उतनी पैदावार हम नहीं ले पा रहे हैं..? मित्रों, देखिए मैं उन देशों के उदाहरण दे रहा हूँ, जो देश डेवलप्ड कंट्रीज नहीं हैं, डेवलपिंग कंट्रीज हैं और करीब-करीब हमारी बराबरी का आर्थिक सामाजिक जीवन जीने वाले देश हैं, लेकिन उन्होंने भी किस प्रकार से परिवर्तन लाया है। जैसे भारत में हैक्टेयर के अनुपात में गेहूँ का उत्पादन 2.8 टन औसत होता है, ये हमने देखा है, जबकि नीदरलैंड में 8.9 टन, यानि करीब-करीब हमारे पास तीन टन तो उनके पास नौ टन एक हैक्टेयर में गेहूँ पैदावार होती है..! हमारी कमी कहाँ हैं, हमारे किसान की मेहनत और उसकी मेहनत में कोई फर्क नहीं होगा, क्या कमी है कि हम एक हैक्टेयर पर तीन टन हम कमाते हैं और वो एक हैक्टेयर पर नौ टन पैदा करता है..! मित्रों, हम एक हैक्टेयर पर 66 टन गन्ना पैदा करते हैं, जबकि पेरू... मैं उन सारे देशों को ले रहा हूँ जिनका आर्थिक विश्व के अंदर कोई बहुत बड़ा स्थान नहीं है, पेरू जैसा छोटे देश का किसान एक हैक्टेयर में 125 टन गन्ना पैदा करता है..! अब देखिए हमसे करीब-करीब डबल हो गया, तो स्वाभाविक है कि उसकी आय बढ़ेगी..! छोटी खेती होने के बाद भी उस पर पैदा हो रहा है..! मित्रों, केले में भी हमारे देश में औसत एक हैक्टेयर पर करीब 38 टन हमारी पैदावार है, जबकि इन्डोनेशिया करीब-करीब 60 टन केला पैदा करता है..! हमने अभी हमारे ट्राइबल किसानों को फ़िलिपींस के साथ जोड़ा है, और यहाँ आप प्रदर्शनी देखेंगे तो एक बहुत बड़ी केले का गुच्छा रखा हुआ है, मुझे बताया गया है कि शायद 67 किलो से ज्यादा का है..! क्यों हुआ ये..? हमारे ट्राइबल किसानों को हमने फ़िलिपींस ट्रेनिंग के लिए भेजा था, फ़िलिपींस से वे केले की खेती की टेकनीक ले आए और आज वो पार्टनरशिप के साथ काम कर रहे हैं, तो उनकी फसल पैदावार में फर्क आया और उसका एक नमूना यहाँ रखा है, आप प्रदर्शनी में देख सकते हैं..! एक ट्राइबल किसान के जीवन में दुनिया में कौन सी नई प्रेक्टिसिस आई हैं, कौन से तौर-तरीके हैं जिसके कारण परिवर्तन आता है..! आज पूरा देश बिना प्याज रो रहा है। पहले प्याज के कारण रोते थे वो तो सुना था, लेकिन अब बिना प्याज के रो रहा है..! मित्रों, प्याज की हमारी एवरेज पैदावार एक हैक्टेयर की 17 टन है, जबकि आयरलैंड की करीब-करीब 67 टन है, पाँच गुना ज्यादा..! कुछ बातें हैं जिसकी ओर हमें गंभीरता से देखना होगा..! चाहे सोयाबीन हो, चाहे चावल हो, हर क्षेत्र में..!

इतना ही नहीं, हमारे पशु..! पशु की तादाद में जितना मिल्क प्रोडक्शन हमारा होना चाहिए, वो हमारा नहीं हो रहा है। हमारे यहाँ पशु की संख्या ज्यादा है, दूध का उत्पादन कम है। दुनिया के देशों में पशु की तादाद कम है, दूध का उत्पादन ज्यादा है। इकोनॉमिकली अगर वायबल बनाना है, परिवार को चलाने की भी व्यवस्था करनी है तो हमारे पशु ज्यादा दूध कैसे दें, मेरे पास दस पशु हैं इसका गौरव होने की बजाय, मेरे पास दो पशु हैं लेकिन दस पशु से ज्यादा दूध दे रहे हैं, वो गौरव का विषय कैसे बने, इस पैरडाइम शिफ्ट की आवश्यकता है। हम जबतक इन बातों पर ध्यान नहीं देंगे, हम शायद कृषि के क्षेत्र में जो परिवर्तन लाना चाहिए, वो परिवर्तन नहीं ला सकते..!

उसी प्रकार से, हमारे यहाँ जो रिसर्च होनी चाहिए..! देश की क्या आवश्यकता है, हमारी यूनिवर्सिटीज के फोकस एरिया कैसे हो..! आपको हैरानी होगी मित्रों, पिछले साठ साल में पल्सिस के क्षेत्र में जो कि हमारे लिए प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत हैं, मूंग है, चना है, उड़द है... उसमें कोई नई रिसर्च नहीं हुई है। प्रति हैक्टेयर पल्सिस की प्रोडक्टिविटी कैसे बढ़े और उसके साथ-साथ पल्सिस में प्रोटीन कंटेंट कैसे बढ़े..! यदि रिसर्च करके जैनेटिकली मोडिफाइड करके हम उस दिशा में बल देंगे तो आज भारत के सामने न्यूट्रीशन की जो समस्याएं है, उन समस्याओं का समाधान करने का बीज खेत में बोया जा सकता है और उस समस्या का समाधान खोजा जा सकता है..! और हमारी रिसर्च के एरिया कौन से हो, किन क्षेत्र में रिसर्च पर हम बल दें और भारत सरकार भी उन स्पेसिफिक एरिया को फोकस एरिया मान करके अगर उस काम को बल देती है तो हमारे किसान देश की बहुत बड़ी क्वालिटेटिव सेवा में भी उपकारक हो सकते हैं। आज मेरा किसान देश का पेट भर सकता है, लेकिन मेरा किसान ना सिर्फ देश का पेट ही भरेगा, लेकिन हमारे देश को रक्त से तरबतर करके, हर एक कि शिरा और धमनियोँ में, उसकी वेन्स में एक तंदरुस्त खून बहता कर सकता है..! जिसकी भुजाओं में बल हो, जिसका मस्तिष्क तेज हो, उस प्रकार के मनुष्यों के पूर्ति करने का काम हमारे देश का किसान कर सकता है और इसलिए किसान को वैज्ञानिक तौर-तरीकों से किस तरीके से जोड़ा जाए उस पर हमें बल देने की आवश्कयता है..!

मित्रों, आपको जान कर हैरानी होगी और यहाँ बैठे हुए बहुत से पॉलिटिकल पंडित हैं, उनको भी हैरानी होगी, मुझे भारत सरकार का एक फिगर मिला है कि प्रतिदिन ढाई हजार किसान, किसानी छोड़ कर के किसी और व्यवसाय में लग जाते हैं। प्रतिदिन इस देश में ढाई हजार किसान खेती किसानी छोड़ रहे हैं..! आप कल्पना करें, आगे चल कर के स्थिति क्या होगी, कितनी असुरक्षा होगी..! हर दिन ढाई हजार लोग कृषि के व्यवसाय को छोड़ दें, कृषि क्षेत्र को छोड़ दें तो आने वाले दिनों में कितना बड़ा संकट आ सकता है, इस संकट की ओर हमें ध्यान देने की आवश्कता है..! मैंने पहले जैसे कहा, पिछले बीस साल में दो लाख सत्तर हजार किसानों ने आत्म हत्या की है। दो लाख सत्तर हजार किसानों की आत्म हत्या, ये मैं भारत सरकार के आंकड़े बता रहा हूँ..! ये अपने आप में हमारे लिए चिंता का विषय है। अब उसके जो मूल कारण हैं उसमें पूरा बदलाव लाने की आवश्कता है..!

उसी प्रकार से हमारे देश में जमीन को नापने का काम टोडरमल के जमाने में हुआ था, उसके बाद इस देश को पता ही नहीं है कि इस देश में कितनी जमीन है, किसकी जमीन कहाँ है, किसके कारोबार के अंदर है, कुछ पता नहीं है, सब ऐसे ही चल रहा है..! हमें ये आइडेंटीफाई करने की आवश्कयता कि जमीन का नाप हो जाए और भारत सरकार के नियमों के तहत है कि हर तीस साल में एक बार ये होना चाहिए, लेकिन पिछले सौ साल में नहीं हुआ है..! शायद टोडरमल के जमाने में जो हो गया वो हो गया, उसके बाद कुछ नहीं हुआ। ये बहुत बड़ा काम है जो हुआ नहीं देश में। आजादी के बाद कम से कम दो बार हिसाब-किताब होना चाहिए था कि हमारे पास जमीन कितनी है, वो जमीन कहाँ है, किस अवस्था में है, किसके पास है, क्या उपयोग हो रहा है... कोई हिसाब-किताब नहीं है।

मित्रों, इतना ही नहीं, देश में रीयल टाइम प्रोडक्शन का हमारे पास कोई मैपिंग नहीं है। आज जब कभी किसी एक राज्य को गेहूँ की जरूरत पड़े, और किसी दूसरे राज्य से गेहूँ लेकर पहुंचाना हो तो हमारे पास रीयल टाइम फिगर नहीं है कि कहाँ पर हमारे पास गेहूँ का अधिक जत्था है ताकि वो गेहूँ वहाँ पहुंचा दे। लेकिन नहीं है..! भारत सरकार ने एक कमेटी बनाई थी और उस कमेटी में प्रधानमंत्री जी ने मुझे काम दिया था। तो हम चार मुख्यमंत्रियों की एक कमेटी थी और बाकी सब अफसर लगे थे। मैंने उसका 28 पन्नों का एक रिपोर्ट भारत सरकार को दो साल पहले दिया। वो रिपोर्ट देने के तीन-चार महीने बाद मैंने प्रधानमंत्री से पूछा कि साब, उस रिपोर्ट का क्या हुआ..? तो बोले हाँ मोदी जी, मैं कहना भूल गया, बना तो बहुत अच्छा है, लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ..! और वो रिपोर्ट ऐसा है कि मैंने आज तक मीडिया को दिया नहीं, लेकिन अब मुझे लगता है कि भारत सरकार उसको कंसीडर कर ही नहीं रही है तो मैं ये मीडिया को डिसक्लोज करूंगा। मैंने वहाँ पर कह तो दिया, मैंने कभी इस चीज को मीडिया को क्रेडिट लेने के लिए दिया नहीं है, क्योंकि मैं चाहता था कि इस देश की सरकार कुछ करेगी। लेकिन अब मुझे लगता है कि मुझे वो काम करना पड़ेगा। मैंने उनको एसिनेबल पॉइंट दिए हैं, क्या कर सकते हैं, कैसे कर सकते हैं... जैसे मैंने एक छोटा सा सुझाव दिया है कि इसके जो गोडाउन वगैरा होते हैं, हमने कहा भई ये एफ.सी.आई., जैसे बिजली के क्षेत्र में अटल जी की सरकार ने एक अच्छा काम किया। उन्होंने 2003 में एक बिल पास किया था डिबिल्डिंग करने का, जनरेशन अलग, ट्रांसमीशन अलग, वगैरा-वगैरा..! एक वैज्ञानिक तरीका लिया, देश में लागू किया और हमारे एनर्जी सेक्टर में देश में उसके कारण काफी बदलाव आया। हमने कहा कि फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का भी डीसेन्ट्रलाइजेशन करने की आवश्यकता है। जो ये इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम करता है वो अलग हो, जो प्रोक्योर्मेंट करने का काम करता है वो अलग हो जाए, और जो वितरित करता है वो अलग हो जाए.. तीनों अगर अलग हो जाएं तो मैं समझता हूँ कि एफिशियेंसी आएगी। करना ही नहीं है, साब..! हमारे यहाँ किसान जो पैदा करता है, 20% हमारा उत्पादन रेलवे प्लेटफार्म पर सड़ जाता है..! तब सवाल उठता है कि इतनी मेहनत किस काम की..? आज मैं कहता हूँ मित्रों, जितनी सब्सिडी कत्लखानों को बनाने के लिए दी जाती है, जितने पैसे कत्लखानों के इंसेंटिव के लिए दिए जाते हैं, अगर वो पैसे हमारे गोडाउन बनाने के लिए, वेयरहाउस बनाने के लिए, कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए दिए होते तो शायद मेरे किसानों को अपने पशु कत्लखाने नहीं भेजने पड़ते, उसकी फसल की रक्षा हो जाती। लेकिन निर्णय नहीं हुआ..!

अब हमारे यहाँ हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब में भी फल पैदा कर सकते हैं, फल की आय हो सकती है, लेकिन फल के मार्केट के लिए कोई श्योरिटी भी नहीं बन रही है। फल को संभालने के लिए, पहुंचाने के लिए बड़ी दिक्कत हो जाती है। मैंने एक बार भारत सरकार को एक सुझाव दिया। हमने कहा, ये जितने भी एरेटिड वाटर है, कोका कोला, पेप्सी, फैंटा, लिम्का... क्यों ना हम कानून से तय करें कि उसके अंदर पाँच परसेंट नेचुरल फ्रूट का ज्यूस कम्पलसरी हो, सिर्फ पाँच परसेंट..! मित्रों, मैं विश्वास से कहता हूँ कि आज जिस प्रकार से एरेटिड वाटर का मार्केटिंग और सारी दुनिया भर का एड्वर्टाइज़मेंट हो रहा है। मेरा किसान जो फसल पैदा करता है उसका फाइव परसेंट भी उसमें जाता है तो लोगों की हेल्थ को फायदा तो होगा ही होगा, लेकिन मेरे किसान का माल अपने घर से ही बिक जाएगा, वो कमाई कर पाएगा..! लेकिन ये छोटा सा सुझाव भी, ये मल्टीनेशनल कंपनियों का इतना दबाव रहता है..! क्योंकि मल्टीनेशनल कंपनियों की आय कम होगी, क्योंकि आधा तो कैमिकल का उपयोग कर करके पशुओं पर टैस्ट करवा कर लोगों को बेचते रहते हैं..! लेकिन सही में अगर फ्रूट डालना पड़ेगा तो उनको खरीदना पड़ेगा, उनको लागत लगेगी और उनके दबाव में आज निर्णय नहीं हो रहे हैं..! हमारे देश के किसान को लाभान्वित करने के रास्ते हमको मिल सकते हैं और उस रास्तों पर हम चलने की कोशिश करें..!

उसी प्रकार से, हर चीज का एक अपना उपाय भी हो सकता है। हमने प्रधानमंत्री को एक सुझाव दिया कि ये जो जे.एन.यू.आर.एम. चलता है, जिसमें बड़े शहरों में बड़े-बड़े ब्रिज बनाते हैं, मैट्रो ट्रेनें चल रही हैं, भारत सरकार काफी पैसा खर्च कर रही है..! राज्य सरकार भी कॉन्ट्रीब्यूट करती है, जुड़ी हुई पालिका और नगर पालिका भी कॉन्ट्रीब्यूट करती है, और वो चल रहा है..! हमने प्रधानमंत्री को एक सुझाव दिया, मैंने कहा साब, आप जे.एन.यू.आर.एम. कर रहे हैं, ये कांक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं, मुझे उसके बारे में कुछ कहना है कि नेक्स्ट जनरेशन के बारे में भी सोचिए..! मैँने कहा, हम हिन्दुस्तान के 500 टाउन को सिलेक्ट करें। उसका सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और वेस्ट वाटर मैनेजमेंट, उसका पूरा कचरा इक्कठा किया जाए, उसके गंदे पानी को रिसाइकिल किया जाए और उस कूड़े-कचरे में से खाद बनाया जाए, फर्टीलाइजर बनाया जाए। उन बड़े टाउन के अगल-बगल में जितने भी गाँव होते हैं वो ज्यादातर सब्जी की खेती करते है क्योंकि शहर में तुरंत उनको मार्केट मिल जाता है। क्यों ना हम ये ऑर्गेनिक फर्टीलाइजर उस पड़ौस के गाँव को दें, क्यों ना रिसाइकिल किया हुआ पानी उनको दें और हम सब्जी की पैदावार बढ़ाएं..! और शहरों के अंदर सब्जी की जो माँग है, उस माँग को पूरा करके हम एक कंज्यूमर फ्रेंडली और ऐग्रीकल्चर फ्रेंडली व्यवस्था क्यों ना विकसित करें..! और ऑर्गेनिक फर्टीलाइजर देने के कारण कैमिकल फर्टीलाइजर बचेगा, और उसके कारण जो सब्सिडी बचेगी, उसको हम वाएबीलिटी गैप फंडिंग के लिए दे दें, हमारे 500 टाउन साफ सुथरे हो जाएंगे, गंदगी जाएगी, स्वच्छता आएगी और अच्छी सब्जी पैदा होगी..! प्रधानमंत्री जी ने मुझे कहा, मोदी जी, आइडिया बहुत अच्छा है..! फिर मेरे पास एक मैसेज आया कि प्लानिंग कमीशन के सामने विषय रखें, तो मैंने प्लानिंग कमीशन के सामने रखा। फिर मुझे कहा साम पित्रोडा जी देखेंगे, तो उनको मैंने पूरा भेज दिया। आज इतने वर्ष हो गए, नहीं हुआ..! भाइयों-बहनों, हमने गुजरात में कोशिश शुरू की और हमने पचास टाउन पकड़े। हम अभी लगे हैं, वहाँ पर अभी आने वाले दिनों में उस काम को करेंगे और हमारे किसान को हम ये जैविक खाद पहुंचाएंगे..!

मित्रों, आने वाले दिनों में ऑर्गेनिक फार्मिंग का महत्व बढ़ने वाला है। होलिस्टिक हेल्थ केयर की पूरी दुनिया में एक सोच बनी है और समाज का एक बड़ा तबका होलिस्टिक हेल्थ केयर को बल दे रहा है। जब समाज का एक बड़ा तबका होलिस्टिक हेल्थ केयर और ऑर्गेनिक फार्मिंग की ओर बढ़ रहा है, दुनिया के अंदर बिलियंस ऑफ बिलियंस डॉलर का ऑर्गेनिक उत्पादन का मार्केट पड़ा हुआ है, तो क्यों ना हम हिन्दुस्तान के किसान, जो कि हमारी परंपरागत आदत है, भारत में किसान को ऑर्गेनिक फार्मिंग सीखाने के लिए कोई मेहनत नहीं पड़ेगी, क्योंकि वो सदियों से गोबर का उपयोग करते हुए और सड़ी हुई चीजों का प्रयोग करते हुए खेती करता आया है, सिर्फ उसको वैज्ञानिक अप्रोच देने की आवश्यकता है और ऑथेन्टिक सर्टिफिकेशन सिस्टम खड़ा करने की आवश्यकता है। अगर हम पूरे देश में नेटवर्क खड़ा करते हैं, जिसमें ऑथेंटिकली सर्टिफाई होगा कि हाँ भई, इस खेत में कभी भी कैमिकल फर्टीलाइजर का उपयोग नहीं हुआ है, पेस्टिसाइड का उपयोग नहीं हुआ है, इन नेचुरल जमीन के द्वारा पैदा की गई चीजें हैं और उसको हम सर्टिफाई करते हैं, तो मित्रों, मैं विश्वास से कहता हूँ कि जिस फसल की कीमत आज जितना रूपया मिलती है, उतने ही डॉलर आपको मिल सकते हैं और हिन्दुस्तान कृषि के क्षेत्र में भी एक्सपोर्ट का एक बड़ा मार्केट खड़ा कर सकता है..! और भारत में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट के लिए एक नए सिरे से सोचने की आवश्यकता है। मैं तो राज्यों को भी कहूँगा कि हर राज्य में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट प्रपोशन पॉलिसी बनानी चाहिए, ताकि हमारे किसान दुनिया के बाजार के अंदर अधिक रूपया कमा सके और इस प्रकार से अपना माल बेच सके। और एक बार उसको कमाई होने लग गई तो फसल भी ज्यादा पैदा करने लग जाएगा, उस चक्र को स्वीकार करेगा और वो उसको बड़े व्यवसाय के अंदर विकसित कर सकता है। और इसलिए, हमारे यहाँ आज जो विश्व में ऑर्गेनिक चीजों का मार्केट है, उसको टैग करने की व्यवस्था वैज्ञानिक ढंग से हमें करने की आवश्यकता है। और अगर हम वैज्ञानिक ढंग से उन चीजों को करते हैं और ग्लोबली एक्सेप्टीड सर्टीफाइड होना चाहिए, वरना ये चलता नहीं है। आज हिन्दुस्तान का इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का बहुत बड़ा तूफान खड़ा हुआ है। करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ती चली जा रही है। उससे बचने के कई रास्ते हो सकते हैं, उसमें एक छोटा सा रास्ता ये भी हो सकता है कि मेरा किसान हिन्दुस्तान की तिजोरी भर सकता है, फॉरेन एक्सचेंज ला सकता है। वो सिर्फ फर्टीलाइजर और डीजल के द्वारा फॉरेन एक्सचेंज गंवाने वाला किसान नहीं है, वो फारेन एक्सचेंज से हमारी तिजोरी भरने की ताकत रखने वाला किसान है। आवश्यकता है सोच की, हम कैसे उसको इसमें जोड़ें। अगर हम उसको जोड़ते हैं, तो हम उसमें परिवर्तन भी ला सकते हैं। और इसलिए हम लोगों की आवश्यकता है कि हम एक बड़े लक्ष्य के साथ भारत के ग्रामीण जीवन में एक वाइब्रेंट इकोनोमी का सपना पूरा करने की दिशा में कैसे चलें..! हमारे किसान को अपनी मेहनत का मूल्य मिलना चाहिए, हमारे किसान को लाभदायक मूल्य मिलना चाहिए, खेती का प्रमोशन होना चाहिए। सिर्फ किसान को मलहम पट्टी लगा-लगा कर दिन गुजराने के लिए मजबूर ना किया जाए, किसान को सशक्त किया जाए ताकि कभी उसको मलहम पट्टी की जरूरत ना हो, उन सपनों को लेकर के हमें विकास की यात्रा पर चलना पड़ेगा और उस यात्रा पर अगर हम चलते हैं तो मैं मानता हूँ कि बहुत बड़ा लाभ होगा..!

मित्रों, देश भर से किसान आए हैं, आपके अनुभव हैं। आज इस सत्र के बाद किसान पंचायत होने वाली है, उस किसान पंचायत में हमें किसानों को सुनना है, मैं वहाँ नीचे बैठने वाला हूँ, नीचे बैठ कर के आपको सुनने वाला हूँ, आपने क्या-क्या कमाल किया है वो मैं सुनना चाहता हूँ, समझना चाहता हूँ और उसमें से अच्छी चीज सीखना चाहता हूँ। और जब तक ये हमारा ‘टू वे कम्यूनिकेशन’ नहीं होगा, नीतियाँ सही नहीं बनेगी। नीतियाँ धरती से जुड़ी होगी तभी तो हम नई स्थितियों को प्राप्त कर सकते हैं। और इसलिए हमारी कोशिश है कि पूरा हमारा ये दो दिन का समारेाह इंटरैक्टिव रहेगा। मित्रों, कई एक्सपर्ट्स आए हैं, छोटे-छोटे सेमिनार भी होने वाले हैं, उन सेमीनार में कई एक्सपर्ट हैं जो आपसे बात करने वाले हैं, मेरी आपसे प्रार्थना है कि आपकी रूचि का जो क्षेत्र हो, उस विषय में आप जरूर रस लीजिए। आपको जो फोल्डर दिए गए हैं, उसमें पूरी डिटैल है। कहीं कोई अंग्रेजी बोलने वाले मित्र होंगे तो आपको भाषांतर करके समझाने की व्यवस्था होगी, लेकिन आप इसका भरपूर फायदा उठाएं, ये मेरा आग्रह है। यहां पर प्रदर्शनी लगी है, प्रदर्शनी का उदघाटन तो कल किया था, लेकिन आज दोपहर के बाद देखने के लिए उसको खुला रख दिया जाएगा। वहाँ पर सब प्रकार की लिटरेचर भी अवेलेबल है, ये लिटरेचर आपके लिए है, आप उनके साथ सीधे कॉरस्पोन्डैंस कर सकते हैं। एक प्रकार से ये अच्छी स्थिति बने ये मेरा आग्रह है, और इसलिए आप उसका लाभ उठाएं..! यहाँ पर एग्रीकल्चर से जुड़े हुए दुनिया के कई देश आए हुए हैं, उन्होंने अपनी-अपनी प्रोडक्ट्स यहाँ पर रखी हुई हैं, अपनी नई-नई टैक्नोलॉजी रखी हुई हैं। हिन्दुस्तान की भी करीब सवा सौ से ज्यादा कंपनियाँ आई हुई हैं, उन्होंने भी अपनी चीजें रखी हुई हैं। एक स्थान पर किसान को इतनी चीजें देखने का यह पहली बार अवसर मिल रहा है और इसलिए मेरा आग्रह है कि सेमीनार में भी आप ज्ञान प्राप्त करें और वहाँ चीजें देख कर भी आप इसका लाभ उठाएं..!

कृषि मेले का हमारा ये पहला प्रयोग है, हम राज्य स्तर का काम करते रहते थे लेकिन ग्लोबल लेवल का हमने ये पहली बार प्रयोग शुरू किया है। ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ का हमारा जो अनुभव था, उससे हमें लगता है कि एक बहुत बड़ा बदलाव इसमें ला सकते हैं। हमारी सोच में बदलाव आता है, हमारे लिए काफी नए रिसोर्स डेवलप हो जाते है, मेरे देश के किसानों को भी इसका लाभ मिल सकता है..! ये पहला है, लेकिन दो साल के बाद, तीन साल के बाद हम लगातार इसको करते रहेंगे और देश भर के किसानों को बुलाते रहेंगे और हम मिल बैठ कर के भारत का किसान सामर्थ्यवान कैसे बने, हिन्दुस्तान दुनिया का पेट भरने की ताकत कैसे पैदा करे, इन सपनों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, ये मुझे विश्वास है..!

मित्रों, प्रारंभ में मुझे एक काम करना था जो रह गया था। मैंने पहले ही कहा था कि हम एक ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’, एकता का स्मारक, बनाने जा रहे हैं। आज दुनिया का सबसे ऊंचा जो स्मारक ‘स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी’ है, हम जो ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ बनाने जा रहे हैं वो उससे डबल है..! मित्रों, हिन्दुस्तान इतना बड़ा देश है, इतना पुरातन देश है, हम इतना छोटा क्यों सोचें..? विश्व के सामने सीना तान कर खड़े रहने का सामर्थ्य होना चाहिए, ये हर चीज में दिखाई देना चाहिए, उस स्टेच्यू में भी नजर आए। ये सरदार बल्लभ भाई पटेल का स्टेच्यू है। एक फिल्म मैं दिखाता हूँ, इसके बाद मैं आपसे उस विषय में विस्तार से बात करता हूँ..!

मैं फिर एक बार सभी मेहमानों का यहाँ आने के लिए बहुत अभिनंदन करता हूँ, स्वागत करता हूँ..! आदरणीय बादल साहब के साथ तो मुझे वर्षों तक काम करने का, उनसे बहुत कुछ सीखने का सौभाग्य मिला है, आज उनकी प्रेम वर्षा का भी मुझे अनुभव हुआ और उनका बहुत-बहुत आभारी हूँ..! मैं देश भर से आए हुए सभी मेहमानों का आभारी हूँ..! और आप हमारे मेहमान हो, आपको कोई भी दिक्कत हो, कोई भी कठिनाई हुई हो, मेरी व्यवस्था में कोई कमी रह गई हो तो मैं आप सबसे क्षमा चाहता हूँ और इसमें अगर कोई कमियाँ रह गई होगी तो सुधार करके अगली बार और अच्छे काम करने का प्रयास करेंगे, ऐसा मैं विश्वास देता हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद..!

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India stands as an outstanding destination for every investor looking to shape their future in the mobility sector: PM
January 17, 2025
The journey of Viksit Bharat is set to be one of unprecedented transformation and exponential growth in the mobility sector: PM
Ease of travel is a top priority for India today: PM
The strength of the Make in India initiative fuels the growth prospects of the country's auto industry: PM
Seven Cs of India's mobility solution-Common, Connected, Convenient, Congestion-free, Charged, Clean, Cutting-edge: PM
Today, India is focusing on the development of Green Technology, EVs, Hydrogen Fuel and Biofuels: PM
India stands as an outstanding destination for every investor looking to shape their future in the mobility sector: PM

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे साथी श्रीमान नितिन गडकरी जी, जीतन राम मांझी जी, मनोहर लाल जी, एच. डी. कुमारस्वामी जी, पीयूष गोयल जी, हरदीप सिंह पुरी जी, देश-विदेश से आए ऑटो इंडस्ट्री के सभी दिग्गज, अन्य अतिथिगण, देवियों और सज्जनों!

पिछली बार जब मैं आपके बीच आया था, तब लोकसभा के चुनाव ज्यादा दूर नहीं थे। उस दौरान मैंने आप सबके विश्वास के कारण कहा था कि अगली बार भी भारत मोबिलिटी एक्सपो में जरूर आऊंगा। देश ने तीसरी बार हमें आशीर्वाद दिया, आप सभी ने एक बार फिर मुझे यहां बुलाया, मैं आप सबका आभार व्यक्त करता हूं।

साथियों,

मुझे खुशी है कि इस वर्ष, भारत मोबिलिटी एक्सपो का दायरा काफी बढ़ गया है। पिछले साल, 800 से ज्यादा एक्जिबिटर्स ने हिस्सा लिया, डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों ने विजिट किया, इस बार भारत मंडपम के साथ-साथ, द्वारका के यशोभूमि और ग्रेटर-नोएडा के इंडिया एक्सपो सेंटर में भी ये एक्सपो चल रहा है। आने वाले 5-6 दिनों में बहुत बड़ी संख्या में लोग यहां आएंगे। अनेक नई गाड़ियां भी यहां लॉन्च होने वाली हैं। ये दिखाता है कि भारत में मोबिलिटी के फ्यूचर को लेकर कितनी पॉजिटिविटी है। यहां कुछ Exhibitions में विजिट करने, उन्हें देखने का अवसर भी मुझे मिला है। भारत की Automotive Industry, Fantastic भी है और Future Ready भी है। मैं आप सभी को अपनी बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों,

भारत के ऑटो सेक्टर के इतने बड़े आयोजन में, मैं आज रतन टाटा जी और ओसामु सुजूकी जी को भी याद करूंगा। भारत के ऑटो सेक्टर की ग्रोथ में, मिडिल क्लास के सपने को पूरा करने में इन दोनों महानुभावों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मुझे भरोसा है कि रतन टाटा जी और ओसामु सुजूकी जी की लिगेसी भारत के पूरे मोबिलिटी सेक्टर को inspire करती रहेगी।

साथियों,

आज का भारत Aspirations से भरा हुआ है, युवा ऊर्जा से भरा हुआ है। यही Aspirations हमें भारत की Automotive Industry में दिखाई देती है। बीते साल में भारत की ऑटो इंडस्ट्री करीब 12 परसेंट की ग्रोथ से आगे बढ़ी है। मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड के मंत्र पर चलते हुए अब एक्सपोर्ट भी बढ़ रहा है। इतनी तो दुनिया के कई देशों की पॉपुलेशन नहीं है, जितनी हर साल भारत में गाड़ियां बिक रही हैं। एक साल में करीब ढाई करोड़ गाड़ियां बिकना, ये दिखाता है कि भारत में डिमांड लगातार कैसे बढ़ रही है। ये दिखाता है कि जब मोबिलिटी के फ्यूचर की बात आती है, तो भारत को क्यों इतनी उम्मीदों के साथ देखा जा रहा है।

साथियों,

भारत आज दुनिया की पांचवीं बड़ी इकोनॉमी है। और पैसेंजर व्हीकल मार्केट के रूप में देखें, तो हम दुनिया में नंबर-3 पर हैं। आप कल्पना कीजिए कि जब भारत दुनिया की टॉप थ्री इकोनॉमी में शामिल होगा, तब हमारा ऑटो मार्केट कहां होगा? विकसित भारत की यात्रा, मोबिलिटी सेक्टर के भी अभूतपूर्व ट्रांसफॉर्मेशन की, कई गुना विस्तार की यात्रा होने वाली है। भारत में मोबिलिटी के फ्यूचर को ड्राइव करने वाले कई फैक्टर्स हैं। जैसे, भारत की सबसे बड़ी युवा आबादी, मिडिल क्लास का लगातार बढ़ता दायरा, तेज़ी से होता अर्बनाइज़ेशन, भारत में बन रहा आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, मेक इन इंडिया से अफोर्डबल व्हीकल, ये सारे फैक्टर्स, भारत में ऑटो सेक्टर की ग्रोथ को push करने वाले हैं, नई ताकत देने वाले हैं।

साथियों,

ऑटो इंडस्ट्री के विकास के लिए Need और Aspirations, ये दोनों बहुत जरूरी होते हैं। और सद्भाग्य से भारत में आज ये दोनों वाइब्रेंट हैं। आने वाले कई दशकों तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहने वाला है। यही युवा, आपका सबसे बड़ा कस्टमर है। इतना बड़ा युवा वर्ग, कितनी बड़ी डिमांड क्रिएट करेगा, इसका अनुमान आप भली-भांति लगा सकते हैं। आपका एक और बड़ा कस्टमर, भारत का मिडिल क्लास है। बीते 10 वर्षों में, 25 करोड़ भारतीय गरीबी से बाहर निकले हैं। ये निओ मिडिल क्लास अपना पहला व्हीकल ले रहा है। जैसे-जैसे तरक्की होगी, ये अपने व्हीकल को भी अपग्रेड करेंगे। और इसका बेनिफिट ऑटो सेक्टर को मिलना पक्का है।

साथियों,

कभी भारत में गाड़ियां न खरीदने का एक कारण, अच्छी सड़कों, चौड़ी सड़कों का अभाव भी था। अब ये स्थिति भी बदल रही है। ईज़ ऑफ ट्रैवल, आज भारत की बहुत बड़ी प्राथमिकता है। पिछले वर्ष के बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए 11 लाख करोड़ रुपए से अधिक रखे गए थे। आज भारत में मल्टीलेन हाईवे का, एक्सप्रेस-वे का जाल बिछ रहा है। पीएम गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान से मल्टीमोडल कनेक्टिविटी को गति मिल रही है। इससे लॉजिस्टिक कॉस्ट कम हो रही है। नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी की वजह से भारत दुनिया में सबसे कंपीटिटिव लॉजिस्टिक्स कॉस्ट वाला देश होने वाला है। इन सारे प्रयासों की वजह से ऑटो इंडस्ट्री के लिए संभावनाओं के अनेक नए द्वार खुल रहे हैं। देश में गाड़ियों की डिमांड बढ़ने के पीछे, ये भी एक बड़ी वजह रही है।

साथियों,

आज अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ नई टेक्नोलॉजी को भी इंटीग्रेट किया जा रहा है। फास्टैग से भारत में ड्राइविंग एक्सपीरियंस काफी आसान हुआ है। नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड से भारत में सीमलेस ट्रैवल के प्रयासों को और बल मिल रहा है। अब हम स्मार्ट मोबिलिटी की तरफ बढ़ रहे हैं। कनेक्टेड व्हीकल्स, ऑटोनॉमस ड्राइविंग की दिशा में भी भारत तेजी से काम कर रहा है।

साथियों,

भारत में ऑटो इंडस्ट्री के विकास की संभावनाओं में, मेक इन इंडिया की मज़बूती का भी बड़ा रोल है। मेक इन इंडिया अभियान को PLI स्कीम्स से नई गति मिली है। PLI स्कीम ने सवा दो लाख करोड़ रुपए से अधिक की सेल में मदद की है। इस स्कीम से ही, इस सेक्टर में डेढ़ लाख से ज्यादा डायरेक्ट जॉब क्रिएट हुए हैं। आप जानते हैं, आप अपने सेक्टर में तो जॉब्स क्रिएट करते ही हैं, इसका दूसरे सेक्टर्स में भी मल्टीप्लायर इफेक्ट होता है। बड़ी संख्या में ऑटो पार्ट्स, हमारा MSME सेक्टर बनाता है। जब ऑटो सेक्टर बढ़ता है, तो MSMEs लॉजिस्टिक्स, टूर और ट्रांसपोर्ट इन सभी सेक्टर में भी नई जॉब्स अपने आप बढ़ने लग जाती हैं।

साथियों,

भारत सरकार ऑटो सेक्टर को हर लेवल पर सपोर्ट दे रही है। बीते एक दशक में इस इंडस्ट्री में FDI, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और ग्लोबल पार्टनरशिप के नए रास्ते बनाए गए हैं। पिछले 4 सालों में इस सेक्टर में Thirty Six Billion Dollar से ज्यादा का Foreign Direct Investment आया है। आने वाले सालों में, ये कई गुणा और बढ़ने वाला है। हमारा प्रयास है कि भारत में ही ऑटो मैन्युफेक्चरिंग से जुड़ा पूरा इकोसिस्टम डेवलप हो।

साथियों

मुझे याद है, मैंने मोबिलिटी से जुड़े एक कार्यक्रम में Seven-Cs के विजन की चर्चा की थी। हमारे Mobility Solutions ऐसे हों जो, Common हो, Connected हो, Convenient हो, Congestion-free हों, Charged हों, Clean हों, और Cutting-edge हों। ग्रीन मोबिलिटी पर हमारा फोकस, इसी विजन का हिस्सा है। आज हम एक ऐसे Mobility System के निर्माण में जुटे हैं, जो इकोनॉमी और इकोलॉजी, दोनों को सपोर्ट करे। एक ऐसा सिस्टम जो फॉसिल फ्यूल के हमारे इंपोर्ट बिल को कम करे। इसलिए, आज Green Technology, EVs, Hydrogen Fuel, Biofuels, ऐसी टेक्नोलॉजी के डेवपलमेंट पर हमारा काफी फोकस है। नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन जैसे अभियान इसी विजन के साथ शुरू किए गए हैं।

साथियों,

बीते कुछ सालों से इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को लेकर भारत में बहुत तेज़ ग्रोथ देखी जा रही है। बीते दशक में इलेक्ट्रिक व्हीकल की बिक्री में six hundred forty गुना की वृद्धि हुई है, 640 गुना। दस साल पहले जहां एक साल में सिर्फ 2600 के आसपास इलेक्ट्रिक व्हीकल बिके थे, वर्ष 2024 में, 16 लाख 80 हजार से ज्यादा व्हीकल बिके हैं। यानि 10 साल पहले जितने इलेक्ट्रिक व्हीकल पूरे साल में बिकते थे, आज उससे भी दोगुने इलेक्ट्रिक व्हीकल सिर्फ एक दिन में बिक रहे हैं। अनुमान है कि इस दशक के अंत तक भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की संख्या 8 गुना तक बढ़ सकती है। ये दिखाता है कि इस सेगमेंट में आपके लिए कितनी ज्यादा संभावनाएं बढ़ रही हैं।

साथियों,

देश में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के विस्तार के लिए सरकार लगातार पॉलिसी डिसीजन्स ले रही है, इंडस्ट्री को सपोर्ट कर रही है। 5 साल पहले फेम-2 स्कीम शुरु की गई थी। इसके तहत 8 हज़ार करोड़ रुपए से भी अधिक का इंसेंटिव दिया गया है। इस राशि से, इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने में सब्सिडी दी गई, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया गया। इससे 16 लाख से अधिक EVs को सपोर्ट मिला, जिनमें से 5 हज़ार से अधिक तो इलेक्ट्रिक बसें हैं। यहां दिल्ली में भी भारत सरकार द्वारा दी गई, 1200 से अधिक इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं। अपने तीसरे टर्म में हम पीएम ई-ड्राइव स्कीम लेकर आए हैं। इसके तहत टू व्हीलर, थ्री-व्हीलर, ई-एंबुलेंस, ई-ट्रक, ऐसे करीब 28 लाख EVs खरीदने के लिए मदद दी जाएगी। करीब 14 हज़ार इलेक्ट्रिक बसें भी खरीदी जाएंगी। देशभर में अलग-अलग वाहनों के लिए 70 हज़ार से अधिक फास्ट चार्जर लगाए जाएंगे। तीसरे टर्म में ही, पीएम ई-बस सेवा भी शुरु की गई है। इसके तहत, देश के छोटे शहरों में करीब thirty eight thousand ई-बसें चलाने के लिए केंद्र सरकार मदद देगी। सरकार, EV मैन्युफेक्चरिंग के लिए इंडस्ट्री को लगातार सपोर्ट कर रही है। ईवी कार मैन्युफेक्चरिंग में जो ग्लोबल इन्वेस्टर भारत आना चाहते हैं, उसके लिए भी रास्ते बनाए गए हैं। भारत में क्वालिटी ईवी मैन्युफेक्चरिंग इकोसिस्टम के विस्तार में, वैल्यू चेन के निर्माण में मदद मिलेगी।

साथियो,

ग्लोबल वॉर्मिंग की, क्लाइमेट की चुनौती से निपटने के लिए हमें सोलर पावर को, अल्टरनेटिव फ्यूल को लगातार प्रमोट करते रहना है। भारत ने अपनी G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान ग्रीन फ्यूचर पर बहुत ज़ोर दिया है। आज भारत में EV के साथ ही सोलर पावर को लेकर भी बहुत बड़े लेवल पर काम चल रहा है। पीएम सूर्यघर- मुफ्त बिजली स्कीम से, रूफटॉप सोलर का एक बड़ा मिशन चल रहा है। ऐसे में इस सेक्टर में भी बैटरी की, स्टोरेज सिस्टम की डिमांड लगातार बढ़ने वाली है। सरकार ने एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल बैटरी स्टोरेज को बढ़ावा देने के लिए 18 हजार करोड़ रूपए की PLI स्कीम शुरु की है। यानि इस सेक्टर में बड़े इन्वेस्टमेंट्स का आपके लिए ये सही समय है। मैं देश के ज्यादा से ज्यादा नौजवानों को भी एनर्जी स्टोरेज सेक्टर में स्टार्ट अप्स के लिए invite करूंगा। हमें ऐसे इनोवेशन्स पर काम करना है, जो भारत में ही मौजूद मैटेरियल से बैटरी बना सकें, स्टोरेज सिस्टम बना सकें। इसको लेकर देश में काफी काम हो भी रहा है, लेकिन इसको मिशन मोड पर आगे बढ़ाना ज़रूरी है।

साथियों,

केंद्र सरकार का इंटेंट और कमिटमेंट एकदम साफ है। चाहे नई पॉलिसी बनानी हों या फिर रिफॉर्म्स करने हों, हमारे प्रयास लगातार जारी हैं। अब आपको इन्हें आगे बढ़ाना है, इनका फायदा उठाना है। अब जैसे व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी है। जितने भी manufacturers हैं, आप सभी से मेरा आग्रह है कि इस पॉलिसी का लाभ उठाएं। आप अपनी कंपनी में भी, अपनी भी एक incentive स्कीम लेकर आ सकते हैं। इससे ज्यादा से ज्यादा लोग अपनी पुरानी गाड़ियां लेकर स्क्रैप करने के लिए आगे आएंगे। ये मोटिवेशन बहुत ज़रूरी है। ये देश के environment के लिए भी आपकी तरफ से बहुत बड़ी सर्विस होगी।

साथियों,

ऑटोमोटिव इंडस्ट्री, इनोवेशन ड्रिवन है, टेक्नोलॉजी ड्रिवन है। इनोवेशन हो, टेक हो, स्किल हो या फिर डिमांड, आने वाला समय East का है, एशिया का है, भारत का है। मोबिलिटी में अपना फ्यूचर देखने वाले हर सेक्टर के लिए भारत एक शानदार इन्वेस्टर के लिए भी, शानदार डेस्टिनेशन है। मैं आप सभी को फिर विश्वास दिलाता हूं, सरकार हर तरह से आपके साथ है। आप मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड के मंत्र के साथ इसी तरह आगे बढ़ते रहें। आप सभी को फिर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्यवाद!