वर्ष 2014 के बाद से भारत में एक नीतिगत आर्थिक बदलाव आया है, जिससे पिछली सरकार की निष्क्रिय और भ्रमित नीतियों से उत्पन्न अस्थिरता को नियंत्रित करने में केंद्र सरकार ने सफलता पाई है।
वर्ष 2016 में एक विधिवत और फ्लेक्सिबल मुद्रास्फीति लक्ष्य (Flexible Inflation Targeting) प्रक्रिया का निर्धारण इस सुधार का मुख्य आधार रहा, जिससे मौद्रिक नीति को सरल और सुव्यवस्थित किया गया, जवाबदेही बढ़ाई गई और भारत के मौद्रिक प्रबंधन की विश्वसनीयता को बल मिला। इस नीतिगत बदलाव से पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान अनौपचारिक हस्तक्षेपों के कारण होने वाली अस्थिरता पर अंकुश लगा, जिसके अनिश्चित और असंगत आर्थिक परिणाम दिखते थे।
अपेक्षित मुद्रास्फीति यह तय करती है कि उपभोक्ता, व्यवसाय और निवेशक भविष्य में कीमतों में बढ़ोतरी का अनुमान कैसे लगाते हैं। यह हमारे-आपके आर्थिक आचरण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है, जिससे देश में मूल्य-निर्धारण संबंधी निर्णय प्रेरित होते हैं। स्थिर मुद्रास्फीति से ग्रामीण और शहरी उपभोक्ता भविष्य में मूल्यों में बदलाव की चिंता किए बिना उपभोग के लिए प्रोत्साहित होते हैं, जिससे किफायती विकल्पों और सतत विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।
फ्लेक्सिबल मुद्रास्फीति लक्ष्य (Flexible Inflation Targeting) के माध्यम से महंगाई दर को स्थिर करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सफल सिद्ध हुई है। सरकार की नीतियों ने अस्थिर उपभोग पैटर्न और पूर्वानुमानित मूल्य-वृद्धि को नियंत्रित करने में सफलता पाई है, जिससे बाजार में स्थिरता को बढ़ावा मिला है और अनिश्चितता कम हुई है। उदाहरण के लिए, स्थिर महंगाई दर ने मजदूरी और मूल्यों में वृद्धि के जटिल जोखिम को कम किया है। यह एक ऐसी अप्रिय स्थिति है, जहां बढ़ती मजदूरी प्रत्यक्ष रूप से मूल्यों में वृद्धि करती है, और फिर मूल्य-वृद्धि मजदूरी बढ़ाने पर विवश कर देती है, जिससे अर्थव्यवस्था के अस्थिर होने का खतरा बढ़ जाता है।
मोदी सरकार द्वारा लागू किए गए नीतिगत सुधारों ने विरासत में मिली अस्थिर मुद्रास्फीति और अनिश्चित एवं प्रतिक्रियात्मक नीतियों जैसी चुनौतियों को समाप्त किया है, जो पहले इंक्लूसिव ग्रोथ को कमजोर कर रही थीं। इन सुधारों से स्थिर कीमतें सुनिश्चित करने और अनिश्चितता कम करने में मदद मिली है, जिससे आर्थिक लाभ को बढ़ाया जा सका है, और देश सतत स्थिरता और इंक्लूसिव ग्रोथ के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है।
बाजार को प्रभावित करने वाले कारकों पर नियंत्रण
भारत ने मई 2016 में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में संशोधन के माध्यम से फ्लेक्सिबल मुद्रास्फीति लक्ष्य व्यवस्था को अपनाया। इसके अंतर्गत मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4% निर्धारित किया गया और लक्ष्य से ±2% की उतार-चढ़ाव की रेंज स्वीकृत की गई।
2013 में समाप्त होने वाले दशक के दौरान, देश में रिटेल इन्फ्लेशन (Consumer Price Index) 8-12% की रेंज में रही। वर्ष 2009-11 और फिर 2012-13 के दौरान महंगाई दर 10% को भी पार कर गई थी। इतना ही नहीं, वर्ष 2011-12 में शहरी व ग्रामीण प्रति-व्यक्ति उपभोग खर्च का अंतर 84% था, जो एक गंभीर असमान अर्थव्यवस्था का लक्षण है, जहां कीमतों में उछाल से गरीबों का जीना दुश्वार हो गया था। पिछली सरकारें अस्थिर मौद्रिक नीतियों से संघर्षरत रहीं, और बिना किसी स्पष्ट उद्देश्य के विकास और मुद्रास्फीति के बीच तालमेल बिठाने में जूझती रहीं।
वर्ष 2014 के बाद, सरकार ने समग्र मांग और आपूर्ति को संतुलित करने पर ध्यान दिया। डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (डीबीटी) और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर (इंडिया स्टैक) जैसी नीतियों से अर्थव्यवस्था से मुद्रा के लीकेज पर रोक लगी और कीमतों को स्थिर रखने में सफलता मिली है।
पिछली सरकारों द्वारा प्रस्तावित योजनाओं के विपरीत, लोकलुभावन कैश वितरण स्कीमों से बचना मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि रही है, जिससे रिटेल इन्फ्लेशन बढ़ाने वाली इस प्रवृत्ति पर रोक लगी है।
इससे अचानक मूल्य वृद्धि की संभावनाएं कम हुई, और खाद्य, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं के बाजार-मूल्य में स्थिरता आई। इस इन्फ्लेशन मॉडल ने वर्ष 2022 की वैश्विक मुद्रास्फीति संकट के दौरान कई विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया।
लाभप्रद संपत्तियों में निवेश में उछाल
वर्ष 2014 से पहले, अत्यधिक मुद्रास्फीति दर के कारण बचत पर वास्तविक रिटर्न कम हुआ, बैंक जमा में कमी आई, और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में सट्टेबाजी के लिए क्रेडिट आवंटन को बढ़ावा मिला, जिससे संपत्तियों के रेट अविश्वसनीय रूप से बढ़ गए। इस त्रुटिपूर्ण आवंटन ने इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों के विकास को बहुत नुकसान पहुंचाया।
फ्लेक्सिबल मुद्रास्फीति लक्ष्य (FIT) ने अनिश्चितता को कम किया, जिससे लाभप्रद संपत्तियों में निवेश को प्रोत्साहन मिला। FIT के तहत ब्याज दरों की प्रक्रिया मजबूत हुई, और RBI ने दरों को समायोजित कर निवेश योजनाओं को प्रोत्साहित करने में सफलता हासिल की।
वर्ष 2020-21 के इकॉनोमिक सर्वे के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र में भी क्रेडिट ग्रोथ में सुधार हुआ। वर्ष 2016-20 के दौरान, MSME सेक्टर को प्राथमिक क्षेत्र के मानदंडों के तहत MUDRA योजना का सहयोग मिला जिससे इस सेक्टर में लोन में 30% की वृद्धि दर्ज की गई।
वर्ष 2016-20 के दौरान, इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में सकल स्थायी पूंजी निर्माण (Gross Fixed Capital Formation) में 6.8% की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई, जो क्षेत्र में बढ़े निवेश को दर्शाता है। वर्ष 2016-20 के दौरान ही रियल एस्टेट सेक्टर में मूल्य वृद्धि में थोड़ी कमी आई, जो NHB RESIDEX इंडेक्स में प्रमुख शहरों में मात्र 5-7% की वार्षिक वृद्धि के रूप में दर्ज की गई। यह स्पष्ट रूप से इस सेक्टर में सट्टेबाजी और एसेट बबल में कमी का संकेत था। इकॉनोमिक सर्वे 2019-20 और 2020-21 में वर्ष 2016 के बाद नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन योजना के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश वृद्धि को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है।
ग्रामीण उपभोग (खपत) में वृद्धि
फूड इन्फ्लेशन की उच्च दर ग्रामीण परिवारों पर असंगत रूप से बोझ डालती है, जिससे उनकी वास्तविक आय कम हो जाती है और उन्हें अत्यावश्यक वस्तुओं को भी प्राथमिकता पर चुनना पड़ता है। इससे इनके स्वैच्छिक खर्च में भी कमी आती है जो ग्रामीण क्षेत्र के विकास और आर्थिक विविधता में बाधा उत्पन्न करता है।
फ्लेक्सिबल मुद्रास्फीति लक्ष्य (FIT) ने 2-6% की लक्ष्य सीमा के भीतर मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखा, जिससे खाद्य कीमतों को स्थिर करने में मदद मिली और ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्रय-शक्ति भी मजबूत हुई। समय-समय पर चावल के स्टॉक रिलीज करने और वर्ष 2017 में जीएसटी की शुरूआत जैसे अतिरिक्त उपायों से खाद्य परिवहन लागत को कम करने में भी मदद मिली, जिससे FIT द्वारा हासिल की गई स्थिरता को समर्थन मिला।
घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey) के अंतर्गत, लगभग 3 लाख ग्रामीण परिवारों और 1 लाख शहरी परिवारों से एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (MPCE) से पता चलता है कि शहरी-ग्रामीण मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (MPCE) का अंतर वर्ष 2011-12 में 84% से कम होकर वर्ष 2022-23 में 71% रह गया था। ग्रामीण MPCE भी बढ़कर 4,122 रुपये और शहरी MPCE 6,996 रुपये हो गया था। ये दोनों आंकड़े ग्रामीण उपभोग में निरंतर वृद्धि और इंक्लूसिव ग्रोथ को दर्शाते हैं।
भारत में वर्ष 2014 के बाद, अस्थिर इन्फ्लेशन का स्थिरता की ओर बढ़ना और टिके रहना, आर्थिक नीति के प्रति मोदी सरकार के सुधारात्मक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है, जो पारंपरिक और कम प्रभावी नीतियों से सर्वथा विपरीत है।
हाल के दशक में मोदी सरकार ने खाद्य और उर्वरक कार्यक्रमों में भारी सब्सिडी पर निर्भरता को समाप्त कर दूरदर्शी और व्यवस्थित नीतियों के माध्यम से आवश्यक हस्तक्षेप, संरचनात्मक सुधारों और आपूर्ति-आधारित कुशलता पर प्राथमिकता दी है। जहां, खाद्य और उर्वरक योजनाओं में भारी सब्सिडी बाजार को अस्थिर करती थी और आपूर्ति-आधारित बाधाओं को हल किए बिना मांग-आधारित मुद्रास्फीति बढ़ाती थी, वहीं, मोदी सरकार की नीतियों ने सतत आर्थिक स्थिरता की राह प्रशस्त की है, और देश के इन्फ्लेशन-टारगेटिंग प्रारूप में एक महत्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया है।