Text of PM’s remarks while replying to Motion of thanks to President’s Address

Published By : Admin | February 27, 2015 | 15:12 IST

मैं राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद देने के लिए खड़ा हुआ हूँ। लेकिन साथ ही साथ में मैं इस सदन के माननीय सदस्यों का भी धन्यवाद करना चाहता हूं। बहुत ही अच्छी चर्चा रही। करीब-करीब 60 माननीय सदस्यों के विचारों को मुझे सुनने का मौका मिला और करीब 40 आदरणीय सदस्यों ने लिखित रूप में अपने प्रतिभाव व्यक्त किए हैं। इस अर्थ में काफी सार्थक चर्चा रही है। अनेक विषयों पर चर्चा की गई है। मैं विशेष करके विपक्ष के हमारे आदरणीय खड़गे जी और भी वरिष्ठ महानुभाव ने जो विषय रखे हैं सभी दलों के वरिष्ठ नेताओ ने रखे हैं विषय। 

राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उन समस्याओं के समाधान के लिए क्या प्रयास हो रहे हैं, किस दिशा में हो रहे हैं और किस गति से हो रहे हैं, उसका उल्लेख किया है। ये बात सही है कि कई आदरणीय सदस्यों को लगता होगा कि ये होता तो अच्छा होता, ये होता तो अच्छा होता। मैं इसको सकारात्मक रूप में देखता हूं और विचार व्यक्त करने वाले माननीय सदस्य, इस तरफ से हों या उस तरफ से हों, इन अपेक्षाओं का महत्व है। अपेक्षाओं का महत्व इसलिए भी है कि आपको भरोसा है कि समस्या का समाधान शायद इसी कालखंड में होगा, तो ये अच्छी बात है। 

कुछ ये भी बातें आई हैं कि भाई आप तो हमारी ही योजनाओं के ही नाम बदल रहे हो। मैं नहीं मानता हूं कि मुद्दा योजना का और योजना के नाम का है, मुद्दा समस्या का है। योजना नई है या पुरानी है इसका तो विवाद हो सकता है लेकिन इसमें कोई विवाद नहीं है कि समस्या पुरानी है और इसलिए हमें जो समस्याएं विरासत में मिली हैं, उन समस्याओं का समाधान करने के रास्ते हम खोज रहे हैं। इनको ये भी लगता है कि ये तो हमारी योजना थी, आपने नाम बदल दिया। मैं समझता हूं कि ऐसे विषयों पर आलोचना नहीं करनी चाहिए बल्कि गर्व करना चाहिए, आपको आनंद होना चाहिए कि चलो भाई समस्या के समाधान में, कुछ बातों में यहां के लोग हो या वहां के लोग हो, पहले वाले हो या नए वाले हो। सबकी सोच सही है दिशा सही है, तो ये अपने आप में अच्छी बात है मैं मानता हूं। 

दूसरा..कभी-कभार, मुझे याद है कि हम पर आलोचना का वार हुआ था, कि भई आजादी के आंदोलन में हम कहां थे; तो एक बार अटल जी ने बड़ा सटीक जवाब दिया था। अटल जी ने कहा कि- अच्छा बताओ! 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में आप कहां थे? तो ये चीजें कुछ पल तो ठीक लगती हैं। अब आप “निर्मल भारत” की चर्चा कहते हैं, वो आप कहते हैं कि आप “स्वच्छ भारत” ले आए। अब मैं पूछता हूं कि 1999 में अटल जी ने “Total Sanitation” का Project लगाया था, कार्यक्रम चालू किया था। क्या “निर्मल भारत” उसी योजना का दूसरा नाम है क्या? इसीलिए मैं समझता हूं मुद्दा ‘समस्या’ है। नाम, ये मुद्दा नहीं है और इसलिए स्वच्छता एक समस्या है हमारे देश में और स्वच्छता ज्यादा हमारी मानसिकता से जुड़ी हुई है और मैं जब स्वच्छता अभियान की बात करता हूं तब मेरे दिल-दिमाग में वो गरीब है। World Bank का रिपोर्ट कहता है कि गंदगी के कारण जो बीमारी फैलती है, औसत एक गरीब को 7 हजार रुपए का खर्च आता है और स्वच्छता की जिम्मेदारी हम सबकी ज्यादा है; और गरीब का औसत गरीब का अगर 5 का परिवार है तो 35 हजार रुपए। स्वच्छता का दूसरा संबंध है वो नारी के सम्मान के साथ है। आज भी गांव में मां-बहनों को खुले में शौच जाना पड़े, अंधेरे का इंतजार करना पड़े। इस तरफ-उस तरफ का मुद्दा नहीं है। मुद्दा हमारी माताओं-बहनों के सम्मान का है, उनको जीने के एक अधिकार देने का है और इसलिए स्वच्छता..जब उन चीजों को याद करते हैं तो कहते हैं कि- भई ये हमें करना होगा। बालिकाएं स्कलू छोड़ देती हैं! पढ़ाई छोड़ देती हैं! क्यों? एक प्रमुख कारण ध्यान में आया और वो कारण ये था कि स्कूल में Girl-Child Toilet नहीं है। 

सवाल किसी को दोष देना का नहीं है। इस समस्या का समाधान खोजने का है और इसलिए स्वच्छता के अभियान को आगे बढ़ाया है तो ये तीन चीजें मेरे मन को हमेशा आंदोलित करती हैं और सिर्फ स्वच्छता अभियान...ये कोई उद्घाटन समारोह नहीं है, ये निरंतर करने का काम है और हम सबको करने का काम है। हम में से कोई नहीं है जिसको गंदगी पसंद है! लेकिन स्वच्छता का आरंभ मुझे करना चाहिए उस पर हम जागरुक नहीं है। क्या सवा सौ करोड़ देशवासियों को इस काम में जोड़ना चाहिए या नहीं जोड़ना चाहिए? और मुझे खुशी हुई कल सुप्रिया जी ने अपने भाषण में कहा था कि एक अच्छा अभियान है; हम MP कैसे जुड़ें। सामने से उन्होंने पूछा House में। मैं मानता हूं हमें जो MPLAD Fund मिलता है और हमें कल्पना नहीं है कि जन-सामान्य इस काम को कितना पसंद करता है। 

मुझे एक Media Group के लोग मिले। वो कह रहे थे कि हमने केदारनाथ की calamity में काम किया, धन संग्रह किया, हमें चार करोड़ रुपया मिला। हमने गुजरात में भूकंप हुआ, हमने काम किया, लोगों ने हमको तीन करोड़ रुपया दिया। लेकिन अभी हमने स्वच्छता को ले करके हमारे टेलिविजन के माध्यम से अभियान चलाया, हमें लोगों ने 400 करोड़ रुपए दिए हैं।...और मैं राजनीति में जो हैं इन लोगों से कहूंगा अगर आप वोट के हिसाब से भी करते हैं तो समाज को ये बहुत ही मनपसंद काम है और अगर समाजनीति से करते हो तो इससे बड़ा स्वांतः सुखाय कोई काम नहीं हो सकता।...और इसलिए नाम ये रहे, वो रहे! इससे ऊपर उठ करके, समस्या न रहे, उस पर, हम केंद्रित करेंगे; तो मैं समझ सकता हूं कि हम बहुत कुछ कर सकते हैं। 

आदरणीय मुलायम सिहं जी ने कल एक अच्छी बात कही। उन्होंने कहा मोदी जी स्वच्छता की बात करते हैं, अस्सी घाट सफाई करने गए थे, अभी भी पूरा नहीं हुआ है। मुझे समझ नहीं आया कि मैं हंसू या रोयूं! इसलिए कि आदरणीय मुलायम सिंह जी कि उत्तर प्रदेश सरकार का Report Card दे रहे थे, कि केंद्र सरकार का Report Card दे रहे थे।...और दूसरा, करीब तीन महीने से अस्सी घाट की सफाई चल रही है; आप कल्‍पना कर सकते हैं कि कितनी गंदगी होगी, जिस अस्‍सी घाट को लेकर के वाराणसी की पहचान है। मैं आपका आभारी हूं और लोहिया जी, मैं मानता हूं मुलायम सिंह जी की बात को...लोहिया जी स्‍वच्‍छता का आंदोलन चलाते थे। आप लोहिया जी की कोई भी बात देखेंगे, तो स्‍वच्‍छता के लिए देश में महात्‍मा गांधी के बाद पूरी ताकत से आवाज उठाई हो तो लोहिया जी ने उठाई थी और मैं मानता हूं कि क्‍योंकि लोहिया जी ने उठाई थी, इसलिए मोदी जी ने हाथ नहीं लगाना चाहिए, ऐसा नहीं हो सकता, अगर लोहिया जी ने अच्‍छी बात कही है, तो मोदी जी को भी उस रास्‍ते पर चलने में गर्व करना चाहिए।..और इसलिए कितना कूड़ा-कचरा हुआ, इतने समय के बाद भी सफाई हो रही है। 

आपको हैरानी होगी हमारी विदेश में Embassies हैं। हमारी सुषमा जी ने सभी देशों को चिट्ठी लिखी Embassies को...कि स्‍वच्‍छता अभियान भारत में शुरू हुआ है आपकी Embassy का हाल जरा देखो; और मुझे जो Embassy से फोटोग्राफ आए हैं कि Embassy के पहले हाल क्‍या थे और अब क्‍या हैं। जहां हमारे लोग रहते थे वहां गंदगी के ढेर थे, कागज पानी में भीगकर के पत्‍थर से बन गए थे। सरकारी दफ्तरों में व्‍यवस्‍थाएं नहीं है क्‍या? है, स्‍वभाव नहीं है। 

और इसलिए एक पवित्र काम है जिस काम के लिए हम लगे हैं और यह काम सरकार का, सरकार के मुखिया का नहीं है, यह काम सवा सौ करोड़ देशवासियों का है, आपने जिस नाम से इस काम को बढ़ाया मैं उसका भी अभिवादन करता हूं; आपने अब तक जो किया, मैं उसका अभिवादन करता हूं, इन चीजों में विवाद का विषय नहीं हो सकता, और लालकिले पर से, यह कहना का सामर्थ्‍य मुझमें था, मैंने कहा था- यह देश, अब तक जितने प्रधानमंत्री रहे, अब तक जितनी सरकारें रही हैं, उन सबके योगदान से आगे बढ़ा है। लालकिले की प्राचीर से भारत की सभी सरकारों की बातें की और मैं यह भी कहना चाहता हूं, 9 महीने में हमने आकर सब कर लिया है, ऐसा दावा करने वाले हम नहीं हैं और न ही हम यह बात मानते हैं कि देश 1947, 15 अगस्‍त को पैदा हुआ था। यह देश हजारों साल की विरासत है। ऋषियों ने, मुनियों ने, आचार्यों ने, भगवंतों ने, शिक्षकों ने, मजदूरों ने, किसानों ने इस देश को बनाया है, सरकारों ने देश नहीं बनाया है। सरकारें आती हैं, जाती हैं, देश सरकारें नहीं बनाती; देश जनता जनार्दन के सामर्थ्‍य से बनता है। जनता जनार्दन की शक्ति से बनता है और राष्‍ट्र, राष्‍ट्र अपनी चीति से चलता है, अपनी philosophy से चलता है Ideology आती है, जाती है और बदलती रहती है। मूल तत्‍व देश को चलाता है और भारत का मूल तत्व है- 

एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति

भारत का मूल तत्‍व है– 

सर्वे भवन्तु सुखिनः

सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु

मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्।



यह भारत का मूल तंत्र है। सबकी भलाई की बात यहां होती है और इसलिए यह देश आज जहां भी है, सरकारें आएगीं-जाएगीं, बनेगीं-बिगड़ेगीं, लेकिन इसके आधार पर नहीं। कुछ लोगों को लगता है कि आप....दिल्‍ली में आपका क्‍या होगा। मैं पूछना चाहता हूं पिछले तीन हफ्ते से मध्‍यप्रदेश में, अलग-अलग चुनावों के नतीजे आ रहे हैं पंचायतों के, नगरपालिका के, महानगर पालिका के। क्‍या हुआ था? आसाम इतना भव्‍य विजय हो रहा है, क्‍या हुआ जी? पंजाब, राजस्‍थान! क्‍या इसी का हिसाब लगाएंगे? क्‍या? बोलने में तो बहुत अच्‍छा लगता है! 

और अगर यही बात है, इतना Land Acquisition Act लेकर के मैदान में गए थे। History में कांग्रेस की इतनी कम सीटें कभी नहीं आई थी। इतिहास में, even आपातकाल इतना भयंकर संकट था लेकिन कांग्रेस के हाल इतने बुरे नहीं हुए थे, जितने इस बार हुए हैं। अगर Act के कारण आप जीतने वाले होते और किसानों को पसंद आया होता, तो आप जीत जाते। और इसलिए कृपा करके आप वो तर्क, बोलने के लिए ठीक लगता है, पर उस तर्क से आप सत्‍य को सिद्ध नहीं कर सकते; और इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि हमें समस्‍याओं का समाधान खोजना है। यहां पर मंथन करके रास्‍ते खोजने है। 

कभी-कभार यह कहा जाता है कि आप MGNREGA बंद कर देंगे या आपने MGNREGA बंद कर दिया है। मैं इतना तो जरूर विश्‍वास करता हूं कि आप लोग बाकी विषयों में, मेरी क्षमता के विषय में शक होगा। आपका अभिप्राय भी अलग-अलग हो सकता है कि इसमें मोदी को ज्‍यादा ज्ञान नहीं है इसमें कम अनुभव है, यह सब होगा। लेकिन एक विषय में आप जरूर मानते होंगे कि मेरी राजनीतिक सूझबूझ तो है। मेरी राजनीतिक सूझबूझ कहती है कि MGNREGA कभी बंद मत करो। मैं ऐसी गलती नहीं कर सकता हूं, क्‍यों‍कि MGNREGA आपकी विफलताओं का जीता जागता स्‍मारक है। आजादी के 60 साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पडा, यह आपकी विफलताओं का स्‍मारक है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्‍मारक का ढोल पीटता रहूंगा। दुनिया को बताऊंगा कि यह तुम गड्ढे तुम खोद रहे हो, उन 60 साल के पापों का परिणाम है। इसलिए मेरी राजनीतिक सूझबूझ पर आप शक मत कीजिए। MGNREGA रहेगा, आन, बान, शान के साथ रहेगा और गाजे-बाजे के साथ दुनिया में बताया जाएगा। 

हां, एक और बात जरूर होगी, क्‍योंकि मैं देश के हित के लिए जीता हूं, देश हित के लिए जीता रहना चाहता हूँ और इसलिए इसमें से देश का अधिक भला कैसे हो, उन गरीबों का भला कैसे हो, उसमें जो कुछ भी आवश्‍यक जोड़ना पड़ेगा, निकालना तो कुछ भी नहीं है, आप चिंता मत कीजिए जी, जो जोड़ना पड़ेगा जोड़ेंगे, जो ताकत मेरी पड़ेगी, हम देंगे; क्‍योंकि हम मानते हैं कि लोगों को पता चले भाई कि ऐसे-ऐसे खंडहर छोड़ करके कौन गया है। इतने सालों के बाद भी तुम्‍हें यह गड्ढे खोदने के लिए मजबूर किसने किया है? यह उसको पता रहना चाहिए और इसलिए यह तो बहुत आवश्‍यक है और आपने एक अच्‍छा काम किया है कि आप अपने foot-print छोड़कर के गए हैं, ताकि लोगों को पता चलें। 

कभी-कभार भ्रष्‍टाचार की चर्चा होती है। मैं मानता हूं कि भ्रष्‍टाचार ने हमारे देश को तबाह करके रखा हुआ है और मैं चाहता हूं कि यह देश भ्रष्‍टाचार की चर्चा राजनीतिक दायरे में न करे, क्‍योंकि राजनीती के दायरों में चर्चा करके हम इस भंयकर समस्‍या को तू-तू, मैं-मैं में उलझा देते हैं। किसकी shirts ज्‍यादा सफेद, यही पर हम सीमित हो जाते हैं और हम तो..मैं उधर आरोप लगाऊंगा, वो इधर आरोप लगाएंगे और माल खाने वाले कहीं न कहीं खाते रहेंगे। अगर हम सब मिल जाए, पुराने भ्रष्‍टाचार का क्‍या होगा, आगे हम मिलकर के तय करेंगे कि नहीं होने देंगे, तो भ्रष्‍टाचार जा सकता है। क्‍या देश में कोई समस्‍या ऐसी नहीं है, जो राजनीतिक विवादों से परे हो? क्‍या देश में ऐसी कोई समस्‍या न हो सकती है, जो तू-तू, मैं-मैं से बाहर निकलकर के समस्‍याओं के समाधान के रास्‍ते खोज सकें? भ्रष्टाचार एक समस्या है और उसका उपाय जो शासन में बैठे हैं, उनकी जिम्मेवारी है कि वे Policy Driven State चलाएं और जब Policy Driven State होता है, नीति आधारित व्यवस्थाएं होती हैं तो Grey Area, minimum रहता है। मैं ये तो दावा नहीं करूंगा कि परमात्मा ने हमें इतनी बुद्धि दी है कि हम ऐसे कानून बनाएंगे, ऐसी नीतियां बनाएंगे कि जिसमें कोई कमी ही न रहे। मनुष्य का इतना तो सामर्थ्य नहीं है। हो सकता है कि आज समस्या न हो, लेकिन आने वाले 5-7 सालों के बाद समस्या उभरकर के सामने आए; लेकिन minimum Grey Area रहे और जब minimum Grey Area रहता है तब ये बात तय होती है कि जो अफसरशाही है उसको Interpretation करने का अवसर ही नहीं रहता है; Priority करने का मौका ही नहीं मिलता है; और हमारी कोशिश है कि सरकारें Policy Driven हों। Individual के आधार पर देश नहीं चल सकता है, न सरकारें चल सकती हैं।..और भारत के संविधान के दायरे में सब चीजें होनी चाहिए और तब जाकर के समस्याओं के समाधान होते हैं। 

उदाहरण के स्वरूप कोयले का आबंटन; Coal Blocks..जब CAG ने रिपोर्ट दी तो लिखने वालों को भी लगता कि इतना तो नहीं हो सकता यार! पहले कभी 600 करोड़ के भ्रष्टाचार का सुना है, 500 करोड़ के भ्रष्टाचार का सुना है लेकिन 1 लाख 86 हजार करोड़? देश भी चौंक गया था! राजनीति में बोलने के काम तो आता था, लेकिन मन में रहता था कि नहीं यार 1 लाख 86 हजार करोड़ कैसे हो सकता है! लेकिन अब जब कोयले का आबंटन हुआ 204 Mines सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिए। अभी तक तो 18 या 19 का Auction हुआ है और उसमें करीब 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा already आ चुके हैं; अगर यही 204 जब हो जाएगी, तो CAG ने जो सोचा था, उससे भी बड़ी आय इस Auction में से आने वाली है। उस समय Zero Theory चली थी..Zero Theory। 

मैं ये नहीं कहना चाहता था कि ये उनके समय हुआ, उनको क्या करना चाहिए, ये मेरा विषय नहीं है, आप जानें आपका परमा्तमा जाने। लेकिन अगर हम इस दिशा में चलते हैं तो मुझे लगता है कि रास्ते खोजे जा सकते हैं और रास्ते खोजकर के..और ये सीधा-सीधा उदाहरण हैं कि भ्रष्ट्राचार मुक्त व्यवस्थाएं विकसित की जा सकती है। ऐसी व्यवस्थाओं को विकसित किया जा सकता है, जिसमें भ्रष्ट्राचार का अवसर कम होता जाए और इसके लिए आप उत्तम से उत्तम सुझाव दें। इस विषय को ले करके मेरा समय मांगिए, मैं आपका समय दूंगा, आपसे समझना चाहूंगा। आप भी हमें Guide कीजिए कि भई इस भयंकर समस्या से निकलने के ये-ये रास्ते हैं चार। शासन व्यवस्था देखेगी उसको लेकिन हम सब मिलके प्रयास करें कि इस बदी से हम देश को मुक्त कराएं और हम मानकर चले कि हो क्या रहा है? 

यहां पर अधिकतर आदरणीय सदस्यों ने काले धन की चर्चा की है। जिस काले धन की चर्चा करने से लोग कतराते थे, काले धन की बात आते ही मुंह पर रंग बदल जाता था। उनके मुंह से जब आज काले धन की चर्चा सुनता हूं, तो मुझे इतना आनंद होता है, इतना आनंद होता है कि जिस आनंद की कल्पना नहीं कर सकते जी।..और मैं मानता हूं कि सबसे बड़ी सिद्धि है, तो ये है कि हमने देश को काले धन पर बोलने के लिए मजबूर कर दिया है। 

सुप्रीम कोर्ट की बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने SIT बनाने को कहा था काले धन पर, सुप्रीम कोर्ट का भी सम्मान करने से हम चूक गए। क्या हमारी जिम्मेवारी नही थी कि जब सुप्रीम कोर्ट ने काले धन पर SIT बनाने को कहा था, तो बिना समय बिताए हम काले धन के लिए SIT बना देते। तीन साल तक SIT नहीं बनाई। सुप्रीम कोर्ट के कहने के बावजूद भी नहीं बनाई। नई सरकार बनने के बाद पहली Cabinet meeting में पहला निर्णय किया, काले धन के लिए SIT बनाई है। 

काले धन की बात आती है तो Swiss Bank की चर्चा आती है। मैं श्रीमान अरुण जेटली जी को बधाई देता हूं कि उन्होंने कानूनों का अध्ययन किया, अंतरराष्ट्रीय कानूनों का अध्ययन किया और Switzerland Government को महत्वपूर्ण जानकारियां हमें Exchange करने के लिए उनको राजी कर लिया है और उसके कारण अब वहां के बैंकों की अब जो जानकारियां हैं, वो पाने का हमारे लिए रास्ता खुला है। मैं वित्त मंत्री जी को अभिनंदन करता हूं। 

इतना ही नहीं, G-20 में आप भी जाते थे, हम तो पहली बार गए, हमारे लिए तो कईयों के चेहरे भी पहली बार देखने का अवसर आया था। हमने G-20 का क्या उपयोग किया! G-20 Summit के अंदर जो संयुक्त Declaration हुआ। उसमें हमने आग्रह किया कि Black Money, Drug Trafficking इसके खिलाफ G-20 को कदम उठाना चाहिए और उसमें हम सहयोग करेंगे और काले धन को रोकने के लिए हम एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे, हम मिलकर के जिसको दबाव डालना है, दबाव डालेंगे इसका निर्णय G-20 में करवाया। 

हमारी कोशिश..और इस रास्ते से हम भटकने वाले भी नहीं है, हटने वाले भी नहीं है।...और कोई इससे बचेगा भी नहीं, मैं आपको कहता हूं।..और कृपा करके कोई ये न कहे कि हम Vindictive थे इसलिए किया है। हम वादा करके आए हैं। वो व्यक्ति जरूरी नहीं कि सब राजनेता हो, लेकिन जिसने भी किया है, देश का तो नुकसान किया ही किया है।..और इसलिए उसके संबंध में सारे प्रकार की इच्छाशक्ति चाहिए, हमारी है। सरकार के प्रयास होने चाहिए, हम कर रहे हैं।..और अंतिम विजय प्राप्त करने तक हम करते रहेंगे, ये मैं इस सदन को विश्वास दिलाता हूं। 

कभी-कभार ये कहा जाता है कि आपने नया क्या किया। मैं एक उदाहरण देता हूं, काम को कैसे किया जाए। एक तरफ हम किसान की बात बहुत करते हैं लेकिन किसान को मुसीबतों से बाहर निकालने के लिए हम कोई रास्ते खोजेंगे कि नहीं खोजेंगे? कई उपाय हैं। जैसे हम एक काम लेकर के निकले हैं Per drop-more Crop। हमारे देश में पानी की कमी है, सारी दुनिया पानी की कमी से जूझने वाली है। क्या सरकारों की जिम्मेवारी नहीं है कि आने वाले 30-40 सालों में भविष्य को देखकर के कुछ बातों को करें, कि हम तात्कालिक लाभ के लिए ही करेंगे? हो सकता है राजनीतिक लाभ हो जाएगा लेकिन राष्ट्रनीति- उस तराजू में वो बात बैठेगी नहीं। 

हमने Soil Health Card की बात कही है। ये Soil Health Card की बात जो हम कर रहे हैं, हमने मंत्र दिया है “स्वस्थ धरा, खेत हरा”, लेकिन इस काम को विज्ञान भवन में रिबन काट करके, दिया जलाकर के, हम काम नहीं करते हैं। ये सरकार कैसे काम करती है। मैंने अधिकारियों को सूचना दी कि क्यों न हम जैसे आज किसी भी डॉक्टर के पास जाइए तो पहले आपका वो Blood test करवाने के लिए कहता है, Urine-test करवाने के लिए कहता है, उसके बाद ही वो दवाई के लिए सोचता है, तब तक वो, दवाई नहीं देता। जिस प्रकार से शरीर के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए इन चीजों की आदत है; क्‍या हम देश में किसानों के लिए भी यह बात पहुंचा सकते हैं? कि आप फसल पैदा करने से पहले, जमीन से फायदा उठाने से पहले उस जमीन की तबीयत कैसी है पहले वो तो जान लो! जिसे हम भारत मां कह रहे हैं, उस भारत का हाल क्‍या है, उस धरा का हाल क्‍या है, उस पृथ्‍वी माता का हाल क्‍या है वो तो पहले जानो! कहीं हमारे पापों के कारण हमारी धरा बीमार तो नहीं हो गई है। हमने इतना यूरिया डाला, यूरिया डाला, यूरिया का झगड़ा करते रहे, लेकिन यूरिया डालकर के हमने हमारी इस धरा को तबाह तो नहीं कर दिया है! यह उसको कब समझ में आएगा। जब हम soil testing करेंगे तब। अब soil testing का card निकालेंगे दे देंगे, इससे बात बनेगी नहीं; और मैंने कहा है क्‍यों न हम गांव गांव soil testing lab के लिए entrepreneurs तैयार करे। गांव के नौजवान जो थोड़ा बहुत पढ़ा लिखा है, उसको Training दें। गांव में वो Lab बनाता है, तो Bank की तरफ से उसको ऋण दिया जाए। ताकि गांव के लोगों को उस Laboratory में जाने की आदत बन जाए, हर साल बारिश के सीजन से पहले ही अपनी जमीन को एक बार चेक करवा लें, मार्गदर्शन प्राप्‍त करे, micro nutrition की detail जाने। 

उसी प्रकार से हमने कहा कि हमारे यहां 10वीं 12वीं की विज्ञान की जो स्‍कूल है और colleges हैं विज्ञान धारा के। हरेक में Laboratory है; लेकिन हमारे देश में करीब-करीब फरवरी से जुलाई तक Laboratory बंद रहती है, Lab बंद होती है, क्‍योंकि बच्‍चे exam में लग जाते हैं और स्‍कूल खुलने में जून, जुलाई महीना आ जाता है। करीब चार-पाँच महीना महत्‍वपूर्ण समय, तीन-चार महीना स्‍कूल की Lab खाली पड़ी होती है। हमने कहा.. उन 10वीं 12वीं के विद्यार्थियों को भी..Soil testing कोई बहुत बड़ी technology नहीं….आराम से किया जा सकता है। उनको Training दो और स्‍कूलों के अंदर, vacation के अंदर soil training के Lab में रूप में उसको convert कीजिए। स्‍कूल को तो income होगी होगी, उन गांवों के नौजवानों को भी income होगी और उस गाँव के लोगों को भी फायदा मिलेगा। अब हमारा देश गरीब है, हम कोई रातों-रात Lab बना देंगे, पैसे खर्च कर देंगे। हम Optimum Utilization of our Infrastructure; यह है Good Governance, यह है तरीके। उन तरीकों से समस्‍या का समाधान किया जा सकता है और जब एक बार हमारे किसान को पता चलेगा कि हमारी फसल मेरी जमीनी फसल के लिए योग्‍य नहीं है, तो मैं मानता हूं कि हमारा किसान तुरंत विश्‍वास से काम करेगा और आज किसान को जो खर्चा होता है, वो खर्चा बच जाएगा। 

कभी-कभी यहां पर आया कि भई पेट्रोल-डीजल के तो अंतर्राष्‍ट्रीय दाम घटे हैं, तो आपने कम क्‍यों नहीं किया? तब हम भूल जाते हैं। जब हम सरकार में आए तो सूखे की स्थिति थी। 12 प्रतिशत बारिश कम थी। और तब हमने निर्णय किया कि डीजल में जो subsidy दी जाती है उसमें 50 प्रतिशत और बढ़ोतरी की जाए, बिजली के बिल में जो पैसे लिए जाते हैं उसकी subsidy में 50 प्रतिशत और बढ़ोतरी की जाए और उसके कारण, डीजल के अंदर सरकार के आर्थिक बोझ बहुत बड़ा आया। किसानों को दिया, जो कहते हैं हम नहीं देते, ऐसा नहीं है हमने दिया है, लेकिन आपको पिछले मई, जून, जुलाई का याद नहीं रहता है आपको इस अक्‍तूबर, नवंबर, दिसंबर का याद रहता है। ऐसा नहीं है जी, सरकार आखिर किसके लिए है? यह सरकार गरीब के लिए है, यह गरीबों को समर्पित सरकार है। हम हैं जिन्‍होंने expenditure कम करने के लिए Expenditure Commission बनाया है। क्‍योंकि हम चाहते है कि शासन में जो अनाप-शनाप खर्चें हो रहे हैं, उसको रोकना चाहिए, ताकि यह पैसे गरीब के काम आए, गरीब के कल्‍याण के काम आए। उस पर हम बल दे रहे हैं। हम Good Governance की ओर जा रहे हैं। 

आप देखिए हम ऐसे लोग हैं, अब यह आप नहीं कहेंगे कि हमारे जमाने से हैं। मैं अभी भी समझ नहीं पाता था, बचपन से कि Xerox का जमाना आया, फिर भी मुझे अपने certificate को certified कराने के लिए किसी Gazetted office जाना पड़ता था, किसी MLA के घर के बाहर कतार में खड़ा रहना पड़ता था, किसी MP के घर के बाहर कतार में खड़ा रहना पड़ता था। MLA, MP available न हो तो भी, उनका एक छोटा सा आदमी रहता था वो सिक्‍का मार देता था, हां भई आपका certificate ठीक है। हम उस पर तो भरोसा करते हैं, लेकिन देश के नागरिक पर भरोसा नहीं करते। हमने नियम बनाया कि self-attested करके आप दे दीजिए और जब final होगा, तब आपको original document दिखा देंगे। आप कहेंगे कि चीज छोटी होगी, लेकिन देश के सामान्‍य मानव में विश्‍वास पैदा करती है कि सरकार मुझ पर भरोसा करती है। हमारे यहां एक-एक काम में 30-30, 40-40 पेज के form भरा करते थे, मैंने आते ही कहा कि भई इतने लम्‍बे-लम्‍बे फॉर्म की क्‍या जरूरत है, सरकार की फाइलें बढ़ती चली जा रही है, जितना online हो सकता है online करो और minimum कर दो, minimum कर दिया। कई जगह form की प्रक्रिया को, एक पेज में ला करके रख दिया है। हम व्‍यवस्‍थाओं के सरलीकरण में विश्‍वास करते हैं। Red-tape को कम करना चाहते हैं, ताकि सामान्‍य मानव को उसकी सुविधा मिले, उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं और एक के बाद एक हम करते चले जा रहे हैं और उसका लाभ मिलने वाला है। 

हमारे यहां जो सरकारी मुलाजिम रिटायर्ड होते हैं उनको हर वर्ष Pension लेने के लिए नवंबर महीने में जिंदा होने का सबूत देना पड़ता है और वहां जाकर के Ex-MP को भी देना पड़ता है, वहां उसको दफ्तर में जाकर के...अब एक आयु तक तो ठीक है, उसके बहाने उसको बाहर जाने का मौका मिल जाता है, लेकिन एक आयु के बाद उसके लिए जाना संभव नहीं होता है। क्‍या हम इन व्‍यवस्‍थाओं को नहीं बदल सकते? हमने Technology का उपयोग करते हुए, अपने घर में बैठ करके भी वो, अपने जिंदा होने की बात प्रमाणित कर सकता है। उसका Pension पहुंच जाए उसका पूरा mechanism बना दिया। क्‍या यह हमारे गरीब Pensioner का सम्‍मान है। 

आपको लगेगा इतना बड़ा देश है मोदी छोटी-छोटी बाते करते हैं, मुसीबतों की जड़ ही तो छोटी-छोटी होती है, जो बाद में बहुत बड़ा वटवृक्ष बन जाती है, विषवृक्ष बन जाती है, जो समस्‍याओं के अंदर सबको लपेट लेती हैं और इसलिए आवश्‍यक होती है और हम चाहते हैं। 

कभी-कभी मुझे याद है, पिछले सत्र में हमारी बहुत मजाक बनाई गई। मैं नहीं जानता हूं कि इस प्रकार की भाषा का प्रयोग जो कर रहे थे उचित था क्या? यहां तक कह दिया कि आपको वीजा दे रहे हैं Parliament में आने का। इस प्रकार का प्रयोग करने वालों लोगों को मैं और तो कुछ कहता नहीं हूं, लेकिन मैं इतना कहता हूं अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍थानों पर कुछ काम निर्धारित होते है जिसको करने पड़ते हैं। उन मीटिंगों में पहले के प्रधानमंत्रियों को भी जाना पड़ता था, इस प्रधानमंत्री को भी जाना पड़ता है और भविष्‍य में जो आएगा उसको भी जाना पड़ेगा। लेकिन वो ही एक मजाक विषय बन जाए, क्‍या हमारी राजनीति इतनी नीचे आ गई है? चूंकि कोई ऐसी बातों की चर्चा करे! क्‍या आपके पास मेरी आलोचना करने के और कोई मुद्दे नहीं बचे? लेकिन मैं कहना चाहता हूं अगर आपको देश की इतनी चिंता थी, तो आप..इस देश का प्रधानमंत्री विदेश गया तो कितना समय कहां बिताया, कभी उसकी भी तो जांच कर लेते, कभी उसकी भी तो inquiry कर लेते! 

मैं आज कहना चाहता हूं कि मैं जापान गया; तो जापान मेरे कार्यक्रम में मैंने एक कार्यक्रम क्‍या जोड़ा? मैं वहां एक Nobel laureate Scientist Yamanaka को मिलने गया। क्‍यों? फोटो निकलवाने के लिए? मैं इसलिए गया, क्योंकि उन्‍होंने Stem-Cell के अंदर जो research किये हैं..मैंने जितना पढ़ा था, तो मेरे मन में आया था, शायद इनकी एक खोज हमारे काम आ सकती है क्‍या? क्‍योंकि मैं जानता हूं मेरे देश के आदिवासी, उन आदिवासियों को परंपरागत रूप से Sickle Cell की भयंकर बीमारी से जूझना पड़ रहा है और Sickle Cell की बीमारी Cancer से भी भयंकर होती है। जिन्‍होंने Sickle Cell की बीमारी वालों के विषय के बारे में पूछा है, तो यह पता चलेगा कि यह कितनी पीड़ादायक होती है और पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। अभी तक उसकी कोई दवाई नहीं मिली है। एक आशा लगी है कि Stem-Cell के द्वारा Sickle Cell की बीमारी से मुक्ति मिल जाए। हम गए तो वहां गए, उनसे चर्चा की और बेंगलुरू के हमारे Science Institute के साथ, आज उस दिशा में हमारा काम हो रहा है, कि Stem-Cell के द्वारा हमारे युवा Scientist खोज करे। मेरे आदिवासी भाईयों को, पीढ़ी दर पीढी जो परेशानियों से जिंदगी गुजारनी पड़ती है, उससे वो बाहर आएं। 

हम ऑस्ट्रलिया गए, G-20 Summit में गए। हम कहां गए हैं? मैं उस किसानों के...Agriculture Scientist से मिलने गया, उनकी Lab में गया, जिन्होंने प्रति हेक्टेयर ज्यादा चना उगाने का और सबसे खराब धरती पर चना उगाने का सफल प्रयोग किया था, Research किया था। कहीं पड़ा था, मेरे मन में पड़ा था...मैं उनके पास गया था। 

हमारे देश को Pulses में हम बहुत पीछे हैं, इसको Pulses की बहुत जरूरत है। गरीब आदमी को Nutritional food के लिए Protein की जरूरत है। हमारे देश के गरीब को Protein मिलता है, दाल में से, Pulses में से मिलता है। अगर हमारा किसान अच्छी मात्रा में Pulses पैदा करें, कर सकता है अगर प्रति हेक्टेयर ज्यादा Pulses पैदा करे तो उसको भी अच्छी आय मिलेगी, उस गरीब का भी कुछ भला होगा और इसलिए उन Scientist के पास जाकर घंटे बिताए कि बताइए मेरे देश के किसानों को ज्यादा Pulses पैदा करने के लिए क्या रास्ता हो सकता है, ज्यादा चना पैदा करने के लिए क्या रास्ता हो सकता है, अरहर पैदा करने के लिए क्या रास्ता हो सकता है, उसके लिए मैंने समय बिताया। 

मैं एक और Scientist के पास गया, इस बात के लिए गया, मिलने के लिेए कि उन्होंने केले में कुछ नई खोज की थी। मैं समझना चाहता था, मुझे पूरा पता नहीं था, तो मैं ऐसे ही चला गया, उनके साथ बैठा, उनकी Lab देखी, उनके प्रयोग देखे। उन्होंने केले में Nutritional value बढ़ाने में बहुत सफलता पाई है। अधिक Vitamin को पाने में सफलता पाई है। केला, ये अमीरों का फल नहीं है, मेरे भाइयों और बहनों। केला, एक गरीब से गरीब का फल होता है; अगर केला उसमें Nutritional value बढ़ता है; उसमें Vitamin अगर ज्यादा अच्छे मिलते हैं और इस प्रकार की खोज के साथ केला बनता है तो मेरे देश का गरीब से गरीब व्यक्ति केला खाएगा, उसको ज्यादा ताकत मिलेगी। अगर विदेश जाके किसी काम के लिए जाते हैं, तो देश का गरीब हमारे दिमाग में होता है, देश का आदिवासी हमारे दिमाग में होता है, देश का किसान हमारे दिमाग में होता है और दुनिया में जो भी अच्छा है, जो मेरे देश के गरीबों के काम आए, उसको लाने की तड़प होती है। उस तड़प के लिए हम कोशिश करते हैं और इसलिए समय का सदुयपोग करते हुए हम किस प्रकार से हमारे देश को हम आगे ले जाएं उसके लिए सोचते हैं, उसकी के लिए करते रहते हैं, उसी पर कुछ करने के लिए हम प्रयास करते हैं। 

यहां पर, जन-धन योजना को लेकर के कहा गया कि ये तो हमारे समय थी। बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद, 40 साल हो गए और गरीबों के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था लेकिन आज भी इस देश का गरीब बैंकों के दरवाजे से दूर था और Banking System, Financial व्यवस्था की, Inclusion की Main धारा बन गई है। अगर हम आगे चलकर के कोई योजनाएं बनाना चाहते हैं, तो शुरुआत यहीं से होती है और हमने 15 अगस्त को ऐलान किया था कि 26 जनवरी को हम झंडा फहराएंगे, उसके पहले हम काम पूरा करेंगे। समय के रहते काम पूरा किया कि नहीं किया? जिस बैंक के अंदर गरीब को जाने का अवसर नहीं मिलता था, उस बैंक के मुलाजिम जो कोट-पैंट-टाई पहनते हैं, एयरकंडिशन कमरे के बाहर नहीं निकलते हैं। वो मेरा बैंक का मुलाजिम, मेरा साथी गरीब की झोंपड़ी तक गया, गरीब के घर तक गया। क्या सरकार ये प्रेरणा नहीं दे सकती है, ये परिवर्तन नहीं ला सकते हैं, लाए हैं और मैं आज विशेष रूप से Banking Sector के ऊपर से नीचे तक के सभी महानुभावों का अभिनंदन करता हूं कि उन्होंने इस बात को उठा लिया है, उस बात को उठा लिया, पूरा किया और जब ये व्यवस्था हो गई है तो अभी हमें MGNREGA में आता था कि Leakage बहुत हैं। अब हम MGNREGA का पैसा भी, जन-धन Account खुल गया, आधार कार्ड है, जन-धन Account है, Leakage कम से कम हो जाएगा और पैसा सीधा उसके खाते में जाएगा, ये जन-धन का लाभ है। 

हमारे दिमाग में गरीब है, लेकिन गरीबों के नाम पर, हमारे दिमाग में राजनीति नहीं है, गरीबों के नाम पर, हमारे दिमाग में एक ईश्वर की सेवा करने का अवसर है और इसलिए वो जब हर काम का Mood जब करते हैं, तो उस बात को लेकर के करते हैं कि हम गरीब के कल्याण के लिए क्या काम कर सकें और उस दिशा में हमारा प्रयास है। 

मैं जब शौचालय की बात कर रहा था तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि कितना काम हुआ है। करीब सवा चार लाख Toilet की जरूरत है स्कूलों में। उसमें सवा चार लाख में से करीब डेढ़ लाख नए बनाने पडेंगे और बाकी जो हैं Repairing करने की आवश्यकता है। एक अलग Portal बनाया गया है Online। उसका Mapping किया गया है। Address पक्का पता है कि यहां पर Toilet इतना चाहिए, सारी Detail पर Work out किया है और मुझे संतोष के साथ कहना है कि अब तक करीब 60-65 हजार, लड़कियों के लिए Toilet बनाने का काम पूरा हो चुका है और मैं सभी MPs का अभिनंदन करता हूं कि कई MPs ने पूरा Actively इस काम किया है। अपने इलाके में MPLAD Fund का भी उपयोग किया है, CSR में भी उपयोग हुआ है। जहां पर District के अफसर सक्रिय हैं, उन्होने तेज गति से काम किया है और मुझे विश्वास है कि आने वाले दिनों में जो Vacation है, हम अगर सब तय करें, अपने यहां Collector को पूछिए आप, अपने अधिकारियों को पूछिए District में, कि बताओ भई क्या हुआ? इस काम का थोड़ा आप भी, दो बार जरा चिट्ठी डाल दीजिए। मुझे विश्वास है जी जून महीने में जब नया सत्र शुरू होगा इस Vacation में इस Toilet बनाने का काम पूरा हो जाएगा।...और ये हम सबके लिए है और इस काम को आप पूरा करेंगे ऐसा मुझे विश्वास है। 

स्वच्छता का असर कैसा है। देखिए! Tourism पर बड़ा Impact हो रहा है। एक हमने Online Visa, Visa on Arrival...हमने किया है और दूसरा स्वच्छता! इन दोनों का संयुक्त प्रभाव Tourism पर पड़ रहा है। पिछले साल की तुलना में Tourism में काफी बढ़ोतरी हुई है, काफी बढ़ोतरी हुई है। कई बातों में, Negative प्रचार होने के बावजूद भी, कुछ चीजें ऐसी हो जाती हैं कि हमारे यहां Tourism को बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है, लेकिन उसके बावजूद इन व्यवस्थाओं के कारण, Tourism में काफी बढ़ावा हुआ है। 

अब हम कहेंगे कि भई आपदा प्रबंधन। अब मुझे बताइए कि कौन सी सरकार है जिसके कालखंड में आपदा नहीं आई? आई है! उन आपदाओं के लिए सरकारों को कुछ करना पड़ा है? करना पड़ा है! लेकिन आपदा प्रबंधन के तरीके भी बदले जा सकते हैं। जब जम्मू-कश्मीर में बाढ़ का प्रश्न आया, तो मैंने पहला काम क्या किया, मैंने कहा भारत सरकार में जम्मू-कश्मीर के जितने भी अधिकारी हैं, उनकी जरा पहले सूची बनाओ और उनको सबसे पहले वहां भेजो। Home Secretary, उस समय के थे, जो पुराने जम्मू-कश्मीर के थे उनको मैंने वहां हफ्ते भर के लिए भेज दिया। क्यों? भारत सरकार का दायित्व बनता है कि सिर्फ इतना Cheque दिया, उतना दे दिया, लेकिन इससे बात बनती नहीं है। हमने पूरी ताकत से, उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर के खड़ा होना होगा। 

जब हुड-हुड आया मैं स्वंय तो गया, मैं कश्मीर भी गया, मैं अनेकों बार गया, मैं कितने Groups के साथ, बारीकी से बातें की मैंने श्रीनगर में जाकर के, मैंने अपनी दीवाली उन लोगों के बीच में बितायी। क्यों? ताकि सरकार में बैठे हुए और लोगों को भी Sensitize हो कि भई ये हमारा दायित्व बनता है। ऐसा नहीं कि बाढ़ पूरी हो गई तो उनके अपने नसीब पर छोड़ दिया जाए, ये हमारा दायित्व बनता है।..और इसलिए हमारा Approach प्राकृतिक आपदा के समय भी तू-तू, मैं-मैं का नहीं होता है। एक अपनेपन की जिम्मेवारी के साथ होता है और हमारे पास जो भी शक्ति है उसका सही ढंग से उपयोग करते हुए उसको कैसे समस्या से बाहर निकालना, उस दिशा में हमारा प्रयास रहता है और उसकी और हम जाना चाहते हैं। 

यहां पर Land Acquisition Act को लेकर के बढ़िया-बढि़या बातें मैं सुन रहा हूं। हमें इतना अहंकार नहीं होना चाहिए कि हमने जो किया उससे अच्छा कुछ इस दुनिया में हो ही नहीं सकता है और जब Land Acquisition Act बना था तब हम भी तो आपके साथ कंधा से कंधा मिलाकर के खड़े रहे थे। उसको पारित करने के लिए हमने कोई If-buts का काम नहीं किया था। हमें लगा कि भई चलिए..और हम जानते थे इसका आप राजनीतिक फायदा लेने के लिए जल्दबाजी कर रहे हैं, सब जानते थे। उसके बावजूद भी हम आपके साथ खड़े रहे थे, लेकिन हम आपसे पूछना चाहते हैं, 1894 में जो कानून बना, उसकी कमियां देखते-देखते आपको 2013 आ गया क्या? 120 साल बीत गये। 60 साल तक यह देश, यह देश के किसान, उसी कानून के भरोसे जीते थे, जो 1894 में बना था। अगर किसानों का बुरा हुआ तो किसके कारण हुआ और आज जब यह कानून बना तो हम आपके साथ थे। कानून बनने के बाद, जब हमारी सरकार बनी, सभी राज्‍यों के सभी दलों के मुख्‍यमंत्री, किसी एक दल के मुख्‍यमंत्री नहीं, सभी दलों के मुख्‍यमंत्री, एक आवाज से कह रहे साहब! आप किसानों के लिए कुछ सोचिए। किसान बिना पानी मर जाएगा! उसको सिंचाई चाहिए उसको irrigation infrastructure चाहिए, उसको गांव में सड़क चाहिए, गांव के गरीब को रहने के लिए घर चाहिए, और आप ऐसा कानून बनाए हो जिसमें आप वाले भी साथ में थे कि जिसके कारण हमारा भला नहीं हो रहा है। यह हिंदुस्‍तान की सभी सरकारों के सभी मुख्‍यमंत्रियों ने कहा, यह बात में बता रहा हूं, क्‍या यह देश जो federal co-oporation की बात करता है federalism की बात करता है क्‍या हम इतने अंहकारी हो गए है कि हमारे राज्‍यों के मुख्‍यमंत्रियों की बात को सुने नहीं? हम इतने अंहकारी हो गए है कि हमारे राज्‍यों के मुख्‍यमं‍त्री परेशान है, राज्‍य परेशान है, उनको हम नकार दे! क्‍या उनकी बात हमको सुननी नहीं चाहिए?..और उनकी जो भावना है, उस भावना को हमने सकारात्‍मक रूप से आदर नहीं करना चाहिए? और उनकी मांग क्‍या है किसानों के लिए? 

मुझे सेना के अधिकारी मिले, बोले साहब! हम क्‍या करे? यह जो आपने कानून बनाया है और वो तो हमको ही कहते हैं, क्‍योंकि हमने साथ दिया था। वो तो हमें कहते हैं, क्‍योंकि हमने साथ दिया था! हम कहते हैं कि हमें यह बताइये कि हमें.. Defence Installations जो करने होते हैं, अब जो आपका कानून बनाया है, हो ही नहीं पाएगा। हमें हमारी nuclear व्‍यवस्‍थाओं को जो कि infrastructure खड़ा करना है, हम पूछने जाएंगे क्‍या? हम लिखेंगे क्‍या इसके लिए चाहिए? तो अच्‍छा है कि हम पाकिस्‍तान को ही लिख दें, कि हम इस पते पर यह काम कर रहे हैं! 

Defence के हमारे अधिकारी इतने परेशान है, सेना के जवान परेशान हैं, कि साहब! क्‍या होगा क्या? क्‍या हमारे defence के लिए भी और हमारी..यह जरूरी नहीं है कि किसी ने कोई गुनाह किया है, कोई पाप किया है लेकिन कमी रह गई, गलती रह गई। क्‍या गलती correct करना हमारी जिम्‍मेदारी नहीं है क्‍या? यह एक छोटा सा उपाय है कि भई इस गलती को correct करना है। आप ने किया है हम उसको नकारते नहीं हैं। आप ने जो कोशिश की है उसको हम कुछ रह गया तो जोड़ना चाहते हैं, इसलिए हम आपका साथ-सहकार चाहते हैं। कृपा करके इसको राजनीति के तराजू से मत तोलिये।..और मैं आपको विश्‍वास दिला रहा हूं, इसमें अभी भी आपको लगता है कि इसमें, अभी भी आपको लगता है कि किसानों के खिलाफ एक भी चीज है, तो मैं उसमें बदलाव करने के लिए तैयार हूं। 

और मैं सबसे ज्‍यादा पूर्वी उत्‍तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, नॉर्थ इर्स्‍ट, उड़ीसा, पूर्वी आंध्र इनकी तरफ ध्‍यान आकर्षित करना चाहता हूं। हिंदुस्‍तान के पश्चिमी छोर पे तो गांव में भी छोटा-मोटा infrastructure है। गांव में सड़के बनी है। इस हमारे कानून का सबसे बड़ा नुकसान किसी का हुआ है, तो पूरे पूर्वी हिंदुस्‍तान का हुआ है। पूर्वी भारत का हुआ है यह जो मुख्‍यमंत्री आ करके जो चीख रहे थे, इसी बात को लेकर के चीख रहे थे कि साहब! हमारा तो अभी समय आया है आगे बढ़ने का उसी समय हमें आप brake लगा रहे हो! क्या हमारे पूर्वी भारत के इलाकों को भी, क्‍या पश्चिम में जो infrastructure है गांव का उनको मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए? उनको वो सुविधा मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए?..और इसलिए मैं कहता हूं आपने जो किया है हमारे सर-आंखों पर, मैं आपका गर्व करता हूं। 

मैं आप से आग्रह करता हूं उसमें जो कमियां रही हैं, समय है, उनको थोड़ा ठीक कर लें। यह सिर्फ कमियों को ठीक करने का प्रयास है और वो भी सिर्फ किसानों के लिए है। मैं सभी सदन के सदस्‍यों से आग्रह करता हूं, इसे प्रतिष्‍ठा का विषय न बनाए और और बनने के बाद भी मैं सारा credit उस समय जिन्‍होंने कानून बनाया था, उन्‍हीं को दूंगा, सार्वजनिक रूप से दूंगा। राजनीति के लिए नहीं है यह। 

मैंने मुख्‍यमंत्रियों को सुना है उनकी कठिनाई सुनी है, और मैं भी मुख्‍यमंत्री रहा हूं, मुझे पता है कि हम दिल्‍ली में बैठकर के कोई कानून बना देते हैं उन राज्‍यों को कितनी परेशानी होती है, कभी हमें अंदाज नहीं होता है और मैं एक प्रकार से उनका प्रतिनिधि भी हूं, क्‍योंकि मैं उसी टोली में लम्‍बे अर्से से रहा हूं और इसलिए मैं उनके दर्द को जानता हूं। 

हां! किसान के खिलाफ एक भी चीज हो, एक भी चीज हो, हम ठीक करने के लिए तैयार है। हो सकता है, हमें भी..इस समय करते समय हमारी भी कुछ कमी रही हो, लेकिन हमारा काम है कमियां दूर करना, भाई! हमारा काम यह थोड़ा है..हां इसका राजनीतिक फायदा आप लीजिए मुझे कोई problem नहीं है। आप इसके लिए जूलूस कीजिए, रैली कीजिए, लेकिन देश के लिए निर्णय भी कीजिए और इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि हम उस दिशा में जाने की बजाय इसके ऊपर जायें। 

हमारा North-East! हम Act East Policy को लेकर के चल रहे हैं, मैं अभी भी मानता हूं, मैं जीवन में एक परिवराजक रहा हूं। मेरा सौभाग्‍य रहा है करीब-करीब हिंदुस्‍तान के सभी जिलों में मुझे रात गुजराने का अवसर मिला है। मैंने जिंदगी के 40 साल परिवराजक के रूप में घूमा हूं, इसलिए मैं जानता हूं। मैं North-East में बहुत रहा हूं। इतने विकास की संभावना है। वो Organic Capital बन सकता है देश का, इतनी ताकत है। मैं भी बार-बार North-East जा रहा हूं। अगर मेरा राजनीतिक उद्देश्‍य होता तो जहां 60-80 सीटों का बल होता हैं न, वहीं चला जाता, लेकिन जहां एक-एक सीट हैं वहां जाकर के दो-दो दिन बिताता हूं इसलिए। राजनीतिक मकसद से नहीं करता हूं। यह मेरे देश की अमानत है, उनकी चिंता करनी पड़ेगी, उनके साथ जुड़ना पड़ेगा और इसलिए मेरा यह मकसद है पश्चिमी छोर हिंदुस्‍तान का जिस तेजी से बड़ा है हमें बहुत जल्‍दी से हिंदुस्‍तान के उस पूर्वी छोर को कम से कम उसकी बराबरी में लाना पड़ेगा। चाहे मेरा बिहार हो, चाहे मेरा बंगाल हो, चाहे मेरा असम हो, चाहे मेरा नॉर्थ-ईस्ट हो, चाहे मेरा पूर्वी उत्‍तर प्रदेश हो उसकी बराबरी में लाना पड़ेगा। हम इस देश को एक तरफ अपंग रखकर के, एक तरफ समृद्ध बनाकर के देश को आगे बढ़ा नहीं सकते और इसलिए मैं विकास में उसकी ओर बल देना चाहता हूं। मैं चाहूंगा कि आप इसको मदद करेंगे। 

आप देखिए Co-operative Federalism.. Federalism की बातें बहुत हुई है, क्या होता था, हमें याद है। रेलवे में bridge बन गया है। लेकिन दोनों तरफ connectivity नहीं थी। दो-दो साल ऐसे लटकता पड़ा है Bridge, कभी दोनों ओर connectivity बनी है bridge नहीं बन रहा है, क्‍यों? तो या तो वो सरकार हमें पसंद नहीं है, या एक department दूसरे department की सुनता नहीं है, silos में काम चलता है। 

सैकड़ों प्रोजेक्‍ट.. इतना ही नहीं एक गांव में रेल जाती है। अब गांव में धीरे-धीरे रेल के उस तरफ बस्‍ती बनने लग गई। अब पीने का पानी ले जाने की पाइप डालनी है। रेल वाले अड़ जाते हैं; दो-दो साल तक पाइप ले जाने की permission नहीं देते थे। मुझे बताइये कि उसका क्‍या गुनाह, सरकार किसी की भी हो भई, लेकिन उस गांव वाले का क्‍या गुनाह कि जो रेल के नीचे पाइप ले जाकर के बिचारे को दूसरी ओर पानी देना, नहीं देते थे? हमने सरकार में आकर के पहला सुकाम मैंने किया कि यह जितनी चीजें हैं, उसको clear करो और मैं आज गर्व से कहता हूं, हमने सबको clear कर दिया। यह देखा नहीं कि वहां किस level की सरकार बैठी है, नहीं देखा, विकास ऐसे होता है और इसलिए हमने उस दिशा में प्रयास किया है। 

हमारे यहां कुछ तो चीजें permission में साहब इतना सारी permission रेलवे को मैंने सभी Department के साथ जोड़ दिया है। मैंने कहा है कि सब Department के साथ मिलकर के काम करो। सभी राज्‍यों के मिलकर के काम करो, रेल जारी है वे सारे लोग रूक जाए ऐसा काम नहीं हो सकता है। हम विकास की उस परिभाषा को लेकर के चला जाए और इसलिए Co-operative Federalism की मैं बात करता हूं। उन राज्‍यों की समस्‍याओं को हमने address करना चाहिए। हम यह किया, वो किया, उसके आधार पर देश नहीं चलता। देश को आगे बढ़ाना है तो राज्‍यों को आगे बढ़ाना पड़ेगा। 

मैं जब राज्‍य का मुख्‍यमंत्री था तो मैं हमेशा कहा करता था कि भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास। यह मंत्र हमेशा मेरे जीवन में रखा था और मैं सबको बताता था। आज मैं कहता हूं कि देश का समृद्ध बनाने के लिए राज्‍यों का समृद्ध बनाना है। देश को सशक्‍त बनाने के लिए, राज्‍यों को सशक्‍त बनाना होगा। हम कल्‍पना कर सकते हैं। हमने आते ही यह खनिज Royalty वगैरह डेढ़ गुणा कर दिया। वो पैसा किसको जाएगा? राज्‍यों को जाएगा। वो राज्‍य कौन है जहां सबसे ज्‍यादा खनिज है। यह जो मैं पूर्वी हिंदुस्‍तान के विकास की बात करता हूं ना! उसकी जड़, उसमें है क्योंकि वो खनिज सबसे ज्यादा हमारे पूर्वी इलाके में है, देश में वो हमको लाभ होने वाला है। 

कोयला..Auction हुआ फायदा किसको जाएगा। ये सारा का सारा पैसा राज्य के खजाने में जाने वाला है। कुछ राज्यों ने कल्पना तक नहीं की होगी। उनके बजट से ज्यादा रुपया उनके सामने पड़ा होगा, यहां तक पहुंच पाएंगे। क्या ये Federal System में राज्यों को मजबूत करने का तरीका है कि नहीं है? अभी 42% Finance Commission की Report को स्वीकार करके हम दे रहे हैं। जबकि Finance Commission एकमत नहीं है। Finance Commission के Member के अंदर भी Dispute है। हम उसका फायदा उठा सकते थे, हम नहीं उठाना चाहते हैं क्योंकि तथ्यों पर हमारा Commitment है। राज्यों समृद्ध होने चाहिए, राज्य मजबूत होने चाहिए 42 Percent दे रहा हूं। ये Amount छोटी नहीं है। जब Amount जब आप सुनोगे हैरान हो जाओगे। कुछ राज्यों के पास तो तिजारी की Size ही नहीं है, इतने रुपयों के लिए। 

इतना ही नहीं, उसके उपरांत, पंयायतों के लिए अलग, नगरपालिकाओं के लिए अलग, महानगरपालिकाओं के लिए अलग। इतना ही नहीं, Disaster होता है, कोई प्राकृतिक आपदा आती है उसके लिए अलग। ये सब मैं मिलाऊं ना तो करीब-करीब 47-48% जाता है।..और आजादी के बाद पहली बार...आजादी के बाद पहली बार ये जानकर के आपको भी आनंद होगा और राज्यों में बैठे हुए मुखियाओं को मैं कहता हूं शायद उनको भी ध्यान नहीं होगा। आजादी के बाद पहली बार हिंदुस्तान के राज्यों के पास जो खजाना है और भारत सरकार के पास खजाना है उस पूरे खजाने का Total लगाया जाए और हिसाब लगाएंगे तो निकलेगा 62% खजाना राज्यों के पास है, 38% खजाना भारत सरकार के पास है। पहली बार देश में उल्टा क्रम हमने किया है कि दिल्ली सरकार का खजाना हमने कम किया है, राज्यों का खजाना भरा है। हमारा मानना है कि राज्यों को हमें ताकतवर बनाना चाहिए, राज्यों को विकास के लिए अवसर देना चाहिए और उस काम को हम कर रहे हैं और राजनीति से परे होकर के कर रहे हैं। इसका दल-उसका दल झंडे के रंग देखकर के देश की प्रगति नहीं होती है। हमें तो अगर झंडे का रंग दिखता है तो सिर्फ तिरंगा दिखता है और कोई रंग दिखता नहीं और उसी को लेकर के हम चलते हैं। 

आदरणीय सभापति महोदया जी! हमारे देश में राजनीतिक कारणों से सांप्रदाय का जहर घुलता जा रहा है और आज से नहीं चला जा रहा है, लंब अर्से से चला जा रहा है। जिसने देश को तबाह करके रखा हुआ है, दिलों को तोड़ने का काम किया है, लेकिन सवाल हमसे पूछे जा रहे हैं, हमारी भूमिका क्या है? मैं आज जरा इस सदन को कहना चाहता हूं। 27 अक्टूबर 2013, मैं पटना में था, गांधी मैदान में था, बम धमाके हो रहे थे, निर्दोष लोग मौत के घाट उतारे गए। लाखों की जन-मैदिरी थी, बड़ा ही कलुषित माहौल था। रक्त की धाराएं बह रही हैं। उस समय जब इंसान के हृदय से बातें निकलती हैं, वो सच्चाई के तराजू पर शत-प्रतिशत सही निकलती हैं, उसमें कोई लाग-लेपट नहीं होता है। 

बम-बंदूक के बीच रक्त बह रहा था, लोग मर रहे थे। उस समय मेरा जो भाषण है और उसमें मैंने कहा था कि मैं कहना चाहता हूं, मैं पूछना चाहता हूं कि बताइए हिंदूओं को किसके साथ लड़ना है? क्या मुसलमान के साथ लड़ना है? कि गरीबी के साथ लड़ना है? मैं मुसलमानों को पूछता था कि क्या आपको हिंदुओं के साथ लड़ना है? कि गरीबी के खिलाफ लड़ना है?..और मैंने कहा था कि आइए बहुत लड़ लिए हिंदू-मुसलमान एक होकर के हम गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ें। पटना के गांधी मैदान में बम, बंदूक, पिस्तौल और गोलियों के बीच में उठाई हुई आवाज है। 

और इसलिए कृपा करके हम उन काल्‍पनिक बातों को लेकर के बयानबाजी कर करके और इसलिए भारत को प्रेम करने वाले हर व्‍यक्ति के लिए यह बात साफ है यह देश विविधताओं से भरा हुआ है। विविधता में एकता यही हमारे देश की पहचान है, यही हमारी ताकत है। हम एकरूपता के पक्षकार नहीं है। हम एकता के पक्षकार है और सभी सम्‍प्रदायों के, सभी संप्रदायों का फलना-फूलना, यह भारत की धरती पर ही संभव होता है। यह भारत की विशेषता है और मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारा जो संविधान बना है, वो संविधान हजारों साल की हमारे चिंतन की अभिव्‍यक्ति है। हमारा जो संविधान बना है वो हमारे भारत के सामान्‍य मानव की आशाओं, आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने वाला संविधान है और इस संविधान की मर्यादा में रह करके देश चल सकता है। देश संविधान की मर्यादाओं के बाहर नहीं चल सकता है। किसी को भी कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं होता है। किसी को भी साम्‍प्रदाय के आधार पर किसी के भी साथ discrimination करने का अधिकार नहीं होता है। हरेक किसी को अपने साथ चलने का अधिकार है और मेरी जिम्‍मेदवारी है, सरकार में बैठा हूं, सरकार कैसे चलेगी उसकी जिम्‍मेदारी है और इसलिए मैं आपको कहना चाहता हूं और मैं बार-बार कहता हुआ आया हं साम्‍प्रदाय के नाम पर अनाप-शनाप बातें करने वालों को कहना चाहता हूं, मैं यह कहना नहीं चाहता आज आपका मुंह बंद करने के लिए मेरे पास हजारों चीजें हैं, मैं समय बर्बाद नहीं करता हूं, इसके लिए मैं समय बर्बाद नहीं करता हूं, लेकिन मैं आपको कहना चाहता हूं हमारा commitment क्‍या है, वो मैं आपको कहना चाहता हूं, मैंने बार-बार कहा है मेरी सरकार का, मेरी सरकार का एक ही धर्म है- India-First, मेरी सरकार का एक ही धर्म है- भारत का संविधान, मेरी सरकार का एक ही धर्मग्रंथ है- भारत का संविधान, मेरी सरकार की एक ही भक्ति है- भारत भक्ति, मेरी सरकार की एक ही पूजा है- सवा सौ करोड़ देशवासियों का कल्‍याण, मेरी सरकार की एक ही कार्यशैली है- ”सबका साथ, सबका विकास” और इसलिए हम संविधान को लेकर के संविधान की सीमा में रह करके देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं। 

हमारे यहां एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति हमारा तत्वज्ञान रहा है। Truth is one, sages call it in the different ways, सत्‍य एक है विद्वान लोग उसको अलग-अलग तरीके से कहते हैं। यह हम कहने वाले लोगों में से हैं। 

और इतना ही नहीं, यही देश है जहां गुरूनानक देव ने क्‍या कहा है। गुरूनानक देव ने कहा है – 

“सब मेही रब रेहिया प्रभ एकाई, पेख पेख नानक बिगसाई''



The one God pervades within all. Beholding Him in all Nanak is delighted. यह हमारा तत्‍व ज्ञान रहा है, यह हमारी परंपरा रही है और इसलिए, हम वो लोग हैं जहां पर 

''सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः। सत्येन वायवो वान्ति सर्व सत्ये प्रतिष्ठितम्॥'



इसी मंत्र को लेकर के काम करने वाले हम लोग हैं और इसलिए जब मैं कहता हूं कि “सबका साथ, सबका विकास”, यह “सबका साथ, सबका विकास” में मुझे आपको भी साथ चाहिए और आपका भी साथ चाहिए क्‍योंकि सबका विकास करना है। 

मैं फिर एक बार जिन-जिन महानुभावों ने विचार रखे हैं उनका भी धन्‍यवाद करता हूं और जो उत्‍तम बातें आपके माध्‍यम से आई हैं। उसको भी परीक्षण करके देश के हित में कहां लागू किया जाए उसके लिए हम प्रयास करेंगे। और मैं फिर एक बार आदरणीय राष्‍ट्रपति जी का हृदय से धन्‍यवाद करता हूं और आगे भी उनका मार्गदर्शन हमें मिलता रहे। 

इसी अपेक्षा के साथ बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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The world acknowledges today that India possesses two infinite powers - Demography & Democracy: PM Modi
July 12, 2025
Today, more than 51 thousand youths have been given appointment letters, Through such employment fairs, millions of young people have already secured permanent jobs in the Government , Now these young people are playing a significant role in nation-building: PM
The world acknowledges today that India possesses two infinite powers, One is demography, the other is democracy, In other words, the largest youth population and the largest democracy: PM
The ecosystem of startups, innovation, and research being built in the country today is enhancing the capabilities of the nation's youth: PM
The Government's focus is also on creating new employment opportunities in the private sector with the recently approved new scheme,the Employment Linked Incentive Scheme: PM
Today, one of India's greatest strengths is our manufacturing sector, A large number of new jobs are being created in manufacturing: PM
To boost the manufacturing sector, the Mission Manufacturing has been announced in this year's budget: PM
A report from the International Labour Organization - ILO states that over the past decade, more than 90 crore citizens of India have been brought under the ambit of welfare schemes: PM
Today, major global institutions like the World Bank are praising India, India is being ranked among the top countries with the highest equality in the world: PM

Namaskar!

Our campaign to provide permanent jobs to the youth in the Central Government is continuing steadily. And we are known for this—no recommendation, no corruption. Today, more than 51,000 young people have been given appointment letters. Lakhs of youth have already secured permanent jobs in the Indian government through such Rozgar Melas (employment fairs). These young individuals are now playing a significant role in nation-building. Today, many of you have started your responsibilities in Indian Railways. Some will now become the guardians of the nation's security, others appointed in the Postal Department will help deliver government services to every village, some will be foot soldiers of the Health for All mission, many young professionals will help accelerate financial inclusion, and others will drive Bharat's industrial development forward. Your departments may be different, but the goal is the same. And what is that goal? We must remember it again and again: No matter the department, task, position, or region — the one and only goal is service to the nation. The guiding principle is: Citizen First. You have been given a great platform to serve the people of the country. I congratulate all of you on achieving this great success at such an important stage of life. I extend my best wishes for this new journey in your career.

Friends,

Today the world acknowledges that Bharat has two limitless strengths: one is demography, and the other is democracy—the largest population of youth and the world's biggest democracy. This power of youth is both the greatest asset and the strongest guarantee for Bharat’s bright future. Our government is working day and night to turn this strength into a formula for prosperity. As you all know, I have just returned from a visit to five countries. In every country, I could hear the praise and recognition of Bharat’s youth power. All the agreements signed during these visits will certainly benefit Bharat’s youth, both at home and abroad. In sectors like defence, pharmaceuticals, digital technology, energy, and rare earth minerals, the agreements made will bring significant advantages to Bharat in the coming days. They will give a strong boost to Bharat’s manufacturing and services sectors.

Friends,

With changing times, the nature of jobs in the 21st century is also evolving, and new sectors are constantly emerging. That is why, Bharat has focused on preparing its youth for these changes over the past decade. Important decisions have been taken, and modern policies have been formulated keeping in mind the needs of the present era. The ecosystem of start-ups, innovation, and research that is taking shape in the country today is enhancing the potential of our youth. When I see young people aspiring to launch their own start-ups, it increases my own confidence. Just now, Dr. Jitendra Singh ji also shared some detailed statistics with you regarding start-ups. I feel proud to see that the youth of my country is moving forward with great vision, speed, and strength, with a desire to do something new.

Friends,

The Indian government is also focusing on creating new employment opportunities in the private sector. Recently, the government has approved a new scheme — the Employment Linked Incentive Scheme. Under this scheme, the government will provide 15,000 rupees to a youth getting their first job in the private sector. In other words, the government will contribute towards the first salary of the first job. For this, the government has allocated a budget of around 1 lakh crore rupees. This scheme is expected to help in the creation of approximately 3.5 crore new jobs.

Friends,

Today, one of Bharat’s greatest strengths is our manufacturing sector. A large number of new jobs are being created in manufacturing. To boost this sector, this year’s Union Budget has announced the launch of Mission Manufacturing. Over the past few years, we have strengthened the Make in India initiative. Just through the PLI (Production Linked Incentive) Scheme, more than 11 lakh jobs have been created in the country. The mobile phone and electronics sectors have witnessed unprecedented growth in recent years. Today, electronics manufacturing worth nearly 11 lakh crore rupees is taking place in Bharat. That’s a more than fivefold increase in the past 11 years. Earlier, Bharat had only 2 or 4 mobile phone manufacturing units. Now, we have nearly 300 units related to mobile phone manufacturing, employing lakhs of young people. Another prominent sector is defence manufacturing, which is gaining even more attention and pride after Operation Sindoor. Bharat is setting new records in defence production. Our defence production has now crossed 1.25 lakh crore rupees. Bharat has also achieved a major milestone in the locomotive sector — we are now the largest producer of locomotives in the world. Whether it’s locomotives, rail coaches, or metro coaches, Bharat is exporting them in large numbers to many countries. Our automobile sector is also experiencing unprecedented growth.

In just the last 5 years, the sector has received about $40 billion in FDI (Foreign Direct Investment). That means new companies have come in, new factories have been established, new jobs have been created — and at the same time, vehicle demand has surged, with record sales of automobiles in Bharat. Bharat’s progress in various sectors, and these manufacturing records, don’t happen on their own. They are possible only because more and more young people are getting jobs. It is their hard work, intellect, and dedication that have made this possible. Bharat’s youth have not only found employment, but they’ve also excelled at it. Now, as government employees, it is your duty to ensure that this momentum in the manufacturing sector continues. Wherever you are assigned, you must act as an enabler, an encourager, remove obstacles, and simplify processes. The more ease you bring to the system, the more benefit it will bring to the people of the country.

Friends,

Today, our country is rapidly progressing towards becoming the third-largest economy in the world, and any Indian can proudly say this. This achievement is the result of the hard work and sweat of our youth. In the past 11 years, the nation has made progress in every sector. Recently, a very commendable report was released by the International Labour Organization (ILO). This report highlights that more than 90 crore citizens in Bharat have been brought under the umbrella of welfare schemes over the last decade. This is essentially the expansion of social security. And the impact of these schemes goes far beyond welfare—they have also generated a massive number of new jobs. Let me give you a simple example — the PM Awas Yojana. Under this scheme, 4 crore new pucca (permanent) houses have already been built, and construction of 3 crore more houses is currently underway. Now, when such a large number of homes are being built, masons, labourers, suppliers of raw materials, transport operators, local shopkeepers, and truck drivers—all get work. Imagine the enormous number of jobs created through this! What’s even more heartening is that most of these jobs are in rural areas, so people don’t need to migrate to cities. Similarly, 12 crore new toilets have been constructed across the country. This has created work not only in construction but also for plumbers, carpenters, and skilled workers from our Vishwakarma community. This is how job creation expands and leaves a real impact. Likewise, over 10 crore new LPG connections have been provided under the Ujjwala scheme. To support this, a large number of bottling plants have been set up, creating employment for cylinder manufacturers, distribution agencies, and delivery personnel. Each initiative—if you examine closely—creates multiple layers of employment opportunities. Lakhs of people have gained new jobs from such initiatives.

Friends,

I would like to mention another scheme, one that truly brings double the benefit—like having a laddu in each hand, as we say. That scheme is the PM Surya Ghar Muft Bijli Yojana. Under this scheme, the government is giving an average subsidy of over 75,000 rupees per household to install rooftop solar panels. This essentially turns your roof into a power plant—generating electricity not just for your own use, but also for sale to the grid if there's surplus. This brings electricity bills down to zero and saves families significant money. Engineers and technicians are needed to install the plants. Solar panel manufacturing factories and raw material suppliers are growing. Transport operators are employed to move materials. A whole new industry is emerging for the maintenance and repair of these systems. Just imagine—the benefits are not only helping citizens, but also creating lakhs of new employment opportunities.

Friends,

The ‘Namo Drone Didi’ initiative has increased the income of our sisters and daughters and also created new employment opportunities in rural areas. Under this scheme, lakhs of rural women are being trained as drone pilots. Available reports show that our Drone Didis—mothers and sisters from our villages—are earning lakhs of rupees in a single farming season by offering drone-based agricultural services on a contract basis. Not only that, this initiative is also giving a big boost to the drone manufacturing sector in the country. Whether in agriculture or defence, drone manufacturing is opening up new avenues for the youth of our country.

Friends,

The campaign to create 3 crore Lakhpati Didis is ongoing. Out of these, 1.5 crore women have already achieved this milestone. And as you know, becoming a Lakhpati Didi means earning at least 1 lakh rupees every year, consistently—not just once. That is the benchmark. 1.5 crore Lakhpati Didis! Today, if you visit villages, you’ll often hear terms like Bank Sakhis, Bima Sakhis, Krishi Sakhis, Pashu Sakhis—these are various schemes through which our mothers and sisters in villages have got employment opportunities. Similarly, under the PM SVANidhi Scheme, street vendors and hawkers were given support for the first time. Lakhs have benefited from it. Because of digital payments, even roadside vendors now prefer UPI over cash. Why? Because it gives them instant access to more credit from the bank. Banks trust them more, and they don’t need piles of paperwork. This means that even a humble street vendor now moves forward with confidence and pride. Take the PM Vishwakarma Scheme, for example. It’s focused on modernizing and upgrading traditional, ancestral, and family-based crafts and trades. It helps by: Providing modern tools, offering training to artisans, craftsmen, and service providers, facilitating easy loans. There are countless such schemes, through which the poor have been uplifted, and youth have found employment. The impact of all these initiatives is so significant that, in just 10 years, 25 crore Indians have risen out of poverty. Think about it—if they hadn’t found employment, if there was no income in the family, how would a person who had been poor for three or four generations even imagine coming out of that darkness? For them, each day was a struggle for survival, and life felt like a burden. But today, they have defeated poverty with their strength and courage. These 25 crore brothers and sisters have emerged victorious, and I salute their determination. They used the government’s schemes as tools, didn't sit around and complain—they fought back against poverty, uprooted it, and conquered it. Now imagine, the new self-confidence that is building among these 25 crore people! When a person overcomes a crisis, a new strength emerges. This new strength has also emerged in my country, and it will play a vital role in taking the country forward. And let me be clear—this is not just the government saying it. Today, global institutions like the World Bank are openly praising Bharat for this achievement. The world is presenting Bharat as a model. Bharat is now being ranked among the top countries in the world in terms of equality—which means inequality is decreasing rapidly, and we are moving toward greater equality. The world is now taking note of this transformation.

Friends,

The great mission of development, the movement for welfare of the poor and employment generation that is currently underway—you now share the responsibility of taking it forward from today. The government should never be a hurdle; it should always be a facilitator of growth. Every individual deserves the opportunity to move ahead. It is our role to extend a helping hand. And you, my friends, are young. I have great faith in you. I have high expectations from you. Wherever you're assigned, you must always put the citizens first. Helping them, easing their difficulties—that alone will push the nation forward rapidly. You are to become active participants in Bharat’s Amrit Kaal—this golden period of opportunity. The next 20 to 25 years are crucial, not just for your career, but for the future of the entire country. These are the defining years for building a ‘Viksit Bharat’ (Developed India). That is why, your work, your duties, and your goals must be aligned with the resolve to create a ‘Viksit Bharat’. The mantra ‘Nagrik Devo Bhavo’ (Citizen is Divine) must run through your veins, live in your heart and mind, and reflect in your conduct and behaviour.

And I am fully confident, my friends, that this youth power has stood with me over the past 10 years in taking the country forward. They have taken each of my words to heart and done whatever they could for the nation—from wherever they were, in whatever capacity they could. Now that you have been given this opportunity, expectations from you are higher. Your responsibility is greater. And I believe—you will rise to the occasion and make it happen. Once again, I wholeheartedly congratulate you. I extend my warmest wishes to your families, who deserve a bright and prosperous future. May you all achieve great success in life. Keep upgrading yourself continuously through the iGOT platform. Now that you have secured your position, don’t sit back. Dream big, aim high. Through hard work, continuous learning, and bringing fresh results, move ahead. Your progress is the pride of the country and your growth is my satisfaction. That is why, today, as you embark on this new journey in life, I have come here to speak with you, to bless you, and to welcome you as my partner in fulfilling many dreams. As a close and trusted companion, I welcome you warmly. Thank you very much, and best wishes to you all.