ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि आ जमुझे बहुत छोटी उम्र वाले भारत के एक मित्र देश की संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करने का सौभाग्य मिला है। मैं सबसे पहले भूटान की उस महान परंपरा को अभिनन्दन करता हूँ। जिस राजपरिवार ने भूटान में उच्च मूल्यों की प्रस्थापना की, भूटान के सामान्य से सामान्य नागरिक की सुखकारी, यहाँ की सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखना और विकास भी करना है लेकिन साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा के संबंध में पूरी जागरूकता का रखना। ये परंपरा एक या दो पीढ़ी की नहीं है। राजपरिवार की कई पीढि़यों ने बड़ी सजगता के साथ इसे निभाया है, आगे बढ़ाया है और इसके लिए उस महान परंपरा के धनी राजपरिवार को मैं भारत की तरफ से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ, अभिनंदन करता हूँ।
विश्व का जो आज मानस है और खासकर के पिछली एक शताब्दी में सत्ता का विस्तार,राजनीति का केंद्रीयकरण,करीब-करीब पिछली पूरी शताब्दी इसी प्रकार की गतिविधियों से भरी पड़ी है, लेकिन भूटान अपवाद सिद्ध हुआ है।
भूटान ने, विश्व में एकतरफ जब सत्ता के विस्तार का और सत्ता के केंद्रीयकरण का माहौल था, भूटान ने लोकतंत्र की मजबूत नींव डालने का प्रयास किया। विश्व के कई भू-भागों में सत्ता हथियाने के निरंतर प्रयास चलते रहते हैं। विस्तारवाद की मानसिकता से ग्रस्त राजनीति दल के नेता भूटान ने, बहुत ही उत्तम तरीके से, लोकशिक्षा के माध्यम से जन-मन को धीरे-धीरे तैयार करते हुए, संवैधानिक व्यवस्थाओं को निश्चित करते हुए,यहाँ लोकतांत्रिक परंपराओं को प्रतिस्थापित किया। सात वर्ष लोकतंत्र के लिए कोई बहुत बड़ी उम्र नहीं होती है। लेकिन सात वर्ष के भीतर-भीतर, भूटान ने संवैधानिक मर्यादाएँ, लोकतांत्रिक मूल्यों और लोकतंत्र के अंदर सबसे बड़ी ताकत होती है स्वयंशिष्ट। नागरिकों की तरफ से स्वयंशिष्ट, राजनीतिक दलों की तरफ से स्वयंशिष्ट, चुने हुए जन-प्रतिनिधियों की तरफ से स्वयंशिष्ट और स्वयं राजपरिवार की तरफ से भी स्वयंशिष्ट। ये अपने आप में एक उत्तम उदाहरण के रूप में आज दुनिया के सामने प्रस्तुत है। इसी के कारण,सात साल के भीतर-भीतर यहाँ की लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ, यहाँ के संसद की गरिमा, यहाँ के जन-प्रतिनिधियों के प्रति सामान्य मानव की आस्था, उत्तरोत्तर बढ़ रही है। मैं इसे शुभ संकेत मानता हूँ।
सात साल की कम अवधिमें सत्ता परिवर्तन होना,ये अपने आप में यहाँ के नागरिकों की जागरूकता का उत्तम परिचय है। जहाँ है वहाँ सेअच्छा करने के लिए, ज्यादा अच्छा करने के लिए, जवाबदेही तय करने के लिए, यहाँ के मतदाताओं ने जो जागरूकता दिखाई है वे स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा के लिए मैं शुभ संकेत मानता हूँ।
भारत में भी अभी-अभी चुनाव हुआ है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत के लोकतंत्रोंके बीच का जो फलकहै,विश्व के सभी देशों के लिए एक बड़ा अजूबा है। पूरा यूरोप और अमेरीका में मिलकर के जितने लोग मतदाता हैं उससे ज्यादा एक अकेले हिंदुस्तान मेंमतदाता हैं।इतना बड़ा, विशाल, लोकतंत्र का ये उत्सव होता हैऔर आजादी के बाद पहली बार, साठ साल के इतिहास में पहली बार, भारत के मतदाताओं ने परंपरागत रूप से जो शासन में थे ऐसे दल को छोड़ करके भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत के साथ सेवा करने का अवसर दिया है।
ये लोकतंत्र की ताकत है और इस पूरे भूखंड में लोकतांत्रिकशक्तियाँ जितनी सामर्थ्यवान होंगी, लोकतांत्रिक मूल्यों की जितनी प्रस्थापना अधिक कारगर ढंग से होगी, उपखंड की शांति के लिए, उपखंड के विकास के लिए और उपखंड के गरीब से गरीबनागरिकों की भलाई के लिए एक सशक्त माध्यम सिद्ध होगा। भारत ने, भारत के नागरिकों ने,विकास के लिए ‘गुड गवर्नेंस’ के लिए जनादेश दिया है और जैसे अभी आदरणीय स्पीकर महोदय बता रहे थे कि भारत जितना सशक्त होगा उतना ही भूटान को लाभ होगा। मैं उनकी इस बात सेशत प्रतिशत सहमतहूँ।
न सिर्फ भूटान लेकिन भारत के सशक्त होने से, भारत के समृद्ध होने से,इस पूरे भूखंड में और विशेषकरकेसार्कदेशों की भलाई के लिए भारत का सुखी-संपन्न होना आवश्यकहै। तभी जाकेभारत अपने अड़ोस-पड़ोस के छोटे-छोटे देशों की कठिनाइयों को दूर करने के कामआ सकता है। उनकी बची मुसीबतों में से पड़ोसी देश कहाँ जाएगा। पड़ोसी देश की पहली नजर अपने पड़ोसियों की तरफ जाती है। अब पड़ोसी का भी पड़ोसी धर्म निभाना एक कर्तव्य बन जाता है लेकिनअगर भारत ही दुर्बल होगा,भारत ही शक्तिशाली नहीं होगा, भारत ही अपनी आंतरिक समस्याओं को जूझता रहता होगा तो अड़ोस-पड़ोसियों के सुख की चिंता कैसे कर पाएगा? इसलिए, भारत के आस-पास के सभी साथियों का, मित्रों का,पड़ोसियों का कल्याण हो तो उसके लिए भी भारत हमेशा जागरूक रहा है,भारत हमेशा प्रयत्नशील रहा है।
जब हमारी नई सरकार बनी और बहुत ही कम अवधिमें हमने जब ‘सार्क’देशों के नेताओं को वहाँ बुलाया और सब के सब प्रमुख लोग वहाँ उपस्थित रह करके,हमारीसंसद की शोभा बढ़ाई। भूटान के आदरणीय प्रधानमंत्री जी भी वहाँ आए, मैं इसके लिए आदरणीय प्रधानमंत्री जी का, भूटान का,हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ, अभिनंदन करता हूँ। भारत और भूटान के संबंध,क्या कुछ शासकीय संबंध हैं क्या? अगर हम ये सोचें किये शासन व्यवस्थाओं के संबंध हैंतो शायद हमारी गलतफहमी होगी। भूटान में भी शासकीय परिवर्तन आया,लोकतांत्रिक व्यवस्था विकसित हुई लेकिन संबंधों को कोई आँच नहीं आयी। भारत में भी कई बार शासन व्यवस्थाएँ बदली हैं लेकिन भारत और भूटान के संबंधों को कोई आँच नहीं आईहै और उसका कारण भारत और भूटान के संबंध सिर्फ शासकीय व्यवस्थाओं के कारण नहीं हैं, भारत और भूटान के संबंध सांस्कृतिक विरासत के कारण है, सांस्कृतिक परंपराओं के हमारे बंधनों के कारण है, हमारे सांस्कृतिक विभाजनों के कारण है।
हम एक इसलिए नहीं हैं कि हमने सीमाएँ खोली हैं, हम एकता की अनुभूतिइसलिए करते हैं किहमने अपने दिल के दरवाजे खोल करके रखे हैं। भूटान हो या भारत हमने अपने दिल के दरवाजे खोल करके रखे हैं तभी तो हम एकता की अनुभूतिकरते हैंऔर इस एकता में, ताकत की अनुभूतिकरते हैं। ये शासन व्यवस्थाओं के बदलने से दिल के दरवाजे बन्द नहीं होते हैं,सीमा की मर्यादाएँ पैदा नहीं होती हैं। भूटान और भारत का नाता उस अर्थ में एक ऐतिहासिक धरोहर है और भारत और भूटान की आने वाली पीढ़ियों को भी इस ऐतिहासिक धरोहरको सम्भालना है,संजोए रखना है और उसको और अधिक ताकतवर बनानाहै।
भारत की ये नई सरकार, भारत के कोटिकोटिजन,इसके लिए प्रतिबद्ध है। मैं कल भूटान आया, भूटान की यह मेरी पहली यात्रा है। अब प्रधानमंत्री बनने के बाद और इतनी, चुनाव में ऐसीस्थितिबनने के बाद, इतना बढ़िया जनादेश मिलने के बाद किसी का भी मोह कर जाता हैकिदुनिया के किसी भी बड़े ताकतवर देश में चले जाएँ, दुनिया के किसी समृद्ध देश में चले जाएँ,जहाँ और वाहवाही हो जाएगी।ये लालच आना स्वाभाविक है लेकिन मेरे अंतरमन से आवाज़ उठी किमैं भारत केप्रधानमंत्री के रूप में पहली बार अगरकहीं जाऊँगा तो भूटान जाऊँगा। इसके लिए मुझे ज्यादा सोचना नहीं पड़ा,कोई योजना नहीं बनाई। ये मेरा सहज कदम था, सवाल तोमेरी आत्मा मुझे तब पूछती किआप भूटान गये क्यों नहीं? क्योंकिअपनापन का इतना नाता है और यही नाता है जो मुझे आज आप सबके बीच आने का सौभाग्य दे रहा है।
भूटान का विकास किसी भी छोटे देश के लिए और इतनी कठिनाईयों से जी रहे देश के लिए,विश्व के हर देश के लिए आने वाले दस साल में हम देखेंगेकि विश्व के छोटे-छोटे देश अपने विकास के लिए,भूटान ने इन दो-तीन दशक में कैसे प्रगतिकी इस तरफ बारीकी से देखेंगे ऐसा मुझेमहसूस हो रहा है। जिस मक्तमता के साथ आपने विकास को आखिरी छोर के इंसान तक पहुँचाने का प्रयास किया है। ये अभिनंदन के पात्र हैं और दुनिया विकासदर की चर्चा कर रही हैं, जी. डी. पी. की चर्चा कर रही है और भूटान ‘Happiness’ की चर्चा कर रहा है। ये अपने आप में शासकके दिल में आखिरी छोर पर बैठे हुए व्यक्ति की कल्याण की भावना न होगी तो ‘Happiness’ की कल्पना नहीं होगी और इसलिए रास्ते बन जाएँ, पानी के नल लग जाएँ, स्कूल खुल जाएँ, अस्पताल बन जाएँ, ये सब तो होगा लेकिन इसके लिए कोई लाभार्थ भी है, उसके जीवन में सुख आया है कि नहीं आया है, उसके जीवन में संतोष आया है कि नहीं आया है, उसके जीवन में आनंद की अनुभूति हो रही है या नहीं हो रही है।ये मानक तय करना होगा। इसका मतलब विकास की इकाई देश नहीं है, विकास की इकाई राज्य नहीं है, विकास की इकाई दृष्टि नहीं है लेकिन विकास की इकाई हर ‘इंडिविजुअल’ है। ये अपने आप में एक बहुत बड़ा साहसिक निर्णय है हर एक ‘इंडिविजुअल’ उस विकास की किस ऊँचाई को पार कर रहा है, पा रहा है,वो चैन की नींद सो पा रहा है किनहीं सो पा रहा है।अपने संतानों को जिस दिशा में ले जाना चाहता था, ले जा पा रहा है किनहीं ले जा पा रहा है। इतनी बारीकी से सोचना और इसके लिए कार्ययोजना करना ये अपने आप में एक प्रेरक है।
भूटान प्रकृति की गोद में बसा है। विपुल प्राकृतिक विराट देश है, साथ-साथ भूटान ऊर्जा का स्रोत भी है। पिछले कुछ वर्षों में भारत और भूटान ने मिल करके ऊर्जा के क्षेत्र में एक मजबूत पहल की है। उस पहल को हम और आगे बढ़ाना चाहते हैं और भूटान में ‘हाइड्रो पावर’ के माध्यम से बिजली उत्पादन करके न हम सिर्फ भूटान की आर्थिक स्थिति में सही कदमउठा रहे हैं, इतना ही नहीं हैऔर न ही हम भारत के भू-भाग का अँधेरा छांटने के लिए काम कर रहे हैं, इतना सीमित नहीं है।
भारत और भूटान का ये संयुक्त प्रयास ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से जूझ रही मानवता के लिए,‘ग्लोबल वार्मिग’ से जूझ रहे पूरे विश्व के लिए, कुछ न कुछ हमारी तरफ से ‘contribution’ काएक सात्विक प्रयास है। एक ‘sustainable’ विकास की दिशा में एक बड़ी ताकत के रूप में आया है। मैं आशा करूँगा कि दुनिया, भारत और भूटान के संयुक्त प्रयास को ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के खिलाफ हमारी इस लड़ाई को, मानवजातिके कल्याण के लिए हमारे प्रयास को, भावी पीढ़ी के कल्याण के प्रयास के लिए उसे देखा जाएगा। ऐसा मुझे विश्वास है।
मुझे इस बात की खुशी हुई कि 2014 में भूटान अपने बजट की काफी राशिशिक्षा के लिए खर्च करने जा रहा है।इसका मतलब यह हुआ कि भूटान आज की पीढ़ी के सुख की नहीं,आने वाले पीढ़ियों के ‘Happiness’ के लिए भी आज बीज बो रहा है। दुनिया में कहावत प्रचलित है किजो लोग एक साल के लिए सोचते हैं, वे अन्न की खेती करते हैं, जो लोग 10 साल के लिए सोचते हैं, वो फूलों और फलों की खेती करते हैं लेकिन जो पीढ़ियों की सोचते हैं वे मनुष्य बोतेहैं। शिक्षा,ये अपने आप में मनुष्य बोने का उत्तम से उत्तम प्रयास है जिससे उत्तम नई पीढ़ियों का निर्माण होता हैं।
मैं इस सार्थकप्रयास के लिए भूटान के राजपरिवारों को, भूटान के जन-प्रतिनिधियों को और संसद में बैठे हुए सभी माननीय संसद सदस्यों को हृदय से अभिनंदन करता हूँ। उन्होंने शिक्षा को प्राथमिकता दी है औरजब आप दो कदम चले हैं तो हमारा भी मन करता है किएक कदम हम भी आपके साथ चलें और इसलिए शिक्षा को आधुनिक ‘टेकनोलॉजी’ से जोड़ने के लिए, शिक्षा के माध्यम से विश्व की खिड़की खोलने के लिए,भूटान के बालकों को भी अवसर मिलना चाहिए और इसलिए भारत नेभूटान में ‘ई-लाइब्रेरी’ का नेटवर्क बनाने के लिएतय किया हैऔर ‘ई-लाइब्रेरी’ केकारण भूटान के बालक ज्ञान के भंडार के साथ जुड़ जाएंगे। दुनियां का जो भी ज्ञान उन्हें पाना होगा वो इस ‘टेक्नोलॉजी’ के माध्यम से पा सकेंगे। विश्व के ‘Latest’ से ‘Latest Magazine’ से उनको अपना सरोकार करना होगा, वो कर पाएँगे।
तो शिक्षा में आपका ये निवेश और भारत का उससे ‘Technological support’ यहाँ की नई पीढ़ी को आधुनिक ही बनाएगा और विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकरके चलने की ताकत भी देगा। ऐसा मुझे पूरा विश्वास है। जब यहाँ शिक्षा का प्रारंभिक काल था तब से भारत के बहुत बड़ी मात्रा में शिक्षक भूटान में आया करते थे। दुर्गम इलाकों मेंजा करके यहाँ के लोगों को शिक्षित करने का काम करते थे ।और जब कोई राष्ट्र अपने यहाँ से दूसरे देश में शिक्षक भेजता है तो वो सत्ता केविस्तरण का मकसद कभी नहीं होता है। जब शिक्षक भेजता है तब उसके मन में उस राष्ट्र को जड़ोंसेमजबूत करने का एक नेक इरादा होता है और दशकों से भारत से भूटान में बहुत बड़ी मात्रा में शिक्षक आए हैं। कठिन जीवन जी करके भी उन्होंने पुरानी पीढ़ियों को शिक्षित करने का प्रयास किया है। वे, भूटान की जड़ों को मजबूत करने का एक नेक इरादे का अभिव्यक्तिहै।उस बात को आगे बढ़ाते हुए शासन ने भी बहुत बड़ी मात्रा में ‘scholarship’ दे करके भूटान के होनहार नौजवानों को भारत के अच्छी से अच्छी ‘युनिवर्सिटियों’ में शिक्षा का प्रबंध किया है।
आज जब मैं आया हूँ तो मैंने कल आदरणीय प्रधानमंत्री जी को कहा था, ‘scholarship’ दे रहें हैं उसे हम ‘डबल’ करेंगें ताकिअधिक नौजवानों को आधुनिक शिक्षा पाने के लिए सौभाग्य अवसर प्राप्त हो। उसी प्रकार से हमने कुछ और तरीके से भी आगे के दिशा में सोचना होगा। मेरा जब से भूटान आने का मन कर गया। मैं लगातार भूटान के साथ अपने संबंधों को और अधिक व्यापक पथ पर कैसे विस्तृत करें, विकसित करें, इस पर सोचा क्या है? मेरे मन में विचार आया जितने हिमालयन ‘States’ हैं हिन्दुस्तान के और भूटान के, भविष्य में नेपाल जुड़ जाए तो नेपाल भी। क्या हम हर वर्ष एक स्पेशल खेल समारोह नहीं कर सकते हैं?हमारा सिक्किम है, अरूणाचल है, मिजोरम है, नागालैण्ड है, आसाम है,आपके पड़ोस में है और एक प्रकार से रूचि, वृत्ति, प्रभुति, प्रकृतिसब बराबर-बराबर हैंतो एक नई पीढ़ी खेल-कूद के माध्यम से उनको जोड़ने का प्रयास होगा। भारत सरकार भी इस पर सोचेगी, छोटे-छोटे राज्य भी सोचेंगे और भूटान भी सोचेगा। हर वर्ष अलग-अलग प्रदेशों में हम खेल के माध्यम से भी मिलेंगे। भूटान में भी मिलेंगे क्योंकिखेल के माध्यम से, ‘sports’ के माध्यम से ‘sportsmen spirit’ आताहैऔर हमारे पड़ोसी राज्यों और पड़ोसी देशों के साथ ‘स्पोर्ट्समैन स्प्रिट’ जितना ज्यादा बढ़ता है उतना समाज जीवन के अंदर ‘Happiness’ में भी अच्छा माहौल भी बनता है।
स्वस्थ समाज के निर्माण की ओर काम होता है। उसी प्रकार से यह आवश्यक है किभारत के बालक भी जाने कि भूटान कहाँ है, कैसा है, इतिहास क्या है सांस्कृतिक्या है, परंपरा क्या है, मूल्य क्या है और भूटान जोकिभारत के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। भूटान की भी नई पीढ़ी जाने आखिर कि हिंदुस्तान के हमारा पुराना नाता क्या रहा है। सदियों से हम ऐसे कैसे जुड़े हैं। हिन्दुस्तान की वो कौन-सी ताकत है,वो कौन-सी परंपरा है जिसको जानना समझना चाहिए। क्यों न हम आधुनिक विज्ञान और टेक्नोलॉजी के माध्यमसे प्रतिवर्ष भूटान और भारत के बालकों के बीच ‘Quiz Competition’ करें,हमारे नौजवान तैयारी करें, एक-दूसरे देशों के बारीक जानकारियों के लिए competition हो, उस स्पर्द्धा में उत्तीर्ण हो नौजवान। मैं देख रहा हूँ किभूटान के काफी लोग हिंदी समझ लेते हैं क्योंकिबहुत बड़ी मात्रा में हिंदुस्तान पढ़ने के लिए जाते हैं। अब हिंदुस्तान में पढ़ने के लिए जाते हैं, अगर उनको थोड़ा वहाँ की भाषा का ज्ञान प्रारंभिक रूप में परिचित हो जाएँ तो उनको पढ़ने में बहुत सुविधा बढ़ती है। इसको हम कैसे आगे बढ़ा सकते हैं इस पर हम सोचेंगें। भारत का ‘satellite ’क्या हमारे भूटान के विकास के लिए काम आ सकती है क्या? 'Space Technology’ के माध्यम से भारत भूटान की और मदद कर सकता है क्या? हमारे जो वैज्ञानिक हैं वे उस पर सोचें और भूटान के साथ बैठ करके भविष्य में ‘Space Science’ के माध्यम से हम दोंनों देशों को किस प्रकार से जोड़ सकते हैं, किस प्रकार से हमारे संबंधों को विकसित कर सकते हैं, उसका हम प्रयास करें।
कभी-कभी ऐसा लगता है,लोग कहते हैं कि हिमालय हमें अलग करता है,सोचने का ये एक तरीका है। मेरा सोचने का तरीका दूसरा है और मैं सोचता हूँ कि हिमालय हमें अलग नहीं करता है; हिमालय हमें जोड़ता है। हिमालय हमारी साझी विरासत है। हिमालय के उस पार रहने वाले भी हिमालय को उतना ही प्यार करते हैं जितना हिमालय के इस छोर पर रहने वाले करते हैं। दोनों तरफ बसे हुए लोग हिमालय के प्रतिउतना ही आदर और गौरव की अनुभूतिकरते हैं। दोनों तरफ के क्षेत्रों के लिए हिमालय एक शक्तिका स्रोत बना हुआ है। हिमालय से दोनों को बहुत लाभ मिला है।
समय की माँग है किएक वैज्ञानिक तरीके से ‘हिमालय रेंजेज’ का ‘study’ हो ‘climate’ के संदर्भ में हो, प्राकृतिक संपदा के संबंध में हो, उस विरासत का आने वाली पीढ़ी के लिए कैसे उपयोग किया जा सके, भारत ने आने वाले दिनों में सोचा है। एक ‘National Action Plan for Climate change’ दूसरा भारत गंभीरतापूर्वक इस बात पर सोच रहा है कि‘National Mission for sustaining Himalayan Eco system’। लेकिन ये अकेला भारत नहीं कर सकता।
अड़ोस-पड़ोस के देशों को मिल करके इसको करना होगा और हम इसके लिए एक संयुक्त रूप से कैसे आगे बढ़े, उस दिशा में हम सोचना चाहते हैं। हमारी सरकार ने एक और भी ‘इनिसिएटीव’ लेने के लिए सोचा है, हम चाहते हैं एक ‘सेंट्रल युनिवर्सिटी ऑफ हिमालयन स्टडीज’इसका ‘initiative ’लिया जाए और एक ‘Central University for Himalayan Studies’ के माध्यम से यहाँ के जन-जीवन,यहाँ के प्राकृतिक संपदा, यहाँ पर आने वाले परिवर्तन, इस में से मानव जातिके कल्याण के लिए कार्य किया जा सकता है। एक ‘focus subject’ बना करकेइसको कैसे आगे बढ़ाया जाए, उस पर हम सोच रहे हैं और मैं मानता हूँ इसका लाभ आपको भी बहुत बड़ी मात्रा में होगा।
‘Tourism’ एक ऐसा क्षेत्र है, भूटान ‘Tourism destination’ बन रहा है। मैं हमेशा मानता हूँ दुनिया के पुराने इतिहास काल से हम देखें, पुरातन काल से भी देखें इक्के दुक्के भी ‘Tourist’ साहस के लिए निकलते थे। कभी चीन से ह्वेनसांग निकला होगा,कभी वाक्सकोडिगामा निकला होगा। कई लोग हर एक देश के इतिहास में कोई न कोई ऐसे महापुरुष मिलेंगे जो सदियों पहले कठिनाइयों के बीच विश्व भ्रमण के लिए नई चीजें खोजने के लिए निकले थे। वहाँ से लेकर अब तक हम देखें तो ‘Tourism’ ने बीते हुए कल को और वर्तमान को जोड़ने का प्रयास किया है। सफल प्रयास किया है। ‘Tourism’ ने एक भू-भाग को दूसरे भू-भाग से जोड़ने में सफलता प्राप्त की है। ‘Tourism’ ने एक जन-मन को दूसरे जन-मन के साथ जोड़ने में सफलता प्राप्त की है। एक ओर ‘Tourism’ विश्व को जोड़ने की ताकत रखता है। मैं मानता हूँ की ‘Terrorism devices, Tourism unites’ और इसलिए ‘Tourism’ जिसकी जोड़ने की ताकत है और भूटान जिसमें ‘टूरिस्टों’ को आकर्षित करने की प्राकृतिक संपदा है। भारत और भूटान मिलकर संयुक्त रूप से विश्व के ‘टूरिस्टों’ को आकर्षित करने के लिए एक ‘holistic approach से लेकर योजना’ बना सकते हैं। कभी न कभी हमने इस देश में सोचना चाहिए, हिंदुस्तान के ‘North East’ के इलाके और भूटान के, इनका एक ‘common circuit’ बना करके, एक ‘Package Tour Programme’ बना करके इस ‘Himalayan Ranges’ मेंविश्व के लोगों को कैसे आकर्षित किया जा सके और ‘Tourism’ एक ऐसा क्षेत्र है जिस में कम से कम पूँजी निवेश होता है और ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार प्राप्त होता है। गरीब से गरीब व्यक्तिभी, ‘Tourism’ बढ़ता है तो उसको आय होती है ‘Tourism’ के विकास के लिए संयुक्त रूप से कैसे प्रयास करें, उसको हम कैसे आगे बढ़ाएँ, और अगर भूटान की प्राकृतिक संपदा के साथ भारत का संबंध जुड़ जाए तो विश्व को भूटान के इस भू-भाग पर और भारत के ‘North East’ भाग पर आने के लिए,बहुत बड़ा निमंत्रण पहुँच जाएगा। पूरी ताकत के साथ पहुँच जाएगा और इसके लिए हम अगर आने वाले दिनों में योजना करते हैं मुझे विश्वास है किबहुत उद्धार होगा।
मैं कल यहाँ जब मिला तो आप की संसद की जो परंपरा विकसित हुई है, उसे सुन करके बड़ा आनंद हुआ। आप के स्पीकर साहब बहुत ही नियम से संसद को चलाते हैं। किसी को अगर पाँच मिनट बोलने का अवसर मिला है, अगर वो पाँच मिनट पर 10 सैकेंड चला गया तो आखिरी 10 सैकेंड उसके रिकार्ड नहीं होते हैं, ऐसा मुझे बताया गया है। ये बड़ा अच्छा तरीका है। इसलिए जिसको भी अपनी बात बतानी होगी उसको निश्चित मिले हुए समय में। हम भारत के लोग भारत की संसद में इस बात को सीखने का प्रयास जरूर करेंगे किआपने अपनी संसद की आयु छोटी है लेकिन छोटी आयु में भी आपने संसदीय प्रणालियों में जो नए नियम लाए हैं, कुछ समझने जैसे हैं, कुछ सीखने जैसे हैं।
मैं आप सबको निमंत्रण देता हूँ,भारत से जुड़ने के लिए और अधिक जन-जन का जुड़ाव हो,सरकारें तो हैं वो तो रहने वाली हैं, मिलने वाली हैं लेकिन हमारा नाता जन-जन के साथ जुड़ा हुआ है इसकी मजबूती हमारा मिलन, जितना बढ़ेगा हमारा आना जाना जितना बढ़ेगा एक दूसरे से हमारा नाता जितना बढ़ेगा, उतना ही मैं समझता हूँ, आज कल तो ‘टेक्नोलॉजी’ ने पूरी दुनिया को छोटा सा गाँव बना कर रख दिया है। ‘Fraction of second’ में दुनिया के किसी भी कोने में पहुँच पाते हैं। अपनी बात पहुँचा सकते हैं दुनिया की बात जान सकते हैं यह नया विज्ञान भी हमको जोड़ रहा है। भारत के प्रयासों के कारण, भूटान सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण यहाँ की जो नई पीढ़ी है वो कंप्यूटर ‘Literate’ है ‘Techno savy’ है आने वाले दिनों में बहुत उपकारक हो सकती है तो चहूँ दिशा में विकास हो, सुख और समृद्धिप्राप्त हो।
आज आप सभी के बीच बात करने का अवसर मिला। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ किभारत और भूटान का ये नाता अजर और अमर है। शासकीय व्यवस्थाओं पर निर्भर नहीं है। एक सांस्कृतिक विरासत से बँधा हुआ है। जिस प्रकार से कितनी बड़ी चोट पानी को अलग नहीं कर सकती है, वैसे ही भारत और भूटान के सांस्कृतिक विरासत को कोई अलग नहीं कर सकता है।
मैं जब भूटान के संबंध में जानकारी इकट्ठी कर रहा था तो मुझे एक बात बहुत अच्छी लगी, तीसरे राजा ने भारत के साथ संबंधों की बात आयी तो एक बड़ा अच्छा संदेश भेजा था। उन्होंने कहा था भारत और भूटान का संबंध, जैसे दूध और पानी मिल जाए फिर दूध और पानी को जैसे अलग नहीं किया जा सकता, वैसा ही रहेगा और वो परंपरा आज भी चल रही है, लेकिन यहाँ के तीसरे राजा की वो बात जब मैंने पढ़ी तो मुझे मैं जिस प्रदेश से आता हूँ वहाँ से घटना का स्मरण आया मुझे।
400 साल पहले उस क्षेत्र में एक हिंदू राजा थे, जिद्दी राणा करकेउनका राज चलता था, और ईरान से पारसी लोग आए ये दुनिया की सबसे छोटी ‘Minority’ है ‘Micro Minority’ ईरान से उनको भेजा गया, वो आए। समुद्र के रास्ते गुजरात के किनारे पर आए।अब वो जिद्दी राणा के क्षेत्र में यानी गुजरात के उस इलाके में आश्रय चाहते थे तो जिद्दी राणा ने उनको लबालब दूध का भरा कटोरा दे दिया और ‘indirectly’ संदेश भेजा किपहले से ही मेरे यहाँ इतने लोग हैं हम उसमें नई जगह नहीं देंगे। दूध का कटोरा भरा पड़ा हुआ बताया और जो पारसी लोग ईरान से आए थे उन्होंने क्या किया, उसमें चीनी मिला दी, शक्कर मिला दी और दूध को मीठा कर दिया और लबालब दूध से भरा हुआ वो प्याला वैसे का वैसा वापस भेजा। जिद्दी राणा ने जब देखा की दूध मीठा हो गया है तो उन्होंने तुरंत न्यौता भेजा,समुद्र के अंदर किआप का स्वागत है, आप आइए। और जो घटना 400 साल पहले ईरान से आए हुए पारसी लोगों के शब्दों में, उस व्यवहार में थी वही बात तीसरे राजा के उन शब्दों में दूध और पानी के मिलन की थी दोनों मेंथोडा सा अंतर हैऔर वो ‘Micro Minority’ आज भीसमुद्र के साथ हिंदुस्तान के अंदर पारसी कौम जीवन के हर क्षेत्र में नई ऊँचाइयाँ प्राप्त की उन्होंने, वैसे ही भूटान और भारत का नाता हर क्षेत्र में नई ऊँचाइयों को प्राप्त करने वाला बना रहेगा।
मुझे पूरा विश्वास है। मेरी तरफ से भूटान वासियों का मैं अभिनंदन करता हूँ और कल एयरपोर्ट से आगे 50 किलोमीटर तकजो स्वागत और सम्मान दिया है, भूटान के लोगों ने उमंग और उत्साह का देखते ही बनता है। मैं इस स्वागत और सम्मान के लिए भूटान के नागरिकों का हृदय से अभिनंदन करता हूँ आभार व्यक्त करता हूँ और आप सबके बीच आने का मुझे अवसर मिला, आप से बात करने का मुझे अवसर मिला है, इसके लिए आपका बहुत ही अभारी हूँ। राजपरिवार में जिस प्रकार से स्वागत और सम्मान किया है राजपरिवार का भी मैं अभारी हूँ। आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद।
Your Majesty,
Excellencies,
NAMASKAR.
First of all, I express my deep condolences to those affected by "Typhoon Yagi."
During this challenging time, we have provided humanitarian assistance through Operation Sadbhav.
Friends,
India has consistently supported the unity and centrality of ASEAN. ASEAN is also pivotal to India's Indo-Pacific vision and Quad cooperation. There are important similarities between India’s "Indo-Pacific Oceans Initiative" and the "ASEAN Outlook on Indo-Pacific." A free, open, inclusive, prosperous, and rules-based Indo-Pacific is crucial for the peace and progress of the entire region.
The peace, security, and stability in the South China Sea are in the interest of the entire Indo-Pacific region.
We believe that maritime activities should be conducted in accordance with UNCLOS. Ensuring freedom of navigation and airspace is essential. A robust and effective Code of Conduct should be developed. And, it should not impose restrictions on the foreign policies of regional countries.
Our approach should focus on development and not expansionism.
Friends,
We endorse ASEAN's approach to the situation in Myanmar and support the Five-Point Consensus. Furthermore, we believe it is crucial to sustain humanitarian assistance and implement suitable measures for the restoration of democracy. We believe that, Myanmar should be engaged rather than isolated in this process.
As a neighbouring country, India will continue to uphold its responsibilities.
Friends,
The most negatively affected countries, due to ongoing conflicts in various parts of the world, are those from the Global South. There is a collective desire for the restoration of peace and stability in regions such as Eurasia and the Middle East as soon as possible.
I come from the land of Buddha, and I have repeatedly stated that this is not the age of war. Solutions to problems cannot be found in the battlefield.
It is essential to respect sovereignty, territorial integrity, and international laws. With a humanitarian perspective, we must place a strong emphasis on dialogue and diplomacy
In fulfilling its responsibilities as a VISHWABANDHU, India will continue to make every effort to contribute in this direction.
Terrorism also poses a serious challenge to global peace and security. To combat it, forces that believe in humanity must come together and work in tandem.
And, we must strengthen mutual cooperation in the areas of cyber, maritime, and space.
Friends,
The revival of Nalanda was a commitment we made at the East Asia Summit. This June, we fulfilled that commitment by inaugurating the new campus of Nalanda University. I invite all the countries present here to participate in the 'Heads of Higher Education Conclave' to be held at Nalanda.
Friends,
The East Asia Summit is a key pillar of India’s Act East Policy.
I extend my heartfelt congratulations to Prime Minister Sonexay Siphandone for the excellent organisation of today's summit.
I extend my best wishes to Malaysia as the next Chair and assure them of India's full support for a successful presidency.
Thank you very much.