For me Youth is not just 'New Age Voters', they are "New Age power"

Published By : Admin | April 22, 2014 | 13:59 IST

दिन-रात के कमरतोड़ प्रचार के बाद भी चेहरे पर जरा सी थकान के निशान तक नहीं। पांच चरणों के मतदान के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पूरी तरह आत्मविश्वास से लबरेज नजर आते हैं। भाजपा व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का दावा कर रहे मोदी को सबसे ज्यादा भरोसा देश के युवा मतदाताओं पर है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए वह कहते हैं कि लोगों का मिजाज बदला है और वे विकास चाहते हैं। वोटबैंक की राजनीति करने वाले दलों को सबक सिखाकर जनता ने इस दफा भाजपा को पूर्ण बहुमत देने का निर्णय ले लिया है। दो जगह से चुनाव लड़ने या पूरे चुनाव अभियान पर हावी होने या फिर नकारात्मक लाइन पर चुनाव प्रचार जैसे मसलों पर उन्होंने दैनिक जागरण के सीनियर एक्जीक्यूटिव एडीटर प्रशांत मिश्र से लंबी बातचीत की।

चुनाव शुरू होने के पहले भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर रही थी। फिर 272 प्लस का लक्ष्य रखा गया। अब 300 सीटें जीतने की बात होने लगी है। यह आत्मविश्वास है या माहौल बनाने की रणनीति?

-यह तो वही बात हुई कि पहले मुर्गी आई या अंडा? हममें आत्मविश्वास है इसीलिए हम मेहनत कर रहे हैं। इसके कारण अपार समर्थन भी मिल रहा है और इस प्रकार माहौल तैयार हो रहा है। जैसा माहौल तैयार हुआ है, उससे हमारा आत्मविश्वास और भी बढ़ा है। 13 सितंबर को भाजपा ने मुझे पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया। उसके बाद से 380 से ज्यादा रैलियों को संबोधित कर चुका हूं। चुनाव की घोषणा के बाद से लगभग 185 रैलियों का आयोजन तय हुआ। इसके अलावा 3डी टेक्नोलॉजी के जरिये भी देश के कोने-कोने में जनता से मुखातिब होने का सिलसिला कायम है। कुल मिलाकर 1000 रैलियां 3डी द्वारा हो जाएंगी। जिस प्रकार का जनाक्रोश कांग्रेस के खिलाफ है, उसे देखते हुए दो बातें तय दिखती हैं- पहली, कांग्रेस आजाद भारत के अपने चुनावी इतिहास में सबसे निचली पायदान पर सिमट जाएगी। दूसरी यह कि राजग व भाजपा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तय है।

आप कहीं अतिआत्मविश्वास का शिकार तो नहीं..?

-(बीच में ही) पंडित जी.इस बार अब तक के चरणों में हुए भारी मतदान से एवं खासकर युवाओं ने जो अप्रत्याशित रुचि एवं भागीदारी मतदान प्रक्रिया में दिखाई है, उससे यह बिल्कुल साफ है कि इस बार का चुनाव अभूतपूर्व है। इस बार लोग न सिर्फ मतदान करने के लिए आगे आ रहे हैं, बल्कि लाखों लोग इंडिया272प्लस डाट कॉम वेबसाइट के जरिये वालिंटियर के रूप में भाजपा के साथ जुड़े हैं। यह एक बड़ा बदलाव है। जिस प्रकार का जनसैलाब रैलियों में उमड़ रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि शायद यह पहला चुनाव है जहां मतदान से पहले ही मानों पूरे देश के लोगों ने तय कर लिया है कि इस बार भाजपा को अवसर प्रदान करना है। पांच-छह महीने पहले भाजपा को जो व्यापक जनसमर्थन मिल रहा था, वह अब पूर्ण बहुमत से कहीं आगे तब्दील होता हुआ स्पष्ट नजर आ रहा है।

कहते हैं कि मोदी हर चीज पर हावी हो जाते हैं। इस बार चुनाव में जिस तरह व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला है, क्या उसका कारण भी यही है? आप इन आरोपों का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं?

-मैं यदि मिथ्या आरोपों का जवाब दूं तो फिर तू-तू, मैं-मैं की जो राजनीति है, वह और आगे चलती है। हां, यह सच है कि मेरे विरोधियों ने शालीनता की सीमा पार कर मुझ पर अनर्गल आरोप लगाए, व्यर्थ प्रलाप किया है। पर मैंने ये तय कर लिया है कि मैं हर अपमान सिर्फ इसलिए सहन कर लूंगा, सारा विष सिर्फ इसलिए पी लूंगा ताकि इस देश के युवाओं, किसानों, माता-बहनों के अहम मुद्दों से कहीं बात भटक न जाए। विरोधी दलों के राजनेता क्या बात करते हैं, उस पर न तो मैं ज्यादा ध्यान देता हूं और न ही टिप्पणी करना जरूरी समझता हूं। लेकिन दस वर्ष के शासन के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार के पास उनके द्वारा किए गए काम या उनकी उपलब्धियों की चर्चा करने के लिए कुछ न हो और वे भाजपा नेताओं पर टिप्पणी करें, इससे यह तो साफ है कि देश के दस बहुमूल्य साल कांग्रेस ने वाकई बर्बाद कर दिए। एक लंबे अरसे बाद राजनीति में लोगों की दिलचस्पी दिख रही है। राजनेताओं के प्रति जहां तिरस्कार और गुस्से की भावना थी, वहीं मैं पहली बार अपार समर्थन एवं स्नेह का भाव देख रहा हूं। यह जो आशा का संचार हुआ है, इस आशा को, इस विश्वास को बनाए रखने की जरूरत है।

आपने अभियान शुरू किया था तो मुद्दा था विकास। भय, भूख और भ्रष्टाचार, लेकिन आपको नहीं लगता कि पूरा चुनाव ध्रुवीकरण पर लड़ा जा रहा है?

-शुरुआत में हमने तय किया था कि इस पूरे चुनाव को विकास एवं सुशासन जैसे सकारात्मक मुद्दों पर लड़ा जाए। यदि अन्य दल भी ऐसा करते तो शायद हमारी चुनावी राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ जाता। अफसोस है कि विरोधी दलों ने चुनाव को उसी पुरानी जाति एवं संप्रदाय की राजनीति की तरफ धकेलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। इसके बावजूद यह पहला चुनाव है जिसमें भाजपा जैसी बड़ी पार्टी विकास एवं सुशासन के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। पिछले छह महीने से मेरा यह पुरजोर प्रयास रहा है कि हम नागरिकों के असली मुद्दों को उठाएं। इस बार देश का मिजाज बदला है और लोगों ने तय किया है कि वे उनके जीवन को छूने वाले असली मुद्दों की बात करने वाली भाजपा को समर्थन देंगे। उन्होंने वोटबैंक की राजनीति करने वाली पार्टियों को सबक सिखाने का निर्णय कर लिया है।

फिर ध्रुवीकरण की सियासत के लिए जिम्मेदार कौन है?

-जिस प्रकार एक हारती हुई सेना अपना अस्तित्व बचाने के लिए बंकर में घुस जाती है उसी तरह कांग्रेस भी इस बार अपने अस्तित्व को बचाने की खातिर एक बार फिर छद्म धर्मनिरपेक्षता के बंकर में छिपकर चुनाव लड़ना चाह रही है। सेक्युलरिज्म की बातें करने वाले दलों को पता नहीं कि 21वीं सदी का भारत एक नया भारत है। आज के युवाओं को जाति-संप्रदाय के आधार पर की जाने वाली राजनीति बिल्कुल नापसंद है। युवाओं को चाहिए एक ऐसी सरकार जो उनकी समस्याओं का समाधान कर सके, जो उनके सपनों को साकार कर सके, जो विकास पर ध्यान देकर उनके लिए रोजगार के अवसर दिला सके।

लेकिन. आरोप आपकी पार्टी के नेताओं पर भी लग रहा है। अमित शाह पर चुनाव आयोग ने पाबंदी भी लगाई..।

-आप मुझे मेरा एक भाषण बताएं, जहां मैंने जाति या संप्रदाय का उल्लेख किया हो। इसी तरह विपक्षी दलों के बड़े नेताओं का एक भाषण ऐसा बताएं, जहां उन्होंने जाति-संप्रदाय का उल्लेख न किया हो। कांग्रेस के कई नेताओं ने अत्यंत आपत्तिजनक बयान दिए हैं और दुर्भाग्य की बात है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अपने ऐसे नेताओं को नियंत्रित करने के बजाय उन्हें अपनी मौन स्वीकृति दी। अमित शाह ने जिस प्रकार चुनाव आयोग का आदर किया और उसके आधार पर उन पर लगी पाबंदी हटाई गई वह स्पष्ट रूप से आयोग के प्रति हमारे सम्मान एवं इस देश की कानून-व्यवस्था और संवैधानिक परंपराओं में हमारी प्रगाढ़ आस्था को परिलक्षित करता है। ध्रुवीकरण की बात करने वाले विश्लेषकों से मैं पूछना चाहूंगा कि क्या आज तक किसी पार्टी ने विकास एवं सुशासन की बात करने के लिए इतना गंभीर या सशक्त प्रयास किया है? भ्रामक प्रचार करने वालों की दाल नहीं गलने वाली। इस बार देश का मतदाता जागा है और उसने भाजपा को समर्थन करने का मन बना लिया है।

क्या भाजपा आश्वस्त करेगी कि वह ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं करेगी?

-हमारी राजनीति सबको साथ लेकर चलने की है। हमारा तो नारा ही है, सबका साथ और सबका विकास। मैं भले ही चुनाव हार जाऊं, लेकिन देश और समाज को तोड़ने वाली राजनीति नहीं करूंगा।

मोदी जी, चुनाव आयोग के आंकड़े दिखाते हैं कि इस चुनाव में 23 करोड़ से ज्यादा 'न्यू एज वोटर्स' ऐसे युवा मतदाता वोट डालेंगे, जिनमें बहुत सारे प्रथम बार मतदान करने वाले हैं। बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दों के तुरंत हल ढूंढ़ने की जरूरत है, युवा केंद्रित इन मुद्दों को कैसे प्राथमिकता दी जाएगी?

-देखिये, यूथ मेरे लिए सिर्फ 'न्यू एज वोटर्स' नहीं है, बल्कि 'न्यू एज पावर' है। और इन युवाओं को 'राइट अपरचुनिटी' तथा 'राइट इनवायरर्मेट' देना हमारी प्राथमिकता होगी। इसके अंतर्गत स्किल डेवलपमेंट पर जोर देना हमारा सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा। परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि संप्रग सरकार ने इस मुद्दे पर सिर्फ समितियां ही बनाई। वास्तव में हमें कमेटी नहीं, कमिटमेंट चाहिए। बेरोजगारी इस समय हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है। पिछले एक दशक की जॉबलेस ग्रोथ ने हमें ऐसी स्थिति में ला दिया है, जहां हमारे युवा बेरोजगार बैठे हैं। जहां राजग के छह वर्ष में छह करोड़ रोजगार प्रदान किए गए, वहीं संप्रग के दस वर्ष में डेढ़ करोड़ से भी कम रोजगार सृजित किए गए। युवाओं को नौकरियां चाहिए। उन्हें स्वरोजगार के अवसर चाहिए। अपने सपनों को साकार कर सकें, ऐसी जिंदगी चाहिए। युवाओं को शिक्षा देना, स्किल डेवलपमेंट पर फोकस करके उन्हें रोजगार मुहैया कराना, यह मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी।

एक दौर था जब यह सवाल उठ रहे थे कि मोदी के केंद्रीय भूमिका में आने पर राजग का दायरा कम होगा। लेकिन वर्तमान में राजग के साथ 27-28 दलों का आंकड़ा है। ऐसा क्या हुआ जो एकबारगी कई दल आपके साथ जुड़ने लगे हैं?

-इस बार राजग या एनडीए का मतलब सिर्फ नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस नहीं, परन्तु नेशनल डेवलपमेंट अलायंस भी बन गया है। सही मायने में यदि कोई ध्रुवीकरण हुआ है तो वह विकास के आधार पर हुआ है। एक तरफ भाजपा एवं राजग के हमारे साथी दल हैं, जो विकास एवं सुशासन की राजनीति करना चाहते हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस एवं उसके साथी दल हैं जो अभी भी धर्म एवं जाति आधारित विघटन की राजनीति करना चाहते हैं। 25 से अधिक राजनीतिक दलों ने राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए जो देश के हित में उचित है, वैसी विकास की राजनीति को अपनाया है एवं भाजपा का साथ देने का निर्णय किया है। शायद स्वतंत्र भारत की चुनावी राजनीति में ये सबसे बड़ा प्री-पोल अलायंस है। मैं उन सभी दलों का आभारी हूं, जिन्होंने इस देश की जनता की आवाज सुनकर उनके सपनों का साकार करने के लिए भाजपा का साथ देने का फैसला किया। उन सभी दलों ने झूठ के बादल छाए होने के बावजूद सच्चाई को समझ अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया है।

भाजपा नेताओं का दावा है कि देश में मोदी लहर चल रही है। क्या इस लहर का असर उन राज्यों पर भी दिखेगा, जहां अब तक पार्टी खाता नहीं खोल पाई है?

-अब ये कहना गलत होगा कि मोदी की लहर सिर्फ भाजपा नेताओं को दिख रही है। लगभग हर चुनावी समीक्षक, हर सर्वे में देश के लोगों की इच्छा साफ दिखाई पड़ रही है। मैं तो कहता हूं कि ये सिर्फ एक लहर या आंधी नहीं, सुनामी है और इस बार उत्तर हो या दक्षिण, पूरब हो या पश्चिम, पूरा भारत एक मन बना चुका है। दक्षिण भारत में भी इस बार भाजपा एवं साथी दलों को बड़ी विजय मिलती स्पष्ट दिख रही है। और तो और इस बार दक्षिण एवं पूर्व के कई राज्यों में कांग्रेस का तो खाता तक नहीं खुलेगा।

लालकृष्ण आडवाणी का कहना है कि ऐसा चुनाव उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। आप क्या कहेंगे?

-जिन्होंने भी पिछले 25-30 साल से देश की राजनीति को नजदीक से देखा है, वे सभी स्वीकार कर रहे हैं कि यह चुनाव हर मायने में अभूतपूर्व है। ये शायद पहला चुनाव है जहां वर्तमान सरकार के खिलाफ गुस्सा एवं वैकल्पिक सरकार प्रदान करने वाली पार्टी के प्रति आशा, ये दोनों चीजें एक साथ देखने को मिल रही है। ये पहला चुनाव है, जहां देश की जनता ने एकमत होकर एक भ्रष्ट एवं निकम्मी सरकार को उखाड़ फेंकने का फैसला किया है। ये आक्रोश एवं गुस्सा राजनीतिक व्यवस्था के प्रति नहीं, परन्तु केवल कांग्रेस पार्टी एवं उसके साथी दलों के प्रति है। अमूमन ऐसे में राजनीतिक व्यवस्था के प्रति आक्रोश एवं तिरस्कार की भावना देखने को मिलती है।

मतलब पूरा चुनाव निगेटिव लाइन पर जा रहा है?

-नहीं..इस बार न सिर्फ मजबूत सत्ता विरोधी लहर दिख रही है, परंतु 'निगेटिव वोट' के साथ-साथ एक स्पष्ट 'पोजिटिव वोट फार चेंज' भी दिखाई पड़ता है। दूसरी बात, शायद ये पहला चुनाव है, जिसने देश भर के युवाओं को राजनीति की तरफ खींचा है एवं राजनीति में उनकी दिलचस्पी जगाई है। मानों पहली बार इस देश के युवा अपने जीवन की सफलता की कुंजी अपने हाथों में लेना चाहता है। इस कारण मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस बार देशभर में अप्रत्याशित मतदान होगा एवं युवा मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी उसमें रहेगी। तीसरा बिंदु जिस कारण इस चुनाव को अभूतपूर्व कहा जा सकता है, वह यह है कि इस बार का मतदाता अकल्पनीय परिपक्वता प्रदर्शित कर रहा है। जिन राज्यों में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ हो रहे हैं, वहां का मतदाता इतनी परिपक्वता से पेश आ रहा है कि उसे इस बात का अंदाज है कि लोकसभा में किसे वोट देना है एवं विधानसभा में किसे।

आपसे अगर एक लाइन में पूछा जाए कि इस बार के चुनाव का मुख्य मुद्दा क्या है तो?

-इस बार का चुनाव कोई दल या व्यक्ति नहीं लड़ रहा, बल्कि पूरा देश लड़ रहा है। यह शायद पहला चुनाव है, जहां न संप्रदाय के आधार पर वोट पड़ेंगे और न ही जाति के आधार। पहली बार 'इंडिया फ‌र्स्ट' के नारे को जमीन पर सार्थक होते हुए देखा जा सकता है। सही मायने में यह पहला चुनाव है, जो विकास के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। जहां लोगों में सही मायने में आशा का संचार हुआ है। और लोग अपने सपनों के भारत को संजोने के लिए भाजपा को वोट दे रहे हैं।

आप दो स्थानों से चुनाव लड़ रहे हैं। इस पर कुछ सवाल उठ रहे हैं.?

-ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि कोई व्यक्ति दो जगह से चुनाव लड़ रहा है। कानून में भी इसकी इजाजत है और ये निर्णय पार्टी ने सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर सामूहिक तौर पर किया है।

अभी हाल में संजय बारू और पीसी परख ने किताबें लिखी हैं। पीएम और कांग्रेस दोनों घेरे में हैं। लेकिन सरकार का कहना है कि बारू झूठ बोल रहे हैं। आप क्या कहेंगे?

-इन किताबों में ऐसी कोई बात नहीं लिखी गई है, जो पहले से देश के लोगों को पता नहीं थी। इसीलिए किसी का ये कहना कि बारू झूठ बोल रहे हैं, गले नहीं उतरता। संजय बारू पर आक्रमण करने वाले लोगों ने ये तो कहा कि उन्होंने विश्वासघात किया है, इस पुस्तक के रिलीज होने के समय पर भी प्रश्नचिह्न लगाए एवं करीबी सलाहकार द्वारा इसे औचित्य भंग भी करार दिया गया। परन्तु कांग्रेस या सरकार में किसी ने भी पुस्तक में लिखी बातों एवं जानकारियों की सत्यता पर सवाल नहीं उठाए हैं। जो तथ्य एंव सच्चाई सामने आई है, वह बड़ी गंभीर है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण पद की गरिमा को जैसे ठेस पहुंचाई गई है। इससे कहीं न कहीं देश की साख भी कम हुई है। जो काम एक छोटे से राज्य में भी हो, उसकी निंदा की जाती है, वैसा दस साल तक प्रधानमंत्री पद के साथ कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने किया, ये दुर्भाग्यपूर्ण है। परंतु इससे कहीं ज्यादा चिंता उन बुद्धिजीवियों की चुप्पी से होती है जो अब तक इस मामले को लेकर मौन साधे हुए हैं। बारू की किताब 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' के बारे में कहना चाहूंगा कि यह एक्सीडेंट देश को बहुत महंगा पड़ा है। इस एक्सीडेंट से देश का जो नुकसान पहुंचा है, उसे रिपेयर करने में बहुत मेहनत लगेगी। वैसे तो एक्सीडेंट कहना भी गलत होगा, क्योंकि एक्सीडेंट 'हो जाते हैं.. कराए नहीं जाते..'।

गुजरात में आपका लंबा अनुभव रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की राजनीति में आपको क्या अलग दिख रहा है?

-दरअसल मोटे तौर पर हमारे देश के लोगों की समस्याएं समान हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोगों को पिछले कई सालों से जातिवाद का जहर फैलाने वाली पार्टियों का कुशासन भी झेलना पड़ा। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश एवं बिहार की भूमिका बहुत बड़ी और अहम रहने वाली है। यह जायज भी है। क्योंकि जब तक उत्तरप्रदेश एवं बिहार विकास की दौड़ में आगे न आएं, तब तक भारत विकसित नहीं हो सकता। उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों में और विशेषकर वहां के युवाओं में इस बार भाजपा को लेकर बहुत उत्साह है, बहुत आशाएं भी हैं। दरअसल अब ये स्पष्ट हो रहा है कि बिहार एवं उत्तरप्रदेश के लोग भी विकास एवं सुशासन के लिए उतने ही तत्पर हैं, जितने अन्य राज्यों के लोग। वहां के लोगों ने इस बार भाजपा को भारी बहुमत से विजयी बनाने का निर्णय कर लिया है।

'पांच-छह महीने पहले भाजपा को जो व्यापक जनसमर्थन मिल रहा था वह अब पूर्ण बहुमत से कहीं आगे तब्दील होता हुआ स्पष्ट नजर आ रहा है।'

'हारती हुई सेना की तरह कांग्रेस भी इस बार अपने अस्तित्व को बचाने की खातिर एक बार फिर छद्म धर्मनिरपेक्षता के बंकर में छिपकर चुनाव लड़ना चाह रही है।'

'क्या आज तक किसी चुनाव में किसी बड़ी पार्टी ने जाति या संप्रदाय की राजनीति से ऊपर विकास एवं सुशासन की बात करने के लिए इतना गंभीर या सशक्त प्रयास किया है?'

Courtesy: Jagran

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सवाल : चुनाव खत्म होने में गिनती के दिन शेष हैं। मौजूदा चुनावों में आप किस तरह का बदलाव देखते हैं?

जवाब : सबसे बड़ा बदलाव यह है कि आज मतदाता 21वीं सदी की राजनीति देखना चाहता है। इसमें परफॉर्मेंस की बात हो, देश को आगे ले जाने वाले विजन की बात हो और जिसमें विकसित भारत बनाने के रोडमैप की चर्चा हो। अब लोग जानना चाहते हैं कि राजनीतिक दल हमारे बच्चों के लिए क्या करेंगे? देश का भविष्य बनाने के लिए नेता क्या कदम उठाएंगे?

राजनेताओं से आज लोग ये सब सुनना चाहते हैं। लोग पार्टियों का ट्रैक रिकॉर्ड भी देखते हैं। किसी पार्टी ने क्या वादे किए थे, और उनमें से कितने पूरे कर पाई, इसका हिसाब भी मतदाता लगा लेता है। लेकिन कांग्रेस और ‘इंडी गठबंधन’ के नेता अब भी 20वीं सदी में ही जी रहे हैं। आज लोग ये पूछ रहे हैं कि आप हमारे बच्चों के लिए क्या करने वाले हैं तो ये अपने पिता, नाना, परदादा, नानी, परनानी की बात कर रहे हैं। लोग पूछते हैं कि देश के विकास का रोडमैप क्या है तो ये परिवार की सीट होने का दावा करने लगते हैं। वे लोगों को जातियों में बांट रहे हैं, धर्म से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं, तुष्टीकरण की राजनीति कर रहे हैं। ये ऐसे मुद्दे ला रहे हैं, जो लोगों की सोच और आकांक्षा से बिल्कुल अलग हैं।
 
सवाल : क्या आपको लगता नहीं कि चुनाव व्यवस्था और राजनीतिक आचार-व्यवहार में सुधार की आवश्यकता है। अपनी ओर से कोई पहल करेंगे?

जवाब : देश के लोग लगातार उन राजनीतिक दलों को खारिज कर रहे हैं जो नकारात्मक राजनीति में विश्वास रखते हैं। जो सकारात्मक बात या अपना विजन नहीं बताते, वो जनता का विश्वास भी नहीं जीत पाते। जो सिर्फ विरोध की राजनीति में विश्वास रखते हैं, जो सिर्फ विरोध के लिए विरोध करते हैं, ऐसे लोगों को जनता लगातार नकार रही है। ऐसे में उन लोगों को जनता का मूड समझना होगा और अपने आप में सुधार लाना होगा। मैं आपको कांग्रेस का उदाहरण दे रहा हूं। कांग्रेस आज जड़ों से बिलकुल कट चुकी है। वो समझ ही नहीं पा रही है कि इस देश की संस्कृति क्या है। इस चुनाव के दौरान पार्टी नेताओं ने जैसी बातें बोली हैं, उससे पता चलता है कि वो भारतीय लोकतंत्र के मूल तत्व को पकड़ नहीं पा रही।

कांग्रेस नेता विभाजनकारी बयानबाजी, व्यक्तिगत हमले और अपशब्द बोलने से बाहर नहीं निकल पा रहे। उन्हें लग रहा होगा कि उनके तीन-चार चाटुकारों ने अगर उस पर ताली बजा दी तो इतना काफी है। वो इसी से खुश हैं, लेकिन उनको ये नहीं पता चल रहा है कि जनता में इन सारी चीजों को लेकर बहुत गुस्सा है। कांग्रेस तो अहंकारी है, जनता की बात सुनने वाली नहीं है। वो तो नहीं बदल सकती। लेकिन जो उनके सहयोगी दल हैं, वो देखें कि जनता का मूड क्या है, वो क्या बोल रही है। उन्हें समझना होगा कि इस राह पर चले तो लगातार रिजेक्शन ही मिलने वाला है। मुझे लगता है कि लोग इन्हें रिजेक्ट कर-कर के इनको सिखाएंगे। राजनीति में जो सुधार चाहिए वो लोग ही अपने वोट की शक्ति से कर देते हैं। लोग ही राजनीतिक दलों, खासकर नकारात्मक राजनीति करने वालों को सिखाएंगे और बदलाव लाएंगे।
 
सवाल : क्या इस चुनाव में जातीय और धार्मिक विभाजन के सवाल ज्यादा उभर आए हैं? जब चुनाव शुरू हुआ था तो एजेंडा अलग था, आखिरी चरण आने तक अलग?

जवाब : ये सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए, जिन्होंने पहले धर्म के आधार पर देश का विभाजन कराया। अब भी 60-70 साल से ये विभाजन की राजनीति ही कर रहे हैं। एक तरफ उनकी कोशिश होती है कि किसी समाज को जाति के आधार पर कैसे तोड़ा जाए? दूसरी तरफ वो देखते हैं कि कैसे एक वोट बैंक को जोड़कर मजबूत वोट बैंक बनाए रखा जाए। दूसरा, ये सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए जो सिर्फ तुष्टीकरण की राजनीति के लिए एससी, एसटी और ओबीसी का आरक्षण छीनकर धर्म के आधार आरक्षण देना चाहते हैं। इसके लिए वो संविधान के विरुद्ध कदम उठाने को तैयार हैं।

ये सवाल कांग्रेस और ‘इंडी गठबंधन’ वालों से पूछा जाना चाहिए, क्योंकि वही हैं जो वोट जिहाद की बात कर रहे हैं। ये सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए जो अपने घोषणा पत्र में खुलेआम ये लिख रहे हैं कि वो जनता की संपत्ति छीन लेंगे और उसका बंटवारा दूसरों में कर देंगे। ये जो बंटवारे की राजनीति है, विभाजन की सोच है उसे अब विपक्ष खुलकर सामने रख रहा है। अब वो इसे छिपा भी नहीं रहे हैं। वो खुलकर इसका प्रदर्शन कर रहे हैं, तो ये सारे सवाल उनसे पूछे जाने चाहिए। देश और समाज को बांटने वाले ऐसे लोगों को जनता इस चुनाव में कड़ा सबक सिखाएगी।
 
सवाल :  एक देश, एक चुनाव के लिए आपने पहल की थी। क्या आपको लगता है कि इतने बड़े देश में यह संभव है। अगर हां..तो किस तरह से ये लागू हो सकेगा?

जवाब : एक देश, एक चुनाव भाजपा का और हमारी सरकार का विचार रहा है, लेकिन हम ये चाहते हैं कि इसके आसपास एक आम सहमति बने। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें विस्तार से एक देश एक चुनाव के बारे समझाया गया है। इस पर पूरे देश में चर्चा हो, वाद हो, संवाद हो, इसके लाभ और हानि पर बात हो, इसमें क्या किया जा सकता है और कैसे किया जा सकता है। फिर इस पर एक आम सहमति बने। इससे हम एक अच्छे सकारात्मक समाधान पर पहुंच सकते हैं। जो अभी का सिस्टम है उसमें हर समय कहीं ना कहीं चुनाव होता रहता है। ये जो वर्तमान सिस्टम है, ये उपयुक्त नहीं है। ये गवर्नेंस को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इसे बदलने की जरूरत तो है ही, पर हम कैसे करेंगे, इस पर संवाद की जरूरत है।

आपने ये भी पूछा कि क्या हमारे देश में ये संभव है। तो आप इतिहास में देख लीजिए कि जब संसाधन, टेक्नॉलजी कम थी तब भी हमारे देश में एक देश, एक चुनाव हो रहे थे। आजादी के बाद पहले के कुछ चुनाव इसी तरह हुए। उसके कुछ वर्ष बाद ही बदलाव हुए हैं। अब भी एक-दो राज्यो में लोकसभा के साथ राज्य विधानसभाओं के चुनाव हो रहे हैं। चुनाव आयोग एक चुनाव कराने के लिए पूरे देश में काम कर रहा है तो उसी में राज्यों का चुनाव भी कराया जा सकता है। इसमें कोई समस्या नहीं है, ये संभव है।
 
सवाल : गर्मी के कारण कम मतदान के चलते फिर से मांग उठी है कि इस मौसम में चुनाव नहीं होना चाहिए। क्या आप भी चुनाव के कैलेंडर में किसी तब्दीली के पक्षधर हैं?

जवाब : गर्मी के कारण कुछ समस्याएं तो होती हैं। आप देख सकते हैं कि मैंने अपनी पार्टी में सभी उम्मीदवारों को और सामान्य लोगों को जो पत्र लिखा है, उसमें मैंने गर्मी का जिक्र किया है। पत्र में लिखा है कि गर्मियों में बहुत समस्या होती है, आप अपने आरोग्य का ख्याल रखें। फिर भी लोकतंत्र के लिए जो हमारा कर्तव्य है, हमें उसे निभाना चाहिए।

मुझे पता है कि गर्मियों में क्या समस्या होती है। लेकिन इसमें क्या होना चाहिए, क्या बदलाव होना चाहिए, होना चाहिए या नहीं होना चाहिए, ये किसी एक व्यक्ति का, एक पार्टी का या सिर्फ सरकार का निर्णय नहीं हो सकता। पूरे सिस्टम, लोगों, मतदाता, राजनीतिक दलों, कार्यकर्ताओं की सहमति बननी चाहिए। जब एक सामूहिक राय बनेगी कि इसमें कुछ बदलाव लाना चाहिए या नहीं लाना चाहिए, तभी कुछ हो सकता है।

सवाल : आखिरी चरण में पूर्वी उत्तर प्रदेश की 13 और बिहार की 8 सीटों पर चुनाव शेष है। आपने कहा है कि गरीबी और अभाव झेलने वाला पूर्वांचल दस साल से प्रधानमंत्री चुन रहा है। इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। वह बहुत कुछ क्या है, बताना चाहेंगे?

जवाब : देखिए, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रति पिछली सरकारों का रवैया बहुत ही निराशाजनक रहा है। इन इलाकों से वोट लिए गए, अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी की गयीं पर जब विकास की बारी आई तो इन्हें पिछड़ा कहकर छोड़ दिया गया। पूर्वांचल में बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए लोगों को तरसाया गया। देश के 18000 गांवों में बिजली नहीं थी। इनमें पूर्वांचल और बिहार के बहुत से इलाके थे। जब मैंने बहनों-बेटियों की गरिमा के लिए टायलेट्स का निर्माण कराया तो बड़ी संख्या में उसका लाभ हमारे पूर्वांचल के लोगों को मिला।

आज हम इसी इलाके में विकास की गंगा बहा रहे हैं। एक्सप्रेसवे से लेकर ग्रामीण सड़क तक हम इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार रहे हैं, बदल रहे हैं। हम हेल्थ इंफ्रा भी बना रहे हैं। आज पूर्वांचल और बिहार दोनों ही जगह पर एम्स है। इसके अलावा हम इन इलाकों में मेडिकल कॉलेज का नेटवर्क बना रहे हैं। हम पुराने इंफ्रा को अपग्रेड भी कर रहे हैं। अब हम यहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा दे रहे हैं। हमें आगे बढ़ना है, लेकिन हमारा बहुत सारा समय, संसाधन और ऊर्जा पिछले 60-70 वर्षों के गड्ढों को भरने में खर्च हो रही है। हम इसके लिए लगातार तेजी से काम कर रहे हैं। मैं वो दिन लाना चाहता हूं, जब शिक्षा और रोजगार के लिए इन इलाकों के युवाओं को पलायन ना करना पड़े। उनका मन हो तो चाहे जहां जाएं पर उनके सामने किसी तरह की मजबूरी ना हो।   

सवाल : गंगा निर्मलीकरण योजना के साथ ही वरुणा, असि और अन्य नदियों की सफाई की कितनी जरूरत मानते हैं आप?

जवाब : हमारे देश में नदियों की पूजा होती है। हमारी परंपराओं, संस्कारों में प्रकृति का महत्व स्थापित किया गया है। इसके बावजूद नदियों की साफ-सफाई को लेकर सरकार और समाज में उदासीनता बनी रही। ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि दशकों तक देश की सरकारों ने नदियों को एक डंपिंग ग्राउंड की तरह इस्तेमाल किया। नदियों की स्वच्छता को लेकर कोई जागरुकता अभियान चलाने का प्रयास नहीं हुआ।

गंगा, वरुणा, असि समेत देश की सभी नदियों को स्वच्छ बनाने और उनकी सेहत को बेहतर करने के प्रयास जारी हैं। मैंने बहुत पहले नदियों के एक्वेटिक इकोसिस्टम को बदलने की जरूरत बताई थी। आज देश नदियों की स्वच्छता को लेकर गंभीर है। वाटर मैनेजमेंट, सीवेज मैनेजमेंट और नदियों का प्रदूषण कम करने के लिए लोग भी अपना योगदान देने को तैयार हैं। इस दिशा में जन भागीदारी से हमें अच्छे परिणाम मिलेंगे।

सवाल : 2014 में जब आपके पास देश के अलग-अलग हिस्सों से चुनाव लड़ने के प्रस्ताव आ रहे थे, तब आपने काशी को क्यों चुना?

जवाब : मैं मानता हूं कि मैंने काशी को नहीं चुना, काशी ने मुझे चुना है। पहली बार वाराणसी से चुनाव लड़ने का जो निर्णय हुआ था, वो तो पार्टी ने तय किया था। मैंने पार्टी के एक सिपाही के तौर पर उसका पालन किया, लेकिन जब मैं काशी आया तो मुझे लगा कि इसमें नियति भी शामिल है। काशी उद्देश्यों को पूरा करने की भूमि है। अहिल्या बाई होल्कर ने बाबा का भव्य धाम बनाने का संकल्प पूरा करने के लिए काशी को चुना था। मोक्ष का तीर्थ बनाने के लिए महादेव ने काशी को चुना। इस नगरी में तुलसीदास राम का चरित लिखने का उद्देश्य लेकर पहुंचे। महामना यहां सर्वविद्या की राजधानी बनाने आए। शंकराचार्य ने काशी को शास्त्रार्थ के लिए चुना। इन सबकी तपस्या से प्रेरणा लेकर और इनके आशीर्वाद से काशी की सेवा के काम को आगे बढ़ा रहा हूं।

मुझे काशी में जिस तरह की अनुभूति हुई, वो अभूतपूर्व है। इसी वजह से जब मैं यहां आया तो मैंने कहा कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है, अब तो मैं ये भी कहता हूं कि मां गंगा ने मुझे गोद ले लिया है। वाराणसी में मुझे बहुत स्नेह मिला। काशीवासियों ने एक भाई, एक बेटे की तरह मुझे अपनाया है। शायद काशीवासियों को मुझमें उनके जैसे कुछ गुण दिखे हों। जो स्नेह और अपनापन मुझे यहां मिला है, उसे मैं विकास के रूप में लौटाना चाहता हूं और लौटा रहा हूं।

दूसरी बात, काशी पूरे देश और दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी है। हजारों सदियों से यहां पूरे भारत से लोग आते रहे हैं। यहां के लोगों का हृदय इतना विशाल है कि जो भी यहां आता है, लोग उसे अपना लेते हैं। काशी में ही आपको एक लघु भारत मिल जाएगा। देश के अलग-अलग क्षेत्रों से यहां आकर बसे लोग काशी को निखार रहे हैं, संवार रहे हैं। वो अभी भी अपनी जड़ों से जुडे़ हैं, लेकिन दिल से बनारसी बन गये हैं। कोई कहीं से भी आए, काशी के लोग उसे बनारसी बना देते हैं। काशी और काशीवासियों ने मुझे भी अपना लिया है।
 
सवाल : हरित काशी और इको फ्रेंडली काशी के लिए आपकी क्या सोच है?

जवाब :  जब काशी के पूरे वातावरण और पर्यावरण की चर्चा होती है तो उसमें गंगा नदी की स्वच्छता एक महत्वपूर्ण बिंदु होता है। आज गंगा मां कितनी निर्मल हैं, उसमें कितने जल जीवन फल-फूल रहे हैं, ये परिवर्तन सबको दिखने लगा है। गंगा की सेहत सुधर रही है ये बहुत महत्वपूर्ण आयाम है।

हम गंगा एक्शन प्लान फेज-2 के तहत सीवर लाइन बिछाने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा 3 सीवेज पंपिंग स्टेशनों और दीनापुर 140 एमएलजी के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण हुआ है। पुरानी ट्रंक लाइन का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। कोनिया पंपिंग स्टेशन, भगवानपुर एसटीपी, पांच घाटों का पुनर्रुद्धार किया गया है। ट्रांस वरुणा सीवेज योजना पर भी तेजी से काम चल रहा है। नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत रमना में एसटीपी का निर्माण, रामनगर में इंटरसेप्शन, डायवर्जन और एसटीपी का निर्माण हुआ है। इस तरह की रिपोर्ट भी बहुत बार आ चुकी है कि गंगा में एक्वेटिक लाइफ सुधर रही है। गैंगटिक डॉल्फिन फिर से दिखनी शुरू हो गई हैं और उनकी संख्या बढ़ी है। इसका मतलब है कि मां गंगा साफ हो रही हैं। यहां पर सोलर पावर बोट्स देने का अभियान भी हम तेजी से चला रहे हैं। इससे पर्यावरण बेहतर होगा।

हमारी सरकार ने प्रकृति के साथ प्रगति का मॉडल दुनिया के सामने रखा है। हम क्लीन एनर्जी पर काम कर हैं, हम कार्बन इमिशन को लेकर अपने लक्ष्यों से आगे हैं, हम सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ काम कर रहे हैं। हमारी सरकार में देश में ग्रीन प्लांटेशन और वनों की संख्या बढ़ी है। काशी में भी हरियाली बढ़ाने के सभी प्रयास किए जा रहे हैं।
 
सवाल : काशी समेत पूरे पूर्वांचल के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

जवाब : आजादी के बाद पूर्वांचल को पिछड़ा बताकर सरकारों ने इससे पल्ला झाड़ लिया था। हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर कोई काम नहीं हुआ था। स्वास्थ्य सेवाओं को बदहाल बनाकर रखा गया था। यहां पर किसी को गंभीर समस्या होती थी तो लोग लखनऊ या दिल्ली भागते थे। हमने पूर्वांचल की स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाने पर जोर दिया। पिछले 10 साल में पूर्वांचल के हेल्थ इंफ्रा के लिए जितना काम हुआ है, उतना आजादी के बाद कभी नहीं हुआ। आज पूरे पूर्वांचल में दर्जनों मेडिकल कॉलेज हैं। जब मैं काशी आया तो मैंने देखा कि ये पूरे पूर्वांचल के लिए स्वास्थ्य का बड़ा हब बन सकता है। हमने काशी की क्षमताओं का विस्तार किया। आज बहुत से मरीज हैं जो पूरे यूपी, बिहार से काशी में आकर अपना इलाज करा रहे हैं। कैंसर के इलाज के लिए पहले यूपी के लोग दिल्ली, मुंबई भागते थे। आज वाराणसी में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर सेंटर है। लहरतारा में होमी भाभा कैंसर अस्पताल चल रहा है। बीएचयू में सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल है।

150 बेड का क्रिटिकल केयर यूनिट बन रहा है। पांडेयपुर में सुपर स्पेशियलिटी ईएसआईसी हॉस्पिटल सेवा दे रहा है। बीएचयू में अलग से 100 बेड वाला मैटरनिटी विंग बन गया है। इसके अलावा भदरासी में इंटीग्रेटेड आयुष हॉस्पिटल, सारनाथ में सीएचसी का निर्माण हुआ है। अन्य सीएचसी में बेड की संख्या और ऑक्सीजन सपोर्ट बेड की संख्या बढ़ाई गई है। कबीर चौरा में जिला महिला चिकित्सालय में नया मैटरनिटी विंग, बीएचयू में मानसिक बीमारियों के लिए मनोरोग अस्पताल बनाए गये हैं। नवजातों की देखभाल, मोतियाबिंद ऑपरेशन जैसे तमाम काम किए जा रहे हैं।

हमारी कोशिश है कि एक होलिस्टिक सोच से हम लोगों को बीमारियों से बचा सकें और अगर उनको बीमारियां हों तो उनका खर्च कम से कम हो। इसी सोच के तहत यहां वाराणसी में करीब 10 लाख लोगों को आयुष्मान कार्ड बनाकर दिए जा रहे हैं। इस कार्यकाल में हम 70 साल से ऊपर से सभी बुजुर्गों को आयुष्मान भारत के सुरक्षा घेरे में लाने जा रहे हैं, जिससे हर साल 5 लाख रुपए तक मुफ्त इलाज हो सकेगा।

पहले अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं को लग्जरी बनाकर रख दिया गया था। हम स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ, सस्ता और गरीबों की पहुंच में लाना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हों, इसके लिए हम ज्यादा से ज्यादा संस्थान बना रहे हैं। वर्तमान संस्थानों की क्षमता बढ़ा रहे हैं। इसके साथ जन औषधि केंद्र से लोगों को सस्ती दवाएं मिलने लगी हैं। हमारी सरकार ने ऑपरेशन के उपकरण सस्ते किए हैं। हम आयुष को बढ़ावा दे रहे हैं, ताकि स्वास्थ्य सेवाएं हर व्यक्ति की पहुंच में हों।

सवाल : पहली बार शहर के प्रमुख और प्रबुद्ध जनों को आपने पत्र लिखा है। वे इस पत्र को लेकर आम लोगों तक जा रहे हैं। इस पत्र का उद्देश्य और लक्ष्य क्या है?

जवाब : काशी के सांसद के तौर पर मेरा ये प्रयास रहता है कि बनारस में समाज के हर वर्ग की पहुंच मुझ तक हो और मैं उनके प्रति जबावदेह रहूं। ये आज की बात नहीं है, मैंने पहले भी इस तरह के प्रयास किए हैं। लोगों से जुड़ने के लिए मैंने सम्मेलनों का आयोजन किया है। 2022 में मैंने प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन किया, उससे पहले भी मैं काशी के विद्वानों और प्रबुद्ध लोगों से मिला हूं। मैंने महिला सम्मेलन किया है, मैं बुनकरों से मिला हूं। मैंने बच्चों से मुलाकात की। गोपालकों, स्वयं सहायता समूह की बहनों से भी मिल चुका हूं। मैं हर समय कोशिश करता हूं कि वाराणसी में समाज के हर वर्ग के लोगों से जुड़ सकूं। आज आप जिस पत्र की बात कर रहे हैं वो वाराणसी के लोगों से जुड़ने का, संवाद का ऐसा ही एक प्रयास है। दूसरा, ये लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बहुत जरूरी है कि समाज के प्रमुख और प्रबुद्ध लोगों के माध्यम से जन-जन तक लोकतंत्र में भागीदारी का संदेश पहुंचे। काशी के विकास के संबंध में संदेश जाए। जब ऐसा संदेश जाता है कि काशी के विकास के लिए वोट करना है, तो इससे लोकतंत्र समृद्ध होता है। इससे लोग मतदान के प्रति, संवैधानिक व्यवस्था के प्रति अपनी जिम्मेदारी महसूस करते हैं।

Following is the clipping of the interview:

Source: Hindustan