दिन-रात के कमरतोड़ प्रचार के बाद भी चेहरे पर जरा सी थकान के निशान तक नहीं। पांच चरणों के मतदान के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पूरी तरह आत्मविश्वास से लबरेज नजर आते हैं। भाजपा व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का दावा कर रहे मोदी को सबसे ज्यादा भरोसा देश के युवा मतदाताओं पर है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए वह कहते हैं कि लोगों का मिजाज बदला है और वे विकास चाहते हैं। वोटबैंक की राजनीति करने वाले दलों को सबक सिखाकर जनता ने इस दफा भाजपा को पूर्ण बहुमत देने का निर्णय ले लिया है। दो जगह से चुनाव लड़ने या पूरे चुनाव अभियान पर हावी होने या फिर नकारात्मक लाइन पर चुनाव प्रचार जैसे मसलों पर उन्होंने दैनिक जागरण के सीनियर एक्जीक्यूटिव एडीटर प्रशांत मिश्र से लंबी बातचीत की।
चुनाव शुरू होने के पहले भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर रही थी। फिर 272 प्लस का लक्ष्य रखा गया। अब 300 सीटें जीतने की बात होने लगी है। यह आत्मविश्वास है या माहौल बनाने की रणनीति?
-यह तो वही बात हुई कि पहले मुर्गी आई या अंडा? हममें आत्मविश्वास है इसीलिए हम मेहनत कर रहे हैं। इसके कारण अपार समर्थन भी मिल रहा है और इस प्रकार माहौल तैयार हो रहा है। जैसा माहौल तैयार हुआ है, उससे हमारा आत्मविश्वास और भी बढ़ा है। 13 सितंबर को भाजपा ने मुझे पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया। उसके बाद से 380 से ज्यादा रैलियों को संबोधित कर चुका हूं। चुनाव की घोषणा के बाद से लगभग 185 रैलियों का आयोजन तय हुआ। इसके अलावा 3डी टेक्नोलॉजी के जरिये भी देश के कोने-कोने में जनता से मुखातिब होने का सिलसिला कायम है। कुल मिलाकर 1000 रैलियां 3डी द्वारा हो जाएंगी। जिस प्रकार का जनाक्रोश कांग्रेस के खिलाफ है, उसे देखते हुए दो बातें तय दिखती हैं- पहली, कांग्रेस आजाद भारत के अपने चुनावी इतिहास में सबसे निचली पायदान पर सिमट जाएगी। दूसरी यह कि राजग व भाजपा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तय है।
आप कहीं अतिआत्मविश्वास का शिकार तो नहीं..?
-(बीच में ही) पंडित जी.इस बार अब तक के चरणों में हुए भारी मतदान से एवं खासकर युवाओं ने जो अप्रत्याशित रुचि एवं भागीदारी मतदान प्रक्रिया में दिखाई है, उससे यह बिल्कुल साफ है कि इस बार का चुनाव अभूतपूर्व है। इस बार लोग न सिर्फ मतदान करने के लिए आगे आ रहे हैं, बल्कि लाखों लोग इंडिया272प्लस डाट कॉम वेबसाइट के जरिये वालिंटियर के रूप में भाजपा के साथ जुड़े हैं। यह एक बड़ा बदलाव है। जिस प्रकार का जनसैलाब रैलियों में उमड़ रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि शायद यह पहला चुनाव है जहां मतदान से पहले ही मानों पूरे देश के लोगों ने तय कर लिया है कि इस बार भाजपा को अवसर प्रदान करना है। पांच-छह महीने पहले भाजपा को जो व्यापक जनसमर्थन मिल रहा था, वह अब पूर्ण बहुमत से कहीं आगे तब्दील होता हुआ स्पष्ट नजर आ रहा है।
कहते हैं कि मोदी हर चीज पर हावी हो जाते हैं। इस बार चुनाव में जिस तरह व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला है, क्या उसका कारण भी यही है? आप इन आरोपों का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं?
-मैं यदि मिथ्या आरोपों का जवाब दूं तो फिर तू-तू, मैं-मैं की जो राजनीति है, वह और आगे चलती है। हां, यह सच है कि मेरे विरोधियों ने शालीनता की सीमा पार कर मुझ पर अनर्गल आरोप लगाए, व्यर्थ प्रलाप किया है। पर मैंने ये तय कर लिया है कि मैं हर अपमान सिर्फ इसलिए सहन कर लूंगा, सारा विष सिर्फ इसलिए पी लूंगा ताकि इस देश के युवाओं, किसानों, माता-बहनों के अहम मुद्दों से कहीं बात भटक न जाए। विरोधी दलों के राजनेता क्या बात करते हैं, उस पर न तो मैं ज्यादा ध्यान देता हूं और न ही टिप्पणी करना जरूरी समझता हूं। लेकिन दस वर्ष के शासन के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार के पास उनके द्वारा किए गए काम या उनकी उपलब्धियों की चर्चा करने के लिए कुछ न हो और वे भाजपा नेताओं पर टिप्पणी करें, इससे यह तो साफ है कि देश के दस बहुमूल्य साल कांग्रेस ने वाकई बर्बाद कर दिए। एक लंबे अरसे बाद राजनीति में लोगों की दिलचस्पी दिख रही है। राजनेताओं के प्रति जहां तिरस्कार और गुस्से की भावना थी, वहीं मैं पहली बार अपार समर्थन एवं स्नेह का भाव देख रहा हूं। यह जो आशा का संचार हुआ है, इस आशा को, इस विश्वास को बनाए रखने की जरूरत है।
आपने अभियान शुरू किया था तो मुद्दा था विकास। भय, भूख और भ्रष्टाचार, लेकिन आपको नहीं लगता कि पूरा चुनाव ध्रुवीकरण पर लड़ा जा रहा है?
-शुरुआत में हमने तय किया था कि इस पूरे चुनाव को विकास एवं सुशासन जैसे सकारात्मक मुद्दों पर लड़ा जाए। यदि अन्य दल भी ऐसा करते तो शायद हमारी चुनावी राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ जाता। अफसोस है कि विरोधी दलों ने चुनाव को उसी पुरानी जाति एवं संप्रदाय की राजनीति की तरफ धकेलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। इसके बावजूद यह पहला चुनाव है जिसमें भाजपा जैसी बड़ी पार्टी विकास एवं सुशासन के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। पिछले छह महीने से मेरा यह पुरजोर प्रयास रहा है कि हम नागरिकों के असली मुद्दों को उठाएं। इस बार देश का मिजाज बदला है और लोगों ने तय किया है कि वे उनके जीवन को छूने वाले असली मुद्दों की बात करने वाली भाजपा को समर्थन देंगे। उन्होंने वोटबैंक की राजनीति करने वाली पार्टियों को सबक सिखाने का निर्णय कर लिया है।
फिर ध्रुवीकरण की सियासत के लिए जिम्मेदार कौन है?
-जिस प्रकार एक हारती हुई सेना अपना अस्तित्व बचाने के लिए बंकर में घुस जाती है उसी तरह कांग्रेस भी इस बार अपने अस्तित्व को बचाने की खातिर एक बार फिर छद्म धर्मनिरपेक्षता के बंकर में छिपकर चुनाव लड़ना चाह रही है। सेक्युलरिज्म की बातें करने वाले दलों को पता नहीं कि 21वीं सदी का भारत एक नया भारत है। आज के युवाओं को जाति-संप्रदाय के आधार पर की जाने वाली राजनीति बिल्कुल नापसंद है। युवाओं को चाहिए एक ऐसी सरकार जो उनकी समस्याओं का समाधान कर सके, जो उनके सपनों को साकार कर सके, जो विकास पर ध्यान देकर उनके लिए रोजगार के अवसर दिला सके।
लेकिन. आरोप आपकी पार्टी के नेताओं पर भी लग रहा है। अमित शाह पर चुनाव आयोग ने पाबंदी भी लगाई..।
-आप मुझे मेरा एक भाषण बताएं, जहां मैंने जाति या संप्रदाय का उल्लेख किया हो। इसी तरह विपक्षी दलों के बड़े नेताओं का एक भाषण ऐसा बताएं, जहां उन्होंने जाति-संप्रदाय का उल्लेख न किया हो। कांग्रेस के कई नेताओं ने अत्यंत आपत्तिजनक बयान दिए हैं और दुर्भाग्य की बात है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अपने ऐसे नेताओं को नियंत्रित करने के बजाय उन्हें अपनी मौन स्वीकृति दी। अमित शाह ने जिस प्रकार चुनाव आयोग का आदर किया और उसके आधार पर उन पर लगी पाबंदी हटाई गई वह स्पष्ट रूप से आयोग के प्रति हमारे सम्मान एवं इस देश की कानून-व्यवस्था और संवैधानिक परंपराओं में हमारी प्रगाढ़ आस्था को परिलक्षित करता है। ध्रुवीकरण की बात करने वाले विश्लेषकों से मैं पूछना चाहूंगा कि क्या आज तक किसी पार्टी ने विकास एवं सुशासन की बात करने के लिए इतना गंभीर या सशक्त प्रयास किया है? भ्रामक प्रचार करने वालों की दाल नहीं गलने वाली। इस बार देश का मतदाता जागा है और उसने भाजपा को समर्थन करने का मन बना लिया है।
क्या भाजपा आश्वस्त करेगी कि वह ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं करेगी?
-हमारी राजनीति सबको साथ लेकर चलने की है। हमारा तो नारा ही है, सबका साथ और सबका विकास। मैं भले ही चुनाव हार जाऊं, लेकिन देश और समाज को तोड़ने वाली राजनीति नहीं करूंगा।
मोदी जी, चुनाव आयोग के आंकड़े दिखाते हैं कि इस चुनाव में 23 करोड़ से ज्यादा 'न्यू एज वोटर्स' ऐसे युवा मतदाता वोट डालेंगे, जिनमें बहुत सारे प्रथम बार मतदान करने वाले हैं। बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दों के तुरंत हल ढूंढ़ने की जरूरत है, युवा केंद्रित इन मुद्दों को कैसे प्राथमिकता दी जाएगी?
-देखिये, यूथ मेरे लिए सिर्फ 'न्यू एज वोटर्स' नहीं है, बल्कि 'न्यू एज पावर' है। और इन युवाओं को 'राइट अपरचुनिटी' तथा 'राइट इनवायरर्मेट' देना हमारी प्राथमिकता होगी। इसके अंतर्गत स्किल डेवलपमेंट पर जोर देना हमारा सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा। परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि संप्रग सरकार ने इस मुद्दे पर सिर्फ समितियां ही बनाई। वास्तव में हमें कमेटी नहीं, कमिटमेंट चाहिए। बेरोजगारी इस समय हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है। पिछले एक दशक की जॉबलेस ग्रोथ ने हमें ऐसी स्थिति में ला दिया है, जहां हमारे युवा बेरोजगार बैठे हैं। जहां राजग के छह वर्ष में छह करोड़ रोजगार प्रदान किए गए, वहीं संप्रग के दस वर्ष में डेढ़ करोड़ से भी कम रोजगार सृजित किए गए। युवाओं को नौकरियां चाहिए। उन्हें स्वरोजगार के अवसर चाहिए। अपने सपनों को साकार कर सकें, ऐसी जिंदगी चाहिए। युवाओं को शिक्षा देना, स्किल डेवलपमेंट पर फोकस करके उन्हें रोजगार मुहैया कराना, यह मेरी सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी।
एक दौर था जब यह सवाल उठ रहे थे कि मोदी के केंद्रीय भूमिका में आने पर राजग का दायरा कम होगा। लेकिन वर्तमान में राजग के साथ 27-28 दलों का आंकड़ा है। ऐसा क्या हुआ जो एकबारगी कई दल आपके साथ जुड़ने लगे हैं?
-इस बार राजग या एनडीए का मतलब सिर्फ नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस नहीं, परन्तु नेशनल डेवलपमेंट अलायंस भी बन गया है। सही मायने में यदि कोई ध्रुवीकरण हुआ है तो वह विकास के आधार पर हुआ है। एक तरफ भाजपा एवं राजग के हमारे साथी दल हैं, जो विकास एवं सुशासन की राजनीति करना चाहते हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस एवं उसके साथी दल हैं जो अभी भी धर्म एवं जाति आधारित विघटन की राजनीति करना चाहते हैं। 25 से अधिक राजनीतिक दलों ने राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए जो देश के हित में उचित है, वैसी विकास की राजनीति को अपनाया है एवं भाजपा का साथ देने का निर्णय किया है। शायद स्वतंत्र भारत की चुनावी राजनीति में ये सबसे बड़ा प्री-पोल अलायंस है। मैं उन सभी दलों का आभारी हूं, जिन्होंने इस देश की जनता की आवाज सुनकर उनके सपनों का साकार करने के लिए भाजपा का साथ देने का फैसला किया। उन सभी दलों ने झूठ के बादल छाए होने के बावजूद सच्चाई को समझ अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया है।
भाजपा नेताओं का दावा है कि देश में मोदी लहर चल रही है। क्या इस लहर का असर उन राज्यों पर भी दिखेगा, जहां अब तक पार्टी खाता नहीं खोल पाई है?
-अब ये कहना गलत होगा कि मोदी की लहर सिर्फ भाजपा नेताओं को दिख रही है। लगभग हर चुनावी समीक्षक, हर सर्वे में देश के लोगों की इच्छा साफ दिखाई पड़ रही है। मैं तो कहता हूं कि ये सिर्फ एक लहर या आंधी नहीं, सुनामी है और इस बार उत्तर हो या दक्षिण, पूरब हो या पश्चिम, पूरा भारत एक मन बना चुका है। दक्षिण भारत में भी इस बार भाजपा एवं साथी दलों को बड़ी विजय मिलती स्पष्ट दिख रही है। और तो और इस बार दक्षिण एवं पूर्व के कई राज्यों में कांग्रेस का तो खाता तक नहीं खुलेगा।
लालकृष्ण आडवाणी का कहना है कि ऐसा चुनाव उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। आप क्या कहेंगे?
-जिन्होंने भी पिछले 25-30 साल से देश की राजनीति को नजदीक से देखा है, वे सभी स्वीकार कर रहे हैं कि यह चुनाव हर मायने में अभूतपूर्व है। ये शायद पहला चुनाव है जहां वर्तमान सरकार के खिलाफ गुस्सा एवं वैकल्पिक सरकार प्रदान करने वाली पार्टी के प्रति आशा, ये दोनों चीजें एक साथ देखने को मिल रही है। ये पहला चुनाव है, जहां देश की जनता ने एकमत होकर एक भ्रष्ट एवं निकम्मी सरकार को उखाड़ फेंकने का फैसला किया है। ये आक्रोश एवं गुस्सा राजनीतिक व्यवस्था के प्रति नहीं, परन्तु केवल कांग्रेस पार्टी एवं उसके साथी दलों के प्रति है। अमूमन ऐसे में राजनीतिक व्यवस्था के प्रति आक्रोश एवं तिरस्कार की भावना देखने को मिलती है।
मतलब पूरा चुनाव निगेटिव लाइन पर जा रहा है?
-नहीं..इस बार न सिर्फ मजबूत सत्ता विरोधी लहर दिख रही है, परंतु 'निगेटिव वोट' के साथ-साथ एक स्पष्ट 'पोजिटिव वोट फार चेंज' भी दिखाई पड़ता है। दूसरी बात, शायद ये पहला चुनाव है, जिसने देश भर के युवाओं को राजनीति की तरफ खींचा है एवं राजनीति में उनकी दिलचस्पी जगाई है। मानों पहली बार इस देश के युवा अपने जीवन की सफलता की कुंजी अपने हाथों में लेना चाहता है। इस कारण मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस बार देशभर में अप्रत्याशित मतदान होगा एवं युवा मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी उसमें रहेगी। तीसरा बिंदु जिस कारण इस चुनाव को अभूतपूर्व कहा जा सकता है, वह यह है कि इस बार का मतदाता अकल्पनीय परिपक्वता प्रदर्शित कर रहा है। जिन राज्यों में लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव एक साथ हो रहे हैं, वहां का मतदाता इतनी परिपक्वता से पेश आ रहा है कि उसे इस बात का अंदाज है कि लोकसभा में किसे वोट देना है एवं विधानसभा में किसे।
आपसे अगर एक लाइन में पूछा जाए कि इस बार के चुनाव का मुख्य मुद्दा क्या है तो?
-इस बार का चुनाव कोई दल या व्यक्ति नहीं लड़ रहा, बल्कि पूरा देश लड़ रहा है। यह शायद पहला चुनाव है, जहां न संप्रदाय के आधार पर वोट पड़ेंगे और न ही जाति के आधार। पहली बार 'इंडिया फर्स्ट' के नारे को जमीन पर सार्थक होते हुए देखा जा सकता है। सही मायने में यह पहला चुनाव है, जो विकास के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। जहां लोगों में सही मायने में आशा का संचार हुआ है। और लोग अपने सपनों के भारत को संजोने के लिए भाजपा को वोट दे रहे हैं।
आप दो स्थानों से चुनाव लड़ रहे हैं। इस पर कुछ सवाल उठ रहे हैं.?
-ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि कोई व्यक्ति दो जगह से चुनाव लड़ रहा है। कानून में भी इसकी इजाजत है और ये निर्णय पार्टी ने सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर सामूहिक तौर पर किया है।
अभी हाल में संजय बारू और पीसी परख ने किताबें लिखी हैं। पीएम और कांग्रेस दोनों घेरे में हैं। लेकिन सरकार का कहना है कि बारू झूठ बोल रहे हैं। आप क्या कहेंगे?
-इन किताबों में ऐसी कोई बात नहीं लिखी गई है, जो पहले से देश के लोगों को पता नहीं थी। इसीलिए किसी का ये कहना कि बारू झूठ बोल रहे हैं, गले नहीं उतरता। संजय बारू पर आक्रमण करने वाले लोगों ने ये तो कहा कि उन्होंने विश्वासघात किया है, इस पुस्तक के रिलीज होने के समय पर भी प्रश्नचिह्न लगाए एवं करीबी सलाहकार द्वारा इसे औचित्य भंग भी करार दिया गया। परन्तु कांग्रेस या सरकार में किसी ने भी पुस्तक में लिखी बातों एवं जानकारियों की सत्यता पर सवाल नहीं उठाए हैं। जो तथ्य एंव सच्चाई सामने आई है, वह बड़ी गंभीर है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण पद की गरिमा को जैसे ठेस पहुंचाई गई है। इससे कहीं न कहीं देश की साख भी कम हुई है। जो काम एक छोटे से राज्य में भी हो, उसकी निंदा की जाती है, वैसा दस साल तक प्रधानमंत्री पद के साथ कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने किया, ये दुर्भाग्यपूर्ण है। परंतु इससे कहीं ज्यादा चिंता उन बुद्धिजीवियों की चुप्पी से होती है जो अब तक इस मामले को लेकर मौन साधे हुए हैं। बारू की किताब 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' के बारे में कहना चाहूंगा कि यह एक्सीडेंट देश को बहुत महंगा पड़ा है। इस एक्सीडेंट से देश का जो नुकसान पहुंचा है, उसे रिपेयर करने में बहुत मेहनत लगेगी। वैसे तो एक्सीडेंट कहना भी गलत होगा, क्योंकि एक्सीडेंट 'हो जाते हैं.. कराए नहीं जाते..'।
गुजरात में आपका लंबा अनुभव रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की राजनीति में आपको क्या अलग दिख रहा है?
-दरअसल मोटे तौर पर हमारे देश के लोगों की समस्याएं समान हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोगों को पिछले कई सालों से जातिवाद का जहर फैलाने वाली पार्टियों का कुशासन भी झेलना पड़ा। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश एवं बिहार की भूमिका बहुत बड़ी और अहम रहने वाली है। यह जायज भी है। क्योंकि जब तक उत्तरप्रदेश एवं बिहार विकास की दौड़ में आगे न आएं, तब तक भारत विकसित नहीं हो सकता। उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों में और विशेषकर वहां के युवाओं में इस बार भाजपा को लेकर बहुत उत्साह है, बहुत आशाएं भी हैं। दरअसल अब ये स्पष्ट हो रहा है कि बिहार एवं उत्तरप्रदेश के लोग भी विकास एवं सुशासन के लिए उतने ही तत्पर हैं, जितने अन्य राज्यों के लोग। वहां के लोगों ने इस बार भाजपा को भारी बहुमत से विजयी बनाने का निर्णय कर लिया है।
'पांच-छह महीने पहले भाजपा को जो व्यापक जनसमर्थन मिल रहा था वह अब पूर्ण बहुमत से कहीं आगे तब्दील होता हुआ स्पष्ट नजर आ रहा है।'
'हारती हुई सेना की तरह कांग्रेस भी इस बार अपने अस्तित्व को बचाने की खातिर एक बार फिर छद्म धर्मनिरपेक्षता के बंकर में छिपकर चुनाव लड़ना चाह रही है।'
'क्या आज तक किसी चुनाव में किसी बड़ी पार्टी ने जाति या संप्रदाय की राजनीति से ऊपर विकास एवं सुशासन की बात करने के लिए इतना गंभीर या सशक्त प्रयास किया है?'
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