पूज्य संत गण, मंचस्थ सभी महानुभाव, नौजवान मित्रों..! वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट, ये नाम सुन कर के लोगों को लगता है कि सारा रुपयों-पैसों का खेल होगा। इन्वेस्टमेंट आता है तो लोगों को लगता है कि यहाँ तो सिर्फ रूपये इन्वेस्ट होते हैं। मित्रों, उससे ज्यादा अगर सचमुच में इन्वेस्टमेंट में ताकत कहीं है तो वो नॉलेज में है, ज्ञान में है। चीन में एक बहुत प्रचलित कहावत है और वो कहावत ये है कि कोई अगर एक साल के लिए सोचता है तो अनाज बोता है, दस साल के लिए सोचता है तो फल के वृक्ष बोता है, लेकिन अगर वो पीढ़ियों के लिए सोचता है तो मनुष्य बोता है। भाइयों-बहनों, युवाओं की ये युवा संसद उस मकसद से है कि हमारी युवा पीढ़ी को उस रुप से सज्ज करें कि भविष्य की अनेक पीढियों का भला हो। आज अगर हम कुछ सुख को प्राप्त कर पा रहे हैं, आज अगर हमारे जीवन में कुछ अच्छाइयाँ हैं, तो उसके पीछे हमारे पूर्वजों ने कभी ना कभी उस युग की युवा पीढी की चिंता की होगी और उसी का फल हम आज भोग रहे हैं। तो हम लोगों का दायित्व बनता है कि हम लोग भी समाज को कुछ ऐसा दे कर के जाएं, कुछ ऐसा करके जाएं, ताकि आने वाली पीढ़ियों की जो युवा पीढ़ी होगी उनके नसीब में भी कुछ अच्छी चीजें आएं। और ये सबसे बड़ा काम हर युग के लोगों का रहता है।
आज 12 जनवरी है, स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जयंती का एक अवसर है। देश और दुनिया में स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जंयती मनाने का भरसक प्रयास हो रहा है। गुजरात ने इस अवसर को युवा वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय किया और गत पूरा एक वर्ष अनेकविध प्रयोगों के द्वारा गुजरात में युवा शक्ति के जागरण की दिशा में सरकार ने प्रयास किये हैं। एक स्थायी व्यवस्था के रूप में गुजरात ने गाँव-गाँव विवेकानंद युवा केन्द्रों की रचना की है। उन विवेकानंद युवा केन्द्रों के माध्यम से युवा प्रवृतियाँ कैसे बढ़ें, सच्चे अर्थ में एक ऐसे एन.जी.ओ. तैयार हों जो समाज की भलाई के लिए कार्य करते हों, समाज के आने वाले कल के लिए चिंता करते हों। गाँव-गाँव इस प्रकार से युवक और युवतियों के समूह तैयार हों और ये परंपरा बनी रहे, लगातार नई पीढ़ी समाज के प्रति संवेदना के साथ, समाज के लिए कुछ भला करने की दिशा में अविरत प्रयास करती रहे, ये हमारी कोशिश है। मित्रों, जिन लोगों ने स्वामी विवेकानंद जी को पढ़ा होगा, सुना होगा, जाना होगा, उन लोगों को पता होगा कि विवेकानंद जी युवा पीढ़ी से कोई बड़ी आध्यात्म की अपेक्षा नहीं रखते थे। वे नहीं चाहते थे कि हमारे नौजवान नाक पकड़ के बैठ जाएं और गुरूमंत्र बोलते रहे। ये विवेकानंद जी ने कभी नहीं कहा। स्वामी विवेकानंद ने दरिद्र नारायण की सेवा का उपदेश दिया था। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जो गरीब से गरीब व्यक्ति है उसके अंदर परमात्मा का वास होता है, वो परमात्मा कर रूप होता है, और किसी दरिद्र नारायण कि सेवा करें, वो ईश्वर की सेवा से कम नहीं होती है, ये संदेश देने का सामर्थ्य स्वामी विवेकानंद में था। वे एक क्रांतिकारी महापुरूष थे, लोग सोचते थे उससे भिन्न सोचते थे। अगर कोई संत महात्मा होगा तो वो ये कहेगा कि तुम जरा ध्यान धरो, पूजा-पाठ करो, सुबह-शाम आरती करो, धूप-दीप करो, भगवान को भोग चढाओ... ज्यादातर वही परंपराओं की चर्चा होती है। लेकिन स्वामी विवेकानंद एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके शब्द आज भी हमारे लिए काम के हैं। और विशेषता ये है कि मृत्यु के कुछ वर्ष पहले उन्होंने कहा था कि मैं देश के युवाओं से प्रार्थना करता हूँ, देश के नागरिकों से प्रार्थना करता हूँ कि आप अपने देवी-देवताओं को भूल जाएं। कोई साधु-महात्मा ऐसा कहे कि आप अपने देवी-देवताओं को भूल जाएं, उस युग में ऐसा कोई सोच नहीं सकता था। लेकिन स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि आप अपने देवी-देवताओं को भूल जाओ और आने वाले पचास साल के लिए एक ही देवी की चिंता करो, एक ही परमात्मा के रूप की कल्पना करो और वो सिर्फ भारत माता..! अगर आप भारत माता की सेवा करोगे तो आपके सारे ईष्ट देवताओं की सेवा अपने आप हो जाएगी। ये बात स्वामी विवेकानंद जी ने 1897 में कही थी और ये कहा था कि 50 साल, ये भी उन्होंने कहा था और मजा देखिए, ठीक 50 साल के बाद 1947 में हिन्दुस्तान आजाद हुआ था। इस प्रकार की क्रांतिकारी सोच, ईश्वर की सेवा नहीं, मानव की सेवा करो, ये कहने का सामर्थ्य उस युग में मामूली बात नहीं थी। प्रवाह से विपरित जाना, और मित्रों, वो प्रवाह से विपरित जाने का सामर्थ्य इसलिए रखते थे क्योंकि वे युवा थे, उनकी सोच युवा थी, उनके सपने युवा थे, उनके संकल्प युवा थे और इसलिए वो आज भी युवाओं की प्रेरणा का कारण बने हुए हैं।
मित्रों, हम सभी नौजवानों के मन में कभी-कभी निराशा का माहौल बन जाता है। ये निराशा क्यों आती है? मैं नौजवान मित्रों से पूछना चाहूंगा। कभी ना कभी आप सोचिए, अपनी आत्मा से पूछिए कि वो कौन सा कारण है कि जीवन में निराशा को हमें झेलना पड़ता है। ज्यादातर निराशा का कारण ये होता है और अधिकतम लोगों की जिंदगी में निराशा का मुख्य कारण ये होता है कि उन्होंने हर पल कुछ बनने का सपना देखा होता है। और जब बनने का सपना पूरा नहीं होता है या बनने का सपना संभव नहीं ऐसा नजर आने लगता है तो निराशा अपने आप पैदा होती है और इसलिए भाइयो-बहनों, मैं नौजवान मित्रों से एक सलाह देना चाहता हूँ, क्या जीवन में कुछ बनने के सपने रखना आवश्यक है..? मैं मानता हूँ नहीं है। अगर आपने डॉक्टर बनने का सपना देखा, लेकिन डॉक्टर नहीं बन पाए और टीचर बन गए तो आपको जीवन में कभी भी टीचर बनने का आनंद नहीं आएगा। हर पल मन में यही आएगा कि यार, बनना था डॉक्टर, टीचर बन गया..! यार, बड़ी इच्छा थी कि डॉक्टर बनूं, लेकिन उस समय दादी माँ का स्वर्गवास हो गया, एक्जाम खराब हो गई और मैं टीचर बन गया। क्या करूँ यार, मुझे तो डॉक्टर बनना था लेकिन हमारे स्कूल की लैब ठीक नहीं थी और उसके कारण मेरे प्रैक्टिकल में मार्क्स बहुत कम आए और मैं टीचर बन गया..! मित्रों, वो जीवन भर टीचर होने का आनंद ही नहीं ले पाएगा। डॉक्टर नहीं बना उसी के बोझ में उसकी पूरी जिंदगी समाप्त हो जाएगी। अगर उसने डॉक्टर बनने के सपने नहीं देखे होते और ईश्वर ने जितनी उसे शक्ति और क्षमता दी है उसका उपयोग करते हुए अगर मानों टीचर बन गया होता, तो सीना तान कर दुनिया को कहता कि मैं अपनी इच्छा से टीचर बना हूँ, एक पीढ़ी की जिंदगी बदलने के लिए काम कर रहा हूँ और मुझे उसका संतोष है। जिदंगी का आनंद कुछ और होता। और इसलिए नौजवानों, क्या जिंदगी ऐसी हो सकती है जिसमें सपने ही ना हों..? और ऐसा कैसा ये मुख्यमंत्री है और ऐसा कैसा ये नरेन्द्र मोदी है जो ये कहते हैं कि सपने मत देखो..! मित्रों, मैं सपने देखने से मना नहीं कर रहा हूँ, लेकिन सपने देखें तो कौन से देखें..? और इसलिए मैं कहता हूँ कि कुछ बनने के लिए सपने मत देखो, कुछ करने के सपने देखो। और मित्रों, जब कुछ करने का सपना देखते हैं तो जीवन में कभी निराशा नहीं होती। आपने अगर तय कर लिया कि मुझे सायकिल से जाना है सोमनाथ तक, कुछ कर के दिखाना है। हो सकता है एक बार राजकोट से वापिस आ जाओ, तो दूसरी बार जाएगें, लेकिन करके रहेगें आप, क्यों कि मन में ठान ली है कि मुझे कुछ करके रहना है। अगर कुछ करने का सपना होगा तो भीतर से ऊर्जा पैदा होती है। आप ही अपने आप के गाईड बन जाते हो, आप ही अपने आप को दिशा देते हो, आप खुद ही अपने रास्ते खोजते हो, आप खुद ही अपनी मंजिल को पार कर लेते हो, और इसलिए मित्रों, जीवन में बहुत बड़े बदलाव की आवश्यकता है। और कोई नौजवान ऐसा नहीं होना चाहिए जिसके सपने ना हो, कोई नौजवान ऐसा नहीं होना चाहिए जिसको कुछ करने का सपना ना हो और कोई ऐसा नौजवान नहीं होना चाहिए जिसके सपने सिर्फ तरंग बन कर रह जाएं। मित्रों, कभी-कभी नौजवानों की जिंदगी में कठिनाई आती है, सुबह अगर किसी क्रिकेटर की फोटो अखबार में देख ली, उसकी वाह-वाही देख ली तो मन करता है कि यार, क्रिकेटर बनना अच्छा है, दोपहर को किसी टी.वी. चैनल पर किसी फिल्मी कलाकार का नाम रोशन होता दिखता है तो मन करता है नहीं-नहीं यार, ये अच्छा है। शाम को किसी डॉक्टर ने बहुत अच्छा काम किया है और देख लिया तो मन करता है कि यार, ये अच्छा है..! यानि कई नौजवान मिलेंगे आपको जो हफ्ते में तीन नई-नई योजनाएं बताएंगे और आप भी परेशान होंगे कि यार पिछले हफ्ते तो ये कह रहा था कि मुझे बिजनेस मैन बनना है और इस हफ्ते कह रहा है कि मुझे तो पॉलिटिशियन बनना है..! मित्रों, ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिनकी इच्छाएं रोज जन्म लेती हैं और ज्यादातर इच्छाओं का बाल मृत्यु हो जाता है। मित्रों, ऐसी क्या इच्छा रखनी जिसकी बाल मृत्यु हो जाए। कुछ लोगों की तो इच्छाएं ऐसी होती है जिसका गर्भ धारण ही नहीं होता। और मित्रों कुछ लोग होते हैं जिनकी इच्छाएं रोज-रोज बदलती रहती हैं और जब इच्छाएं रोज-रोज बदलती रहती हैं तो आपके साथी आपको क्या कहते हैं..? आपको यही कहेंगे कि यार छोड़ो, वो तो बड़ा तरंगी है, वो तो सुबह-शाम नई-नई चीजें सोचता रहता है। वो तो ऐसे ही बेकार है यार, ऊंट पटांग की बातें करता है..! ऐसा ही होता है ना..! मित्रों, मेरा कोई नौजवान साथी ऐसा नहीं होना चाहिए जिसकी इच्छाएं लोगों के लिए मजाक का कारण बनें। कोई नौजवान ऐसा नहीं होना चाहिए जिसकी इच्छाएं तरंग बन जाए। और इसलिए मित्रों आवश्यक है कि कोशिश करनी चाहिए। इच्छा बुरी चीज नहीं है, लेकिन इच्छाओं को बदलते रहना बुरी चीज है। इच्छाएं स्थिर होनी चाहिए। और अगर इच्छा स्थिर है तो वो संकल्प बनती है और संकल्प में जब परिश्रम जुड़ता है तो वो सिद्घी बन जाती है। और इसलिए इच्छा प्लस स्थिरता इज इक्वल टू संकल्प, संकल्प प्लस परिश्रम इज इक्वल टू सिद्घि। ये छोटे से एलजेब्रा के समीकरण को लेकर के हम जिंदगी को बनाने की कोशिश करेंगे तो मैं मानता हूँ मित्रों, हम जीवन में कभी विफल नहीं हो सकते।
मित्रों, ये वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट मैंने पूरी तरह मेरे राज्य के नौजवानों को समर्पित की हुई है। हम एक ऐसा गुजरात बनाना चाहते हैं जहाँ 21 वीं सदी के ज्ञान के सारे अवसर उपलब्ध हों, हम एक ऐसा गुजरात बनाना चाहते हैं जहाँ हमारा नौजवान ज्ञान के अधिस्थान पर नई ऊंचाइयों को पार करने का सामर्थ्य पैदा करे, हम एक ऐसा गुजरात बनाना चाहते हैं जहाँ विश्व के अंदर हमारे नौजवानों के ज्ञान और सामर्थ्य की पूजा करने पर विश्व को मजबूर होना पड़े, ऐसा हम गुजरात बनाना चाहते हैं। मित्रों, अभी दो दिन पूर्व हमने एक छोटा सा कार्यक्रम किया। छोटा सा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि वो इतना छोटा था, इतना छोटा था, इतना छोटा था कि हमारे अखबार वालों की नजर नहीं गई। किसी के ध्यान में नहीं आया। आपको जान कर आनंद होगा मित्रों, दुनिया की 150 यूनिवर्सिटी एक प्लेटफार्म पर हमने इक्कठी की थी, ये दो दिन पूर्व। विश्व की 150 यूनिवर्सिटी एक साथ आएं, दो दिन तक ज्ञान के क्षेत्र में गुजरात क्या कर सकता है, ज्ञान के क्षेत्र में गुजरात किसके साथ जुड़ सकता है, किससे मदद ले सकता है, इसकी गहन चर्चा करें, गुजरात की स्कूलें, गुजरात की यूनिवर्सिटीज विश्व की युनिवर्सिटीज के साथ जुड़ें... इस ज्ञान के युग के अंदर गुजरात कहीं पीछे ना रह जाए, गुजरात का नौजवान कहीं पीछे ना रह जाए... विश्व से हम क्या-क्या ले सकते हैं, क्या-क्या जोड़ सकते हैं... मित्रों, दो दिन तक, अभी इस बाइब्रेंट समिट के तहत..! विश्व में शायद कहीं एक छ्त के नीचे विश्व की 150 यूनिवर्सिटी का इक्कठा होना कभी नहीं हुआ होगा, जो गांधीनगर की धरती पर हुआ। विश्व के अनेक देश यहाँ आए थे। हमारी सब यूनिवर्सिटियों ने तय किया था कि हाँ, हम इस क्षेत्र में आपके साथ मिल कर काम करना चाहते हैं। आज भी आपने देखा होगा, जो स्पोर्टस यूनिवर्सिटी बनाई है उसने ऑस्ट्रेलिया के साथ अपना समझौता किया, तो ऑस्ट्रेलिया कि स्पोटर्स यूनिवर्सिटी का लाभ गुजरात की स्पोटर्स यूनिवर्सिटी को कैसे मिले और हमारे नौजवान कैसे तैयार हों। और मित्रों, ऐसा नहीं है कि दुनिया में हम कुछ अचीव नहीं कर सकते, हम भी कर सकते हैं, लेकिन हमें अपने आप पर विश्वास पैदा करना चाहिए।
मित्रों, विश्व भारत की तरफ अब दूसरी नजर से देखने लगा है, वरना पहले भारत को जरा अलग नजरिए से देखते थे। मुझे स्मरण है एक घटना। आज से कई वर्ष पहले मैं ताइवान गया था, वहाँ की सरकार के इन्वीटेशन पर। तब तो मैं मुख्यमंत्री नहीं था, तो मेरे पास समय भी था और जानने सीखने की इच्छा भी रहा करती थी। तो मैंने ताइवान सरकार का इन्वीटेशन स्वीकार किया और मैं गया। उनकी भाषा तो चाइनीज भाषा है, हम तो कुछ समझ नहीं पाते थे तो उन्होंने मुझे एक इंटरप्रेटर दिया था। वो इंटरप्रेटर भी बहुत पढ़ा-लिखा था, साफ्टवेयर इंजीनियर था और अमरीका में पढ़ कर आया था, उसको मेरे साथ लगाया हुआ था। तो शुरू में तो वो कार में भी बैठता था तो दूर बैठता था, मैं पीछे बैठा हूँ तो वो आगे बैठता था। शेक हैंड करने से भी डरता था और बड़ा सि$कड सिकुड कर रहता था। मैं दोस्ती करने की कोशिश करता था कि यार, कुछ बात तो करें..! बड़ा मुश्किल था। चार-पाँच दिन होने के बाद थोड़ा वो खुलने लगा और मैं आने वाला था उससे एक दिन पहले उसने मुझे कहा कि साब, आप बुरा नहीं माने तो मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ। मैंने कहा पूछो, आपके मन में क्या है? मैं तो देख रहा हूँ कि तुम्हारी नौकरी है इसलिए तुम कर तो रहे हो, लेकिन तुम्हे आनंद नहीं आ रहा है, मेरे से भागे-भागे जा रहे हो। तो उसने मुझसे पूछा कि साब, मुझे जानना है कि क्या अभी भी हिन्दुस्तान सांप-सपेरों का देश है..? क्या अभी भी हिन्दुस्तान जादू-टोना करता है..? उसके दिमाग में हिन्दुस्तान की यही छवि थी। वो यही सोचता था कि हम लोग ऐसे ही हैं कि आज भी हमारे यहाँ जादू-टोना चलता होगा, सांप-छुछुंदर की दुनिया चलती होगी..! तो मैंने कहा भाई, तुम्हारी बात तो सही है, हम पहले तो स्नेक चार्मर थे, लेकिन अब हमारा डिग्रेडेशन हो गया है, डिवेल्यूएशन हो गया है। हम अभी इससे भी नीचे चले गए हैं। तो मेरी तरफ देखने लगा कि ये क्या कह रहा है? मैंने कहा कि हमारे पूर्वज तो स्नेक चार्मर थे, लेकिन हमारे जो बच्चे हैं वे माउस चार्मर बन गए हैं..! मैंने कहा अब स्नेक वाला उनका हिसाब नहीं रहा, चुहे से ही उनका खेल चल रहा है। उसको समझ नहीं आया। मैंने कहा कि हमारे हर नौजवान के हाथ में कम्प्यूटर का माउस है और वो दुनिया को हिला रहा है। तब जा कर के मित्रों, उसकी आंख खुल गई कि इस देश के विषय में ऐसा है..! मित्रों, एक बार प्रेजिडेंट क्लिंटन हिंदुस्तान के दौरे पर आए थे। फिर वो जयपुर गए थे और जयपुर के नजदीक में एक गाँव में महिलाओं का ज्यादा कोआपरेटिव काम चल रहा है वो उनको देखना था। और आप लोगों को शायद पता होगा ये आठ-नौ साल पहले की घटना है। और हमारे देश में कोई भी इस प्रकार से बाहर से आते हैं तो बड़ी पूजा होती है तो टी.वी. में भी चौबीस घंटे चल रहा था, अखबारों में भी पहला पेज उन्हीं के लिए समर्पित हो जाता था, सालों तक गुलाम रहे हैं तो उसका असर तो रहता ही है। तो बड़ी जय-जयकार चल रही थी उनकी और वे जयपुर के पास उस गाँव में गए। गाँव में गए तो गाँव में अमेरिकन सिक्योरिटी भी थी, हिन्दुस्तानी सिक्योरिटी भी थी और उनको बड़े प्रोटेक्टिड वे में ले जाया जा रहा था। उस गाँव के जो चुने हुए पंच के लोग थे उनको वहाँ स्वागत में खड़ा किया गया था, उन सबको आईडेन्टीफिकेशन दिया हुआ था और सब के लिए तय था कि किसको कहाँ चलना है, किसको कहाँ खड़ा रहना है, किसको कहाँ बैठना है... इतने में एक कालूराम नाम का व्यक्ति, जो उस गाँव का चुना हुआ पंच था, वो लपक कर के क्लिंटन के पास पहुंच गया और वो उनसे बातें करने लगा। अब वो बेचारा हिन्दी बोले, उसको हिन्दी समझ ना आए... उसकी हाईट इतनी, इसकी हाईट इतनी तो वो यूं बातें कर रहा था और वो भी अपनी मुंडी हिला रहे थे कि कुछ कह रहा है। लेकिन वो गाँव के सारे लोग परेशान थे कि अरे कालूराम ने तो अपने गाँव की इज्जत खराब कर दी। ये क्लिंटन के पास जा करके क्या कर रहा है, ये क्यों नियम तोड़ कर के वहाँ चला गया है..? ये जरूर कुछ मांगता होगा उससे। ये शायद उससे वीजा मांगता होगा। ये शायद उससे अपने बेटे के लिए कुछ मांगता होगा या गाँव के लिए कुछ अस्पताल-वस्पताल मांगता होगा, पर ये कुछ मांगता होगा। एक-दो मिनट के लिए सन्नाटा छा गया था उस गाँव के लोगों अंदर कि ये कालूराम कैसे क्लिंटन के साथ बातें करने लगा है..! और वो जो क्लिटंन के इंटरप्रेटर थे वो क्लिंटन को समझा रहे थे कि वो कालूराम क्या कह रहा है। भाइयों-बहनों, आपको जानकर आनंद होगा, उस कालूराम मीणा की बात को सुन कर के। मेरे हिन्दुस्तान के जयपुर के नजदीक के छोटे से गाँव का गरीब माँ की कोख से पैदा हुआ कालूराम, दुनिया की इतनी बड़ी विश्व सत्ता के सामने खड़ा हुआ है, क्लिंटन के सामने खड़ा हुआ है, जो विश्व की महासत्ता है, आर्थिक महासत्ता है, विश्व में जिसका रुतबा है, उस आदमी के साथ आंख में आंख मिला कर के हिन्दुस्तान का एक गरीब मां की कोख से पैदा हुआ कालूराम क्लिंटन को आंख में आंख मिला कर के पूछता है। मित्रों, एक इंसान का मिजाज देखिए। वो कालूराम पूछता है कि मिस्टर क्लिंटन, क्या आप अभी भी ये मानते हो कि हिन्दुस्तान सांप-सपेरे वालों का देश है..? क्या आप अभी भी मानते हो कि हिन्दुस्तान जादूटोने वालों का जगत है..? मित्रों, क्लिटंन हिल गए थे और उन्होंने जब उनके इंटरप्रेटर ने बताया तो नीची मुंडी करके बोले कि नहीं, मैं नहीं मानता। और मैं दुनिया में जहाँ भी जाऊँगा, मैं दुनिया में जाकर के कहूंगा, मैंने जो हिन्दुस्तान देखा वो क्या है..! मित्रों, ये दम मेरे देश के हर नौजवान में होना चाहिए। ये मिजाज होना चाहिए दोस्तों, और यही युवा शक्ति है जो भारत का नाम दुनिया में रोशन कर सकती है। मित्रों, हम वो लोग हैं जो विश्वगुरू पद पर अपने जीवन को प्रस्थापित कर चुके थे और आज भी हम लोगों में सामर्थ्य है कि हम विश्व के अंदर हमारी भारत माता को जगतगुरू के स्थान पर विराजित कर सकते हैं। मित्रों, मेरी स्वामी विवेकानंद के प्रति अपार श्रद्धा है। मेरी वो निरंतर प्रेरणा है। और मुझे स्वामी विवेकानंद के उन शब्दों पर भरोसा है जो उन्होंने जीवन के अंत काल में कहा था कि मैं अपनी आंखों के सामने देख रहा हूँ कि मेरी ये भारत माता फिर एक बार जगतगुरू के स्थान पर विराजमान है। भारत जगतगुरू के स्थान पर विराजमान है ये सपना स्वामी विवेकानंद ने देखा था। जिस स्वामी विवेकानंद ने ये सपना देखा है वो कभी झूठ नहीं निकल सकता, मेरे मित्रों। आवश्यकता सिर्फ ये है कि स्वामी विवेकानंद के उन शब्दों पर भरोसा करके माँ भारती अपनी जगतगुरू के स्थान पर विराजमान हो इसके लिए हम कोशिश करें। और मित्रों, समय हमारा है। ये शब्द लिख कर रखिए, मेरे मित्रों। ये सदी हमारी सदी है, ये सदी हमारे हिन्दुस्तान के नौजवानों की सदी है, ये सदी ज्ञान की सदी है, ये सदी पुरुषार्थ की सदी है। और सबसे युवा मेरा देश हिन्दुस्तान, जिस देश के पास 65% जनसंख्या 35 से कम आयु की है, 2020 में जिस देश की एवरेज उम्र 29 साल हो जाने वाली है, ऐसा नौजवान देश, युवकों से भरा पडा देश ये सपने लेकर के, दुनिया में कुछ करके दिखाने के लिए निकले, इसी अपेक्षा के साथ इस युवा सम्मेलन आपके लिए प्रेरणा बने, गुजरात के आने वाले कल के लिए एक अच्छी ताकत के रूप मे उभरे, इसी एक अपेक्षा के साथ आप सब को बहुत बहुत शुभ कामनाएं देता हूँ।
बहुत-बहुत धन्यवाद..!