Shri Modi's speech at Dharma Meemamsa Parishad at Sivagiri Mutt, Kerala

Published By : Admin | April 24, 2013 | 16:53 IST

ब्रह्म श्री प्रकाशानंदा स्वामीगल, श्रीमद ऋतंभरा नंदा स्वामीगल, श्री नारायण धर्मा संगम सन्यासिन्स, श्री मुरलीधरन, सहोदरी, सहोदर नवारे, नमस्काम्..! श्रीमान मुरलीधरन की मदद से मैं अपने दिल की बात आप सब तक पहुंचा पाऊंगा। मैं देख रहा हूँ कि यहाँ जो व्यवस्था बनी है वो व्यवस्था कम पड़ गई है और बहुत बड़ी मात्रा में लोग दूर-दूर बाहर खड़े हैं..! भाइयो-बहनों, इस शामियाने में जगह शायद कम होगी, लेकिन आप भरोसा रखिए कि मेरे दिल में आप लोगों के लिए बहुत जगह है..!

मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य रहा कि बचपन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधि से जुड़ा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधि में एक महत्वपूर्ण संस्कार कार्यक्रम होता है, प्रात:स्मरण काल। और जब हमें प्रात: स्मरण सिखाया गया था उसी समय से प्रतिदिन सुबह परम पूज्य ब्रह्मलीन नारायण गुरू स्वामी का स्मरण करने का सौभाग्य मिलता था। आज देश कि जिन समस्याओं की ओर हम देख रहे हैं, उन समस्याओं की ओर नजर करें और श्री नारायण गुरू स्वामी कि शिक्षा पर नजर करें, तो हमें ध्यान में आता है कि अगर ये देश श्री नारायण गुरू स्वामी की शिक्षा-दीक्षा पर चला होता तो आज हमारे देश का ये हाल ना हुआ होता..! श्री नारायण गुरू स्वामी ने समाजिक जीवन की शक्ति बढ़ाने के मूलभूत तत्वों पर सबसे अधिक बल दिया था। आज समाज में किसी ना किसी स्वरूप में अस्पृश्यता आज भी नजर आती है। हमारे संतों के प्रयत्नों के द्वारा समाज जीवन की छूआछूत कम होती गई, लेकिन राजनीतिक जीवन में छूआछूत और भी बढ़ती चली जा रही है..! यह देश स्वामी विवेकानंद जी की 150 वीं जयंती मना रहा है और हम जब स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती मना रहे हैं तब, इस बात का भी संयोग है कि श्री नारायण गुरू स्वामी के जीवन में भी इस कार्य को आगे बढ़ाने में स्वामी विवेकानंद जी का सीधा-सीधा संबंध आया था। हम पूरे आजादी के आंदोलन की ओर नजर करें तो हमारे ध्यान में आएगा कि अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध, उन्नीसवीं शताब्दी और बीसवीं शताब्दी में भारत की आजादी के आंदोलन की पिठीका तैयार करने में सबसे बड़ा योगदान किसी ने दिया है तो हमारे संतों ने दिया है, महापुरूषों ने दिया है, सन्यासियों ने दिया है, जिनके पुरुषार्थ के कारण एक समाज जागरण का काम, सामाजिक चेतना का काम, सामाजिक एकता का काम निरंन्तर चलता रहा और उसी का परिणाम हुआ कि देश की आजादी के आंदोलन के लिए एक मजबूत पीठिका का निर्माण हुआ। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज ये मान कर चलते थे कि अब हिन्दुस्तान को हजारों सालों तक गुलाम बनाए रखा जा सकता है, अब हिन्दुस्तान खड़ा नहीं हो सकता है। लेकिन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद पूरी तीन शताब्दी की ओर देखा जाए तो इस देश में इन महापुरूषों की एक श्रुंखला रही है और उस श्रुंखला के कारण निरंतर हिन्दुस्तान का कोई एक राज्य ऐसा नहीं होगा, हिन्दुस्तान का कोई समाज ऐसा नहीं होगा, हिन्दुस्तान का कोई क्षेत्र ऐसा नही होगा कि जहाँ पर पिछली तीन शताब्दी के अंदर कोई ना कोई ऐसे महापुरूष का जन्म ना हुआ हो जिस महापुरूष ने समाजिक संस्कारों के लिए, समाज सुधार के लिए सोशल रिफार्मर के नाते काम ना किया हो और समाज को जोड़ने का काम ना किया हो, ऐसा पिछली तीन शताब्दी में किसी भूभाग में नहीं मिलेगा..! चाहे स्वामी राम दास हो, चाहे स्वामी विवेकानंद हो, चाहे स्वामी दयानंद से लेकर के स्वामी श्रद्घानंद तक की परंपरा हो, चाहे बस्वेश्वर हो, चाहे चेतन्य महाप्रभु हो, चाहे गुजरात के नरसिंह मेहता हो, इस देश के अंदर ऐसी एक परंपरा रही और केरल में भी पूज्य नारायण स्वामी जी का हो या अयंकाली जी का हो, इन सबकी परंपरा के कारण हिन्दुस्तान के अंदर इस चेतना को जागृत रखने में सफलता मिली थी। इन महापुरुषों ने त्याग और तपश्चर्या के द्वारा देश में जागरण का काम किया, देशभक्ति जगाने का काम किया, हमारी संस्कृति, हमारे धर्म और हमारी परंपरा को जगाने का काम किया और उसके कारण भारत के आजादी के आंदोलन के लिए एक बहुत बड़ी पीठीका तैयार हुई..!

लोगों को लगता है कि दुनिया की अनेक परंपराएं, अनेक संस्कृतियां, समाज जीवन की अनेक परंपराएं धवस्त हो गई, इतिहास के किनारे जा कर के उन्होंने अपनी जगह ले ली और आज उनका कहीं नामोनिशान नहीं रहा..! लोग पूछते हैं कि क्या कारण रहा कि हजारों साल के बाद भी ये समाज, ये संस्कृति, इस देश की परंपरा मिटती नहीं है, पूरे विश्व के अंदर ये सवाल उठाया जाता है..! समाज जीवन में अगर हम बारीकी से देंखें कि हजारों साल हुए, हमारी हस्ती मिटती क्यों नहीं है..? क्या हजारों साल में हमारे अंदर बुराइयाँ नहीं आई हैं? आई हैं..! हमारे में विकृतियाँ नहीं आई हैं? आई हैं..! हमारे समाज में बिखराव नहीं आया है? आया है..! अनेक बुराइयाँ आने के बावजूद भी इस समाज की ताकत ये रही है कि हिन्दु समाज ने हमेशा अपने ही भीतर संतो को जन्म दिया, समाज सुधारकों को जन्म दिया, एक नई चेतना, नया स्वस्थ जगत बनाने के लिए जो-जो लोगों ने जन्म लिया उन महापुरूषों के पीछे चलने का साहस दिखाया और अपनी ही बुराइयों पर वार करने की ताकत हमारे ही समाज में से पैदा होती थी, ऐसे महापुरूष हमारे समाज में से ही पैदा होते थे और उन महारुषों की पैकी एक बहुत बड़ा नाम केरल की धरती पर जन्मे हुए परमपूज्य श्री नारायण स्वामी का है..! श्री नारायण गुरू जी ने उस कालखंड में शिक्षा को सर्वाधिक महत्व दिया और आज अगर केरल गर्व से खड़ा है और शिक्षा के क्षेत्र में पूरे देश में केरल ने जो अपना एक रूतबा जमाया है, अगर उसके मूल में हम देखें तो सौ-सवा सौ साल पहले ऐसे महापुरूषों ने शिक्षा के लिए अपना जीवन खपा दिया था और उसके कारण शिक्षा का ये मजबूत फाउंडेशन आज केरल की धरती पर नजर आता है..!

विश्व के कई समाज ऐसे हैं कि जो 20 वीं शताब्दी तक नारी को बराबर का दर्जा देने के लिए तैयार नहीं थे। विश्व के प्रगतिशील माने जाने वाले देश भी, लोकतंत्र में विश्वास रखने के बावजूद भी महिला को मताधिकार देने के लिए सदियों तक तैयार नहीं थे। उस युग में भी हिन्दुस्तान में ऐसे संत महात्माओं की परंपरा पैदा हुई जिन्होंने नारी कल्याण के लिए, नारी उत्थान के लिए, नारी शिक्षा के लिए, नारी समानता के लिए अपने आप को खपा दिया था और समाज के अंदर परिवर्तन लाने का प्रयास किया था। समाज के दलित, पीडित, शोषित, उपेक्षित, वंचित ऐसे समाज की भलाई के लिए अनेक प्रकार के समाज सुधार के काम सदियों से चलते आए हैं, लेकिन जिन समाज सुधार के कामों में राजनीति जुड़ती है वहाँ पर हैट्रेड का माहौल भी जन्म लेता है। एकता सुधार करने के लिए, एक को अधिकार देने के लिए दूसरे को नीचे दिखाना, दूसरे को हेट करना, दूसरे को दूर करना, दूसरे के खिलाफ बगावत का माहौल बनाना ये परंपरा रहती है। लेकिन जब समाज सुधार के अंदर आध्यात्म जुड़ता है तब समाज सुधार भी हो, लेकिन समाज टूटे भी नहीं, नफरत की आग पैदा ना हो, जिनके कारण समाज में बुराई आई हैं उनके प्रति रोष का भाव पैदा ना हो, उनको भी जोड़ना, इनको भी जोड़ना, सबको जोड़कर के चलने का काम होता है। जब समाज सुधार के साथ आध्यात्मिक चेतना का मिलन होता है तब इस प्रकार का परिवर्तन आता है। श्री नारायण गुरू के माध्यम से समाज सुधार और आध्यात्म का ऐसा अद्भुत मिलन था कि समाज में कहीं पर भी उन्होंने नफरत को जन्म देने का अधिकार किसी को भी नहीं दिया..!

हमारे देश में उस काल खंड की ओर अगर हम नजर करें..! समाज के अंदर बुराइयों ने जब पूरी तरह समाज पर कब्जा जमाया हो, स्थापित हितों का जमावड़ा इसको बरकरार रखने के लिए भरपूर कोशिश करता हो, ऐसे समय में ऐसे संत खड़े हुए जिनके पास कुछ नहीं था, लेकिन बुराइयों के खिलाफ लड़ने का संकल्प था और वो बुराइयों के खिलाफ खड़े हुए, समाज स्वीकार करे या ना करे, वे बुराइयों के खिलाफ लड़ने से पीछे नहीं हटे और पूरी जिन्दगी समाज सुधार के लिए घिस दी। जिस समाज के अंदर ईश्वर भक्ति सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हो, परमात्मा सबकुछ है ऐसा माना जाता हो, उस कालखंड में भी इस देश में ऐसे सन्यासी हुए जो कहते थे कि ईश्वर भक्ति बाद में करो, पहले दरिद्र नारायण की सेवा करो, दरिद्र नारायण ही भगवान का रूप होता है और उन गरीबों की भलाई करोगे तो ईश्वर प्राप्त हो जाएगा, ये संदेश देने की ताकत इस भूमि में थी..! समाज सुधारको ने अपने जीवन को बलि चढ़ा करके भी समाज की बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उसको प्राप्त किया। श्री नारायण गुरू की तरफ हम नजर करें तो ध्यान में आता है कि उस समय जब अंग्रेजों का राज चलता था और गुलामी की जो मानसिकता थी, उस मानसिकता को बढ़ावा देने के लिए वो अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ाना चाहते थे और अंग्रेजी के माध्यम से इस देश को दबाने के लिए रास्ता खोजते थे, ऐसे समय में नारायण गुरू की दृष्टि देखिए... उन्होंने समाज को कहा कि अंग्रेजी सीख कर के उनको उन्हीं की भाषा में जवाब देने की ताकत पैदा करनी चाहिए, अंग्रेजों से लड़ना होगा तो अंग्रेजों को अंग्रेजी की भाषा में समझाना पड़ेगा, ये हिम्मत देने का काम नारायण गुरू ने उस समय किया था..!

21 वीं सदी हिन्दुस्तान की सदी है ऐसा कहते हैं, 21 वीं सदी ज्ञान की सदी है ऐसा भी कहते हैं और ये हमारा सौभाग्य है कि आज हिन्दुस्तान दुनिया का सबसे युवा देश है। इस देश की 65% जनसंख्या 35 साल से कम आयु की है और इसलिए ये युवा देश हमारा डेमोग्राफिक डिविडेंड है और ये अपने आप में एक बड़ी शक्ति है..! लेकिन जो लोग प्रगति करना चाहते हैं वो सारे देश इन दिनों एक विषय पर बड़े आग्रह से बात करते हैं। अभी-अभी अमेरिका में चुनाव समाप्त हुए, श्रीमान ओबामा ने दोबारा अपनी प्रेसिडेंटशिप को धारण किया, और दोबारा प्रेसिडेंट बनने के बाद उन्होंने जो पहला भाषण किया उस पहले भाषण में उन्होंने एक बात पर बल दिया और कहा कि लोगों को स्किल डेवलपमेंट, हुनर सिखाओ। जब तक हम व्यक्ति के हाथ में हुनर नहीं देते, जब तक उसको रोजगार की संभावनाएं नहीं देते, वो दुनिया में कुछ कर नहीं सकता..! अमेरिका जैसे समृद्घ देश की अर्थनीति के बीज में भी स्किल डेवलपमेंट की बात होती है। हिन्दुस्तान के अंदर डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस की सरकार भी स्किल डेवलपमेंट की बात करती है और मुझे गर्व से कहना है कि अभी 21 अप्रैल को भारत के प्रधानमंत्री ने स्किल डेवलपमेंट के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ट कार्य करने के लिए गुजरात सरकार को विशेष रूप से सम्मानित किया। गुजरात देश में पहला राज्य है जिसने अलग स्किल यूनिवर्सिटी बनाने का निर्णय किया है और दुनिया का सबसे समृद्घ देश भी स्किल डेवलपमेंट की बात करता है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश भी स्किल डेवलपमेंट की बात करता है। दुनिया भर में स्किल डेवलपमेंट की चर्चा हो रही है, लेकिन मजा देखिए, सौ साल पहले केरल की धरती पर एक नारायण गुरू का जन्म हुआ जिन्होंने सौ साल पहले स्किल डेवलपमेंट पर बल देने के लिए बातचीत नहीं, प्रयास किये थे..!

आज पूरा विश्व दो समस्याओं से झूझ रहा है..! एक, ग्लोबल वार्मिंग और दूसरा, टेररिज़म, आंतकवाद..! पूरा विश्व इन दोनों चीजों से परेशान है, लेकिन आज अगर हम हमारे पूर्वजों की बातों को ध्यान में लें, हमारे संतों की बातों को ध्यान में लें, हमारे शास्त्रों की बातों को ध्यान में लें और अगर उसके आधार पर जीवनचर्या को काम में लें तो मैं विश्वास से कहता हूँ कि ग्लोबल वार्मिंग से मानवजात को बचाई जा सकती है, टेररिज़म के रास्ते से लोगों को वापस ला कर के सदभावना और प्रेम के रास्ते पर लाया जा सकता है, ये संदेश पूज्य नारायण गुरू स्वामी ने उस जमाने में दिए थे, जब वो कहते थे एक जन, एक देश, एक देवता..! ये बात उस समय की है, और आज तो इतने बिखराव के माहौल कि चर्चा हो रही है। एक राज्य दूसरे राज्य को पानी देने को तैयार नहीं है, ऐसे माहौल में उस महापुरूष ने दूर का देखा था और कहा था कि यह देश एक, जन एक और परमात्मा एक... ये संदेश देने का काम श्री नारायण गुरू ने किया था। श्री नारायण गुरू स्वामी ने जैसे कहा था उस प्रकार से कश्मीर से कन्याकुमारी, अटक से कटक तक का पूरा हिन्दुस्तान करूणा और प्रेम से बंधा हुआ रहता, हमारे अंदर कोई बिखराव ना होता तो आज हमारे भीतर से कोई भी आंतकवाद को साथ देने का पाप ना करता, नारायण गुरू के रास्ते पर चलते तो यहाँ आंतकवाद को कभी जगह नहीं मिलती..!

एक समय था जब बड़े-बड़े भव्य मंदिरों से प्रभाव पैदा होता था, मंदिरों के निर्माण में भी एक स्पर्धा का माहौल चलता था, प्रकृति का जितना भी शोषण करके जो कुछ भी किया जा सकता था वो सब होता था। ऐेसे समय में आप दक्षिण के मंदिर देखिए, कितने विशाल मंदिर होते हैं..! ऐसे समय में नारायण गुरू ने समाज के उस प्रवास को काट कर के उल्टी दिशा में चल कर के दिखाया कि जरूरत नहीं है बड़े-बड़े विशाल मंदिरों की..! छोटे-छोटे मंदिरों की रचना करने की एक नई परंपरा शुरू की। सामान्य संसाधनों से बनने वाले मंदिरों की एक परंपरा शुरू की। ईश्वर कहीं पर भी विराजमान रहता है इस प्रकार से उन्होंने चिंता की और एक प्रकार से पर्यावरण की रक्षा के लिए, प्रकृति का कम से कम उपभोग करने का संदेश देने का काम श्री नारायण गुरू ने किया था, अगर उस परंपरा को हम जीवित रखते तो आज ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पैदा नहीं होती..!

दुनिया के कर्इ देश ऐसे हैं जो आज भी नारी के नेतृत्व को स्वीकार करने का समार्थ्य नहीं रखते हैं। पश्चिम के आधुनिक कहे जाने वाले राष्ट्र भी नारी शक्ति के सामर्थ्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। लेकिन यह देश ऐसा है कि सदियों पहले अगर हमारे देश में नारी के सम्मान को चोट पहुंचे ऐसी कोई भी चीज पनपती थी, तो हमारे संत बहुत जागरूक हो जाते थे और वूमन एम्पावरमेंट के लिए अपने युग में हमेशा वो प्रयास करते रहे हैं। समाज की बुराइयों से समाज को बाहर ला करके मातृ-शक्ति के सामर्थ्य की चिंता करने का काम हमारे देश में होता रहा है और श्री नारायण गुरू ने हमेशा वुमन एम्पावरमेंट को हमेशा बल दिया, उनको शिक्षित करने की बात पर बल दिया, उनको विकास प्रक्रिया में भागीदार बनाने के विचार को बल दिया, उन्होंने माताओं-बहनों को परिवार के अंदर कोई ना कोई रोजगार खड़ा करने की स्वतंत्रता पर बल दिया और समाज के विकास की यात्रा में नारी को भी भागीदार बनाने के लिए श्री नारायण गुरू ने प्रयास किए..! श्री नारायण गुरू ने प्रेम की, करूणा की, समाज की एकता की बातों के साथ-साथ सादगी का भी बहुत आग्रह रखा था, सिम्पलीसिटी का बहुत आग्रह रखा था..! मैं आज भी इस परंपरा से जुड़े हुए इन सभी महान संतों को प्रणाम करते हुए उनका अभिनंदन करना चाहता हूँ, क्योंकि नारायण गुरू ने जिस परंपरा में सादगी का आग्रह रखा था, आज भी उस सादगी को निभाने का प्रयास इस परंपरा को निभाने वाले सभी लोगों के द्वारा हो रहा है, ये अपने आप में बड़े गर्व की बात है..! ये मेरा सौभाग्य है कि इस महान परंपरा के साथ आज निकट से जुड़ने का मुझे सौभाग्य मिला है और इसलिए मैं इन सभी संतों का बहुत ही आभारी हूँ..!

यहाँ पर अभी पूज्य ऋतंभरानंद जी ने अपने भाषण में कुछ अपेक्षाएं व्यक्त की थी कि गुजरात की धरती पर भी ये संदेश कैसे पहुंचे..! ये मेरे लिए गर्व की बात होगी कि इतनी अच्छी बात, समाज के गरीब, दुखियारों की सेवा की बात मेरे गुजरात के अंदर अगर केरल की धरती से पहुंचती है तो मैं उसका स्वागत करता हूँ, सम्मान करता हूँ..! केरल का कोई जिला ऐसा नहीं होगा, कोई तालुका या ब्लॉक ऐसा नहीं होगा, जहाँ के लोग मेरे गुजरात में ना रहते हों..! आज गुजरात की प्रगति की जो चर्चा हो रही है, उस प्रगति में मेरे केरल के भाईयों के पसीने की भी महक है और इसलिए मैं आज केरल के मेरे सभी भाइयों-बहनों का आभार भी व्यक्त करना चाहूँगा, अभिनंदन भी करना चाहूँगा..! और मुझे विश्वास है कि आने वाले दिनों में केरल के मेरे भाई जो गुजरात में रहते हैं, उनको जब पता चलेगा कि यहाँ नारायण गुरू की प्रेरणा से कुछ ना कुछ गतिविधि चल रही है, तो गुजरात में रहने वाले केरल के भाइयों के लिए भी एक अच्छा स्थान बन जाएगा। मैं नारायण गुरु की इस परंपरा को निभाने वाले, इस सदविचार को घर-घर गाँव-गाँव पहुंचाने वाले, समाज के पिछड़े, दलित, पीड़ित, शोषितों का भला करने के लिए जीवन आहूत करने वाले सभी महानुभावों से प्रार्थना करूँगा कि गुजरात आपका ही है, आप जब मर्जी पड़े आइए, गुजरात की भी सेवा कीजिए..!

इस पवित्र धरती पर आने का मुझे सौभाग्य मिला, मुझे निमंत्रण मिला, मैं इसके लिए फिर एक बार आप सबका बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूँ, सभी संतों को वंदन करता हूँ और पूज्य स्वामी नारायण गुरू के चरणों में प्रार्थना करके उनसे आशीर्वाद लेता हूँ कि ईश्वर ने मुझे जो काम दिया है, मैं गरीब, पीड़ित, शोषित, दलित, सबकी भलाई के लिए अपने जीवन में कुछ ना कुछ अच्छा करता रहूँ, ऐसे आशीर्वाद मुझे आज इस तपोभूमि से मिले..! मैं केरल के सभी भाइयों-बहनों का भी आभार व्यक्त करता हूँ कि आज मैं शाम को त्रिवेन्द्रम एयरपोर्ट पर उतरा और वहाँ से यहाँ तक आया, चारों ओर जिस प्रकार से आप लोगों ने मेरा स्वागत किया, सम्मान किया, मुझे प्रेम दिया, इसके लिए मैं केरल के सभी भाईयों-बहनों का भी बहुत हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ..! फिर एक बार सहोदरी-सहोदर हमारे, नमस्कारम्..!

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English translation of India's National Statement at the 21st ASEAN-India Summit delivered by Prime Minister Narendra Modi
October 10, 2024

Your Majesty,

Excellencies,

Thank you all for your valuable insights and suggestions. We are committed to strengthening the Comprehensive Strategic Partnership between India and ASEAN. I am confident that together we will continue to strive for human welfare, regional peace, stability, and prosperity.

We will continue to take steps to enhance not only physical connectivity but also economic, digital, cultural, and spiritual ties.

Friends,

In the context of this year's ASEAN Summit theme, "Enhancing Connectivity and Resilience,” I would like to share a few thoughts.

Today is the tenth day of the tenth month, so I would like to share ten suggestions.

First, to promote tourism between us, we could declare 2025 as the "ASEAN-India Year of Tourism.” For this initiative, India will commit USD 5 million.

Second, to commemorate a decade of India’s Act East Policy, we could organise a variety of events between India and ASEAN countries. By connecting our artists, youth, entrepreneurs, and think tanks etc., we can include initiatives such as a Music Festival, Youth Summit, Hackathon, and Start-up Festival as part of this celebration.

Third, under the "India-ASEAN Science and Technology Fund," we could hold an annual Women Scientists’ Conclave.

Fourth, the number of Masters scholarships for students from ASEAN countries at the newly established Nalanda University will be increased twofold. Additionally, a new scholarship scheme for ASEAN students at India’s agricultural universities will also be launched starting this year.

Fifth, the review of the "ASEAN-India Trade in Goods Agreement” should be completed by 2025. This will strengthen our economic relations and will help in creating a secure, resilient and reliable supply chain.

Sixth, for disaster resilience, USD 5 million will be allocated from the "ASEAN-India Fund." India’s National Disaster Management Authority and the ASEAN Humanitarian Assistance Centre can work together in this area.

Seventh, to ensure Health Resilience, the ASEAN-India Health Ministers Meeting can be institutionalised. Furthermore, we invite two experts from each ASEAN country to attend India’s Annual National Cancer Grid ‘Vishwam Conference.’

Eighth, for digital and cyber resilience, a cyber policy dialogue between India and ASEAN can be institutionalised.

Ninth, to promote a Green Future, I propose organising workshops on green hydrogen involving experts from India and ASEAN countries.

And tenth, for climate resilience, I urge all of you to join our campaign, " Ek Ped Maa Ke Naam” (Plant for Mother).

I am confident that my ten ideas will gain your support. And our teams will collaborate to implement them.

Thank you very much.