भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र, जो लंबे समय से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा संचालित रहा है, अब व्यापक सुधारों, निजी क्षेत्र के इनोवेशन व प्रभावी वैश्विक साझेदारियों के दम पर एक परिवर्तनकारी विकास से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को उसके जड़ स्वरूप से बदलकर एक जीवंत और समावेशी तंत्र में परिवर्तित कर दिया है जो स्टार्टअप्स् को प्रोत्साहन देता है, निवेश को आकर्षित करता है और भारत को वैश्विक अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में स्थापित करता है।
रिफॉर्म और स्ट्रटीजिक निवेश
भारतीय सरकार ने अंतरिक्ष को राष्ट्रीय विकास का आधार बनाया है। केंद्रीय बजट 2025-26 में अंतरिक्ष विभाग के लिए 13,416 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो भारत की स्पेस सेक्टर की क्षमता को बढ़ाने के संकल्प को और दृढ़ता प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, 2024-25 के बजट में पेश किया गया 1,000 करोड़ रुपये का वेंचर कैपिटल फंड अंतरिक्ष स्टार्टअप्स की वृद्धि को उत्प्रेरित कर रहा है, जिसका लक्ष्य 2033 तक भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को पांच गुना बढ़ाना है।
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना ने निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुगम बनाया है, जिससे तेजी से इनोवेशन, लागत में गिरावट और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी हुई है। इन सुधारों ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धियों के लिए अवसर खोले हैं, जिससे भारत वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख दावेदार बन गया है।
इसरो की भूमिका: ऑपरेटर से एनैबलर तक
इसरो भारत की अंतरिक्ष उपलब्धियों का केन्द्र रहा है, जिसने 2014 से 2025 के बीच 58 प्रक्षेपण यान मिशन पूरे किए, जो 2014 से पहले के 42 मिशनों की तुलना में 38% की वृद्धि है।
पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV), जिसे अक्सर इसरो का "ट्रस्टेड़ वर्कहॉर्स" कहा जाता है, ने 62 मिशन पूरे किए, जिसमें 2017 में एक ही मिशन में 104 उपग्रहों का रिकॉर्ड-तोड़ प्रक्षेपण शामिल है—जो पिछले 10 उपग्रहों के रिकॉर्ड से 940% का इजाफ़ा है।
इसरो की क्षमताएँ भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ी हैं, जिसमें जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) के लिए अधिकतम पेलोड क्षमता 2,200 किलोग्राम से बढ़कर 4,200 किलोग्राम (91% वृद्धि) हो गई है, और भारत की धरती से प्रक्षेपित सबसे भारी पेलोड 5,805 किलोग्राम तक पहुँच गया है, जो 152% सुधार है।
जबकि इसरो चंद्रयान-3 (2023) जैसे ऐतिहासिक मिशनों का नेतृत्व करता रहा है, जिसने भारत को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में उतरने वाला पहला देश बनाया, और आदित्य-एल1 (2023), देश की पहली सोलर अब्ज़र्वटोरी, इसकी भूमिका अब निजी क्षेत्र की वृद्धि को सक्षम करने की ओर स्थानांतरित हो रही है।
इन प्रयासों ने भारत के लिए आवश्यक विदेशी मुद्रा राजस्व उत्पन्न किया है, जिसमें 2014 से 2024 के बीच 398 विदेशी उपग्रहों को व्यावसायिक रूप से प्रक्षेपित किया गया। इससे लगभग 3,400 करोड़ रुपये (143 मिलियन डॉलर और 272 मिलियन यूरो) की राजस्व आपूर्ति हुई।
तेजी से बढ़ रहे स्पेस स्टार्ट-अप
अंतरिक्ष क्षेत्रों में हुए इन सुधारों ने भारत में स्टार्टअप क्रांति को जन्म दिया है, जिसमें 2025 तक 325 अंतरिक्ष स्टार्टअप उभरे हैं—2014 में केवल एक की तुलना में 32,400% की अभूतपूर्व वृद्धि। स्काईरूट एयरोस्पेस, जिसने 2022 में भारत का पहला निजी रॉकेट, विक्रम-एस, लॉन्च किया, और अग्निकुल कॉसमॉस, जो एक सेमी-क्रायोजेनिक प्रक्षेपण यान विकसित कर रहा है, इस परिवर्तन में सबसे आगे हैं।
पिक्सेल की पृथ्वी-अवलोकन उपग्रहों की श्रृंखला इस क्षेत्र के इनोवेशन और स्केलेबल समाधानों की ओर बदलाव को दर्शाती है।
मोदी सरकार की उदार नीतियों, जिसमें उपग्रह संचालन में 100% FDI (स्वीकृतियों के साथ), कर प्रोत्साहन, और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव-PLI) योजना शामिल हैं, ने इस वृद्धि को बढ़ावा दिया है। PLI योजना ने उपग्रह घटकों, प्रणोदन प्रणालियों (propulsion systems) और पेलोड के घरेलू विनिर्माण को मजबूत किया है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हुई है और भारत को प्रौद्योगिकी निर्यातक के रूप में स्थापित किया है। इन पहलों ने वैश्विक निवेश को आकर्षित किया है, आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत किया है और वाणिज्यिक अंतरिक्ष बाजार में भारत की पहचान को मजबूत किया है।
वैश्विक प्रभाव
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम केवल तकनीकी कौशल के बारे में नहीं बल्कि इसके दूरगामी वैश्विक प्रभाव के बारे में भी है। 2014 से 2024 के बीच, इसरो ने 398 विदेशी उपग्रहों को प्रक्षेपित किया, जो 2014 से पहले के 35 की तुलना में 1,037% की वृद्धि है, जिसने भारत की विश्वसनीय और किफ़ायती प्रक्षेपण प्रदाता के रूप में प्रतिष्ठा को मजबूत किया है। वनवेब के ब्रॉडबैंड उपग्रहों को LVM-3 के माध्यम से प्रक्षेपित करने जैसे सहयोग और लार्सन एंड टुब्रो (L&T) जैसे नामी उद्योग के साथ साझेदारी, जो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ PSLV का निर्माण कर रहा है, भारत की बढ़ती वाणिज्यिक ताकत को उजागर करते हैं। पहला निजी निर्मित PSLV, जिसकी लागत लगभग 2 अरब रुपये प्रति रॉकेट है, 2025 की शुरुआत में प्रक्षेपण के लिए तैयार है, जो सार्वजनिक-निजी सहयोग में एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
भारत की हाल की उपलब्धियाँ इसकी तकनीकी नेतृत्व को रेखांकित करती हैं।
जनवरी 2025 में स्पैडेक्स (SpaDeX) मिशन ने भारत को अंतरिक्ष डॉकिंग में सक्षम चौथा देश बनाया, जो गगनयान कार्यक्रम, 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन, और 2040 तक मानव-युक्त चंद्र मिशन के लिए एक महत्वपूर्ण क्षमता है। मंगल ऑर्बिटर मिशन (2014), जिसने भारत को अपनी पहली कोशिश में मंगल पर पहुँचने वाला पहला देश बनाया, एस्ट्रोसैट (2015), जिसके डेटा से 400 से अधिक शोध पत्र और 30 थीसिस निकले, और एक्सपोसैट (2024) ने भारत की वैज्ञानिक साख को मजबूत किया है।
रक्षा और कूटनीति में स्पेस सेक्टर का महत्व
भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं का प्रभाव आज रक्षा और कूटनीति जैसे महत्वपूर्ण विषयों तक पहुँच चुका है। 2019 का मिशन शक्ति ASAT परीक्षण में भारत ने दुश्मनों के उपग्रहों को निष्प्रभावी करने की क्षमता प्रदर्शित की, जबकि AI-संचालित निगरानी और सुरक्षित उपग्रह संचार में चल रही प्रगति, चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों से उत्पन्न क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने में समर्थ हैं।
“नेबरहुड फर्स्ट” नीति के तहत नेपाल, भूटान और ब्राजील के लिए उपग्रह प्रक्षेपित करने जैसे अंतरिक्ष कूटनीति के प्रयासों ने ग्लोबल साउथ में भारत के प्रभाव को मजबूत किया है। आर्टेमिस समझौते में भागीदारी और NASA के साथ NISAR उपग्रह जैसे सहयोग वैश्विक अंतरिक्ष नीति-निर्धारण को आकार देने में भारत की भूमिका को रेखांकित करते हैं।
भविष्य में भारत की स्पेस सेक्टर में अग्रणी भूमिका
मोदी सरकार के सुधारों, 325 स्टार्टअप्स की गतिशीलता और इसरो की अग्रणी भावना ने एक आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है जो नवाचार को बढ़ावा देता है, निवेश को आकर्षित करता है और वैश्विक साझेदारियों को प्रोत्साहित करता है। जैसे-जैसे भारत चालित मिशनों, गहन अंतरिक्ष अन्वेषण और वाणिज्यिक अनुप्रयोगों में प्रगति करता है, इसका अमृत काल का विजन स्पष्ट है: नवाचार, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक महत्वाकांक्षा के साथ नेतृत्व करते हुए एक वैश्विक अंतरिक्ष-तकनीक महाशक्ति के रूप में उभरना।